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अधिगम अंतरण के सिद्धांत | Theories Of Transfer Learning in Hindi

अधिगम अंतरण के सिद्धांत
अधिगम अंतरण के सिद्धांत

अधिगमान्तरण के विभिन्न सिद्धान्त

अधिगम अंतरण के सिद्धांत – 1. स्थानान्तरण तत्व का सिद्धान्त – इस सिद्धान्त का प्रतिपादन क्रो ने किया था। जब वह इस सिद्धान्त का प्रतिपादन कर रहे थे तब उन्होंने कहा था कि आधुनिक मनोविज्ञान वेता इस तथ्य पर आश्वस्त हैं कि मानसिक क्रियायें, जैसे – विचार करना, अवधान, स्मृति तथा तर्क आदि अलग-अलग अपना अस्तित्व नहीं रखती हैं। परन्तु किसी भी स्थिति में ये सब मानसिक क्रियायें एक-दूसरे से मिलकर क्रियाशील होती है।” इस विचारधारा ने मनोवैज्ञानिक विचार प्रवाह तथा उसकी क्रिया में पर्याप्त परिवर्तन कर दिया है। मनोवैज्ञानिकों के सामने प्रमुख प्रश्न यह था कि एक विशेष विशिष्ट परिस्थिति में अर्जित किया जाना दूसरी परिस्थिति में कहा तक उपयोगी होता है।

2. सामान्यीकरण का सिद्धान्त – इस सिद्धान्त का प्रतिपादन चार्ल्स जंड महोदय ने किया था। इन्होंने स्थानान्तरण तथा सामान्यीकरण को एक-दूसरे का पर्यायवाची माना है। इस सिद्धान्त के अनुसार विशिष्ट निपुणता का विकास, विशेष तथ्यों पर पूर्णाधिकार, एक स्थिति विशेष आदत अथवा मनोवृत्ति का प्राप्य, दूसरी स्थिति से स्थानान्तरण की दृष्टि से बहुत थोड़ा महत्व रखता है जब तक कि निपुणता, तथ्य एवं आदत क्रमबद्ध नहीं हो जाते और उन दूसरी परिस्थितियों से सम्बन्धित नहीं होते हैं, जिनमें उनका प्रयोग किया जा सके।

3. मानसिक शक्ति-सिद्धान्त एवं औपचारिक अथवा मानसिक अवधारणा- इस सिद्धान्त में सामान्य रूप से स्मृति, सतर्ककता, कल्पना, अवधान, इच्छा शक्ति एवं भाव आदि मस्तिष्क की शक्तियाँ एक-दूसरे से स्वतन्त्र हैं और यह भी माना जाता है कि इनमें से प्रत्येक सुनिश्चित इकाई के रूप में हैं।

एक व्यक्ति का व्यक्तित्व भी इन शक्तियों के एक प्रकार के सह-सम्बन्ध का परिणाम ही है। मानसिक शक्ति सिद्धान्त मस्तिष्क को विभिन्न शक्तियों के रूप में समझता तथा यह प्रतिपादित करता है की यह शक्तियाँ कम अथवा अधिक मात्रा में एक-दूसरे से स्वतन्त्र रहकर ही सक्रिय होती है।

4. सामान्यीकरण के अनेक प्रकार अथवा स्थानान्तरण-गेस्टाल्ट मतावलम्बी इस बात पर विश्वास करते हैं कि पूर्ण आकार अथवा अर्थपूर्ण संग्रह का ज्ञान एक ऐसा संगठन है जो ज्ञानबुद्धि के साथ-साथ प्राणी के जीवन में संपरिवर्तन भी लाता है। सीखने की विशिष्ट परिस्थिति में भाग लेने के फलस्वरूप प्रतिक्रियाओं को संगठित स्वरूप प्राप्त हो जाता है जो सम्पूर्ण अथवा एक विशेष संग्रह के रूप में उन परिस्थितियों में दोहराया है जिसमें व विशिष्ट प्रक्रिया प्रयुक्त हो सके।

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shubham yadav

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