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वैयक्तिक निर्देशन- अर्थ, परिभाषा, समस्याएँ, सिद्धान्त, कार्य तथा आवश्यकता

वैयक्तिक निर्देशन
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वैयक्तिक निर्देशन (PERSONAL GUIDANCE)

मानव जीवन अनेक जटिलताओं से घिरा रहता है। वर्तमान सामाजिक परिदृश्य इन जटिलताओं में निरन्तर वृद्धि कर रहा है। इन जटिलताओं के कारण मानव को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। ये समस्याएँ सामाजिक स्तर पर, शैक्षिक स्तर पर वैयक्तिक स्तर पर, आर्थिक स्तर पर, सांस्कृतिक स्तर आदि किसी भी स्तर की हो सकती हैं। इन समस्याओं के कारण व्यक्ति का जीवन कष्टमय बना रहता है। इससे उनमें हताशा, निराशा, तनाव, भय, आतंक आदि समस्याएँ घर कर जाती हैं। ऐसी स्थिति में व्यक्तिगत समस्याओं से संघर्ष करने, उनका निदान एवं समाधान करने हेतु जो निर्देशन व्यक्ति को प्रदान किया जाता है वह व्यक्तिगत निर्देशन कहलाता है।

निर्देशन का उद्देश्य व्यक्ति को सर्वोत्तम ढंग से समायोजित करने में सहायता देना है। विद्यार्थी/व्यक्ति की कुछ समस्याएँ ऐसी भी होती हैं जो उसके व्यक्तिगत जीवन से जुड़ी होती हैं एवं उनका समाधान शैक्षिक व व्यावसायिक निर्देशन द्वारा नहीं किया जा सकता। विद्यार्थी / व्यक्ति के स्वास्थ्य, परिवार, संवेग, सामाजिक सामंजस्य, धर्म आदि से सम्बन्धित समस्याएँ उसके पूरे जीवन को प्रभावित करती हैं। इस प्रकार की समस्याओं के समाधान हेतु व्यक्ति / विद्यार्थी को जो सहायता प्रदान की जाती है उसे ही वैयक्तिक निर्देशन के नाम से जाना जाता है।

यहाँ ध्यान रखने योग्य है कि शैक्षिक एवं व्यावसायिक सफलताएँ / असफलताएँ वैयक्तिक समस्याओं को प्रभावित करती है। तथा वैयक्तिक समस्याएँ व्यक्ति की शैक्षिक एवं व्यावसायिक समस्याओं को प्रभावित करती है। अतः निर्देशन के प्रकार व्यक्तित्व की पूर्णता एवं जटिलता को ध्यान में रखते हुए आपस में अन्तर्सम्बन्ध स्वीकार करता है।

वैयक्तिक निर्देशन का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition of Personal Guidance)

वैयक्तिक निर्देशन, निर्देशन प्रदाता द्वारा निजी समस्याओं के समाधान के बारे में दिया गया निर्देशन है। इसके द्वारा सामाजिक समस्याओं को सुलझाने में भी सहायता प्राप्त होती है। व्यक्तिगत निर्देशन का मुख्य उद्देश्य विद्यार्थी / व्यक्ति के मानसिक, सामाजिक और भौतिक पक्षों में सामंजस्य स्थापित करना होता है। कभी-कभी ऐसा देखने को मिलता है कि उच्च शिक्षित होकर भी व्यक्ति व्यावसायिक क्षेत्र में सफल नहीं हो पाता। वह विभिन्न प्रकार के सामाजिक दुर्गुणों, बुराइयों व असामान्य व्यवहारों से घिरा होता है जिसके कारण वह परिवार, समाज, आस-पड़ोस समुदाय के अन्य व्यक्तियों से कटा कटा सा रहता है। परिणामस्वरूप उस विद्यार्थी / व्यक्ति का जीवन प्रगतिशील एवं शान्तिपूर्ण नहीं हो पाता है। इस स्थिति में उस विद्यार्थी / व्यक्ति को व्यक्तिक निर्देशन की आवश्यकता होती है।

वैयक्तिक निर्देशन उन पक्षों पर अधिक ध्यान देता है जिन पर शैक्षिक एवं व्यावसायिक निर्देशन पर्याप्त ध्यान नहीं देते और जो व्यक्ति के वैयक्तिक एवं सामाजिक समायोजन से सम्बन्धित होते हैं। वैयक्तिक निर्देशन की परिभाषा निम्नलिखित हैं-

सी.वी. गुड ने व्यक्तिगत निर्देशन की परिभाषा इस प्रकार दी है- “निर्देशन का वह स्वरूप जिसमें व्यक्तिगत स्वभाव, मनोवृत्तियों एवं आन्तरिक समस्याओं के समाधान हेतु सहायता प्रदान की जाती हैं, व्यक्तिगत निर्देशन होता है।”

According to C. V. Good, Dictionary of Education, “The phase of guidance that aims to assist an individual in respect to personal habits, attitudes and internal personal problems, is personal guidance.”

