अनुक्रम (Contents)
तलाक या विवाह-विच्छेद पर निबन्ध (Essay on Divorce in Hindi)
भारतीय समाज में अनेकों वैवाहिक समस्यायें विद्यमान हैं। जिनमें एक प्रमुख समस्या तलाक या विवाह-विच्छेद की है, जोकि वैयक्तिक विघटन को प्रोत्साहित करती है। जब किसी व्यक्ति का विवाह किसी लड़की के साथ होता है तो वे दोनों पवित्रं अग्नि के समक्ष फेरे लेकर एक-दूसरे का सुख-दुःख में साथ निभाने का वायदा करते हैं, किन्तु जब इन दोनों के बीच कुछ कारण ऐसे उत्पन्न हो जाते हैं जिनसे दोनों में विवाद होने लगता है तो दोनों ही असन्तुष्ट हो जाते हैं। ये विवाद जब अपनी चरम सीमा पर पहुँच जाते हैं तो ऐसा लगने लगता है कि इनके विवादों का समाधान असम्भव है तब एक ही रास्ता बचता है कि इन दोनों को अलग-अलग कर दिया जाए। यह अलगाव की स्थिति जब कानून का सहारा लेकर की जाती है तो उसे तलाक या विवाह-विच्छेद कहते हैं। तलाक इस बात का द्योतक है कि पति-पत्नी आपस में वैवाहिक जीवन व्यतीत नहीं कर सकते हैं। अर्थात् तलाक वैवाहिक सम्बन्धों का अन्त है। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि तलाक के द्वारा पति-पत्नी के सम्बन्धों का वैधानिक अन्त हो जाता है। इस प्रकार तलाक शब्द से यह स्पष्ट होता है कि पति-पत्नी के मध्य इतना अधिक विवाद उत्पन्न हो गया है। जिसका समाधान करना सम्भव नहीं है।
पहले तलाक की धारणा मुसलमानों एवं पारसियों में अपनायी जाती थी न कि हिन्दुओं में क्योंकि हिन्दुओं में विवाह एक धार्मिक कृत्य माना जाता है। इनमें तलाक़ का आना गलत है किन्तु मनु आदि ऋषियों ने कुछ स्त्रियों के लिए तलाक या विवाह-विच्छेद की आज्ञा दी है। कौटिल्य ने भी पति के चरित्रहीन होने पर विवाह-विच्छेद की आज्ञा दी है। लेकिन फिर भी विवाह को एक धार्मिक कार्य माना जाता है, अतः इसमें तलाक को महत्व नहीं दिया जाता है। हिन्दुओं में पति-पत्नी का सम्बन्ध जन्म जन्मान्तर का माना जाता है। मुसलमानों एवं पारसियों द्वारा विवाह-विच्छेद का दूसरा पहलू प्रस्तुत किया गया, जिसमें तलाक हो सकता है।
हिन्दुओं में विवाह को धार्मिक संस्कार माना जाता है। इसलिए उनमें ऐसा नहीं होता है। अतः इनमें तलाक को कोई महत्व नहीं दिया जाता है जबकि उत्तरकालीन धर्मशास्त्रों में विवाह विच्छेद की आज्ञा प्रदान की गई है। नारद संहिता में भी पति-पत्नी दोनों को ही विवाह-विच्छेद का अधिकार दिया गया है। मनु ने भी विवाह-विच्छेद को स्वीकारा है।
संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि हिन्दुओं में विवाह एक ऐसा व्यूह है जिसमें प्रवेश का मार्ग तो है, किन्तु निकलने का कोई नहीं। यदि पत्नी को अपने पति का प्रेम न मिल पाया तो उसका जीवन नरक बनकर रह जाता है और तब उसके लिए तलाक लेना ही उचित होता है।
तलाक या विवाह विच्छेद की आवश्यकता (Need for Divorce)
तलाक की आवश्यकता निम्न कारणों से होती है-
1. हिन्दू विवाह के नियम एक तरफा हैं (Hindu Marriage Rules are One sided)- हिन्दू विवाह के नियम एक तरफा होने के साथ-साथ विवाह के आदर्शों पर कुठाराघात हैं। यदि कोई पुरुष अपनी पत्नी से सन्तुष्ट नहीं है तो वह दूसरा विवाह कर सकता है।
2. स्त्रियों की दशा उन्नत करने के लिए (To Improve the Status of Women) – भारतीय हिंदू समाज में स्त्रियों की दशा अत्यन्त निम्न है तलाक का अधिकार मिल जाने के कारण उनको अपने आत्म विकास करने की स्वतन्त्रता मिली है।
3. असुखी वैवाहिक जीवन को सुखी बनाने के लिए (To Relieve Unhappy Married Life)- हिन्दू समाज के वैवाहिक जीवन में सामाजिक एवं धार्मिक कानूनों का ऐसा जाल बिछा है जिसमें रहकर हिन्दू स्त्री दुःखी जीवन को सुखी बनाने की बात सोच भी नहीं सकती है।
4. समानता के सिद्धान्त पर विवाह-विच्छेद उचित है (Divorce is justified on the Principle of Equality)- वर्तमान समय में प्रत्येक दृष्टिकोण से स्त्री और पुरुषों में समानता के सिद्धान्त ही प्रगति की कसौटी है, तब यदि हिन्दू समाज को भी प्रगतिवादी होना है।
5. तलाक गतिशील समाज में आवश्यक है (Divorce is Necessity in Dynamic Society)- वर्तमान समय में अनेकों नवीन आविष्कारों, औद्योगीकरण एवं नगरीकरण के कारण सामाजिक परिवर्तन की गति में भी तीव्रता आयी है। इसी प्रकार भारतवर्ष में भी औद्योगीकरण एवं नगरीकरण के परिणामस्वरूप इस प्रकार की अवस्थाएँ उत्पन्न हुई हैं।
