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महात्मा गांधी की वर्धा शिक्षा योजना
महात्मा गांधी की वर्धा शिक्षा योजना– ब्रिटिश संसद ने 1935 में “भारत सरकार अधिनियम” पास किया। यह अधिनियम 1937 में लागू किया गया। इस अधिनियम से भारत में द्वैध शासन की समाप्ति हुई और प्रान्तों में स्वशासन स्थापित हुआ। उस समय भारत 11 प्रान्तों में विभाजित था। इन 11 में से 7 प्रान्तों में कांग्रेस मंत्रिमण्डल बने और एक नये युग की उस समय राष्ट्र का नेतृत्व गाँधी जी के हाथों में था। उन्होंने 11 अगस्त 1937 ई० के शुरूआत हुई। अखबार में प्रान्तीय सरकारों को 7 से 14 वर्ष के बच्चों की शिक्षा का भार अपने ऊपर लेने का सुझाव दिया। इसके बाद 2 अक्टूबर 1937 ई0 के हरिजन में लिखा कि प्राथमिक शिक्षा 7 वर्ष या इससे अधिक समय की हो और इसमें अंग्रेजी को छोड़कर वे सब विषय पढ़ाये जायें जिन्हें मैट्रीकुलेशन परीक्षा के लिए पढ़ाया जाता है। साथ ही किसी हस्तशिल्प या उद्योग को अनिवार्य रूप से पढ़ाया-सिखाया जाए। गाँधी जी के इन विचारों से देश में एक नवीन शैक्षिक क्रान्ति का शुभारम्भ हुआ।
अखिल भारतीय राष्ट्रीय शिक्षा सम्मेलन, वर्धा – 22-23 अक्टूबर 1937ई0 को वर्धा में “मारवाड़ी शिक्षा मण्डल” की रजत जयन्ती मनाई जाने वाली थी। श्री मन्त्रानारायण अग्रवाल इसके आयोजक थे। गाँधी जी ने इन्हें इस अवसर पर एक शिक्षा सम्मेलन का आयोजन करने का सुझाव दिया। अग्रवाल साहब ने इस अवसर पर भारत के सातों कांग्रेस मंत्रिमण्डलों के शिक्षा मन्त्रियों और देश के चोटी के शिक्षाशास्त्रियों, विचारकों और राष्ट्रीय नेताओं को आमंत्रित किया और अखिल भारतीय राष्ट्रीय शिक्षा सम्मेलन ” का आयोजन किया। इसे “वर्धा शिक्षा” सम्मेलन” भी कहा जाता है। इस सम्मेलन का सभापतित्व स्वयं गाँधी जी ने किया था।
सभापति पद से बोलते हुए गाँधी जी ने अपने शैक्षिक विचार प्रस्तुत किए। उन्होंने तत्कालीन शिक्षा को अपव्ययपूर्ण और हानिप्रद बताया। उन्होंने प्राथमिक शिक्षा के सम्बन्ध में 7 मूलभूत बातें कहीं। पहली यह कि देश में 7 से 14वर्ष तक के बच्चों के लिए अनिवार्य एवं निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था हो। दूसरी यह कि यह शिक्षा सभी के लिए समान हो। तीसरी यह कि यह शिक्षा देश की ग्रामीण जनता के लिए समान हो। चौथी यह कि इसमें भाषा, गणित आदि को शिक्षा के साथ साथ बच्चों को सफाई, स्वास्थ्य रक्षा, भोजन के नियम तथा माता पिता के कार्यों में हाथ बंटाने की शिक्षा दी जाय। पाँचवी यह कि शिक्षा का माध्यम मातृभाषा हो। छठी यह कि इसमें कृषि व भारतीय हस्त कौशलों की शिक्षा दी जाये। सातवीं व अन्तिम यह कि समस्त शिक्षा हस्तकौशलों के माध्यम से दी जाय और शिक्षा को स्वावलम्बी बनाया जाये। उन्होनें इस बात पर बहुत बल दिया कि स्कूलों में होने वाले उत्पादन से स्कूलों का व्यय निकलना चाहिए और इस शिक्षा को प्राप्त करने के बाद बच्चे अपनी जिविका चला सकने में समर्थ हों। गाँधी जी
के इन विचारों पर खुलकर चर्चा हुई और अन्त में निम्नलिखित प्रस्ताव पारित हुए-