व्यक्तिगत निर्देशन द्वारा ही व्यक्तिगत सामंजस्य, व्यक्तिगत कुशलता तथा व्यक्तिगत मामलों में निर्णय ले सकने की क्षमता का विकास व जीवन में सुख-शान्ति व संतोष में वृद्धि की जा सकती है। व्यक्तिगत निर्देशन द्वारा स्वास्थ्य सम्बन्धी, पारिवारिक, यौन एवं प्रेम सम्बन्धित समस्याएँ, धर्म, चरित्र व मूल्यों से सम्बन्धित सामाजिक व आर्थिक समस्याओं का समाधान किया जा सकता है।

सामान्य वैयक्तिक समस्याएँ (General Personal Problems)

निर्देशन के क्षेत्र में शोध कार्य सम्पादित करने वाले विद्वतजनों ने विद्यार्थियों / युवकों की समस्याओं का व्यापक अध्ययन किया है। अपने इन अध्ययनों के आधार पर प्रायः जीवन में उपस्थित होने वाली समस्याओं का वर्गीकरण शैक्षिक व्यावसायिक एवं वैयक्तिक क्षेत्रों के अन्तर्गत किया है।

रॉस एल. मूनी एवं एच. एच. रेमर्स (मूनी और रेमर्स) के अध्ययन के आधार पर व्यक्तिगत समस्याओं को सात वर्गों में रखा जा सकता है। वे सात वर्ग निम्नलिखित हैं-

मूनी एवं रेमर्स द्वारा दिए गए व्यक्तिगत समस्याओं के वर्ग

मूनी एवं रेमर्स द्वारा दिए गए व्यक्तिगत समस्याओं के वर्ग

(1) स्वास्थ्य एवं शारीरिक विकास से सम्बन्धित समस्याएँ (Problems Related to Health and Physical Development)- वैयक्तिक समस्याओं में स्वास्थ्य एवं शारीरिक विकास से सम्बन्धित समस्याएँ मुख्य हैं। किसी भी शारीरिक कमजोरी या बीमारी के निदान एवं उपचार हेतु विद्यार्थी / व्यक्ति को चिकित्सक से निर्देशन / परामर्श की आवश्यकता पड़ती है।

(2) सामाजिक सम्बन्धों से सम्बन्धित समस्याएँ ( Problems Related to Social Relationships) – सामाजिक समायोजन में आने वाली समस्याएँ इस वर्ग के अन्तर्गत आती हैं। व्यक्ति किस प्रकार के सामाजिक सम्बन्धों में रुचि लेता है एवं किस प्रकार के सम्बन्धों में वह रुचि नहीं लेता, सामाजिक सम्बन्धों में वह अपने व्यवहार को किस सीमा तक संतोषप्रद पाता है आदि समस्याएँ इस वर्ग के अन्तर्गत आती हैं।

(3) पारिवारिक जीवन और पारिवारिक सम्बन्धों से सम्बन्धित समस्याएँ (Problems Related to Family Life and its Realationships)- पारिवारिक परिस्थितियों का व्यक्ति के जीवन निर्माण में महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। व्यक्ति / विद्यार्थी का अपने माता-पिता, भाई-बहनों तथा परिवार के अन्य सदस्यों के साथ सम्बन्धों का स्वरूप कैसा है? वे कैसे बनते एवं बिगड़ते हैं? ये कैसे टूटते हैं. जुड़ जाते हैं? आदि समस्याओं को इस वर्ग में शामिल किया जाता है।

(4) संवेगात्मक व्यवहार सम्बन्धी समस्याएँ (Problems Related to Emotional Behaviour)- व्यक्ति/विद्यार्थी के जीवन पर उसकी संवेगात्मक समस्याओं का बहुत महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। विभिन्न परिस्थितियों में व्यक्ति / विद्यार्थी की संवेगात्मक अभिव्यक्ति व प्रतिक्रिया, संवेगात्मक स्थिरता और आत्मविश्वास आदि से सम्बन्धित समस्याएँ इस वर्ग के अन्तर्गत आती हैं।

(5) प्रेम एवं विवाह से सम्बन्धित समस्याएँ (Problems Related to Courtship and Marriage) – जीवन में प्रेम का स्थान बहुत महत्त्वपूर्ण है। प्रेम जीवन की असफलता और वैवाहिक जीवन की विषमताएँ एवं इससे सम्बन्धित अनभिज्ञता के सन्दर्भ में सहज ही वैयक्तिक निर्देशन की आवश्यकता स्पष्ट है।

(6) आर्थिक समस्याएँ (Financial Problems) – व्यक्ति के जीवन में सफलता का एक मुख्य आधार धन भी होता है। धन के अभाव में आर्थिक समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। आर्थिक समस्याओं के समाधान हेतु समुचित निर्देशन की अपेक्षा होती है। धन का अभाव, संतोषजनक आर्थिक जीवन हेतु किए जाने वाले प्रयासों से सम्बन्धित समस्याओं को इस वर्ग के अन्तर्गत शामिल किया जाता है।

