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निर्देशन के कार्य, आवश्यकता, महत्त्व, निर्देशन एवं परामर्श में सम्बन्ध

निर्देशन के कार्य
निर्देशन के कार्य

निर्देशन के कार्य (Functions of Guidance)

निर्देशन के कार्यो को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत समाहित कर प्रस्तुत किया जा सकता है-

(1) व्यक्तित्व विकास हेतु कार्य (Functions for Personality Development) – सामान्यतः अधिकतर व्यक्तियों / विद्यार्थियों में व्यक्तित्व से सम्बन्धित किसी न किसी प्रकार की समस्याएँ अवश्य देखी जाती हैं। अकेलापन हीनभावना, कुंठा, नैराश्यभाव, कुसमायोजन, असमायोजन, व्यावहारिक विचलन आदि समस्याएँ आजकल सामान्य हैं। निर्देशन सेवा द्वारा इन समस्याओं का समाधान सम्भव है।

(2) व्यक्तिगत कार्य (Personal Functions)- निर्देशन एक ऐसी सहायता है जो व्यक्तियों को उसकी व्यक्तिगत समस्याओं के समाधान हेतु दी जाती है। व्यक्ति के जीवन में अनेको बार उसे व्यक्तिगत समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इन व्यक्तिगत समस्याओं से निपटने में निर्देशन सहायक होता है।

(3) शैक्षिक कार्य (Functions) – शिक्षा के क्षेत्र में आने वाली समस्याओं का समाधान निर्देशन द्वारा किया जाता है। विद्यार्थियों की रुचियों, क्षमताओं एवं योग्यताओं के अनुसार पाठ्यक्रम चयन में परामर्श द्वारा सहायता दी जाती है।

(4) व्यावसायिक कार्य (Vocational Functions) – आज के इस वैज्ञानिक युग में व्यावसायिक कार्यों का क्षेत्र अतिव्यापक एवं विस्तृत हो गया है। जीविकोपार्जन हेतु इनका चयन करते समय व्यक्ति को अपनी योग्यता, क्षमता, रुचि आदि का ज्ञान होना चाहिए। इन नए व्यावसायिक कार्यों के लिए विशिष्ट प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। अनेक नए व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रम भी आजकल संचालित किए जा रहे हैं। परामर्श सेवा व्यक्ति / विद्यार्थी को उसकी रुचि योग्यता एवं क्षमता के अनुसार व्यवसाय / व्यावसायिक पाठ्यक्रम का चयन करने में सहायता प्रदान करती है।

(5) नैदानिक कार्य (Diagnostic Functions)- एक प्रकार से निर्देशन द्वारा व्यक्ति की समस्याओं का निदान (Diagnosis) किया जाता है। तत्पश्चात् उन समस्याओं का उपचार / नैदानिक निर्देशन द्वारा निदान, उपचार एवं प्रतिरोधन तथा ज्ञान के प्रयोग द्वारा दी जाने वाली निर्देशन सेवा व्यक्ति की नैदानिक समस्याओं का उपचार करती है।

(6) मनोचिकित्सकीय कार्य (Psychotherapeutic Functions)–निर्देशन मानसिक रोगियों के उपचार मे भी सहायक होता है। निर्देशन के मनोचिकित्सकीय कार्य के विषय में स्नाइडर महोदय (Snyder) का कथन है- “मनोचिकित्सकीय निर्देशन वह प्रत्यक्ष सम्बन्ध है जिसमें एक प्रशिक्षण प्राप्त व्यक्ति सामाजिक कुसमायोजन एवं भावनात्मक अवरोधन वाले व्यक्तियों को समायोजन के योग्य बनाता है।”

