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दूरस्थ शिक्षा या दूरवर्ती शिक्षा से आप क्या समझते हैं ?
दूरस्थ शिक्षा या दूरवर्ती शिक्षा एक बहुउपयोगी आयाम है। अत: इसे अनेक नामों से पहचाना जाता है, जैसे- मुक्त अधिगम अथवा शिक्षा (Open-learning or education), पत्राचार शिक्षा (Correspondence education), बाहरी अध्ययन (External study), गृह अध्ययन (Home) study) एवं परिसर से बाहर अध्ययन (Off-campus study) इत्यादि। भारत में इसे दूरस्थ शिक्षा तथा मुक्त शिक्षा के नाम से ही अधिक जाना जाता है, जबकि उत्तरी अमेरिका में इसे ‘स्वतन्त्र अध्ययन’ के नाम से ही जाना जाता है। सैद्धान्तिक रूप से दूरस्थ शिक्षा से तात्पर्य शिक्षा के ऐसे अप्रचलित एवं अपरम्परागत उपागम से है, जो परम्परागत (औपचारिक शिक्षा) शिक्षा के मानकों पर प्रश्न चिह्न लगाता हुआ इससे पृथक् विभिन्न मापदण्डों को प्राथमिकता प्रदान करता है। समय के साथ-साथ दूरस्थ शिक्षा के क्षेत्र, दायित्व तथा आयाम इत्यादि विस्तारित होते जा रहे हैं।
(1) मूरे (Morre) के अनुसार, “दूरस्थ शिक्षण को अनुदेशन विधियों के समूह (परिवार) के स्वरूप में परिभाषित किया जा सकता है, जिसमें शिक्षण व्यवहार (क्रिया), अधिगम व्यवहार (प्रक्रिया) से पृथक् अर्थात् कहीं दूर सम्पन्न किये जाते हैं। इसके अन्तर्गत छात्र की उपस्थिति से सम्पन्न होने वाली क्रियाएँ भी सम्मिलित होती हैं। अतः शिक्षक एवंशिक्षार्थी के मध्य सम्प्रेषण को मुद्रित सामग्री, इलेक्ट्रॉनिक, यान्त्रिक तथा अन्य साधनों से सुगम बनाया जा सकता है।”
(2) होमबर्ग (Homeberg) के मतानुसार, “दूरवर्ती शिक्षा के अन्तर्गत शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर अध्ययन के विभिन्न प्रकार, उन विद्यार्थियों के लिये जो शिक्षकों के निरन्तर तथा शीघ्र निरीक्षण में कक्षाओं में नहीं होते हैं, प्रयुक्त किये जाते हैं किन्तु जो किसी भी प्रकार से शैक्षणिक संस्थाओं के नियोजन, निर्देशन तथा शिक्षण से कम लाभ प्रदान नहीं करते।”
दूरस्थ शिक्षा की आवश्यकता
आधुनिक युग में दूरस्थ शिक्षा की आवश्यकता को निम्नलिखित विन्दुओं के माध्यम से समझा जा सकता है-
(1) दूरस्थ शिक्षा मुख्यतः उन व्यक्तियों के लिये है, जो अपने जीवन के प्रारम्भिक समय में शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाये हैं। दूरस्थ शिक्षा घर बैठे ही उन्हें शिक्षा ग्रहण करने का अवसर प्रदान करती है।
(2) परम्परागत शिक्षा अपने परम्परागत प्रारूप में सर्वसुलभ तथा सर्वउपयोगी नहीं हो पा रही है। अत: दूरस्थ शिक्षा का प्रसार अत्यन्त ही आवश्यक है।
(3) दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से उन व्यक्तियों को शिक्षा का अवसर प्रदान कराया जाता है, जो कि रूढ़िवादी प्रणाली में शिक्षा ग्रहण नहीं कर सकते किन्तु वह शिक्षा अवश्य ही ग्रहण करना चाहते हैं।
