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दूरस्थ शिक्षा-अर्थ, परिभाषा, विशेषताएँ, उद्देश्य, आवश्यकता एवं महत्व, सीमाएँ

दूरस्थ शिक्षा
दूरस्थ शिक्षा

दूरस्थ शिक्षा (Distance Education)

दूरस्थ शिक्षा- परम्परागत शिक्षा व्यवस्था में शिक्षक छात्र के निकट रहकर शिक्षा प्रदान करता है। इसके साथ ही इसके लिए एक विद्यालय इमारत, फर्नीचर, शैक्षिक उपकरण आदि की भी आवश्यकता होती है। ऐसे में अधिक जनसंख्या वाले देशों में सभी को संस्थागत परम्परागत व्यवस्था करना अत्यधिक कठिन हो जाता है।

अतः इस समस्या को दूर करने तथा सभी को शिक्षा प्रदान करने के लिए दूरस्थ शिक्षा की अवधारणा को अपनाया गया जिसे पहले पत्राचार शिक्षा (Correspondence Education) कहते थे। इसमें शिक्षक दूर होते हुए भी शिक्षा को सीखने वाले के द्वार पर भेजता है। इस प्रत्यय या अवधारणा को ही दूरस्थ शिक्षा कहते हैं।

दूरस्थ शिक्षा का अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and Definitions of Distance Education)

दूरस्थ शिक्षा अनौपचारिक शिक्षा की आधुनिक प्रणाली है। इसमें शिक्षक तथा छात्र का प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं होता है। दूरस्थ शिक्षा का शाब्दिक अर्थ है, दूर स्थित शिक्षा अर्था दूर रहते हुए शिक्षा प्राप्त करना। दूसरे शब्दों में शिक्षा देने वाले और शिक्षार्थी के मध्य दूरी होते हुए भी प्रदान की जाने वाली शिक्षा दूरस्थ शिक्षा कहलाती है। इसे मुक्त शिक्षा (Open Education) भी कहा जाता है। दूरस्थ शिक्षा अप्रत्यक्ष शिक्षण की व्यवस्था है। आधुनिक प्रौद्योगिकी के उपकरणों के माध्यम से शिक्षार्थियों से सम्पर्क स्थापित किया जाता है। दूरस्थ शिक्षा उन बालकों, युवाओं एवं प्रौढ़ों के लिए शिक्षा की एक व्यवस्था है. जो किसी कारणवश औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने में असमर्थ रहें हैं और भविष्य में भी समर्थ नहीं हो सकते हैं। वास्तव में दूरस्थ शिक्षा उन लोगों तक शिक्षा पहुँचाने की व्यवस्था है, जो किसी आयु के एवं किसी स्थान पर रहने वाले हैं या स्व-व्यवसाय में या किसी सेवा में संलग्न है तथा अपनी शिक्षा को जारी रखना चाहते हैं।

दूरस्थ शिक्षा शब्द का प्रयोग सन् 1982 से शुरू हुआ जब चार दशक पुरानी पत्राचार शिक्षा की अन्तर्राष्ट्रीय परिषद् (International Council for Correspondence Education or ICCE) ने अपना नाम बदलकर दूरस्थ शिक्षा की अन्तर्राष्ट्रीय परिषद् (International Council for Distance Education or ICDE) रखा। इस परिषद में विश्व के लगभग 50 देश सदस्य हैं। इसके परिणामस्वरूप भारत सहित समस्त विश्व में पत्राचार शिक्षा को दूरस्थ शिक्षा कहा जाने लगा। दूरस्थ शिक्षा के सम्बन्ध में विद्वानों ने निम्नलिखित परिभाषाएँ दी हैं-

जैक फॉक्स के अनुसार, “दूरस्थ शिक्षा अधिगम विधि की कुछ ऐसी विशेषताओं को प्रकट करती है जो शिक्षा-संस्थाओं की अधिगम – विधि से भिन्न हैं।”

मूरे के अनुसार, “दूरस्थ शिक्षा को अनुदेशन विधियों के परिवार के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जिसमें शिक्षण व्यवहार अधिगम व्यवहार से अलग प्रतिपादित किए जाते हैं। शिक्षक और अधिगमकर्ता के मध्य संचार मुद्रित, इलेक्ट्रानिक, यान्त्रिक अथवा अन्य युक्तियों द्वारा सुगम बनाया जाता है।”