1. राष्ट्र के 7 से 14 आयु वर्ग के सभी बच्चों के लिए अनिवार्य एवं निःशुल्क प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था की जाए।
2. शिक्षा का माध्यम मातृभाषा हो।
3. शिक्षा किसी हस्तकौशल के माध्यम से दी जाय।
4. इस स्तर का पाठयक्रम बच्चों की अपनी आवश्यकताओं के आधार पर बनाया जाय।
5. यह शिक्षा स्वावलम्बी हो, स्कूलों में होने वाले उत्पादन से शिक्षकों का वेतन भुगतान किया जाए।
डा० जाकिर हुसैन समिति, 1937- अखिल भारतीय राष्ट्रीय शिक्षा सम्मेलन वर्धा में प्रस्तावित राष्ट्रीय शिक्षा योजना को अन्तिम रूप देने के लिए जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति डा० जाकिर हुसैन की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया इसे “जाकिर हुसैन समिति” कहा जाता है। समिति ने अपनी रिपोर्ट दो भागों में प्रस्तुत की। प्रथम रिपोर्ट दिसम्बर 1937 में प्रस्तुत की। इसे वर्धा शिक्षा योजना के सिद्धान्त, पाठयक्रम १, प्रशासन और निरीक्षण कार्य पर प्रकाश डाला गया था। दूसरी रिपोर्ट अप्रैल 1938 ई0 में प्रस्तुत की। इसमें आधारभूत हस्तकौशलों से पाठयक्रम के अन्य विषयों का सहसम्बन्ध स्थापित करने पर प्रकाश डाला गया था समिति ने इस योजना को बुनियादी तालीम गया था समिति ने इस योजना को बुनियादी तालीम (basic education) का नाम दिया।
हरिपुरा कांग्रेस अधिवेश, 1938- तभी फरवरी 1938 में हरिपुरा में कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन हुआ। इस अधिवेशन में डा० जाकिर हुसैन समिति की रिपोर्ट को प्रस्तुत किया गया। कांग्रेस ने इसे सर्वसम्मति से स्वीकार किया और साथ ही इसे सभी कांग्रेस शासित प्रदेशों में लागू करने का निर्णय लिया। इसे आज हिन्दी में वर्धा शिक्षा योजना, बुनियादी तालीम और बेसिक शिक्षा आदि नामों से जाना जाता है, पर अंग्रेजी में “बेसिक एजुकेशन” ही कहा जाता है। उत्तर प्रदेश में इसे बेसिक शिक्षा का नाम दिया जाता है’ अतः हम इसे बेसिक शिक्षा के नाम से प्रस्तुत कर रहे हैं। डा० जाकिर हसैन द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट के अनुसार जो बेसिक शिक्षा हरिपुरा अधिवेशन में स्वीकार की गई, यहाँ उसका क्रमबद्ध वर्णन प्रस्तुत है।
बेसिक शिक्षा की रूपरेखा- प्रारम्भ में बेसिक शिक्षा निम्नालिखित रूप में स्वीकार की गयी थी-
1.7 से 14 आयु वर्ग के सभी बच्चों के लिए अनिवार्य एवं निःशुल्क प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था की जाय।
2. शिक्षा का माध्यम मातृ भाषा हो ।
3. सम्पूर्ण शिक्षण किसी आधारभूत शिल्प अथवा उद्योग पर आधारित हो ।
4. शिल्प का चुनाव बच्चों की योग्यता और क्षेत्रीय आवश्यकताओं के आधार पर किया जाए।
5. बच्चों द्वारा निर्मित वस्तुओं का उपयोग हो और उनसे आर्थिक लाभ किया जाए स्कूलों का व्यय पूरा किया जाय।
6. शिल्पों को शिक्षा इस प्रकार दी जाय कि उनसे बच्चे जिविकोपार्जन की जा सके।
7. शिल्पों की शिक्षा में आर्थिक महत्व के साथ साथ उसके सामाजिक एवं वैज्ञानिक महत्व को स्थान दिया जाए।
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