(7) वैवाहिक निर्देशन कार्य (Marriage Guidance Functions) – भारतीय समाज में विवाह एक धार्मिक संस्कार एवं सामाजिक आवश्यकता के रूप में माना जाता है लेकिन आज के बदलते सामाजिक परिदृश्य में स्थितियाँ बदल चुकी हैं। समाज में विकसित हो रही नई विचारधाराओं, परिवर्तित हो रहे दृष्टिकोण एवं सामाजिक परिस्थितियों में सही जीवन-साथी के चयन, वैवाहिक जीवन में आने वाली समस्याओं के समाधान हेतु निर्देशन दिया जाता है जिससे वैवाहिक सम्बन्धों में स्थिरता आए एवं परिवारों का टूटना कम हो ।

(8) नियुक्ति / स्थानन सम्बन्धी कार्य (Appointment/Placement Related Functions)— विद्यार्थी / व्यक्ति अपना अध्ययन / प्रशिक्षण पूरा करने के बाद अपने भावी जीवन में स्थिरता लाने एवं जीविकोपार्जन हेतु नौकरी / रोजगार / काम की खोज करता है। यह निर्देशन व्यक्ति / विद्यार्थी को उसकी योग्यता, रुचि एवं क्षमता के अनुसार नौकरी / कार्य / रोजगार / व्यवसाय के विषय में सहायता प्रदान करता है। जिससे उसको कार्य सन्तुष्टि (Job Satisfaction) मिल सके। इस प्रकार स्पष्ट है कि निर्देशन का कार्य किसी सीमा में न बँधकर जीवन के प्रत्येक क्षेत्र से सम्बन्धित है। मूलतः व्यक्ति की सहायता करना निर्देशन का प्रमुख कार्य है चाहे वह जिस प्रकार का हो।

निर्देशन की आवश्यकता एवं महत्त्व (Need And Importence of Guidance)

इस में अनेक प्रकार की जटिलताओं का समागम पाया जाता है। ऐसी जटिल परिस्थितियों में व्यक्ति को समायोजन हेतु निर्देशन की आवश्यकता होती है। व्यक्ति द्वारा समाज की अनेक परम्पराओं, रीति रिवाजों, मान्यताओं मूल्यों और दृष्टिकोणों में हो रहे निरन्तर परिवर्तनों को समझने की आवश्यकता है। इनके कारण विभिन्न शैक्षिक संस्थानों विद्यालय परिवार एवं सामाजिक संस्थानों में पृथकता एवं विभेदीकरण को बढ़ावा मिला जिनके निवारण हेतु निर्देशन की अत्यन्त आवश्यकता है। अतः व्यक्ति को आधुनिक समाज में उचित स्थान प्राप्त करने के लिए एवं व्यक्ति को सक्षम बनाने के लिए निर्देशन अत्यन्त आवश्यक है। निर्देशन की प्रमुख आवश्यकता निम्नलिखित है-

(1) सर्वांगीण विकास (Overall Development) – व्यक्ति के सम्पूर्ण विकास हेतु, जैसे- शारीरिक, मानसिक आर्थिक मनोवैज्ञानिक व्यक्ति सामाजिक आदि पक्षों के सर्वांगीण विकास हेतु निर्देशन की अति आवश्यकता होती है। उनकी विभिन्न क्षमताओं को निर्देशन के माध्यम से विकसित करके ही व्यक्ति को समाज के उपयुक्त बनाया जा सकता है।

(2) व्यक्ति के मौलिक मूल्य की स्वीकृति- किसी भी राष्ट्र का विकास उत्कृष्ट व्यक्तियों की प्रकृति पर निर्भर करता है क्योंकि राष्ट्र में व्यक्ति के कल्याण के पर्याप्त अवसर प्राप्त होते हैं। इन सबके माध्यम से व्यक्ति के मौलिक मूल्य की स्वीकृति प्राप्त होती है। इन मूल्यों की स्वीकृति हेतु निर्देशन की आवश्यकता होती है।

(3) बेहतर पारिवारिक जीवन (Better Family Life)- परिवार मूल सामाजिक इकाई है। यह सौहार्द्रपूर्ण पारिवारिक सम्बन्धों के लिए आवश्यक है। परिवार में आदर्श पारिवारिक सम्बन्ध और अच्छे सामाजिक समायोजन से समाज के साथ उचित समायोजन होता है तथा व्यक्ति की स्वस्थ मानसिक स्थिति का विकास होता है।