(7) धर्म, चरित्र / नैतिकता, आदर्श और मूल्यों से सम्बन्धित समस्याएँ (Problems Related to Religion, Character/ Morals, Ideals and Values) – आज सामाजिक परिदृश्य बदल गया है। व्यक्ति को अपने जीवन में धर्म, चरित्र, नैतिकता, आदर्श एवं मूल्यों से सम्बन्धित समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इनसे सम्बन्धित समस्याओं को इस वर्ग में शामिल किया जाता है।

वैयक्तिक निर्देशन के आधारभूत सिद्धान्त (Basic Principles of Personal Guidance)

वैयक्तिक निर्देशन के निम्नलिखित आधारभूत सिद्धान्त हैं-

(1) व्यक्ति का व्यक्तित्व अखण्डित एवं जटिल होता है।

(2) व्यक्ति की विभिन्न समस्याओं में अन्तर्सम्बन्ध (Interrelation) होता है।

(3) व्यक्ति की वैयक्तिक समस्याओं के साथ संवेगात्मक पक्ष (Emotional Aspect) भी होता है।

(4) व्यक्ति की वैयक्तिक समस्याएँ प्रत्यक्ष एवं परोक्ष दोनों कारणों से उत्पन्न होती हैं। परामर्श प्रदाता को केवल लक्षणों पर ही अपना ध्यान केन्द्रित नहीं करना चाहिए। बल्कि समस्या के मूल कारणों का पता लगाकर निर्देशन प्रदान करना चाहिए।

(5) व्यक्ति को अपनी समस्याओं के समाधान हेतु अपनी अन्तर्दृष्टि / सूझ (Insight) का प्रयोग करना चाहिए ।

(6) व्यक्ति की समस्या तथा समस्या समाधान के प्रति निजी धारणा उस समस्या का हल खोजने में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है।

विभिन्न स्तरों पर वैयक्तिक निर्देशन के कार्य (Functions of Personal Guidance at Different Levels)

कोई व्यक्ति जब से वह समझने लायक होता है, तब से लेकर अपने जीवन के अन्तिम चरण तक वैयक्तिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इसीलिए बाल्यावस्था से लेकर प्रौढ़ावस्था तक किसी भी व्यक्ति को वैयक्तिक निर्देशन की आवश्यकता पड़ सकती है। शिक्षा के औपचारिक आरम्भ से लेकर समापन तक व्यक्तिगत निर्देशन की व्यवस्था स्कूल और कॉलेज में होनी चाहिए। शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर वैयक्तिक निर्देशन के क्या-क्या कार्य हो सकते हैं? उसे निम्न बिन्दुओं के द्वारा समझा जा सकता है-

(1) शिक्षा के प्राथमिक स्तर पर व्यक्तिगत निर्देशन के कार्य,

(2) महाविद्यालय/विश्वविद्यालय स्तर पर व्यक्तिगत निर्देशन के कार्य।

शिक्षा के प्राथमिक स्तर पर व्यक्तिगत निर्देशन के कार्य (Functions of Personal Guidance at Primary Level of Education)

सुविधा की दृष्टि से शिक्षा के प्राथमिक स्तर को तीन भागों में बाँट सकते हैं। इसके तीन भाग हैं-

(1) पूर्व प्राथमिक स्तर 1 से पहले),

(2) प्राथमिक स्तर (कक्षा 1 से 5 तक) एवं

(3) जूनियर स्तर (कक्षा 6 से 8 तक) ।

प्राथमिक स्तर के इन तीन स्तरों पर बालकों की आवश्यकताओं के अनुसार व्यक्तिगत निर्देशन के कार्य भिन्न-भिन्न होते हैं। इन तीनों स्तरों पर व्यक्तिगत निर्देशन के कार्यों को निम्न प्रकार से समझा जा सकता है-

(1) पूर्व प्राथमिक स्तर पर व्यक्तिगत निर्देशन के कार्य (Functions of Personal Guidance at Pre-Primary Level)- शिक्षा के पूर्व प्राथमिक स्तर पर बच्चों को उनके स्वास्थ्य एवं सामान्य स्वच्छता सम्बन्धी निर्देशन प्रदान किया जाना चाहिए। हाथ-मुँह कैसे धुलना है ? दाँतों की सफाई, नहाने की आदत, सोने, खेलने, कपड़े पहनने, नाखून काटने, बालों में तेल डालने व कंघी करने आदि से सम्बन्धित आदतें बच्चों में इस स्तर पर डालनी इसके अतिरिक्त अन्य सामान्य शारीरिक आवश्यकताओं, भोजन एवं वस्त्र सम्बन्धी बातों का ध्यान रखना भी इस स्तर पर बच्चों को सिखाया जाता है। साथियों के साथ मिल-जुल कर रहने, खेलने, आपस में सहयोग करने एवं अपने संवेगों पर नियन्त्रण रखना इस स्तर पर सिखाया जा सकता है।

क्रो एवं क्रो (Crow and Crow) ने अपनी पुस्तक “An Introduction to Guidance” में शिक्षा के पूर्व प्राथमिक स्तर पर वैयक्तिक निर्देशन का उद्देश्य निम्न बातों को सीखने में सहायता प्रदान करना बताया है-

