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अधिगम को प्रभावित करने वाले कारक या दशाएँ | adhigam ko prabhavit karane vale karak

अधिगम को प्रभावित करने वाले कारक या दशाएँ
अधिगम को प्रभावित करने वाले कारक या दशाएँ

अनुक्रम (Contents)

अधिगम को प्रभावित करने वाले कारक या दशाएँ

अधिगम को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारकों का उल्लेख निम्नलिखित है-

1.सीखने की इच्छा तथा आकांक्षा का स्तर-

बालकों को नये ज्ञान की दिशा में प्रेरित होने पर, परिस्थितियों के प्रतिकूल होने पर भी बालक किसी भी बात को सीख लेने में सफल हो करने से पहले यह जरूरी है कि उनमें सीखने के प्रति जिज्ञासा पैदा की जाये, क्योंकि जिज्ञासा उत्पन्न जिससे बालक कठिनतम ज्ञान को भी सरलता से प्राप्त कर सके। बालक शीघ्र ही थकान का अनुभव करने लगते हैं। होता है। सीखने की इच्छा के अतिरिक्त, छात्रों का आकांक्षा का स्तर भी उच्च कोटि का होना चाहिए,

2. शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य-

सीखने से पहले, बालक का शारीरिक एवं मानसिक रूप से स्वस्थ हो यह आवश्यक है, क्योंकि बालका का ध्यान, रुचि एवं नियमितता पर इसका सीधा प्रभाव पड़ता है। किसी भी प्रकार की मानसिक विकृति, शारीरिक रुग्णता तथा मानसिक तनाव का प्रत्यक्ष प्रभाव बालकों के अधिगम पर प्रतिकूल पड़ता है। शारीरिक एवं मानसिक रूप से अस्वस्थ बालक शीघ्र ही थकान का अनुभव करने लगते है|

3.सीखने की अवधि-

विद्यालयों के समय चक्र पर ध्यान नहीं दिया जाता है। यही कारण है कि ऐसे विद्यालयों में पहुँचने पर प्रायः के समय में छात्र जिस उत्साह व तत्परता से सीखते हैं, उतना मध्याह्न या अन्तिम घण्टों में नहीं। अतः शिक्षालयों में घण्टों की व्यवस्था इस प्रकार की जानी चाहिये जिनसे छात्रों को पर्याप्त विश्राम मिलता रहे और समस्त कालांशों में वे समान रूप से परिश्रम कर सके।

4. परिपक्वता-

अधिगम छात्रों की आयु, रुचि व स्तर के अनुकूल होना चाहिए इसके अतिरिक्त, मानसिक एवं शारीरिक दृष्टि से बालकों के अपरिपक्व होने की दशा में बालक समुचित रूप से अधिगम नहीं कर सकते, जिससे शिक्षक की क्षमता एवं समय बेकार ही जाता है।

5. अभिप्रेरणा-

अधिगम-प्रक्रिया में अभिप्रेरणा महत्त्वपूर्ण अभिप्रेरणा द्वारा ही सीखने की गति को तीव्र किया जा सकता है। प्रेरणा प्राप्त होने पर बालक उत्साहित होकर किसी भी बात को रुचिपूर्वक सीखते हैं तथा इसके द्वारा जटिल पाठ को सहज, बोधगम्य एवं रुचिकर बनाया जा सकता है।

6. अधिगम विधि-

अधिगम विधि सीखने को अत्यधिक प्रभावित करती है। अधिगम विधि के माध्यम से ही बालक को वांछित अधिगम कराया जा सकता है। यदि चयनित अधिगम विधि, स्तर के अनुकूल तथा रुचिप्रद नहीं है तो ऐसी स्थिति में सीखना अत्यन्त कठिन एवं नीरस हो जाता है। अत: बालकों को सक्रिय रखने वाली रुचिकर अधिगम विधियों का चयन शिक्षक को करना चाहिये।

7. समुचित वातावरण-

छात्र की सीखने की प्रक्रिया पर शिक्षालय के वातावरण का गहरा प्रभाव पड़ता है। शान्त माहौल में बालक अपने ध्यान को पाठ पर शीघ्र ही केन्द्रित कर लेता है। इसके अतिरिक्त कक्षा में बैठने की समुचित व्यवस्था, प्रकाश एवं वायु का भी सीखने पर प्रभाव पड़ता है। इसके साथ ही शिक्षालय में पुस्तकों, सहायक-सामग्री इत्यादि की भी समुचित व्यवस्था होनी चाहिये क्योंकि इनका भी बालकों के अधिगम पर प्रभाव पड़ता है।

