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निर्देशन की आवश्यकता | सामाजिक दृष्टिकोण से निर्देशन की आवश्यकता

निर्देशन की आवश्यकता
निर्देशन की आवश्यकता

निर्देशन की आवश्यकता

आज के वैज्ञानिक युग में नवीन तकनीकियों का विकास हुआ है। पहले औद्योगिक क्रान्ति हुई उसके फलस्वरूप बहुत ही आश्चर्यजनक परिणाम हमें प्राप्त हुए परन्तु उसके साथ ही साथ जैसे-जैसे औद्योगिक विकास हुआ, व्यक्ति की आवश्यकताएँ भी बढ़ीं और उनके क्षेत्र भी बदले, समाज की मान्यताओं व आदर्शों एवं मूल्यों में परिवर्तन हुए जिनके कारण समाज का विघटन हुआ, संयुक्त परिवार एकल परिवार में बदलने लगे। कुटीर उद्योग-धन्धे दिन पर दिन कम होते चले जा रहे हैं। जनसंख्या वृद्धि के कारण बेरोजगारी और निर्धनता की समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं। इसके पीछे लोगों की स्वार्थपरता, विलासिता और दूषित प्रतिस्पर्धा की भावना है। मानवीय सम्बन्धों में दिन पर दिन खटास बढ़ती जा रही है। आज व्यक्ति का व्यक्तित्व, उसके मूल्यों के मानदण्ड, चरित्र, सामाजिक दृष्टि से सन्तोषजनक नहीं कहे जा सकते हैं।

व्यक्ति एक सामाजिक प्राणी है। व्यक्ति और समाज तब ही उन्नति कर सकते हैं, जबकि वे एक दूसरे के लिए कुछ करना सीखें। अनुचित मूल्यों को धारण कर उनके अनुकरण करने से व्यक्ति और समाज दोनों के लिए विषम परिस्थिति उत्पन्न हो जाती है जिसके कारण सम्पूर्ण राष्ट्र के समक्ष एक दुःखदायी स्थिति उत्पन्न हो जाती है। ऐसी स्थिति में यह आवश्यक है कि ऐसी स्थिति से बचने के लिए समाज के समन्वित विकास हेतु प्रयास किए जाएँ जिससे कि व्यक्ति और समाज दोनों का ही कल्याण हो सके। इस प्रकार की स्थिति हमारे देश में (भारत) देखने को मिल रही है। हम अपनी संस्कृति को भूलकर पाश्चात्य सभ्यता के रंग में रंगे जा रहे हैं। हमारा देश नव विकसित या विकासशील देशों की श्रेणी में आता है। हमारे यहाँ स्वतन्त्रता के बाद आर्थिक व सामाजिक विकास हेतु अनेक योजनाएँ तैयार की गई हैं। इनके कारण ही तेज गति से विकास हुआ है परन्तु उसके साथ ही अनेक समस्याओं ने जन्म लिया है जिसके कारण निर्देशन सेवाओं की आवश्यकता अनुभव की जा रही है। व्यक्ति और समाज को ध्यान में रखते हुए निर्देशन के आधारभूत कारणों को निम्न दृष्टिकोण से देखा जा सकता है—

