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वर्धा शिक्षा नीति 1937 द्वारा प्राथमिक शिक्षा में सुधार हेतु प्रमुख सुझाव
महात्मा गाँधी ने अपने शैक्षिक विचारों पर खुली बहस कराने के उद्देश्य से 23 अक्टूबर, 1937 को वर्धा में अखिल भारतीय राष्ट्रीय शिक्षा सम्मेलन (All India Na tional Education Conference) का आयोजन किया। इसमें देश के मूर्धन्य साहित्यकारों, शिक्षा मर्मज्ञों, समाज सुधारकों तथा राष्ट्रीय नेताओं ने भाग लिया। इस सम्मेलन को ही वर्धा शिक्षा सम्मेलन कहा जाता है। शिक्षा सम्मेलन में भाग लेने वाले शिक्षाशास्त्रियों ने इस योजना पर विचार-विमर्श के उपरान्त अग्रलिखित सुझाव या संस्तुतियाँ प्रस्तुत की थीं-
(1) इस सम्मेलन की राय है राष्ट्र के सभी बालकों को 7 वर्ष की आयु तक नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा प्रदान की जाये।
(2) शिक्षा का माध्यम मातृभाषा हो।
(3) शिक्षा में किसी एक शिल्प-कौशल को सिखाने की व्यवस्था की जाये, जिससे बालक शिक्षा व्यय की पूर्ति कर सकें।
(4) बच्चों की हस्त-शिल्प शिक्षा उनके वातावरण से सम्बन्धित होनी चाहिये।
जाकिर हुसैन समिति का बेसिक शिक्षा में योगदान
उपर्युक्त प्रस्तावों के आधर पर डॉ. जाकिर हुसैन की अध्यक्षता में एक समिति गठित की गयी, जिसने इस प्रणाली को कार्यक्रम में परिणित करने के सम्बन्ध में निम्नलिखित प्रतिवेदन प्रस्तुत किये-
1. प्रथम प्रतिवेदन (First Report) – यह प्रतिवेदन दिसम्बर, सन् 1937 में प्रस्तुत किया गया। इसके अन्तर्गत वर्धा शिक्षा योजना के सिद्धान्तों, उद्देश्यों, शिक्षकों, विद्यालय संगठन, प्रशासन, निरीक्षण तथा हस्त-शिल्प जैसी पाठ्यक्रम व्यवस्थाओं का निर्णय लिया गया।
2. द्वितीय प्रतिवेदन (Second Report)- इसके अन्तर्गत हस्त-शिल्प सम्बन्धी व्यापक पाठ्यक्रम तैयार किया गया, जिसमें मिट्टी का कार्य, कताई-बुनाई, लकड़ी का कार्य, कागज एवं गत्ते का कार्य, कृषि कार्य आदि को महत्त्वपूर्ण स्थान प्रदान किया गया। यह रिपोर्ट सन् 1938 में प्रस्तुत की गयी। इसे बुनियादी शिक्षा, नई तालीम, बेसिक शिक्षा, वर्धा-योजना आदि नामों से पुकारा गया।
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