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कोठारी आयोग के उद्देश्य एवं कार्य क्षेत्र

कोठारी आयोग के उद्देश्य एवं कार्य क्षेत्र
कोठारी आयोग के उद्देश्य एवं कार्य क्षेत्र

कोठारी आयोग के उद्देश्य एवं कार्य क्षेत्र

आयोग ने शिक्षा को राष्ट्र के विकास का मूल आधार मानते हुए, राष्ट्र के परिप्रेक्ष्य में शिक्षा के 5 उद्देश्य, लक्ष्य अथवा कार्य निश्चित किए और इन्हें पंचमुखी कार्यक्रम की संज्ञा दी। आयोग ने इनमें से प्रत्येक की प्राप्ति के लिए अनेक अन्य कार्य भी निश्चित किए जो निम्नलिखित हैं-

आयोग के गठन का सर्वप्रमुख उद्देश्य शिक्षा द्वारा उत्पादन में वृद्धि करना था । स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद राष्ट्र ने राष्ट्रीय विकास के एक नये युग में प्रवेश किया था । अतः जनता की निर्धनता को दूर करने का दृढ़ संकल्प व सभी के लिए एक उचित जीवन स्तर सुनिश्चित करना, कृषि का आधुनिकीकरण व उद्योगों का तीव्र विकास, आधुनिक विज्ञान व प्रौद्योगिकी का अभिग्रहण तथा परम्परागत आध्यात्मिक मूल्यों के साथ उनका सामंजस्य आदि लक्ष्यों की पूर्ति हेतु शिक्षा को उत्पादनपरक बनाने पर जोर दिया गया व इसके लिए निम्नलिखित सुझाव दिये गये-

(1) विज्ञान शिक्षा को प्राथमिक एवं माध्यमिक स्तर पर अनिवार्य करना तथा इस शिक्षा का उपयोग उत्पादन कार्यों में करना। कार्यानुभव (Work Experience) को विद्यालयी शिक्षा का अनिवार्य अंग बनाना तथा माध्यमिक शिक्षा को व्यवसायपरक बनाना।

(2) देश के आर्थिक एवं सामाजिक विकास में शिक्षा के महत्त्वपूर्ण योगदान के विचार से एक सच्चे प्रजातांत्रिक समाज का निर्माण, राष्ट्रीय एकता व अखण्डता की उन्नति हेतु अनवरत प्रयास को ध्यान में रखते हुए एक सुसंगठित व उचित राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली को सुनिश्चित करना।

(3) शिक्षा द्वारा सच्चे लोकतन्त्रीय समाज का निर्माण, राष्ट्रीय एकता, व्यक्ति की श्रेष्ठता एवं पूर्णता की खोज हेतु शिक्षा के सम्पूर्ण क्षेत्र की जाँच करना, ताकि कम से कम समय में एक ऐसी सुसन्तुलित एवं सुसंगठित राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली विकसित की जा सके, जो राष्ट्रीय जीवन के सभी क्षेत्रों को महत्त्वपूर्ण योगदान दें।

(4) शिक्षा के सभी स्तरों पर असाधारण विस्तार के बावजूद शिक्षा के अनेक अंगों के सम्बन्ध में व्याप्त असन्तोष को दूर करने के लिए माध्यमिक स्कूलों व विश्वविद्यालय के शिक्षा के क्षेत्रों में पर्याप्त उन्नयन करने हेतु पाठ्यक्रम में विभिन्नीकरण (Diversification of Courses) की योजना का विस्तार करना ताकि उद्योगों व व्यवसायों हेतु प्रशिक्षित व्यक्ति मिल सके तथा शिक्षकों के वेतनों व कार्य-दशाओं में वांछनीय परिवर्तन लाना अर्थात् शिक्षा की संख्यात्मक (Quantitative) उन्नति के अनुपात में गुणात्मक (Qualitative) उन्नति को सुनिश्चित करना।

(5) शिक्षा के क्षेत्र में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के सब साधनों के उत्तम प्रयोग हेतु शिक्षा का आधार उत्तम व प्रगतिशील बनाने का दृढ़ संकल्प करना

(6) भारत में राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली के विकास हेतु शिक्षा के सम्पूर्ण क्षेत्रों की जाँच क्योंकि शिक्षा प्रणाली के सब अंग एक दूसरे पर शक्तिशाली प्रतिक्रिया करते हैं और करना, प्रभाव भी डालते हैं।

उपर्युक्त कारणों तथा प्रयोजन के लिए 14 जुलाई 1964 ई. को भारत सरकार ने निम्नलिखित सदस्यों से युक्त एक शिक्षा आयोग के गठन का निर्णय लिया था। भारत सरकार ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष डॉ. दौलत सिंह कोठारी को शिक्षा आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया था। इसीलिए इस आयोग को कोठारी आयोग भी कहा जाता है।

इस आयोग ने भारत सरकार को राष्ट्रीय शिक्षा के प्रारूप को विकसित करने का सुझाव दिया, जिसके लिए निर्धारित उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए सामान्य अधिनियम व नीतियों को विकसित किया। उसके कार्य-क्षेत्र को और अधिक स्पष्ट रूप में इस प्रकार समझा जा सकता है-

(1) तत्कालीन भारतीय शिक्षा प्रणाली का गहराई से अध्ययन करना, उसकी तत्कालीन कमियों व व्याप्त असन्तोष के कारणों का पता लगाना व उसमें सुधार के लिए सुझाव देना।

(2) पूरे देश के लिए शिक्षा के आयोजन और प्रशासन सम्बन्धी तत्व निश्चित करना व इस सम्बन्ध में सरकार को सुझाव देना।

(3) पूरे देश के लिए समान शिक्षा प्रणाली प्रस्तावित करना तथा शिक्षा में गुणात्मक सुधार लाने हेतु ऐसी शिक्षा प्रणाली का विकास करना, जो देश के सामाजिक, आर्थिक व राजनैतिक विकास में सहायक हो और यह प्रणाली ऐसी हो, जो भारतीय शिक्षा के परम्परागत गुणों को सुरक्षित रखते हुए वर्तमान की आवश्यकताओं की पूर्ति करे व भविष्य के निर्माण में सहायक हो।

(4) पूरे देश में किसी भी स्तर की किसी भी प्रकार की शिक्षा के प्रसार एवं उसमें गुणात्मक सुधार के लिए उपायों की खोज करना व इस सम्बन्ध में सरकार को सुझाव देना।

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shubham yadav

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