(i) सामाजिक दृष्टि से निर्देशन की आवश्यकता।

(ii) वैयक्तिक दृष्टिकोण से निर्देशन की आवश्यकता।

(iii) शैक्षिक दृष्टि से निर्देशन की आवश्यकता।

(iv) मनोवैज्ञानिक दृष्टि से निर्देशन की आवश्यकता।

(v) व्यावसायिक दृष्टि से निर्देशन की आवश्यकता।

(vi) राजनीतिक दृष्टि से निर्देशन की आवश्यकता।

(vii) ग्रामीण क्षेत्र की दृष्टि से निर्देशन की आवश्यकता।

(viii) शहरी क्षेत्र की दृष्टि से निर्देशन की आवश्यकता।

आज समाज में औद्योगीकरण, वैज्ञानिक खोजों आदि के कारण विकास का पहिया तेज गति से चल रहा है जिससे विकास के साथ-साथ अन्य देशों के साथ भी सम्पर्क बढ़ा है और उनकी संस्कृति का आदान-प्रदान हो रहा है जिससे सामाजिक मूल्यों में परिवर्तन हुआ है। ऐसी परिस्थितियों में समाज में सामंजस्य बनाए रखने हेतु यह आवश्यक है कि समाज में ऐसे नागरिकों का निर्माण किया जाए जो समाज की आवश्यकता और महत्ता से परिचित हों यह तभी सम्भव है जबकि उन्हें समाज के स्वरूप, समाज में होने वाले परिवर्तन, समाज में उत्पन्न होने वाली समस्याओं का उचित ज्ञान हो जिससे उन समस्याओं के उन्मूलन में वे लोग सहयोग न कर सकें। इसलिए आज के बदलते हुए परिवेश में। निर्देशन ही एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा समाज को विकास के रास्ते पर लाया जा सकता है।

सामाजिक दृष्टिकोण से निर्देशन की आवश्यकता

सामाजिक दृष्टि से निर्देशन की आवश्यकताओं को प्रमुख रूप से निम्न भागों में बाँटा जा सकता है-

1. परिवर्तित परिस्थितियों में परिवार के समायोजन हेतु- स्वतन्त्रता से पूर्व भारत में संयुक्त परिवार प्रथा थी। उसके बाद हमारे देश में परिवारों के स्वरूप में तेजी से बदलाव आया है। जनसंख्या वृद्धि बेरोजगारी, औद्योगिक क्रान्ति आदि अनेक समस्याओं के कारण भारतवर्ष में परिवारों में सुख, शान्ति और समृद्धि एवं विकास को ग्रहण सा लग गया है। आज अधिकतर जनसंख्या गाँव से शहरों की ओर पलायन कर रही है। हर व्यक्ति एक अच्छे व्यवसाय की तलाश में भटक रहा है, जिसके कारण पारिवारिक तनावों में वृद्धि हो रही है। धनाभाव के कारण आपसी सम्बन्धों में खटास पैदा हो गई है। परिवार का जो सदस्य अधिक कमाता है, उसी की पूजा होती है। आज मृत्युशय्या पर पहुँचने पर उसके संस्कार की बात बाद में सोची जाती है पहले उसकी सम्पत्ति पर अधिकार करने का खेल खेला जाता है। इस प्रकार की पारिवारिक दशाओं में अनेक प्रकार के मानसिक तनाव व संवेगात्मक असन्तुलन पैदा हो जाते हैं। निर्देशन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा समाज के सदस्यों के बीच समायोजन करके रहने के लिए प्रेरित किया जा सकता है। हमारे देश में पत्र-पत्रिकाओं द्वारा निर्देशन की सेवा दी जाती है तथा विदेशों में पारिवारिक समस्याओं से सम्बन्धित समस्याओं का समाधान निर्देशन सेवाओं के माध्यम से किया जाता है।

2. धार्मिक और नैतिक मूल्यों में परिवर्तन- आज सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक और औद्योगिक परिवर्तनों के कारण निश्चित रूप से हमारे धार्मिक और नैतिक मूल्यों पर प्रभाव पड़ता है। धार्मिक रीति-रिवाज बदल रहे हैं तथा देश में व्यभिचार दिन पर दिन बढ़ रहा है। नैतिक दृष्टि से कोई भी व्यक्ति अपने कर्त्तव्य का पालन नहीं कर रहा है। शराब, जुआ, धूम्रपान, रिश्वत का चारों ओर बोलबाला है। इसके साथ ही ये सभी उच्च जीवन स्तर के मानदण्ड बन गए हैं, ऐसी परिस्थितियों में निर्देशन सहायता की परम आवश्यकता है।