पीटर्स के अनुसार, “दूरस्थ शिक्षा अप्रत्यक्ष अनुदेशन की विधि है जिसमें शिक्षक तथा शिक्षार्थी में भौगोलिक एवं भावात्मक पृथकता रहती है जबकि शिक्षा की मुख्यधारा में शिक्षक एवं छात्र का कक्षा में सम्बन्ध सामाजिक नियमों पर आधारित रहता है और दूरस्थ शिक्षा में यह सम्बन्ध प्रौद्योगिकी नियमों पर आधारित होता है।”

शिक्षा-शब्दकोष के अनुसार, “पत्राचार अनुदेशन अथवा पत्राचार शिक्षा एक शैक्षिक, सरकारी अथवा व्यापारिक संस्था अथवा अभिकरण द्वारा संचालित डाक और अन्य माध्यम से शिक्षण की एक व्यवस्था है।”

दूरस्थ शिक्षा की विशेषताएँ (Characteristics of Distance Education)

दूरस्थ शिक्षा कह निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-

(1) दूरस्थ शिक्षा अनौपचारिक शिक्षा प्रणाली है जिसे पत्राचार शिक्षा, मुक्त अधिगम, मुक्त शिक्षा आदि कहा जाता है।

(2) दूरस्थ शिक्षा जन साधारण की शिक्षा है। इसमें शिक्षक बहुआयामों द्वारा शिक्षा को छात्रों तक पहुँचाता है।

(3) यह शिक्षा स्थान, काल आदि से सम्बन्धित नहीं है।

(4) इसमें शिक्षार्थी के व्यक्तिगत अध्ययन पर बल दिया जाता है।

(5) इसमें शिक्षा ग्रहण करने हेतु प्रवेश सभी के लिए सुलभ है।

(6) इस शिक्षा में बहु-आयामी पाठ्यक्रमों का समावेश होता है।

(7) इसमें पत्राचार द्वारा मुद्रित सामग्री का प्रेषण, रेडियों, दूरदर्शन, टेप, वीडियों, कम्प्यूटर आदि संचार माध्यमों का उपयोग किया जाता है।

(8) इस शिक्षा में शिक्षार्थी अपनी गति एवं सुविधा के अनुसार ज्ञानार्जन करता है।

(9) दूरस्थ शिक्षा छात्रों के लिए मुक्त अधिगम की परिस्थितियों को सृजित करती है और छात्रों को स्व-अध्ययन की सुविधाएँ उपलब्ध कराती है।

(10) यह अप्रत्यक्ष शिक्षा है जिसमें शिक्षक तथा छात्रों का सम्पर्क फोन, मोबाइल, कम्प्यूटर एवं डाक आदि माध्यमों से होता है।

भारत में दूरस्थ शिक्षा (Distance Education in India)

भारत में सन् 1961 में केन्द्रीय शिक्षा सलाहकार परिषद् ने पत्राचार (दूरस्थ) पाठ्यक्रम आरम्भ करने की संस्तुति की थी। उनकी संस्तुति के आधार पर ही देश में माध्यमिक और उच्च शिक्षा के लिए पत्राचार शिक्षा की व्यवस्था हेतु प्रयास किए गए।

(1) माध्यमिक स्तर पर पत्राचार शिक्षा (Correspondence Education at Secondary Stage)

(2) उच्च स्तर पर पत्राचार शिक्षा (Correspondence Education at Higher Stage)

माध्यमिक स्तर पर पत्राचार शिक्षा (Correspondence Education at Secondary Stage)

माध्यमिक स्तर पर पत्राचार कार्यक्रम 1965 में प्रारम्भ हुआ। इसे सर्वप्रथम 1965 में मध्य प्रदेश माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने पत्राचार पाठ्यक्रम प्रारम्भ किया था। इसके पश्चात् राजस्थान उड़ीसा, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश की माध्यमिक शिक्षा परिषदों ने पाठ्यक्रम प्रारम्भ किए थे।

प्रथम मुक्त विद्यालय (Open School) नई दिल्ली में 1979 में स्थापित किया गया। यह उन शिक्षार्थियों को माध्यमिक शिक्षा प्रदान करता था, जो बीच में विद्यालय छोड़ देते थे। पंजाब, आन्ध्रप्रदेश और महाराष्ट्र में मुक्त विद्यालय स्थापित किए जा चुके हैं। अन्य राज्यों में इनकी स्थापना का प्रावधान है।