8. वंशानुक्रम-

बालकों में निहित अनेक गुण एवं क्षमतायें उनके वंशानुक्रम पर निर्भर करती हैं। बालकों के अधिगम पर इन वंशानुक्रम की विशेषताओं का गहन प्रभाव पड़ता है।

9. विषय-वस्तु-

अधिगम प्रक्रिया पर, अधिगम की जाने वाली विषय-वस्तु का भी प्रभाव पड़ता है। शिक्षा का महत्त्वपूर्ण अंग पाठ्यक्रम होता है। विषय-वस्तु के विभिन्न तत्त्वों; जैसे-स्तर, भाषा, संगठन आदि का किसी-न-किसी रूप में अधिगम पर अवश्य प्रभाव पड़ता है, इसीलिये यह जरूरी है कि विषय वस्तु उद्देश्यपूर्ण जीवन से सम्बद्ध बोधगम्य, क्रमबद्ध, रुचिकर एवं बालकों के स्तर के अनुकूल हो।

10. अभ्यास एवं प्रशिक्षण-

बालक को अभ्यास हेतु कार्य दिये जाने पर ही अधिगम की प्रक्रिया में विकास होता है। अधिगम में बालक को प्रशिक्षण प्रदान किये जाने पर वह किसी कार्य को अतिशीघ्र सीख जाता है।

11. बुद्धि-

एक अन्य महत्त्वपूर्ण कारक बुद्धि है। तीव्र बुद्धि वाला बालक मन्द बुद्धि बालक की तुलना में किसी भी कार्य को जल्दी सीख जाता है। बुद्धि एवं शैक्षिक लब्धि के मध्य उच्च स्तर का सकारात्मक सह-सम्बन्ध पाया जाता है।

12. शिक्षक की भूमिका-

शिक्षक के लिये यह नितान्त आवश्यक है कि शिक्षण से पूर्व उसे मनोवैज्ञानिक, उचित शिक्षण विधियों व व्यक्तिगत विभिन्नताओं का उचित ज्ञान हो।

अधिगम को प्रभावित करने वाले अध्यापक से सम्बन्धित कारक कौन-कौन से हैं?

अध्यापक से सम्बन्धित कारक

अध्यापक से सम्बन्धित प्रमुख कारक निम्नलिखित हैं-

1.विषय का ज्ञान-

किसी भी अध्यापक के लिए अपने विषय का पूर्ण ज्ञान होना आवश्यक है। ज्ञान विहीन शिक्षक न तो छात्रों से सम्मान व आदर प्राप्त कर सकता है और न ही उनके मस्तिष्क का विकास कर सकता है। पूर्ण ज्ञान होने पर ही शिक्षक आत्म-विश्वासपूर्वक बालकों को नवीन ज्ञान प्रदान करते हुए उनके मस्तिष्क का विकास कर सकता है।

2. मनोविज्ञान एवं बाल प्रकृति का ज्ञान-

अध्यापक को शिक्षण से सम्बन्धित मनोविज्ञान का ज्ञान होना भी नितान्त आवश्यक है। मनोविज्ञान का ज्ञान होने पर ही अध्यापक अपने शिक्षण को सफल बना सकते हैं। इसके अतिरिक्त शिक्षक को बालक की प्रकृति का ज्ञान भी होना चाहिये।

3. बाल-केन्द्रित शिक्षा पर बल-

आज बाल-केन्द्रित शिक्षा का समय है। अत: शिक्षक के लिए यह आवश्यक है कि वह छात्रों को जो ज्ञान प्रदान करे, वह उनकी रुचि, स्तर के अनुकूल होना चाहिए।

4. व्यक्तिगत विभिन्नताओं का ज्ञान-

अध्यापक को व्यक्तिगत विभिन्नताओं की जानकारी होनी आवश्यक है। मनोविज्ञान के कारण आज शिक्षा के क्षेत्र में व्यक्तिगत विभिन्नताओं को महत्त्व प्रदान किया जा रहा है। इसलिए आज बालक की रुचि, अभिरुचि, योग्यता, क्षमता इत्यादि को ध्यान में रखकर ही उन्हें शिक्षा प्रदान की जाती है।

5. शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य-

शारीरिक एवं मानसिक दृष्टि से स्वस्थ होने पर ही शिक्षक विषय पर बालकों का ध्यान केन्द्रित कर उचित प्रकार से पढ़ा सकता है।

6. शिक्षण-पद्धति-

अधिगम प्रक्रिया में शिक्षण पद्धति की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। समस्त बालकों को एक ही शिक्षण-विधि से नहीं पढ़ाया जा सकता है क्योंकि प्रत्येक छात्र, दूसरे छात्र से भिन्न होता है। इसलिए शिक्षक द्वारा प्रयुक्त की जाने वाली शिक्षण पद्धति अधिक प्रभावी व वैज्ञानिक होनी चाहिये तभी अधिगम की प्रक्रिया सफल हो सकती है।

7. व्यक्तित्व-

शिक्षक का व्यक्तित्व सफल शिक्षण के लिए आवश्यक है, उत्तम शिक्षक का व्यक्तित्व प्रभावी होता है। प्रभावी व्यक्तित्व का अर्थ यह है कि उत्तम अध्यापक आत्म-विश्वासी एवं दृढ़ इच्छा शक्ति वाला चरित्रवान, कर्त्तव्यनिष्ठ एवं निरोगी होता है। उसके इस व्यक्तित्व का प्रभाव बालकों पर इतना अधिक पड़ता है कि उसकी समग्र रुचियाँ व अभिरुचियाँ ही बालकों की रुचियाँ व अभिरुचियाँ बन जाती हैं।

8. व्यवसाय के प्रति निष्ठा-

व्यवसाय के प्रति निष्ठा भी अधिगम की प्रक्रिया को प्रभावित करती है और विषय में रुचि पैदा करती है। अत: शिक्षक को अपना कार्य उत्साह व लगन से करना चाहिये।

9. पढ़ाने की इच्छा-

पाठ को पढ़ाने की इच्छा होने पर ही शिक्षक किसी पाठ को रुचिपूर्वक पढ़ा सकता है और छात्रों में भी पढ़ने के प्रति रुचि विकसित कर सकता है।

10. अध्यापक का व्यवहार-

यदि शिक्षक का व्यवहार समस्त छात्रों के साथ समान एवं सहयोग, सहानुभूतिपूर्वक है तो छात्र भली प्रकार से पाठ को सीख लेंगे। इसके विपरीत शिक्षक का व्यवहार होने पर छात्रों में शिक्षक के प्रति गलत धारणा बन जायेगी जो अधिगम में अत्यन्त बाधक सिद्ध होगी। इसके अलावा कुछ अन्य कारण भी हैं जो सीखने को प्रभावित करते हैं; जैसे-वातावरण का ज्ञान, पाठ-योजना, पाठ्य सहगामी क्रियाओं का आयोजन, अनुशासन इत्यादि।

विषय से सम्बन्धित अधिगम को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन कीजिए।

विषय-वस्तु से सम्बन्धित कारक

विषय से सम्बन्धित अधिगम को प्रभावित करने वाले निम्नलिखित कारक हैं जो इस प्रकार है-

1. विषय-वस्तु की प्रकृति एवं आकार-

विषय-वस्तु की प्रकृति एवं आकार का अधिगम प्रक्रिया पर गहन प्रभाव पड़ता है। विषय-वस्तु के कठिन होने पर बालकों को अधिगम में कठिनाई का सामना करना पड़ता है। इसके विपरीत यदि विषय-वस्तु सरल है तो उसे बालक सहजता के साथ सीख लेते हैं। छोटे पाठों को बालक, बड़े पाठों की तुलना में कम समय में याद कर लेते हैं।

2. विषय-वस्तु की उद्देश्यन्मुख एवं प्रस्तुतीकरण का ढंग-

सीखी जाने वाली विषय-वस्तु उद्देश्ययुक्त होने पर बालक उसे सहजता से सीख लेते हैं। सरल से कठिन की ओर शिक्षण सूत्र के प्रयोग करते हुये यदि विषय-वस्तु को प्रस्तुत किया जाता है तो छात्र कठिन विषय-वस्तु को भी सरलता से सीख लेते हैं।