(i) परस्पर एक-दूसरे से मिलना एवं अनुभवों का आदान-प्रदान करना, खेल सामग्रियों का आदान-प्रदान करना, विनम्रता सीखना, क्रोध को नियन्त्रित करने की आदत बनाना, नेतृत्व करना सीखना एवं एक अच्छे अनुयायी की तरह समूह में उत्तरदायित्व की भावना प्रदर्शित करना तथा खेल में ईमानदारी एवं निष्पक्षता की भावना प्रदर्शित करना ।

(ii) स्वयं अपने हाथों से कार्य करना, गीतों / कविताओं का अनुकरण करके, कहानियों का अनुभव करके अपने को अभिव्यक्त करना तथा दूसरों की बातों को ध्यान देकर सुनना।

(iii) पालतू पशु-पक्षियों की देखभाल कर, अपने खिलौने व अन्य खेल के सामान को यथा स्थान रखकर अपने कपड़ों की देखभाल करना आदि उत्तरदायी व्यवहार करना सीखना।

उपर्युक्त वर्णित कार्य पूर्व प्राथमिक स्तर पर वैयक्तिक निर्देशन के महत्त्वपूर्ण कार्य है। बच्चों को उनके शैक्षिक कार्यों के अतिरिक्त इन सभी बातों को आवश्यक रूप से सिखाया जाना चाहिए।

(2) प्राथमिक स्तर पर व्यक्तिगत निर्देशन के कार्य (Functions of Personal Guidance at Primary Level) – प्राथमिक स्तर पर उपरोक्त बातों के अतिरिक्त व्यक्तिगत निर्देशन के कार्य में अभिवृद्धि हो जाती है। इस स्तर पर बच्चों को आवश्यकताएँ थोड़ा बदल जाती हैं और बढ़ जाती हैं। उसी के अनुसार व्यक्तिगत निर्देशन के कार्यों की रूपरेखा भी परिवर्तित हो जाती है एवं कार्य क्षेत्र बढ़ जाता है।

क्रो एवं क्रो (Crow and Crow) के अनुसार इस स्तर पर चलने वाले निर्देशन कार्यक्रम में बालकों की निम्नलिखित आधारभूत आवश्यकताओं को पूरा करने का प्रयास किया जाता है-

(i) उत्तम स्वास्थ्य (Good Health) – सन्तुलित और पर्याप्त मात्रा में भोजन अपेक्षित शयन / निद्रा एवं विश्राम ।

(ii) बुनियादी कौशलों का ज्ञान (Knowledge of Basic Skills) – सीखने और समझने की योग्यता एवं क्षमता के अनुरूप बुनियादी कौशलों का ज्ञान कराना।

(iii) सुरक्षा तथा विश्वास की भावना (Feeling of Security and Trust)- घर विद्यालय तथा विद्यालय के सम्पूर्ण क्रिया-कलापों के प्रति सुरक्षा।

(iv) सामाजिक स्वीकृति एवं मित्रों की स्वीकृति की इच्छा (Desire of Social Acceptance and Acceptance by Friends) – अपने मित्र समूह में तथा अन्य बड़े-बुजुर्गों के मध्य।

(v) अनुशासन (Discipline)- स्नेहपूर्ण, दृढ़, आत्मानुशासन की ओर प्रगति।

(vi) अवकाश के समय की गतिविधियाँ (Activities in Leisure Time)- वैयक्तिक रुचियों तथा मनोरंजन के सन्दर्भ में।

(vii) व्यावसायिक कौशल (Occupational Skills) – आस-पास होने वाले कार्यों का ज्ञान।

इसके अतिरिक्त उचित अनुचित का ज्ञान, सामान्य ज्ञान में वृद्धि, विश्वसनीय मित्र बनाने आदि भी व्यक्तिगत निर्देशन के कार्यक्षेत्र में आते हैं। शिक्षा के प्राथमिक स्तर पर उपरोक्त आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर ही वैयक्तिक निर्देशन की व्यवस्था की जानी चाहिए। इसी स्तर से बालकों में उचित – अनुचित का भेद करने की आदत तथा अनुशासित रहने की आदत का विकास इसी स्तर से किया जाना चाहिए। अनुशासन एवं आत्मानुशासित रहने का महत्त्व बालकों को स्पष्ट होना चाहिए। उन्हें यह आभास होना चाहिए कि अनुशासन उनके स्वयं के हित के लिए आवश्यक है। इस प्रकार इस स्तर पर वैयक्तिक निर्देशन बच्चों के जीवन में व्यक्तिगत एवं सामाजिक पक्षों के प्रति उचित दृष्टिकोण विकसित करने में सहायक होता है।

(3) जूनियर स्तर पर व्यक्तिगत निर्देशन के कार्य (Functions of Personal Guidance at Junior Level)- शिक्षा के इस स्तर पर छात्र किशोरावस्था से पूर्व की आयु के होते हैं। अति उत्साह, स्फूर्ति एवं लगन से पूर्ण होते हैं तथा उनकी शारीरिक विकास की गति तीव्र होती है। शारीरिक विकास और आयु वृद्धि के साथ उनकी समस्याओं में भी अभिवृद्धि हो जाती है जिसके समाधान हेतु वैयक्तिक निर्देशन की आवश्यकता होती है। इस स्तर पर बालकों को इस प्रकार का निर्देशन प्रदान किया जाना चाहिए जिससे कि वे आपस में मिलजुल कर रह सकें एवं परस्पर सम्बन्ध स्थापित कर मित्रता की भावना विकसित कर सकें, अपने समूह में एकता की भावना से कार्य कर सकें। छात्र स्वयं में नेतृत्व क्षमता वाले गुणों का विकास कर सकें तथा शैक्षिक वैयक्तिक एवं व्यावसायिक समस्याओं में अन्तर्सम्बन्ध स्थापित कर सकें।

