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शैक्षिक दृष्टिकोण से निर्देशन की आवश्यकता
शिक्षा ही एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन किए जा सकते हैं। आज किसी भी राष्ट्र के विकास, उसके स्वरूप को बनाने में शिक्षा ही एक मूलभूत प्रक्रिया है जिसके परिणामस्वरूप ही विकास की गति तेज होती है और उसे उपयोगी बनाया जा सकता है। इसके लिए निर्देशन सेवा का उपयोग आवश्यक हो जाता है।
शैक्षिक दृष्टि से निर्देशन की आवश्यकता निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर स्पष्ट की जा सकती है—
1. अनुशासनहीनता की समस्या – शिक्षा के क्षेत्र में अनुशासनहीनता एक ज्वलन्त समस्या के रूप में उभरकर आयी है। शिक्षा के क्षेत्र में आए दिन हड़ताल, तोड़-फोड़, लूटमार आदि की घटनाएँ देखने को मिलती हैं। इसके पीछे प्रमुख कारण है छात्रों को उचित व्यवसाय का न मिलना। आज की शिक्षा छात्र को समाज में समायोजित नहीं कर पाती है। छात्रों की समस्याओं के समाधान हेतु कोई प्रभावी कदम संस्थाओं द्वारा नहीं उठाए जाते हैं। ऐसी स्थिति में निर्देशन सेवा द्वारा अनुशासनहीनता की समस्या का समाधान निकाला जा सकता है।
2. शैक्षिक उपलब्धियों के स्तर को बनाए रखने की समस्या- आज शिक्षा के क्षेत्र में हम यह देखते हैं कि उसका स्तर दिन पर दिन गिरता जा रहा है। इसके अनेक कारण हैं। शिक्षा देने वाले अध्यापक व शिक्षा लेने वाले छात्र दोनों के अन्दर दोष हैं। आज का सामाजिक वातावरण अध्यापकों की योग्यता, अध्यापकों की उत्तरदायित्वहीनता आदि इसके प्रमुख कारण हैं। इन कारणों को निर्देशन सेवाओं द्वारा ही दूर किया जा सकता है। शैक्षिक उपलब्धियों के स्तर में जो गिरावट आ रही है उसकी असफलता के कारणों का पता करके उन्हें निर्देशन सेवाओं द्वारा दूर किया जा सकता है तथा छात्रों को अधिगम की नवीन तकनीकों से परिचित कराकर शिक्षा के स्तर को उच्च बनाया जा सकता है।
3. पाठ्यक्रम का चयन- नए युग में अनेक नए विषयों का प्रसार हुआ है। सभी व्यक्तियों की रुचियाँ भिन्न-भिन्न होती हैं तथा योग्यता व क्षमता भी अलग-अलग होती है। एक व्यक्ति एक विषय में पारंगत हो सकता है, तो दूसरे में उसकी पारंगतता कम होती है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति अपनी योग्यता, सभ्यता व रुचि के अनुसार विषय का चयन करे जिससे वह अधिक से अधिक विकास कर सके। इसके लिए पाठ्यक्रम चयन हेतु निर्देशन सेवा की परम आवश्यकता है। इसके लिए हम मनोवैज्ञानिक परीक्षणों का प्रयोग भी कर सकते हैं और उनके परिणाम के आधार पर छात्रों को पाठ्यक्रम चयन करने में सहायता प्रदान की जा सकती है।
4. व्यक्तिगत विभिन्नता के कारण- मनोविज्ञान के अनुसार हर व्यक्ति एक-दूसरे से भिन्न होता है। जनसंख्या वृद्धि के कारण विभिन्नताओं का प्रभाव स्पष्टं दृष्टिगोचर होता है। इससे शिक्षा के क्षेत्र में विभिन्न समस्याओं ने जन्म लिया है। जैसे छात्र असन्तोष, प्रशिक्षित अध्यापकों का अभाव, अनुशासनहीनता आदि। इसलिए शिक्षा के क्षेत्र में व्यक्तिगत विभिन्नताओं का विशेष महत्त्व है। सभी व्यक्ति सभी प्रकार की शिक्षा प्राप्त नहीं कर सकते हैं, उनकी क्षमताएँ, योग्यताएँ व रुचियाँ अलग अलग होती हैं। इसलिए विषयों का चयन, उनकी व्यक्तिगत विभिन्नताओं के अनुरूप ही करना चाहिए इसके लिए निर्देशन की आवश्यकता महसूस होती है।
5. अपव्यय अवरोधक की समस्या के निराकरण के लिए- हमारे देश में अपव्यय अवरोधन की समस्या ने विकराल रूप धारण कर लिया है। इस समाधान हेतु भारत सरकार भी प्रयत्नशील है जिसके लिए अनेक आयोगों का गठन किया गया है परन्तु अपेक्षित सफलता हाथ नहीं लग सकी है। इस समस्या में छात्र बिना पूरी पढ़ाई किए बीच में ही पढ़ना बन्द कर देते हैं या कक्षा में अनेक बार अनुत्तीर्ण होते हैं। शिक्षा के प्राथमिक स्तर पर यह समस्या विकराल रूप लिए हुए है। इसके भी अनेक कारण हैं—अयोग्य अध्यापक, असन्तोष, विद्यालय व्यवस्था, व्यक्तिगत विभिन्नता, अनुपयुक्त और कठिन पाठ्यक्रम। अतः छात्र अपव्यय व अवरोधन की समस्याओं से निपट सके, इसके लिए उन्हें उचित निर्देशन सेवाओं की आवश्यकता है।
इस प्रकार उपर्युक्त विवरण के आधार पर हम यह देखते हैं कि पाठ्यक्रम के चयन से लेकर शिक्षा के उच्च स्तर को बनाए रखने में निर्देशन सेवाओं का महत्त्वपूर्ण योगदान है। हमारे यहाँ आज भी निर्देशन सेवाओं को अनदेखा किया जा रहा है। अतः आज आवश्यकता है कि बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ न करें।
- निर्देशन का क्षेत्र, लक्ष्य एवं उद्देश्य
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- निर्देशन की आवश्यकता | सामाजिक दृष्टिकोण से निर्देशन की आवश्यकता
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