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अभिप्रेरणा का अर्थ एवं परिभाषा
मनुष्य जीवन में किया जाने वाला कोई भी रुचिपूर्ण कार्य अभिप्रेरणा विहीन नहीं होता है। चेतना अथवा अवचेतना में किसी भी कार्य की पृष्ठभूमि में कोई-न-कोई कारण इस प्रकार का होता है, जिससे व्यक्ति किसी कार्य को करने की दिशा में अभिप्रेरित होता है। अभिप्रेरणा, व्यक्ति में रुचि उत्पन्न करके उसे कार्य में लीन करती है और कार्य की दिशा में गति प्रदान करती है। शिक्षा के क्षेत्र में सफल होने वाले बालकों का एक प्रमुख कारण अभिप्रेरणा ही होता है। पुरस्कार के लोभ, प्रशंसा प्राप्ति की चाह अथवा सम्मान आदि की आकांक्षा आदि की आकांक्षा के कारण बालक कक्षा में शैक्षिणिक उपलब्धि की दिशा में एक-दूसरे से प्रतियोगिता करते हैं। अभिप्रेरणा, ही इनकी सफल का मूल अधिकार होती है।
अभिप्रेरणा का अर्थ
मनुष्य जीवन में अभिप्रेरणा का अत्यन्त महत्त्व है। यह बालक के समग्र विकास व सफलता प्राप्त करने का एक महत्त्वपूर्ण स्त्रोत है। बालक द्वारा जो कार्य किये जाते हैं, वे उद्देश्यविहीन नहीं होते। उन समस्त क्रिया-कलापों में भय, इच्छा, आकांक्षा आदि का अप्रत्यक्ष योगदान होता है। बालकों द्वारा किये गये कार्यों की पृष्ठभूमि में विभिन्न बाह्य एवं आन्तरिक कारण निहित होते हैं। इनको उद्दीपन कहा जाता है। इन विभिन्न उद्दीपन; जैसे-दण्ड, प्रशंसा, पुरस्कार आदि के द्वारा ही बालक का व्यवहार एक निर्धारित दिशा में प्रेरित होकर सक्रिय रहता है। उद्दीपन द्वारा वांछनीय लक्ष्यों की दिशा में अग्रसरित होने हेतु जो शांति बालकों को प्राप्त होती है। उसे ही अभिभावक प्रेरणा कहते हैं।
‘अभिप्रेरणा’ को अंग्रेजी में Motivation कहते हैं। Motivation शब्द की व्युत्पत्ति लैटिन भाषा के Motum शब्द से हुई है, जिसका अर्थ, Motor, Motion आदि। इस प्रकार इस शब्द से बालक के व्यवहार को संचालित करने वाली शक्ति का बोध होता है। अत: अभिप्रेरणा, वह आन्तरिक शक्ति है जो अनेक उद्दीपनों का परिणाम होती है जिसके माध्यम से बालक, निश्चित व्यवहार की दिशा में सक्रिय तथा नियन्त्रित होता है।
प्रेरणा का अर्थ को स्पष्ट करने हेतु विभिन्न विद्वानों द्वारा दी गई परिभाषायें निम्नलिखित हैं-
1. वुडवर्थ-“प्रेरक व्यक्ति की वह स्थिति है जो उसे निर्धारित व्यवहार करने हेतु तथा निर्धारित उद्देश्यों को प्राप्त करने हेतु उत्तेजित करती है।”
2. बर्नार्ड-“जिस लक्ष्य के प्रति पहले कोई आकर्षण नहीं था, उस लक्ष्य के प्रति कार्य की उत्तेजना ही अभिप्रेरणा है।”
3. जॉनसन-“अभिप्रेरणा सामान्य क्रियाओं का प्रभाव है, जो प्राणी व्यवहार की ओर इंगित करता है तथा उसका पथ-प्रदर्शन करता है।”
4. गुड-“क्रिया को उत्तेजित करने, निरन्तर करने तथा नियन्त्रित रखने की प्रक्रिया को अभिप्रेरणा कहते हैं।”
इन परिभाषाओं के आधार पर अभिप्रेरणा की निम्नलिखित विशेषतायें स्पष्ट होती हैं-
1. अभिप्रेरणा सक्रियता अथवा क्रियाशीलता का प्रतीक होती है।
2. भावात्मक प्रदर्शन के माध्यम से व्यक्ति अपनी अभिप्रेरणाओं को व्यक्त करता है। भावात्मक जागृति संवेगों से सम्बन्ध होती है।
3. किसी भी कार्य को पूरा करने के लिये अभिप्रेरणा एक साधन है।
4. व्यक्ति के व्यवहार को अभिप्रेरणा उत्तेजित करती है।
5. प्रेरणा के माध्यम से ही व्यक्ति का व्यवहार संचालित होता है।
6. व्यक्ति में होने वाले शक्ति परिवर्तन से अभिप्रेरणा आरम्भ होती है।
7. अभिप्रेरणा किसी क्रिया को उत्तेजित करने, जारी रखने एवं नियन्त्रित रखने की प्रक्रिया है।
अभिप्रेरणा के प्रकार
अभिप्रेरणा दो प्रकार की होती है-
1. आन्तरिक अभिप्रेरणा-वे आन्तरिक शक्तियाँ, जो व्यक्ति के व्यवहार को उत्तेजित करती हैं, आन्तरिक अभिप्रेरणा कहलाती हैं। आन्तरिक अभिप्रेरणा में बालक की शक्ति अत्यन्त प्रबल होती है। बालक की जब किसी कार्य को करने की इच्छा करती है तो वह अपनी इच्छानुकूल कार्य करना प्रारम्भ कर देता है, जिससे बालक को सुख व सन्तोष प्राप्त होता है तथा यहीं से उसे कार्य को जारी रखने की प्रेरणा प्राप्त होती है। कुछ मनोवैज्ञानिकों ने असन्तोष एवं मानसिक तनाव को भी आन्तरिक अभिप्रेरणा में समाहित किया है। ये बालक को प्रतिक्रिया करने हेतु उत्तेजित करते हैं।
2. बाह्य अभिप्रेरणा- वह उद्देश्य, जिसे प्राप्त करना बालक का लक्ष्य होता है, बाह्य अभिप्रेरणा का मुख्य उत्तेजक होता है। बाह्य प्रेरणा में व्यक्ति बाह्य तत्वों से प्रभावित होता है तथा उसी के अनुरूप कार्य करता है। इस अभिप्रेरणा में बालक की इच्छा का महत्त्व नहीं होता है। बाह्य अभिप्रेरणा के प्रमुख कारण हैं, निन्दा प्रशंसा आदि।
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