उच्च स्तर पर पत्राचार शिक्षा (Correspondence Education at Higher Stage)

देश में उच्च शिक्षा की बढ़ती हुई माँग की पूर्ति हेतु भारत में 1962 में पत्राचार पाठ्यक्रम प्रारम्भ हुआ। 1962 में ही दिल्ली विश्वविद्यालय ने पत्राचार पाठ्यक्रम एवं सतत् शिक्षा विद्यालय (School of Correspondence Course and Continuing Education) स्थापित किया था। सन् 1966 में एन.सी.ई.आर.टी. ने अपने क्षेत्रीय शिक्षा महाविद्यालयों में ग्रीष्मकालीन पाठ्यक्रम प्रारम्भ किए थे। सत्तर के दशक में 21 विश्वविद्यालयों में पत्राचार पाठ्यक्रम प्रारम्भ किए गए। इसके पश्चात् समय-समय पर इनकी संख्या बढ़ती गई। फरवरी 2016 तक विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा दूरस्थ शिक्षा के लिए अनुमोदित विश्वविद्यालयों की संख्या 106 है जिन्हें विभिन्न प्रकार के पत्राचार पाठ्यक्रमों को प्रारम्भ करने की अनुमति दी गई है। उत्तर प्रदेश में 18 विश्वविद्यालयों को पत्राचार पाठ्यक्रम चलाने की अनुमति प्रदान की गई है जिनमें कुछ प्रमुख विश्वविद्यालयों के नाम निम्नलिखित हैं-

(1) उत्तर प्रदेश राजर्षि टण्डन मुक्त विश्वविद्यालय, इलाहाबाद 

(2) सैम हिगनबटम इंस्टीयूटट ऑफ एग्रीकल्चर टेक्नालॉजी एण्ड साइंस (डीम्ड यूनिवर्सिटी) – इलाहाबाद

(3) इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेण्ट टेक्नालॉजी, गाजियाबाद

(4) अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, अलीगढ़

(5) इंटीग्रल यूनिवर्सिटी, लखनऊ

दूरस्थ शिक्षा परिषद् (Council of Distance Education)

देश में दूरस्थ शिक्षा के सम्यक् क्रियान्वयन एवं संवर्द्धन हेतु 1992 में सरकार ने एक संवैधानिक संस्था के रूप में दूरस्थ शिक्ष परिषद् का गठन किया है।

संगठन (Organisation)

इसमें निम्नलिखित सदस्यों को सम्मिलित किया जाता है-

(1) इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय की प्रबन्ध समिति का प्रतिनिधि

(2) भारत सरकार के शिक्षा विभाग का प्रतिनिधि।

(3) विश्वविद्यालय अनुदान आयोग का प्रतिनिधि

(4) राज्यों के मुक्त विश्वविद्यालयों के प्रतिनिधि

(5) अन्य विश्वविद्यालयों में पत्राचार संस्थाओं के प्रतिनिधि

(6) प्रतिष्ठित शिक्षाविद्

परिषद् के कार्य (Functions of the Council)

दूरस्थ शिक्षा परिषद् के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं-

(1) राज्य मुक्त विश्वविद्यालयों हेतु दिशा-निर्देश तैयार करना।

(2) राज्य मुक्त विश्वविद्यालयों तथा दूरस्थ शिक्षा की अन्य संस्थाओं का एक नेटवर्क तैयार करना, जिससे संस्थाएँ परस्पर पाठ्यक्रमों एवं कार्यक्रमों से लाभान्वित हो सकें।

(3) सेवारत् व्यक्तियों की सतत् शिक्षा एवं आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु कार्यक्रम बनाना।

(4) इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, राज्य मुक्त विश्वविद्यालयों एवं अन्य विश्वविद्यालयों के निदेशालयों के संयुक्त कार्यक्रमों को प्रोत्साहित करना ।

दूरस्थ शिक्षा के उद्देश्य (Objectives of Distance Education)

दूरस्थ शिक्षा के उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

(1) उन लोगों को अधिगम के अवसर प्रदान करना जो कम आय अधिक आयु दूरी आदि के कारण अपनी शिक्षा को कायम रखने में असमर्थ हैं / थे।