तलाक के कारण (Causes of Divorce)
तलाक के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-
1. पाश्चात्य सभ्यता का प्रभाव- तलाक के कारणों में पाश्चात्य सभ्यता विशेष महत्व रखती है। जब से हमारे देश में ब्रिटिश राज्य की स्थापना हुई तब से यहाँ पर उनकी नई सभ्यता का उदय हुआ जो धीरे-धीरे समस्त देश के जन-जीवन पर छाने लगी। इस पाश्चात्य सभ्यता ने हमारे अन्दर से तलाक को गलत मानने वाली विचारधारा को निकाल फेंका।
2. स्त्रियों को समानता के अधिकार का ज्ञान- वर्तमान समय में स्त्रियों को पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त हैं, किन्तु उन्हें अपने अधिकारों का ज्ञान नहीं है।
3. शिक्षा का प्रसार- ज्ञान के अभाव में किसी वस्तु या लाभ को प्राप्त नहीं किया जा सकता है। वर्तमान समय में देश में शिक्षा का प्रचार एवं प्रसार बड़ी ही तीव्र गति से हो रहा है। जिसके कारण स्त्री एवं पुरुषों के मन में और मस्तिष्क में परिपक्वता आयी है।
4. वैवाहिक सम्बन्धों की दृढ़ता का अन्त- हिन्दू समाज में विवाह को एक धार्मिक कृत्य माना जाता है और इसका अपना एक विशेष महत्व है। जिसके कारण विवाह को तोड़ना एक गलत एवं दुस्कर कार्य माना जाता है।
5. औद्योगीकरण का प्रभाव- भारतीय समाज को निरन्तर बढ़ते हुए औद्योगीकरण ने भी प्रभावित किया है। लोगों के विचारों में परिवर्तन होने लगा है। आज स्त्रियों पुरुषों की भाँति बाहर निकल कर कार्य करने लगी हैं, जिसके कारण वे आत्मनिर्भर हो गयी हैं।
विवाह विच्छेद का औचित्य अथवा तलाक के पक्ष में तर्क
1. स्त्रियों की दशा सुधारने के लिये- स्त्रियों को विवाह विच्छेद का अधिकार मिलने पर उनकी पारिवारिक एवं सामाजिक प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी, साथ ही पुरुषों की मनमानी पर भी अंकुश लगेगा।
2. समानता का अधिकार – वर्तमान में स्त्री-पुरुषों को सभी क्षेत्रों में समान अधिकारों प्रदान किये गये हैं, ऐसी स्थिति में विवाह-विच्छेद का अधिकार केवल पुरुषों को ही नहीं वरन् स्त्रियों को भी प्राप्त होना चाहिये।
3. सामाजिक जीवन को सन्तुलित बनाने के लिये- स्त्रियों को विवाह के क्षेत्र में पुरुषों के समान अधिकार न देने से समाज व्यवस्था में असन्तुलन पैदा होगा। इस स्थिति से बचने के लिये एवं मानवीय दृष्टिकोण से भी स्त्रियों को विवाह-विच्छेद का अधिकार प्राप्त होना चाहिए।
4. वैवाहिक समस्याओं से मुक्ति पाने के लिये – हिन्दू विवाह से सम्बन्धित समस्याओं जैसे बाल-विवाह, बेमेल विवाह, दहेज, विधवा विवाह निषेध आदि से छुटकारा पाने के लिए विवाह विच्छेद का अधिकार स्त्री-पुरुषों को समान रूप से दिया जाना चाहिये।
5. पारिवारिक संगठन को सुदृढ़ बनाने के लिये- वर्तमान में एकाकी परिवारों में पति के दुराचारी होने पर पत्नी व बच्चों का कोई सहारा न होने पर विवाह विच्छेद की स्वीकृति दी जानी चाहियें।
तलाक के विरोध में तर्क (Arguments against Divorce)
तलाक के विरोध में निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत किए जा सकते हैं –
1. तलाक से अधिक पारिवारिक विघटन होगा (Divorce will Increase Family Disorganization) – तलाक से अधिक पारिवारिक विघटन होगा। ऐसा मत तलाक का विरोध करने वालों का मत है। यद्यपि यह सत्य है कि तलाक से परिवार तो टूटता ही है साथ ही साथ अनेकों समस्याएँ भी उत्पन्न हो जाती हैं, किन्तु यही सब कुछ नहीं है।
2. तलाक से स्त्रियों के सम्मुख आर्थिक समस्याएँ उत्पन्न होंगी (Women will Face Economic Hardships) – तलाक का विरोध करने वालों का कहना है कि तलाक के बाद स्त्रियों के समक्ष अपने भरण-पोषण की समस्या उत्पन्न हो जाती है क्योंकि भारतीय महिलाओं में शिक्षा का अभाव पाया जाता है जिसके कारण वे आत्मनिर्भर नहीं बन पाती हैं।
3. तलाक से सन्तानों के पालन-पोषण की समस्या गम्भीर हो जाएगी (Divorce will create the problem of the upbrining of children) – तलाक के पश्चात सन्तानों के पालन-पोषण की समस्या गम्भीर हो जाती है और अधिकांश बच्चे बिगड़ जाते हैं। इस समस्या का समाधान तभी हो सकता है जबकि स्टेट नर्सरी की उचित व्यवस्था की जाए या फिर उन्हें बोर्डिंग हाउस में रखा जाए।
इसी भी पढ़ें…
- अपराध की अवधारणा | अपराध की अवधारणा वैधानिक दृष्टि | अपराध की अवधारणा सामाजिक दृष्टि
- अपराध के प्रमुख सिद्धान्त | Apradh ke Siddhant
इसी भी पढ़ें…