क्रो एवं क्रो (Crow and Crow) के अनुसार जूनियर स्तर पर वैयक्तिक निर्देशन की व्यवस्था करते समय निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखा जाना चाहिए-

(i) बालकों को स्वयं और दूसरों के हितों हेतु उत्तरोतर अधिक जिम्मेदारी निर्वहन की प्रेरणा प्रदान करना।

(ii) बालकों को इस तथ्य से अवगत कराना कि वैयक्तिक सामंजस्य से सम्बन्धित कुछ समस्याएँ विकास की प्रक्रिया में सामान्यतः उदित होती रहती हैं।

(iii) छात्रों / बालकों में श्रम के महत्त्व एवं जीविकोपार्जन के विभिन्न प्रकारों से अवगत कराना।

(iv) बालकों को भावी शिक्षा के प्रति उत्साहित करना एवं क्रियाशील बनाना।

(v) बालकों को विभिन्न व्यवसायों के प्रारम्भिक अध्ययन में निर्देशन प्रदान करना तथा अपनी रुचि एवं योग्यता के अनुरूप ही व्यवसाय चयनित करने की धारणा का विकास करना।

(vi) बालकों को कुछ ऐसी व्यावसायिक समस्याओं से परिचित कराना जिनसे उनका बाद में साक्षात्कार हो सकता है।

(vii) बालकों को रचनात्मक जीवन हेतु आवश्यक गुणों का विकास करने की प्रेरणा देना।

(viii) जीवन की वर्तमान और भावी नियोजन (Planning) के विषय में अपने माता-पिता/अभिभावक, शिक्षक एवं परामर्शदाता आदि के बीच सह-चिन्तन की आवश्यकता पर बल देना।

(ix) आवश्यकता महसूस होने पर बिना किसी संकोच के वैयक्तिक परामर्श हेतु प्रस्तुत होना ।

(4) माध्यमिक स्तर पर व्यक्तिगत निर्देशन के कार्य (Functions of Personal Guidance at Secondary Level)- इस स्तर पर प्रवेश लेने वाले छात्र सामान्यतः किशोरावस्था में प्रवेश कर चुके होते हैं। इस अवस्था में छात्रों में शारीरिक परिवर्तन बड़ी तीव्र गति से होता है। इस शारीरिक परिवर्तन के फलस्वरूप उसके व्यवहार में भी बहुत परिवर्तन होता है। यह परिवर्तन छात्रों के मन में उत्पन्न करते हैं। विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण स्वाभाविक रूप से बढ़ता है। इस अवस्था में सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिवेश के अनुरूप यौन समस्याओं हेतु निर्देशन की व्यवस्था की जानी चाहिए जिससे कि वे किशोरावस्था के परिवर्तनों एवं विकास के फलस्वरूप उत्पन्न समस्याओं का सामना साहस एवं धैर्यपूर्वक कर सकें एवं उनका निश्चित समाधान प्राप्त सकें। इस स्तर पर छात्रों में समायोजन की समस्याएँ अपेक्षाकृत जटिल होती हैं। उन्हें उपयुक्त निर्देशन प्रदान कर परिवेश में समुचित समायोजन स्थापित करने में वैयक्तिक निर्देशन सहायता प्रदान कर सकता है। इस स्तर पर वैयक्तिक निर्देशन के विभिन्न कार्यों को निम्न बिन्दुओं द्वारा किया जा सकता है-

(i) छात्रों/बालकों को अपनी समस्याओं की प्रकृति समझने एवं उसके अनुसार समाधान प्राप्त करने में सहायता प्रदान करना।

(ii) छात्रों में उत्तम नागरिकता के गुणों का विकास करने हेतु जिम्मेदारी से कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करना।

(iii) छात्रों में आत्म-विश्वास की भावना उत्पन्न करना तथा नवीन शैक्षिक एवं व्यावसायिक योजनाओं में समीकरण बनाने के लिए प्रेरित करना।

(iv) छात्रों को तनाव मुक्त रखने के लिए स्वस्थ मनोरंजन की व्यवस्था करना एवं समाज सेवा के कार्य करने हेतु प्रोत्साहित करना।

(v) छात्रों को विभिन्न बीमारियों के कारणों, दुष्प्रभावों से अवगत कराना।

(vi) छात्रों को अपने स्वास्थ्य के प्रति सजग रहने हेतु प्रेरित करना साथ ही समय-समय पर स्वास्थ्य सम्बन्धी सलाह देना जिससे कि वे किसी व्यसन में न पड़ें।

