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सोशल मीडिया का सकारात्मक प्रभाव, नकारात्मक प्रभाव, विध्वंसकारी प्रभाव

सोशल मीडिया का सकारात्मक प्रभाव
सोशल मीडिया का सकारात्मक प्रभाव

सोशल मीडिया का सकारात्मक प्रभाव (Positive Impact of Social Media )

सोशल मीडिया का सकारात्मक प्रभाव- बढ़ते बालकों एवं किशोरों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। बढ़ते बालकों एवं किशोरों की अनेक ऐसी सामाजिक आवश्यकताएँ तथा क्रियाकलाप होते हैं जिसे वह मीडिया के द्वारा पूरा कर लेते हैं, यथा-साथियों एवं परिवार के सम्पर्क में रहना, नए साथी बनाना, विचारों तथा चित्रों का आदान प्रदान करना आदि। मीडिया स्वयं को अपने समुदाय को तथा समस्त विश्व को समझने में सहायता करता है।

मीडिया कुछ क्रिया-कलापों में विशेष रूप से सहायक सिद्ध हो सकता है-

(1) ब्लॉग, वीडियो आदि के द्वारा विचारों में वृद्धि व विकास करने में सहायक होता है।

(2) ऑन-लाइन सम्बन्धों का वृहत स्तर तक विस्तार करता है।

(3) सामुदायिक कार्यों में प्रतिभागिता के अवसर प्रदान करता है।

(4) वैश्विक समस्याओं तथा मुद्दों को समझने तथा उन्हें सुलझाने में सहायता करता है।

(5) वैयक्तिक तथा सामूहिक सृजनात्मकता के उन्नयन में, किशोर कलात्मक व संगीत सम्बन्धी प्रयासों तथा विचारों का आदान-प्रदान कर सकते हैं।

(6) वैयक्तिक पहचान तथा विशिष्ट सामाजिक कौशलों के विकास में किशोर की सहायता करते है।

(7) सम्पूर्ण विश्व की संस्कृति के प्रति किशोरों में सम्मान जगाते हैं। अतः सहिष्णुता में वृद्धि करते है।

सोशल मीडिया का नकारात्मक प्रभाव (Negative Impact of Social Media)

अक्सर मीडिया का बालकों एवं किशोरों पर नकारात्मक प्रभाव ही पड़ता है। परिणामस्वरूप मीडिया का प्रयोग करके वह अवांछित कार्य या व्यवहार करने लगते है, जैसे- मित्रों का अवांछित समूह बनाना, अनुचित विषयों एवं लेखों में रुचि लेना आदि ।

मीडिया के कुछ नकारात्मक प्रभावों का वर्णन इस प्रकार है-

(1) बहुत से बालक एवं किशोर फोन या इन्टरनेट का प्रयोग करके यौन सम्बन्धी समाचार तथा तस्वीरे दूसरों को भेज देते है या यू कहें कि समाज में फैला देते हैं जिसके कारण कभी-कभी वे अपराध के घेरे में आ जाते हैं। ऐसे बालक व किशोर माता-पिता की शर्मिन्दगी का कारण बनते है तथा विद्यालय में अपमानित होते है।

(2) विभिन्न प्रकार के शोध अध्ययनों से पता चला है कि यदि बालक तथा किशोर सोशल साइट पर बहुत अधिक समय बिताते है तो उनमें अजीब से उदासी के लक्षण दिखाई देने लगते है। वह हर समय अपने साथियों के सम्पर्क में रहना पसन्द करते हैं। अधिक समय तक ऑन लाइन रहने के कारण वे सामाजिक अलगाव की समस्या में फँस जाते हैं।

(3) वर्तमान में अक्सर इस प्रकार की घटनाएँ देखने व सुनने को मिल जाती है कि किशोर साइबर दबंगई कर रहे है अथवा ऑन-लाइन दूसरों को प्रताड़ित कर रहे हैं। इससे लोगों में हताशा, चिन्ता, अकेलापन एवं आत्महत्या जैसी घटनाएँ सामने आ रही है।

(4) आयु, लिंग शिक्षा विवाह आदि से सम्बन्धित विभिन्न प्रकार के विज्ञापन आदि विभिन्न प्रकार की साइट्स पर दिखाए जाते है। ये विज्ञापन किशोरों के विभिन्न प्रकार के वस्तुओं को खरीदने की प्रवृत्ति पैदा करते है साथ ही उनके विचारों को भी प्रभावित करते हैं।

सोशल मीडिया द्वारा प्रदर्शित विध्वंसकारी घटनाओं का प्रभाव (Impact of Destructive and Significant Events that Social Media Highlights and Creates)

मीडिया द्वारा प्रदर्शित विध्वंसकारी घटनाओं का प्रभाव निम्न प्रकार से स्पष्ट है-

(1) अपराध को बढ़ावा (Increasing Crime Rate)- वर्तमान समाज में अपराधों की संख्या में अत्यधिक वृद्धि हो रही है। इसका कारण मीडिया ही है। इन माध्यमों के द्वारा लोगों को अपराध करने के नए तरीकों तथा इससे बचने के विभिन्न तरीकों का ज्ञान हो जाता है। समाचार-पत्रों, फिल्मों तथा पत्रिकाओं में लोग विविध प्रकार की घटनाओं को पढ़ता व देखता है जिनमें से कुछ घटनाएँ बुरी तथा कुछ घटनाएँ अच्छी होती है। इन बुरी घटनाओं से अपराध को बढ़ावा मिलता है।