(4) व्यक्तिगत मतभेदों के अनुसार शिक्षा प्रदान करने हेतु- वर्तमान शिक्षा प्रणाली में रुचि, क्षमता, योग्यता आदि क्षेत्रों में बच्चों के बीच अनेक मतभेदों की उत्पत्ति हो गई है जिससे शैक्षिक स्तर पर बालकों में अनुशासन एवं मतभेद उत्पन्न हो जाता है। इन समस्त समस्याओं को निर्देशन के माध्यम से दूर किया जा सकता है।

(5) प्रासंगिक पाठ्यचर्चा का विकल्प- विज्ञान और प्रौद्योगिकी में प्रगति के साथ-साथ शिक्षा में अन्य नए विषयों को सम्मिलित किया गया है। किसी-किसी संस्थान में विषयों का समूह होता है, जबकि कुछ में कुछ भिन्न विषयों को पढ़ाया जाता है। इनमें उचित एवं प्रासंगिक पाठ्यचर्या के चयन में निर्देशन की आवश्यकता होती है।

(6) उचित समायोजन- समायोजन किसी की भी मूलभूत आवश्यकता होती है। संतोषजनक समायोजन किसी व्यक्ति की दक्षता, मानसिक स्थिति और समाजशीलता को प्रभावित करता है। यदि व्यक्ति को उचित वातावरण प्राप्त नही होता तो वह अनेक प्रकार की कुण्ठाओं, अंसतोष, निराशा, आन्तरिक संघर्ष तथा तनाव आदि से ग्रसित हो जाता है जिससे उसे समायोजन में कठिनाई होती है। ऐसी परिस्थिति में व्यक्ति को निर्देशन की आवश्यकता होती है।

(7) लोकतान्त्रिक मूल्यों का विकास- किसी भी देश की लोकतान्त्रिक व्यवस्था का विकास तभी सम्भव है जब लोकतात्रिक मूल्यों, जैसे अधिकार एवं कर्तव्यों की वृद्धि पर जोर दिया जाए। इन मूल्यों के विकास हेतु उचित निर्देशन की आवश्यकता होती है। इस प्रकार उपरोक्त तथ्यों के समुचित विकास हेतु निर्देशन की प्रमुख होती है।

निर्देशन एवं परामर्श में सम्बन्ध (Relationship between Guidance and Counselling)

कुछ विद्वानों का मानना है कि निर्देशन एवं परामर्श समानार्थी है किन्तु निर्देशन एवं परामर्श में घनिष्ठ सम्बन्ध होते हुए भी कुछ भिन्नता है। निर्देशन व्यक्ति में इस प्रकार की योग्यता का विकास करता है कि व्यक्ति अपनी समस्या का समाधान खोजने में स्वयं सक्षम हो सके। निर्देशन का मुख्य उद्देश्य आत्मनिर्देशन व स्वनिर्देशन की क्षमता विकसित करना है। इसके अन्तर्गत सूचना सेवा, अनुवर्ती सेवा, व्यक्ति अध्ययन आदि आते हैं। निर्देशन सेवा के अन्तर्गत ही परामर्श सेवा को शामिल किया जाता है। परामर्श का अर्थ राय देना या सलाह देना है। परामर्श की प्रक्रिया में एक परामर्श देने वाला (परामर्शदाता) और दूसरा परामर्श प्राप्त करने वाला (परामर्श प्राप्तकर्ता) होता है। परामर्शदाता एक प्रशिक्षित व्यक्ति होता है। परामर्श की प्रक्रिया में यह आवश्यक है कि परामर्शदाता और परामर्श प्राप्तकर्ता के मध्य पारस्परिक सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध स्थापित हों जिससे विचार-विमर्श एवं वार्तालाप के अवसर उत्पन्न हो सके। निर्देशन एक व्यापक क्रिया है जबकि परामर्श को निर्देशन की एक विधि कह सकते हैं। परामर्श निर्देशन में निहित होता है। यदि निर्देशन एवं परामर्श की प्रक्रियाओं का विश्लेषण किया जाए तो ज्ञात होता है कि परामर्श निर्देशन प्रक्रिया का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। निर्देशन एक व्यापक प्रक्रिया है एवं परामर्श उसका एक महत्त्वपूर्ण भाग परामर्श के बिना निर्देशन का कार्य पूरा नहीं माना जा सकता है। परामर्श प्रक्रिया में परामर्श प्रदाता एवं प्राप्तकर्ता में निकटता का सम्बन्ध होता है।

