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राष्ट्रीय एकता स्थापित करने शिक्षा का योगदान

राष्ट्रीय एकता स्थापित करने शिक्षा का योगदान
राष्ट्रीय एकता स्थापित करने शिक्षा का योगदान

राष्ट्रीय एकता स्थापित करने शिक्षा का योगदान (Contribution of Education in Establishing National Integration)

राष्ट्रीय एकता स्थापित करने में शिक्षा की भूमिका निम्न प्रकार से स्पष्ट की जा सकती है-

(1) दैनिक सामूहिक सभा कार्यक्रम (Daily Morning Assembly Programme)- सभी विद्यालयों का कार्यक्रम 15 मिनट की दैनिक सामूहिक सभा से आरम्भ होना चाहिए। इसमें राष्ट्रगान, नैतिक शिक्षा आदि की बातें बच्चों को बताई जानी चाहिए। समय-समय पर राष्ट्रीय एकता पर भाषण दिए जाने चाहिए। बच्चों को अपनी राष्ट्रभाषा, राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान का आदर करने के बारे में बताना चाहिए। इस सभा में दैनिक प्रार्थना का विशेष महत्व होता है। अतः ऐसी प्रार्थना का चयन करना चाहिए जिसमें देश-प्रेम, ईश्वर की भक्ति की स्पष्ट झलक दिखाई पड़ती हो। सप्ताह में एक दिन इसके लिए नियत किया जा सकता है।

(2) महापुरुषों के का आयोजन (To Celebrate Birth Anniversaries of Prominent Persons)- भारत के स्वतन्त्रता सेनानियों और महापुरूषों के जन्म दिवस विद्यालय में मनाए जाने चाहिए। पण्डित नेहरू, सरदार पटेल, शास्त्री, डॉ. राधाकृष्णन, इन्दिरा गाँधी, लोकमान्य तिलक, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, मौलाना आजाद, चन्द्रशेखर आजाद, स्वामी विवेकानन्द आदि महापुरूषों के जन्म दिवस पर इनके जीवन के प्रेरक प्रसंग सुनाए जाने चाहिए जिससे छात्र राष्ट्र के लिए कुछ करने का संकल्प ले सकें। साथ ही 30 जनवरी (राष्ट्रपिता), 31 अक्टूबर (इन्दिरा जी). 21 मई (राजीव गाँधी) बलिदान दिवस के रूप में मनाए जाने चाहिए।

(3) राष्ट्रीय पर्वो का आयोजन (To Celebrate National Festivals) – स्वतन्त्रता दिवस, गणतन्त्र दिवस, शहीद दिवस, गाँधी जयन्ती आदि राष्ट्रीय पर्वो पर छात्रों के स्वतन्त्रता संग्राम के इतिहास और अनेक बलिदानों के बाद प्राप्त की गयी स्वतन्त्रता के विषय में बताया जाना चाहिए। इसकी रक्षा करने के लिए सबको प्रतिज्ञा लेनी चाहिए। पिछले कुछ वर्षों से इन राष्ट्रीय पर्वों पर अनेक विद्यालयों में अवकाश घोषित कर दिया जाता है जो अनुचित है। इन पर्वो पर किसी महान विभूति को भी आमन्त्रित किया जाना चाहिए।

(4) विद्वानों के व्याख्यानों का आयोजन (To Organise Lectures by Eminent Scholars) – समय-समय पर राष्ट्र की स्वाधीनता, अखण्डता, विकास और अन्य अनेक राष्ट्रीय समस्याओं से सम्बन्धित विषयों पर विद्वानों के व्याख्यान आयोजित किए जाने चाहिए जिससे छात्रों में राष्ट्रीयता की भावना पैदा हो सके। विषय विशेषज्ञ, विचारक, दार्शनिक, इतिहासकार इस दिशा में सार्थक भूमिका निभा सकते हैं और अनेक सारगर्भित एवं प्रेरणाप्रद व्याख्यान हमारे जीवन को एक उचित दिशा एवं सम्बल प्रदान कर सकते हैं।

(5) धार्मिक उत्सवों का आयोजन (To Celebrate Religious Festivals) – विद्यालयों में दीपावली, होली, ईद, दशहरा, गुरूपर्व, क्रिसमस आदि धार्मिक त्योहारों का आयोजन किया जाना चाहिए, जिनमें सभी धर्मों के छात्र भाग लें। इन अवसरों पर छात्रों को बताया जाना चाहिए कि ये त्योहार किसी धर्म विशेष के न होकर प्रत्येक भारतवासी के हैं। छात्रों को सिखाया जाना चाहिए कि उन्हें एक दूसरे के त्योहारों को पूरे मन से उल्लास के साथ मनाना चाहिए ताकि देश में आनन्द एवं सौहार्द का वातावरण बना रहे तथा लोग अपने त्योहारों को पूरे मनोयोग से मना सकें।