3. जनसंख्या वृद्धि के कारण- आज तेज गति से बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण देश में बन रही परियोजनाएँ असन्तुलित हो रही हैं जिनके कारण विकास की गंगा बहना तो दूर उसके स्वप्न भी नहीं देख सकते हैं। इसलिए जनसंख्या वृद्धि को रोकने के लिए यह आवश्यक है कि जनसंख्या वृद्धि पर रोक लगाई जाए इसके लिए जनजागृति बहुत जरूरी है वह निर्देशन की सहायता के बिना सम्भव नहीं है।

4. महिलाओं के व्यावसायिक समायोजन हेतु- भारतीय संविधान में स्त्री और पुरुषों को समान अवसर प्रदान करने की बात कही गई है जिसके कारण स्त्रियों में व्यवसायों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने की प्रवृत्ति का विकास हुआ है। उच्च शिक्षा व प्रशिक्षण लेकर महिलाएँ व्यावसायिक जगत में पदार्पण कर रही हैं तथा शिक्षा, सेना, पुलिस, उड्डयन, उद्योग आदि विविध क्षेत्रों में उन्होंने महत्त्वपूर्ण उपलब्धि अर्जित की है। पारिवारिक स्थिति व नारी की स्वतन्त्रता पर उसका व्यापक प्रभाव पड़ा है। साथ ही अनेक समस्याओं का प्रादुर्भाव भी हुआ है।

बालकों के पालन-पोषण एवं पारिवारिक तनावों में वृद्धि इन समस्याओं में प्रमुख है तथा संकीर्ण में विचार करने वाले लोग व्यावसायिक महिलाओं को हेय दृष्टि से देखते हैं। महिलाओं के साथ अभद्रता की घटनाएँ काफी होती हैं। ये घटनाएँ व्यक्तिगत प्रतिष्ठानों में अधिक होती हैं। यह हमारे जैसे स्वतन्त्र राष्ट्र के लिए कलंक की बात है। भ्रष्ट पुरुषों का वर्ग विवशता का लाभ उठाकर नारी शोषण करता है। सौभाग्य से चतुर महिलाएँ इस प्रकार के पुरुषों को पददलित करने के लिए अपनी युक्तियों का प्रयोग करती हैं। युक्तियों को प्रयोग करने में दक्षता हासिल करना और पारिवारिक तनावों को कम करके व्यावसायिक समायोजन की कला में दक्ष बनाने के लिए निर्देशन बहुत आवश्यक है।

5. सामाजिक मूल्यों में परिवर्तन- आज के इस वैज्ञानिक युग में नई-नई खोजों के कारण नए-नए परिवर्तन हो रहे हैं तथा पुराने मूल्यों का ह्रास और नए मूल्यों की स्थापना हो रही है। पुराने मूल्यों में आध्यात्मिक शान्ति पर बल दिया जाता था परन्तु आज के इस भौतिकवादी सुख व विलासिता पर अधिक बल दिया जाता है। जातिवाद का जहर आज विकराल रूप धारण करके बढ़ रहा है। अन्तर्जातीय विवाह में लोगों की रुचि बढ़ती जा रही है। ऐसे समय में निर्देशन की सहायता की परम आवश्यकता है।

6. उचित समायोजन के लिए- यदि व्यक्ति को उसकी योग्यता और क्षमताओं के अनुसार कार्य मिल जाता है, तो उसे सन्तुष्टि मिलती है और उत्पादन में वृद्धि के लिए उसे प्रोत्साहन मिलता है, परन्तु आज व्यक्ति को जनसंख्या वृद्धि, बेकारी आदि के कारण योग्यता और क्षमता के अनुसार कार्य नहीं मिल रहे हैं जिसके कारण व्यक्तियों में असन्तोष है और वे अपराधीकरण की ओर बढ़ रहे हैं। इसलिए इस क्षेत्र में निर्देशन सहायता की उपेक्षा नहीं की जा सकती है।

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shubham yadav

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