हम्फीस और ट्रैकसलर के अनुसार, “निर्देशन एवं परामर्श दोनों एकार्थवाची शब्द नहीं हैं। परामर्श निर्देशन में समाविष्ट है। परामर्श की प्रक्रिया में साक्षात्कार एवं मूल्यांकन का प्रयोग साधन के रूप में होता है। “

According to Humpheis and Tranksaler, “The term guidance and counselling are not synonymous. Guidance includes counselling and in the process of guidance counselling, testing and interviewing are parts or tools.”

इस परिभाषा के अनुसार परामर्श निर्देशन का महत्त्वपूर्ण अंश है। जब साक्षात्कार का उद्देश्य किसी समस्या के समाधान में व्यक्ति की सहायता करना होता है तब ऐसे साक्षात्कार को परामर्श कहते हैं।

निर्देशन प्रदाता के लिए पूर्व प्रशिक्षित होना कोई आवश्यक शर्त नहीं है किन्तु परामर्शदाता का पूर्व प्रशिक्षित होना आवश्यक है। निर्देशन सामूहिक एवं व्यक्तिगत दोनों प्रकार से किया जा सकता है जबकि परामर्श एक समय में केवल एक व्यक्ति को दिया जा सकता है। निर्देशन प्रक्रिया में यह आवश्यक नहीं कि किसी व्यक्ति द्वारा ही किया जाए बल्कि यह पुस्तकों, पत्र-पत्रिकाओं, पत्राचार आदि द्वारा भी किया जा सकता है जबकि परामर्श व्यक्तिगत सम्पर्क द्वारा ही सम्पन्न किया जा सकता है।

निर्देशन एवं परामर्श में सम्बन्ध के प्रमुख तथ्य निर्देशन एवं परामर्श के मध्य सम्बन्ध के प्रमुख तथ्य निम्नलिखित हैं-

(1) निर्देशन एवं परामर्श दोनों के उद्देश्य समान होते हैं तथा यह एक व्यक्ति को अपने अल्पावधि, मध्यावधि एवं लम्बी अवधि को तय करने हेतु आत्मविश्वास प्रदान करता है।

(2) इन दोनों का कार्य व्यक्ति को उसके अन्तिम लक्ष्य का ज्ञान प्रदान करना जिससे व्यक्ति अपने जीवन से सन्तुष्ट हो तथा मन की शान्ति प्राप्त कर सके।

(3) निर्देशन एवं परामर्श दोनों ही व्यक्ति की समस्याओं के माध्यम से उनकी सहायता / समाधान करते हैं।

(4) दोनों व्यक्ति में समझौते के रूप में विद्यमान रहती हैं।

(5) दोनों व्यक्ति को सूचनाएँ प्रदान करती हैं तथा दोनों का अन्तिम परिणाम समान रूप से आत्मपूर्ति या लक्ष्य का यथार्थीकरण होता है।

उपर्युक्त तथ्यों से ज्ञात होता है कि निर्देशन एवं परामर्श में अनेक समानताएँ हैं। दोनों का उद्देश्य व्यक्ति की समस्याओं का समाधान करना तथा उनके लक्ष्य प्राप्ति को सुगम बनाना है। दोनों व्यक्ति के साथ व्यावहारिक रूप से समायोजन स्थापित करके समाधान प्रस्तुत करते हैं। अतः निर्देशन एवं में घनिष्ठ समानताएँ पाई जाती हैं।

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shubham yadav

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