(6) प्रतियोगिताओं का आयोजन (To Organise Competitions)- समय समय पर राष्ट्रीय एकता से सम्बन्धित विषयों पर भाषण, वाद-विवाद, पत्र-पठन, निबन्ध, नाटक और अन्य साहित्यिक व सांस्कृतिक प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाना चाहिए जिससे छात्रों में राष्ट्रीय एकता की भावना का विकास हो सके। प्रतियोगिताओं का आयोजन करते समय किसी प्रकार के पक्षपात या पूर्वाग्रहों को स्थान नहीं दिया जाना चाहिए।

(7) प्रदर्शनियों का आयोजन (To Organise Exhibitions) – विद्यालयों में समय-समय पर प्रदर्शनियों का आयोजन किया जाना चाहिए। इन प्रदर्शनियों में राष्ट्र की सभ्यता और संस्कृति की झांकी प्रस्तुत की जानी चाहिए जिससे छात्रों में राष्ट्र गौरव के भाव पैदा हो सकें। विभिन्न प्रकार की प्रदर्शनियों का आयोजन महत्वपूर्ण तिथियों पर भी किया जा सकता है। जैसे – जनसंख्या दिवस, पर्यावरण दिवस, शिक्षक दिवस आदि। ये प्रदर्शनियाँ स्वयं में ही हमारी संस्कृति की झलक स्पष्ट करेंगी।

(8) राष्ट्रीय स्तर पर शिक्षकों का आदान-प्रदान (Exchange of Teachers at National Level)- प्राथमिक, माध्यमिक और विश्वविद्यालय स्तर के शिक्षकों का राष्ट्रीय स्तर पर आदान-प्रदान किया जाना चाहिए। जब भिन्न-भिन्न भाषा-भाषी और जाति, धर्म, सम्प्रदाय तथा प्रदेशों के शिक्षक एक स्थान से दूसरे स्थान पर जायेंगे तो दूसरों के विषय में जानकारी प्राप्त करेंगे और उनको समझने का प्रयत्न करेंगे। इससे विभिन्न संस्कृतियों में तालमेल होगा और राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा मिलेगा।

(9) अन्तर्राज्यीय खेल-कूद और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन (To Organise Inter-State Games, Sports, and Cultural Programmes) – कम से कम एक वर्ष में बार प्रदेश में अन्तर्राज्यीय खेल-कूद और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाना चाहिए। इसके द्वारा छात्रों का सम्पर्क क्षेत्र बढ़ेगा, वे एक दूसरे को समझेंगे, उनमें लगाव पैदा होगा, उनमें मेरी भावना (My feeling) के स्थान पर हम की भावना (We feeling) पैदा होगी और उनका हृदय राष्ट्र-भक्ति से सराबोर हो सकेगा।

(10) अन्तर्राज्यीय शिविरों का आयोजन (To Organise Inter-State Camps) – जब अन्तर्राज्यीय शिविरों में विभिन्न राज्यों के शिक्षक व शिक्षार्थी सम्मिलित होंगे तो उनको विभिन्न राज्यों या प्रदेशों के निवासियों के रहन-सहन, खान-पान, वेश-भूषा, लोक संगीत, लोक-नृत्य आदि के विषय में जानकारी प्राप्त होगी। निश्चित रूप से इन शिविरों के आयोजन से शिक्षक और शिक्षार्थियों के मन में देश-प्रेम की भावना विकसित होगी।

(11) रेडियो और दूरदर्शन का प्रयोग (Use of Radio and Television)- रेडियो और दूरदर्शन पर राष्ट्र की एकता को विकसित करने वाले और भारतीय संस्कृति की झाँकी प्रस्तुत करने वाले कार्यक्रमों का प्रसारण किया जाना चाहिए जिससे इन कार्यक्रमों को सुनकर व देखकर छात्रों में देशभक्ति की भावना पैदा हो सके। आज के युग में वैसे भी मीडिया की भूमिका इस सन्दर्भ में विशेष महत्व रखती है।

(12) राष्ट्रीय एवं सामाजिक संस्थाओं का गठन (Formation of National and Social Service Organisations) – विद्यालयों में एन.सी.सी., एन.एस.एस., स्काउटिंग और गर्ल गाइडिंग आदि संस्थाओं की स्थापना की जानी चाहिए। जिनके माध्यम से छात्रों को समाज सेवा के कार्यों में लगाया जा सकता है और उनमें राष्ट्र प्रेम की भावना का विकास किया जा सकता है, साथ ही इस सन्दर्भ में NGO’s को भी पर्याप्त प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए जो निःस्वार्थ भाव से समाज सेवा में स्वयं को समर्पित किए रहते हैं।

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