B.Ed./M.Ed.

विशिष्ट बालकों हेतु निर्देशन एवं परामर्श | Guidance and Counselling for exceptional children in Hindi

विशिष्ट बालकों हेतु निर्देशन एवं परामर्श
विशिष्ट बालकों हेतु निर्देशन एवं परामर्श

विशिष्ट बालकों हेतु निर्देशन एवं परामर्श (GUIDANCE AND COUNSELING FOR EXCEPTIONAL CHILDREN)

विशिष्ट बालक का अर्थ (Meaning of Exceptional Child)- विशिष्ट शब्द का अर्थ अलग-अलग व्यक्ति अलग-अलग प्रकार से व्यक्त करते हैं। कुछ लोग प्रतिभावान को तो कुछ सृजनात्मक बालकों के लिए विशिष्ट शब्द का प्रयोग करते हैं परन्तु ऐसा नहीं है। विशिष्ट का अर्थ सामान्य बालक से भिन्नता रखने वाले बालकों से है।

को और क्रो के अनुसार, “विशिष्ट प्रकार या विशिष्ट शब्द किसी एक ऐसे लक्षण या उस लक्षण को रखने वाले व्यक्ति पर लागू किया जाता है जबकि इस लक्षण को सामान्य रूप से रखने से प्रत्यय की सीमा इतनी अधिक हो जाती है कि उसके कारण व्यक्ति अपने साथियों का विशिष्ट ध्यान प्राप्त करता है और इससे उसकी व्यवहार की अनुक्रियाएँ तथा क्रियाएँ प्रभावित होती हैं।”

According to Crow and Crow, “The term a typical or exceptional is applied to a trait or to person possessing the trait if the extent of deviation from normal possession of the trait is so great that because of it the individual warrants or receive special attention from his fellow and his behaviours responses and activities are thereby effected.”

दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि विशिष्ट बालक वह है जो उन बालकों से निम्न हैं जो शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक तथा सामाजिक गुणों से औसत है।

शारीरिक, मानसिक एवं संवेगात्मक विशिष्ट बालक (Physical, Mental and Emotional Exceptional Children)

व्यक्तिगत भिन्नता को जानने से पूर्व सभी बालकों को सामान्य बालकों की श्रेणी में रखा जाता था अर्थात् सभी को सामान्य मानकर चला जाता था। कुछ बालकों को जो सामान्य से भिन्न थे, असामान्य (Abnormal) माना जाता था लेकिन मनोविज्ञान के विकास के साथ ही उन बालकों की ओर ध्यान गया जो सामान्य से थोड़ा भी भिन्न थे तथा उन्हें सामान्य बालकों से पृथक बालक समझा जाने लगा। दो बालक चाहे वे जुड़वा ही क्यों न हो एक दूसरे से पृथक या भिन्न समझा जाता है। अतः यह निष्कर्ष निकला कि अधिकांश छात्र समूह औसत से भिन्न होते हैं। ऐसे बालक शारीरिक तथा मानसिक भिन्नता के कारण विशिष्ट कहे जाते हैं। इसमें सीखने की अक्षमता, बाध्यता तथा शारीरिक विकलांगता पाई जाती है। ये बालक दृष्टि, श्रवण, वाणी तथा मन्दबुद्धि, सेरेब्रल पाल्सी, ऑटिज्म तथा अधिगम अक्षमता रखते हैं।

ऐसे समस्त बालक जो मानसिक रूप से पिछड़े हैं, सीखने में अक्षम है या शैक्षिक रूप से पिछड़े हैं प्रतिभावान या सृजनात्मक बालक हैं तथा ये बौद्धिक रूप में भिन्न कहलाते हैं। मानसिक रूप से पिछड़े बालकों का व्यवहार सामान्य बालकों से हमेशा भिन्न होता है। इसी प्रकार यदि एक समरूप समूह के बालकों के लक्षणों का मापन किया जाए तो उसका वितरण सामान्य वक्र के समान होता है जैसा निम्न चित्र में दिखाया गया है-

इस सामान्य वक्र के मध्य में पड़ी लम्बवत् रेखा यह बताती है कि सामान्य बालक वे हैं जो इस बिन्दु पर पड़ते हैं तथा बिन्दु से हटने वाले समस्त बालक सामान्य से भिन्न हो जाएंगे। अतः सामान्य वक्र के दाएं तथा बाएं छोर पर पड़ने वाले 10 प्रतिशत बालकों को औसत से भिन्न माना जा सकता है।

इसी प्रकार 90-110 बुद्धिलब्धि वाले बालकों को सामान्य मानकर अन्य बालकों को बौद्धिक रूप से भिन्न अर्थात् विशिष्ट माना जाता है। 110 से अधिक बुद्धिलब्धि वाले बालक प्रतिभावान तथा 90 से कम बुद्धि लब्धि वाले बालक मानसिक रूप से पिछड़े माने जाते हैं। चित्र के पिछड़े एवं प्रतिभावान बालक चोटी के दोनों ओर दर्शाए गए हैं।

विशिष्ट बालकों हेतु निर्देशन एवं परामर्श (Guidance and Counseling for Exceptional Children)