(2) शिक्षित व्यक्तियों को उनके वर्तमान रोजगार में बाधा उत्पन्न किए ज्ञान – हेतु अवसर प्रदान करना।

(3) सामाजिक एवं आर्थिक रूप से पिछड़े व्यक्तियों को समाज के उपयोगी नागरिक बनने में सहायता प्रदान करना।

(4) उच्चतर शिक्षा के लिए व्यापक अवसर प्रदान करना।

(5) सीखने वाले को उनकी रुचियों से सम्बन्धित विभिन्न क्षेत्रों में हुए वर्तमान विकास एवं सुधारों से अवगत कराना।

दूरस्थ शिक्षा की आवश्यकता एवं महत्व (Need and Importance of Distance Education)

दूरस्थ शिक्षा अधिक आबादी वाले देशों के लिए एक वरदान है। इसके माध्यम से सभी को शिक्षा एवं सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों, पर्वतीय क्षेत्रों आदि में निवास करने वाले व्यक्तियों की शैक्षिक आवश्यकताओं की पूर्ति की जा सकती है। निजी व्यवसाय एवं सेवा में लगे व्यक्तियों को भी इससे शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिल जाता है। इसके द्वारा सभी को शिक्षा प्राप्त करने के अवसर सुलभ हो जाते हैं। यह व्यक्ति विशेष की शैक्षिक योग्यता की अभिवृद्धि में सहायक होती है।

दूरस्थ शिक्षा के महत्व को निम्नलिखित बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-

(1) दूरस्थ शिक्षा द्वारा नवीन परिवर्तनों को सम्मिलित करना सम्भव है जिससे ज्ञान को अद्यतन बनाया जा सकता है।

(2) दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से छात्रों की विभिन्न शैक्षिक आवश्यकताओं को पूर्ण किया जा सकता है।

(3) दूरस्थ शिक्षा शैक्षिक योग्यता बढ़ाने वाले व्यक्तियों की इच्छा को पूर्ण करती है।

(4) दूरस्थ शिक्षा आर्थिक, भौतिक, भावात्मक एवं पारिवारिक स्थितियों के कारण उत्पन्न पृथकता को दूर करने में सहायता प्रदान करती है।

(5) दूरस्थ शिक्षा लोकतन्त्रीकरण (Democratisation) में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

इस प्रकार उपर्युक्त विश्लेषण से स्पष्ट है कि दूरस्थ शिक्षा की अपनी विशेषताएँ, सीमाएँ एवं महत्व है तथा भारत जैसे विविधता वाले देश में सभी को शिक्षा प्रदान करने में यह मुख्य भूमिका निभा रही हैं।

दूरस्थ शिक्षा की सीमाएँ (Limitations of Distance Education)

दूरस्थ शिक्षा की निम्नलिखित सीमाएँ हैं-

(1) दूरस्थ शिक्षा प्रणाली विज्ञान एवं व्यावसायिक पाठ्यक्रमों के शिक्षण के लिए उपयुक्त नहीं है क्योंकि प्रयोगात्मक अभ्यास एवं उसके पर्यवेक्षण की व्यवस्था नहीं हो पाती है।

(2) दूरस्थ शिक्षा में स्वाध्याय पर अधिक बल दिया जाता है। अतः परिपक्व एवं लगनशील व्यक्ति ही इसका लाभ उठा पाते हैं।

(3) दूरस्थ शिक्षा प्रणाली भारत जैसे राष्ट्र के लिए जहाँ शिक्षित बेरोजगारी चरम पर है, उपयुक्त नहीं कहीं जा सकती है क्योंकि इससे लोग केवल डिग्री लेकर बेरोजगारों की भीड और बढा रहे हैं।

(4) इस शिक्षा प्रणाली में पर्यवेक्षण एवं निगरानी न होने के कारण गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान नहीं हो पाती हैं।

(5) दूरस्थ शिक्षा अब मितव्ययी नहीं रह गई है क्योंकि इसके द्वारा प्रायोजित कार्यक्रमों का शुल्क अधिक है एवं संचार माध्यमों का प्रयोग भी खर्चीला है। इससे निर्धन छात्र इसका लाभ नहीं उठा पाते हैं।

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