(vii) छात्रों के अधिकतम सामाजिक, नैतिक एवं आध्यात्मिक विकास हेतु व्यवस्था करना।

(viii) छात्रों को सामाजिक एकता स्थापित करने एवं प्रगाढ़ मानवीय सम्बन्ध बनाने में निपुणता प्रदान करना ।

(ix) छात्रों में अहम् का भाव उदित न हो तथा वे अपने साथियों के साथ मेल-जोल स्नेह एवं प्रसन्नतापूर्वक सभी कार्यों का सम्पादन कर सकें, ऐसी क्षमता एवं भावना उत्पन्न करना ।

2. महाविद्यालय / विश्वविद्यालय स्तर पर व्यक्तिगत निर्देशन के कार्य (Functions of Personal Guidance at College/University Level)

शिक्षा के इस स्तर तक पहुँचते हुए छात्र किशोरावस्था पार कर चुके होते हैं। शारीरिक एवं मानसिक रूप से ये परिपक्व युवा हो चुके होते हैं। इस स्तर पर आकर उनकी समस्याओं का स्वरूप भी परिवर्तित हो चुका होता है। अब उन्हें जीवन की अन्य प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

यदि माध्यमिक स्तर पर निर्देशन प्रक्रिया सन्तोष जनक रही है तब इस स्तर पर आते-आते सामंजस्य की समस्या का सुविधाजनक हल प्राप्त हो जाता है। इस स्तर पर जो समस्याएँ छात्रों के समक्ष आती हैं उनके लिए उन्हें व्यक्तिगत निर्देशन की आवश्यकता पड़ती है। सामान्यतः इस स्तर छात्रों की निम्नलिखित समस्याएँ होती हैं। जिनके लिए उन्हें व्यक्तिगत निर्देशन की आवश्यकता पड़ती है-

(1) इस स्तर पर अधिकांश युवा छात्रों के समक्ष आर्थिक समस्या उभर कर आती है। जीविकोपार्जन के साधन की तलाश में अब वे परेशान होते हैं। यदि माता-पिता उसका खर्च उठाने में सक्षम नहीं हैं तो उन्हें अपनी पढ़ाई और अस्तित्व की रक्षा हेतु खुद ही धनोपार्जन करना होता है। इन स्थितियों में अंशकालिक कार्य (Part Time Job) करके कुछ धन कमाया जा सकता है या नौकरी करते हुए अंशकालिक या प्राइवेट रूप से शिक्षा प्राप्त जा सकती है। वैयक्तिक निर्देशन के माध्यम से इस प्रकार की समस्याओं से ग्रस्त युवाओं को इस प्रकार निर्देशित किया जाता है कि वे अपनी आर्थिक समस्याओं को अपनी क्षमता एवं परिस्थितियों के अनुसार सुलझा सकें एवं समाज में अपना अस्तित्व सुरक्षित रखते हुए अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करने में सक्षम बन सकें।

(2) शिक्षा के इस स्तर पर युवा विवाह योग्य आयु में होते हैं। विवाह जीवन का एक प्रमुख फैसला होता है। प्रायः युवा यहाँ पर वैवाहिक समस्याओं में उलझ जाते हैं। वे प्रेमविवाह, तयशुदा विवाह, अन्तर्जातीय विवाह, माता-पिता की इच्छा के विरुद्ध विवाह आदि के द्वन्द्व में पड़ जाते हैं। वैयक्तिक निर्देशन उनकी इच्छा, सामर्थ्य, सफलता एवं असफलता के सापेक्ष उनकी समस्याओं का आंकलन कर उन्हें निर्देशित करता कि उन्हें किस मार्ग का और किस प्रकार अनुसरण करना चाहिए।

(3) आज हमारे समाज में आधुनिकीकरण के नाम पर पश्चिमीकरण का बोलबाला है। भारतीय मूल्यों के स्थान पर युवा पश्चिम सभ्यता का अनुसरण कर रहे हैं। धूम्रपान, मदिरापान, जुआ खेलना, ब्लू फिल्में देखना, नाइट क्लब एवं पब में जाना, अन्य नशीले पदार्थों का सेवन करना, माता-पिता की आज्ञा न मानना आदि जैसी बातों से हमारे समाज का युवा काफी प्रभावित नजर आता है। मूल्य आधारित सोच के स्थान पर भौतिकतावादी / प्रयोजनवादी सोच ने स्थान बना लिया है। सत्यता, नैतिकता, आध्यात्मिकता आदि मूल्यों में हास हुआ है और ये धीरे-धीरे समाप्त होते जा रहे हैं भारतीय युवा ऐसे दोराहे पर खड़ा है जहाँ उसे नहीं पता है कि उसके लिए कौन सा मार्ग उपयुक्त है । किन मूल्यों को अपनाना है एवं किन मूल्यों को छोड़ना है, इसका ज्ञान उन्हें नहीं है। इस समस्या के निराकरण में उन्हें वैयक्तिक निर्देशन से सहायता प्राप्त हो सकता है। वैयक्तिक निर्देशन उन्हें अपने पारिवारिक व सामाजिक परिवेश के मूल्यों के अनुसार उचित एवं सत्य मार्ग के चयन करने में सहायक होता जिससे कि उनके जीवन में कभी विघटन की समस्या न उत्पन्न हो।