(4) दूरस्थ शिक्षा की आवश्यकता पाठ्यक्रमों के व्यापक प्रसार में भी होती है क्योंकि कोई भी विद्यालय, महाविद्यालय अथवा विश्वविद्यालय सीमित संख्या में पाठ्यक्रमों का संचालन कर सकते हैं। अत: दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से पाठ्यक्रम के सीमित विकल्प को परिवर्तित किया जा सकता है।
(5) शिक्षा के आधुनिक स्वरूप में कक्षीय शिक्षा पर अपेक्षाकृत अधिक व्यय होता है। अत: शिक्षा में अन्य व्यय हेतु दूरस्थ शिक्षा की अत्यन्त आवश्यकता है।
उपरोक्त बिन्दुओं से स्पष्ट है कि दूरस्थ शिक्षा की वर्तमान समय तथा परिस्थितियों में अत्यधिक माँग है। इसकी सहायता से शिक्षा को सर्वसुलभ, सर्वउपयोगी तथा रोजगार परक बनाया जा सकता है।
दूरस्थ शिक्षा के लाभ या विशेषताएँ (Advantages or characteristics of distance education)
दूरस्थ शिक्षा के लाभ वा विशेषताओं का वर्णन अग्रलिखित है-
(1) दूरस्थ शिक्षा अधिगम प्रक्रिया के समय शिक्षक तथा छात्र का अर्द्धस्थायी अलगाव होता है। यह शिक्षा की परम्परागत गुरु-शिष्य परम्परा से पृथक् है।
(2) दूरस्थ शिक्षा के अन्तर्गत शिक्षा के परम्परागत मौखिक सम्वाद की आवश्यकता नहीं होती। इससे शिक्षा का तीव्र गति से विकास होता है।
(3) दूरस्थ शिक्षा अधिगम सामग्री की योजना तथा तैयारी एवं छात्र सहायक सेवाओं में शिक्षा संगठन का प्रभाव होता है। यहनिजी तथा स्वाध्याय कार्यक्रम से पृथक् है।
(4) यह अधिगम परम्परागत “शिक्षा की अपेक्षा अल्प व्ययी है क्योंकि यहाँ विद्यार्थी पर विद्यालय भवन शुल्क, शिक्षण शुल्क इत्यादि अधिक मात्रा में नहीं लगाये जाते। इस कारण यह एक अपेक्षाकृत अल्पव्ययी शिक्षा है।
(5) यहाँ शिक्षा परम्परागत मौखिक माध्यम के स्थान पर आवश्यकता होने पर मौखिक माध्यम से भी प्रदान की जाती है, आधुनिक संचार माध्यमों से प्रदान की जाती है। आधुनिक संचार माध्यम से विद्यार्थी जटिल पाठ्यक्रम भी सुगमता के साथ समझ सकता है।
उपरोक्त के अतिरिक्त कीडान के ने दूरस्थ शिक्षा की अन्य दो विशेषताएँ भी बतायी हैं जो कि निम्नलिखित हैं-
(1) इसमें पारम्परिक ‘मौखिक’ शब्द अथवा मौखिक शिक्षा की अपेक्षा अधिक औद्योगिक रूप प्रयोग होता है।
(2) यहाँ संस्थागत शिक्षा अधिगम का मुख्य रूप से निजीकरण ही अधिक अथवा प्रमुखता के साथ होता है।
दूरस्थ शिक्षा की सीमाएँ (Limitations of distance education)
दूरस्थ शिक्षा की सीमाएँ निम्नलिखित हैं-
(1) दूरस्थ शिक्षा में अध्यापक एवं विद्यार्थी के मध्य सीधा सम्पर्क नहीं होता। अतः उसकी समस्याओं का समाधान नहीं हो पाता।
(2) दूरस्थ शिक्षा में शिक्षा के सीमित संसाधन होते हैं, जो तकनीकी विषयों के लिये उपयुक्त नहीं हैं।
(3) इस शिक्षा से बालक का सर्वांगीण विकास नहीं हो पाता।
(4) छात्र में नेतृत्व क्षमता का विकास नहीं हो पाता। यदि दूरस्थ शिक्षा जिस साधनों पर निर्भर रहती है, वे स्तरीय नहीं हैं तो यह शिक्षा उपयोगी नहीं होती।
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