शिक्षा की प्रक्रिया में विद्यार्थियों के समक्ष अनेक समस्याएँ आती हैं जिनका समाधान हेतु उन्हें उचित निर्देशन एवं परामर्श की आवश्यकता होती है। चूँकि समावेशी छात्र विभिन्न अशक्तताओं से ग्रसित रहते हैं इसलिए वे अपने शिक्षा सम्बन्धी निर्णय या विचार करने में असमर्थ होते हैं जिसके लिए उन्हें उचित परामर्शदाता द्वारा समुचित निर्देशन एवं प्रदान करने की आवश्यकता होती है। अतः इन विद्यार्थियों को उचित निर्देशन एवं परामर्श देकर उनके विकास में सहायता दी जा सकती है। इनकी विभिन्न शैक्षिक व्यावहारिक, व्यक्तिगत एवं मनोवैज्ञानिक समस्याएँ होती हैं जिसके निवारण के लिए समायोजन एवं मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है।

विद्यार्थी के लिए निर्देशन एवं परामर्श निम्न प्रकार से आवश्यक होता है-

(1) To realisation of students potentialities.

(2) To help children with developing problems.

(3) To contribute to the development of the school’s curriculum.

(4) To contribute to the mutual adjustment of students.

निर्देशन एवं परामर्श देने का प्रमुख उद्देश्य छात्रों की शिक्षा के उद्देश्य को समान रूप से प्राप्त करना है, जैसे- छात्रों की आधारभूत शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति, स्वयं को समझने एवं दूसरों को स्वीकार करने, साथी समूह के साथ सहयोग स्थापित करने, शैक्षिक व्यवस्था में अनुमोदन एवं नियन्त्रण के बीच सन्तुलन स्थापित करने, सफल उपलब्धि की प्राप्ति में एवं स्वतन्त्रता प्राप्ति के अवसर आदि। अतः निर्देशन एवं परामर्श का प्रमुख उद्देश्य शैक्षिक कार्यक्रमों पर जोर देने एवं उन्हें मजबूती प्रदान करना होता है।

(1) छात्र को स्व-क्षमताओं से परिचित कराने के लिए- छात्रों को उनकी स्व- क्षमताओं की अनुभूति कराकर उनके परस्पर विकास हेतु उचित निर्देशन एवं परामर्श देना आवश्यक होता है। इसके द्वारा छात्रों को विभिन्न पाठ्य सहगामी क्रियाओं के चयन के अवसर उपलब्ध कराता है। शिक्षा की महत्त्वपूर्ण क्रिया द्वारा छात्रों को अपनी क्षमताओं को पहचान एवं विकास करने में सहायता प्रदान करना। परामर्शदाता छात्र को अपनी क्षमता को प्रयोग प्राप्त अधिगम परिस्थितियों में कराने में प्रमुख भूमिका निभाता है।

(2) छात्रों की समस्याओं के निदान के लिए- प्रायः वे विद्यार्थी जो विभिन्न आवश्यकता वाले होते हैं उनके समक्ष विभिन्न शिक्षा सम्बन्धी समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं जिनके निदान के लिए बालक को सहायता की आवश्यकता होती है। उसे यह सहायता शिक्षक द्वारा निर्देशन एवं परामर्श के माध्यम से दी जाती है। अतः परामर्शदाता को समस्याग्रस्त बालकों को अपनी समस्याओं के निवारण हेतु उचित निर्देशन एवं परामर्श देना चाहिए।

(3) छात्रों के मार्गदर्शन हेतु- छात्रों को मार्गदर्शन की अत्यन्त आवश्यकता होती हैं क्योंकि बालक विशिष्ट क्षमता वाले होते हैं तथा बिना उचित निर्देशन एवं परामर्श के वे स्वयं अपने निर्णय एवं कार्य नहीं कर सकते हैं। अतः परामर्शदाता छात्रों की क्रियाओं एवं क्षमताओं का विश्लेषण करके उन्हें उचित मार्गदर्शन प्रदान करते हैं जिससे वह अपने वातावरण से अनुकूलन स्थापित करने में सक्षम हो पाते हैं।

(4) छात्रों को आपसी सहयोग में योगदान देने के लिए – विद्यालय में निर्देशन एवं परामर्श का प्रमुख उद्देश्य छात्रों के मध्य सहयोग का विकास करना एवं उसे बनाए रखना है। परामर्शदाता को छात्रों की आवश्यकताओं का पूर्णतया ज्ञान होना आवश्यक होता है। छात्रों को अपने मित्रों, अध्यापकों एवं विद्यालयी पर्यावरण से समायोजन स्थापित करना पड़ता है जिसमें सहायता देने के लिए उचित परामर्श एवं निर्देशन की आवश्यकता होती है।

(5) छात्रों के सर्वांगीण विकास हेतु- छात्रों के सर्वांगीण विकास हेतु उसकी समस्त शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, शैक्षिक, विद्यालयी इत्यादि समस्याओं के समाधान के लिए निर्देशन एवं परामर्श आवश्यक है क्योंकि निर्देशन एवं परामर्श प्रदान करके ही छात्र अपना सर्वांगीण विकास करने में सक्षम हो सकता है।

इसी भी पढ़ें…

Disclaimer: currentshub.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है ,तथा इस पर Books/Notes/PDF/and All Material का मालिक नही है, न ही बनाया न ही स्कैन किया है। हम सिर्फ Internet और Book से पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है। यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- currentshub@gmail.com

About the author

shubham yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

Leave a Comment