(4) भारतीय संविधान में समाहित समता एवं धर्मनिरपेक्षता दो महत्त्वपूर्ण मूल्य हैं। समाज भी इन मूल्यों को अपने में समाहित कर रहा है लेकिन समाज में कुछ ऐसे भी लोग हैं जो सामाजिक रूढ़ियों एवं अंधविश्वास के साथ हैं। ऐसे व्यक्ति नए विचारों के युवाओं के साथ सामंजस्य नहीं स्थापित कर पाते और एक द्वन्द्व की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इस स्थिति में वैयक्तिक निर्देशन सहायक होता है। वैयक्तिक निर्देशन द्वारा ऐसे युवाओं के मध्य सामंजस्य स्थापित कर अनुकूलन का मार्ग दिखाया जा सकता है। वैयक्तिक निर्देशन के द्वारा युवाओं में अपने विचारों को रखने एवं दूसरों के विरोधी विचारों को स्वीकार करने एवं उनको आदर व सम्मान देने की क्षमता विकसित की जा सकती है। वैयक्तिक निर्देशन द्वारा युवाओं में सह-अस्तित्व की भावना की प्रेरणा देकर नवयुवकों को उनके समायोजन सम्बन्धी समस्याओं को भली प्रकार सुलझाया जा सकता है।

उपरोक्त बिन्दु वैयक्तिक निर्देशन के कार्यों को स्पष्ट करते हैं। वैयक्तिक निर्देशन जीवन में सफलता हेतु आवश्यक है। इसके द्वारा व्यक्ति को तनावमुक्त करके उसे सुखप्रद एवं संतोषप्रद जीवन को जीने के लिए उन्मुख किया जा सकता है।

व्यक्तिगत निर्देशन की आवश्यकता (Need of Personal Guidance)

व्यक्तिगत निर्देशन व्यक्ति की निजी समस्याओं को हल करने में सक्षम बनाने हेतु दिया जाता है। इसकी मुख्य रूप से आवश्यकता व्यक्ति/विद्यार्थी के मानसिक, सामाजिक और भौतिक पक्षों में सामन्जस्य स्थापित करने के लिए पड़ती है। यदि व्यक्ति / विद्यार्थी उपयुक्त ढंग से समायोजित नहीं हो पाता तो उसकी क्षमता एवं योग्यता को क्षति पहुँचती है जिससे उसकी उपलब्धि प्रभावित होती है। वैयक्तिक निर्देशन की आवश्यकता को निम्न बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-

(1) स्वयं की रुचि, क्षमता व योग्यता का बोध कराने में (For Knowing Interest, Capacity and Ability of Self) – प्रत्येक व्यक्ति के भीतर निहित रुचि क्षमताएँ एवं योग्यताएँ होती हैं। उनको इसका ज्ञान होना आवश्यक है जिससे वे अपने भविष्य की रूपरेखा निर्धारित कर सकें। इस कार्य के लिए व्यक्तिगत निर्देशन की आवश्यकता होती है।

(2) स्वास्थ्य एवं शारीरिक विकास सम्बन्धी समस्याओं को हल करने में (In Solving the Problems Related to Health and Physical Development)- समय-समय पर बीमारियों एवं शारीरिक विकारों से भी ग्रस्त हो जाता है। स्वास्थ्य मानव जीवन की सबसे बड़ी पूँजी है। स्वस्थ शरीर के द्वारा ही कार्यों का सम्पादन सम्भव होता है। यदि शरीर स्वस्थ नहीं है तो व्यक्ति की क्षमता का हास होता है एवं उसकी उपलब्धि प्रभावित होती है। बीमारी या शारीरिक विकारों से निवृत्ति के लिए व्यक्ति को चिकित्सक के द्वारा व्यक्तिगत निर्देशन की आवश्यकता पड़ती है। इसी प्रकार प्रत्येक व्यक्ति को अपने शारीरिक विकास सम्बन्धी ज्ञान की आवश्यकता होती है। जो उसे व्यक्तिगत निर्देशन द्वारा प्रदान किया जा सकता है।

(3) व्यक्तित्व एवं व्यवहार सम्बन्धी समस्याओं के समाधान हेतु (For Solving the Problems Related to Personality and Behaviour) – व्यक्ति द्वारा किया गया व्यवहार उसके व्यक्तित्व को प्रदर्शित करता है। यदि किसी का व्यवहार असामान्य प्रतीत होता है तो इसका अर्थ है कि उसमें व्यक्तित्व विकार है। ऐसी स्थिति में उस व्यक्ति का समाज में उचित समायोजन नहीं हो पाता है। व्यक्तित्व एवं व्यवहार सम्बन्धी समस्याओं के समाधान हेतु व्यक्ति में मनोचिकित्सक या परामर्श प्रदाता से व्यक्तिगत निर्देशन की आवश्यकता पड़ती है।