(2) मशीनों एवं यन्त्रों पर आश्रित रहने की भावना में वृद्धि (Increased of Feeling of Dependence on Machines) – भारतीय संस्कृति में व्यक्ति को सिखाया जाता है कि परिश्रम का फल मीठा होता है परन्तु आधुनिक समाज के लोग कम मेहनत करके अधिक से अधिक फल पाने का प्रयास करते हैं तथा शारीरिक परिश्रम को कोई मूल्य नहीं देते हैं।

इसका कारण संचार माध्यम या यूं कहें कि लोगो की प्रयोजनवादी मानसिकता है। समाज के लोग मशीनों तथा यन्त्रों पर इतने अधिक आश्रित हो गए हैं कि लोग छोटे से छोटे कार्य को करने में यन्त्रों व मशीनों का ही सहारा लेते हैं।

(3) स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव (Bad Effect on Health) – संचार माध्यमों के द्वारा ज्ञान का असीमित भण्डार लोगों को सहज ही प्राप्त हो जाता है। अतः बालकों को यह पता ही नहीं चल पाता कि उन्हें किस ज्ञान को सहेज कर इकठ्ठा करना है तथा किसे नहीं लेना है जिससे वह मानसिक, शारीरिक, बौद्धिक, आध्यात्मिक रूप से अस्वस्थ हो जाता है। इस प्रकार मीडिया के द्वारा बालक बिना किसी निर्देशन के विविध प्रकार की बुरी आदतों से घिर जाता है।

(4) बालकों के व्यवहार में विकृति (Deformity in the Behaviour of Children)- बालक को समाज के अनुसार विकसित किया जाता है। उसको एक सन्तुलित व्यवहार सिखाने का प्रयास किया जाता है जिससे वह समाज के साथ समायोजन स्थापित कर सकें लेकिन जनसंचार माध्यम के द्वारा उसके व्यवहार को विकृति प्रदान की जाती है अर्थात् वह सन्तुलित व्यवहार नहीं कर पाता है।

(5) अश्लीलता को प्रोत्साहन (Promoting Vulgarity) – व्यक्ति को समाज के नियमों के अनुसार जीवन व्यतीत करना चाहिए क्योंकि वह एक सामाजिक प्राणी माना जाता है परन्तु संचार माध्यमों में व्यक्तिगत जीवन को बढ़ा-चढ़ा कर बताया जाता है तथा बालकों को यह सिखाने का प्रयास किया जाता है कि जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में उन्हें उन्नति करनी है। इसके लिए उन्हें प्रोत्साहित भी किया जाता है जिसके कारण आज अश्लीलता का प्रतिशत बढ़ गया है क्योंकि प्रत्येक बालक येन केन प्रकारेण प्रत्येक क्षेत्र में उन्नति करने के लिए लगा हुआ है।

(6) सामाजिक मूल्यों का पतन (Degradation of Social Values) – आधुनिक युग में मीडिया ने व्यक्ति को समाज से दूर कर दिया है तथा व्यक्तिगत जीवन को अधिक महत्व दिया जाने लगा है। इसके परिणामस्वरूप एक परिवार की महत्ता बढ़ती चली जा रही है तथा संयुक्त परिवारों का मस होता चला जा रहा है। इसी कारण बालक में सामाजिक गुणों का समुचित विकास नहीं हो पा रहा है तथा धीरे-धीरे सामाजिक मूल्यों का पतन होता जा रहा है।

(7) तनाव में वृद्धि (Increased in Stress) – सामाजिक जीवन की अपेक्षा व्यक्तिगत जीवन को अधिक महत्व देने के कारण व्यक्तिगत तथा सामाजिक तनाव में वृद्धि होने लगी है। व्यक्तिगत जीवन में व्यक्ति स्वयं को समाज से बचा कर रखता है तो हमें यह पता नहीं चलता कि क्या सही है तथा क्या गलत। अतः हमारे जीवन में तनाव आना स्वाभाविक ही है। वर्तमान में व्यक्तिगत जीवन से सम्बन्धित अनेक समस्याओं का समाधान लोग संचार माध्यमों से करते हैं जिसके कारण कभी-कभी वह ऐसे कार्य कर जाते हैं जिससे उनके तनाव में कमी आने के बजाय वृद्धि हो जाती है।

(8) स्वप्नलोक में जीने की भावना पैदा करना (Motivating to Live in Fantasy World)- फिल्मों, कहानियों, समाचार-पत्रों, पत्रिकाओं आदि में बालक विभिन्न प्रकार की कथाएँ देखता, सुनता व पढ़ता है तथा उसे ही जीवन का सच मानने लगता है जबकि वास्तविकता ठीक इसके विपरीत होती है। व्यावहारिक जीवन का स्वप्नलोक से कोई सीधा सम्बन्ध नहीं होता है परन्तु फिर भी बालक इसी के अनुसार जीवन यापन करने का प्रयास करता है।

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shubham yadav

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