3. भाषा-शैली-सीखने की प्रक्रिया में भाषा-

शैली की प्रमुख भूमिका होती है। सरल भाषा अधिगम में सहायक होती है और कठिन शब्दों का प्रयोग एवं लम्बे वाक्य अधिगम में कठिनाई मैदा करते हैं।

4. भिन्न-भिन्न विषयों का कठिनाई स्तर-

यह भी एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कारक है। प्रत्येक विषय का कठिनाई स्तर अलग-अलग होता है। इसलिये सभी शिक्षार्थी समान रूप से किसी विषय-वस्तु को सीख पाने में सक्षम नहीं होते हैं।

5. विषय-वस्तु का रुचिकर होना-

विषय-वस्तु रुचिकर होने पर छात्र रुचि लेकर उसे पढ़ते हैं, इसके विपरीत यदि विषय-वस्तु अरुचिकर है तो छात्र पढ़ने में रुचि नहीं लेंगे। परिणामस्वरूप अधिगम की प्रक्रिया अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो पायेगी।

6. सहायक-सामग्री का उपयोग-

सीखने की प्रक्रिया में सहायक सामग्री की भी प्रमुख भूमिका है। सहायक-सामग्री की सहायता से जटिल विषय से भी सरलं बनाया जा सकता है।

अधिगम के वातावरण सम्बन्धी कारकों का वर्णन कीजिए।

वातावरण से सम्बन्धित कारक

1. वंशानुक्रम-

बालकों में अनेक गुण उनके वंशानुक्रम के कारण होते हैं। बालकों के अधिगम पर वंशानुक्रम की इन विशेषताओं का गहन प्रभाव पड़ता है। बालक में निहित लगभग 80% योग्यतायें एवं क्षमतायें उसके वंशानुक्रम की विशेषताओं का ही परिणाम होती हैं। वंशानुक्रम से अर्जित बालक की मानसिक विकृतियाँ, बुद्धि आदि का उसके सीखने की प्रक्रिया से प्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है।

2. शिक्षा के औपचारिक साधन-

शिक्षा के माध्यम दो प्रकार के होते हैं-

1. औपचारिक साधन, 2. अनौपचारिक साधन।

इन दोनों प्रकार के साधनों का बालकों के अधिगम पर व्यापक प्रभाव पड़ता है।

3. पारिवारिक वातावरण-

पारिवारिक वातावरण का बालक के अधिगम पर प्रभाव पड़ता है जिन परिवारों का वातावरण उत्तम होता है, इन परिवारों के बालक पढ़ाई में रुचि लेते हैं और कठिन पाठ को भी सरलता से सीख लेते हैं। इसके विपरीत जिन परिवारों का वातावरण अच्छा नहीं होता है, उन परिवारों के बालकों की अधिगम की गति अत्यन्त मन्द होती है।

4. सामाजिक एवं सांस्कृतिक वातावरण-

छात्रों के अधिगम पर उसके सामाजिक एवं सांस्कृतिक वातावरण का भी प्रभाव पड़ता है। सामान्यतः सांस्कृतिक वातावरण का अर्थ इन समस्त नियमों, विचारों, विश्वासों एवं भौतिक वस्तुओं की पूर्णता से है जो उनके जीवन को प्रभावित करती हैं। सांस्कृतिक वातावरण मानवीयकृत होते हुये भी मानवीयता एवं सामाजिक विकास तथा बालक के अधिगम को सबसे अधिक प्रभावित करता है।

5. भौतिक वातावरण-

भौतिक वातावरण के अन्तर्गत तापमान, प्रकाश, वायु, कोलाहल शान्ति इत्यादि का प्रमुख स्थान है। अतः कक्षा का भौतिक वातावरण उपयुक्त न होने पर छात्र शीघ्र ही थकान अनुभव करने लगेंगे और सीखने में उनकी अरुचि उत्पन्न होने लगेगी।

6. मनोवैज्ञानिक वातावरण-

अधिगम की प्रक्रिया पर मनोवैज्ञानिक वातावरण का भी प्रभाव पड़ता है। छात्रों में परस्पर सहयोग, सद्भाव, मधुर सम्बन्ध हैं तो अधिगम की प्रक्रिया सुचारु रूप से आगे बढ़ती है।

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shubham yadav

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