(4) व्यक्तिगत समायोजन हेतु (For Personal Adjustment) – व्यक्ति विचारशील प्राणी है। विचारों में द्वन्द्व एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। कभी-कभी विचारों में उठने वाला यह द्वन्द्व उसके व्यवहार एवं व्यक्तित्व में परिलक्षित होने लगता है तथा व्यक्ति का व्यक्तिगत समायोजन बिगड़ जाता है। ऐसी स्थिति में व्यक्ति को व्यक्तिगत निर्देशन की आवश्यकता पड़ती है।

(5) सामाजिक समायोजन हेतु (For Social Adjustment)- मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज में ही रहकर वह अपने समस्त क्रिया-कलाप सम्पादित करता है। समाज में ही उसका विकास सम्भव होता है। यदि व्यक्ति सामाजिक सम्बन्धों में रुचि नहीं लेता, लोगों से मेलजोल नहीं रखता, समाज में रहकर सन्तोष नहीं पाता तो इसका अर्थ है कि उसका समाज के साथ समायोजन सही नहीं है। इस समस्या को दूर करने के लिए उसे व्यक्तिगत निर्देशन की आवश्यकता पड़ती है।

(6) पारिवारिक सम्बन्धों एवं समस्याओं के निराकरण हेतु (For Solving Family Problems and Relationship)- व्यक्ति का समाजीकरण उसके परिवार से प्रारम्भ होता है। समाज का नागरिक होने से पहले वह एक परिवार का सदस्य होता है। आज जिस प्रकार समाज में जटिलता आ गई है उसी प्रकार परिवार एवं पारिवारिक सम्बन्धों में भी अनेक जटिलताएँ आ गई हैं जिसके कारण व्यक्ति का पारिवारिक जीवन समस्यायुक्त हो गया है। परिवार की शान्ति भंग हो गई है एवं कलहपूर्ण वातावरण में रहने को व्यक्ति मजबूर है जिससे उसका एवं अन्य पारिवारिक सदस्यों का विकास बाधित होता है। इन समस्याओं के निराकरण हेतु भी व्यक्ति को व्यक्तिगत निर्देशन की आवश्यकता पड़ती है।

(7) संवेगात्मक व्यवहार सम्बन्धी समस्याओं के निराकरण हेतु (For Solving the Problems Related to Emotional Behaviour)- व्यक्ति के जीवन में उसके संवेगात्मक समस्याओं का बहुत प्रभाव पड़ता है। विभिन्न परिस्थितियों में उसकी संवेगात्मक प्रतिक्रिया उसके व्यक्तित्व का प्रदर्शन करती है। यदि व्यक्ति को अपने संवेगों पर नियन्त्रण नहीं होता तो उसके कारण उसे अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। संवेगों में सन्तुलन एवं स्थिरता एक व्यक्ति के लिए अति आवश्यक है। इसके बिना उसका उपयुक्त समायोजन नहीं हो सकता। अतः इससे सम्बन्धित समस्याओं के निराकरण हेतु व्यक्तिगत निर्देशन आवश्यक है।

(8) यौन, प्रेम, विवाह आदि से सम्बन्धित व्यक्तिगत समस्याओं के समाधान हेतु (For Solving Personal Problems like Sex, Courtship and Marriage, etc.)- व्यक्ति के जीवन में काम प्रेम एवं विवाह इन सबका विशेष महत्त्व है। यदि व्यक्ति इनमें सफल है तो उसका विकास सुनिश्चित है लेकिन यदि वह इनमें असफल है तो उसका जीवन कष्टमय हो जाता है। इसलिए यौन जीवन की विषमताओं, इससे सम्बन्धित अनभिज्ञताओं, काम जीवन की असफलता एवं वैवाहिक जीवन के सन्दर्भ में व्यक्तिगत निर्देशन अधिक महत्त्वपूर्ण एवं अति आवश्यक है।

(9) आर्थिक समस्याओं के निराकरण हेतु (For Solving Financial Problems) – जीवन संचालन में धन अति महत्त्वपूर्ण है। यदि जीवन में इसका अभाव है तो जीवन कष्टकारी हो जाता है। आर्थिक समस्याओं के समाधान हेतु समुचित व्यक्तिगत निर्देशन की आवश्यकता होती है।

(10) धार्मिक, चारित्रिक / नैतिक एवं मूल्य सम्बन्धी समस्याओं के समाधान हेतु (For Solving Problems Related to Religion, Character/Morality and Values) – मनुष्य जिस समाज में रहता है उसके अपने नैतिक मानदण्ड एवं मूल्य होते हैं। सामाजिक समायोजन हेतु व्यक्ति द्वारा उनका अनुपालन आवश्यक होता है। व्यक्ति के मन में कभी-कभी धर्म को लेकर, मूल्यों, आदर्शों एवं नैतिकताओं को लेकर अनेकों प्रश्न उत्पन्न होते रहते हैं। उनका उपयुक्त समाधान न होने पर व्यक्ति समस्याग्रस्त हो जाता है। सामान्य जीवन में भी इन सबसे जुड़ी अनेक समस्याएँ दृष्टिगोचर होती हैं जिनके निराकरण हेतु व्यक्तिगत निर्देशन की आवश्यकता होती है।

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shubham yadav

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