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निर्देशन के क्षेत्र (Scope of Guidance)
निर्देशन का क्षेत्र बहुत वृहद् है। निर्देशन के कुछ महत्त्वपूर्ण क्षेत्र निम्नलिखित हैं-
(1) वैयक्तिक निर्देशन के क्षेत्र (Scope of Personal Guidance)- छात्रों को स्वयं से जुड़ी समस्याओं तथा माता-पिता व परिवार, मित्रों तथा शिक्षकों आदि से सम्बन्धित समस्याओं का सामना करना पड़ता है। अक्सर घर व परिवार से सम्बन्धित कुछ ऐसी घटना होती है जो उनके मन में निराशा उत्पन्न करती है। कभी-कभी माता-पिता भी बच्चों से अधिक आशा रखते हैं तथा उनको पूरा करने के लिए बच्चों पर दबाव डालते हैं इससे भी बच्चों के मन में अक्षमता की भावना जागृत हो जाती है तथा उनके आत्म-सम्मान (Self-Esteem) तथा आत्म- अवधारणा (Self-Concept) पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। अतः इन सब समस्याओं से निपटने के लिए छात्रों के शारीरिक, संवेगात्मक, सामाजिक, तथा अध्यात्मिक विकास के लिए भी निर्देशन की आवश्यकता होती है। वैयक्तिक निर्देशन जीवन के सभी स्तरों पर आवश्यक होता है।
प्राथमिक विद्यालय स्तर पर छात्रों को स्वयं को व्यक्त करने के पर्याप्त अवसर प्राप्त होने चाहिए। वैयक्तिक निर्देशन इस स्तर पर असुरक्षा की भावना, सामाजिक स्वीकृति तथा अनुशासन से सम्बन्धित समस्या का निराकरण करता है।
माध्यमिक स्तर पर छात्रों को और अधिक जटिल समस्याओं का सामना करना पड़ता है। माध्यमिक स्तर के दौरान किशोरवस्था में छात्रों के शारीरिक, मानसिक तथा सामाजिक व्यवहार में परिवर्तन होते हैं। अतः इस स्तर पर वैयक्तिक निर्देशन निजी व सामाजिक समायोजन पर अधिक केन्द्रित होता है। उच्च स्तर पर वैयक्तिक निर्देशन जीवन का दृष्टिकोण यथार्थ के सम्बन्ध में स्थापित करने में मदद करता है। इस स्तर पर निर्देशन का क्षेत्र बहुत विस्तृत है।
(2) शैक्षिक निर्देशन के क्षेत्र (Scope of Educational Guidance) – यदि स्कूल व कॉलेज के नए छात्रों की समस्या का परीक्षण किया जाए तो शैक्षिक निर्देशन की आवश्यकता को समझा जा सकता है। अतः शिक्षा निर्देशन का महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है। शैक्षिक निर्देशन शिक्षा के प्रत्येक पक्ष से सम्बन्धित है। विद्यालय, पाठ्यचर्या, प्रस्तावना की विधि, पाठ्य सहगामी क्रियाएँ, अनुशासन आदि में निर्देशन का महत्त्व है। शैक्षिक निर्देशन व्यक्तिगत सहयोग है जो छात्रों की योग्यता समझने, विषय चयन, शैक्षिक अवसरों की आवश्यकता आदि को जानने में सहयोग करता है। प्राथमिक स्तर पर निर्देशन कार्यक्रम द्वारा छात्रों की एक अच्छी शुरुआत, बुद्धिपूर्ण योजना, शिक्षा द्वारा उत्तम अर्जन में सहयोग करना तथा उन्हें माध्यमिक स्तर के लिए तैयार करना होता है। शैक्षिक निर्देशन की आवश्यकता समस्याओं के निराकरण करने में होती है तथा छात्रों की विशिष्ट आवश्यकताओं को समझने में भी इसकी जरूरत होती है।
माध्यमिक स्तर पर शैक्षिक निर्देशन छात्रों को विद्यालय के विभिन्न तत्त्वों को समझने, विषयों का चयन करने तथा अच्छी अध्ययन आदतों को समझने के लिए किया जाता है। उच्च शिक्षा के स्तर पर निर्देशन छात्रों के लक्ष्य को प्राप्त करने में सहयोग करती है।
(3) व्यावसायिक निर्देशन के क्षेत्र (Scope of Vocational Guidance) – व्यावसायिक निर्देशन एक प्रक्रिया है जो व्यवसाय चयन करने में सहयोग करती है। इस प्रकार के निर्देशन वैयक्तिक निर्णयों तथा कैरियर निर्माण में सहयोग करती है। माध्यमिक स्तर पर व्यवसायिक निर्देशन छात्रों में रोजगार तत्परता, विभिन्न व्यवसायों के लिए आवश्यक योग्यता तथा कार्य क्षमता आदि का बोध कराते हैं। उच्च स्तर पर निर्देशन के द्वारा छात्रों को विभिन्न व्यवसायों की जानकारी मिलती है तथा उनसे सम्बन्धित सुविधाओं, अप्रेंटिस कार्यक्रमों का लाभ कैसा मिलेगा इसकी जानकारी मिलती है। विभिन्न शैक्षिक संस्थानों द्वारा संचालित व्यावसायिक प्रशिक्षण के लिए उपलब्ध सुविधाओं तथा उचित जाकारी को सुरक्षित रखने में निर्देशन की आवश्यकता होती है।
(4) अव्यवसायिक निर्देशन के क्षेत्र (Scope of Non-Commercial Guidance) – छात्र केवल 4 से 6 घण्टे ही विद्यालय में व्यतीत करते हैं। विद्यालय के बाद का समय छात्र अपने विकास तथा उन्नति के लिए उपयोग करते हैं। अव्यवसायिक निर्देशन छात्रों को खाली समय को न्यायपूर्ण ढंग से प्रयोग करने में सहयोग करते हैं। सहगामी क्रियाएँ बालक के सर्वांगीण विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। किन्तु कुछ माता-पिता, शिक्षक तथा बालक इन क्रियाओं के महत्त्व को वरीयता नहीं देते हैं। अतः निर्देशन द्वारा बालकों को निर्देशित किया जाता है जिससे वे इन क्रियाओं में भाग लें तथा अपने अन्तर्वैयक्तिक सम्बन्धों को सुधार सकें व अपने दृष्टिकोण को विकसित कर सकें।
(5) सामाजिक निर्देशन के क्षेत्र (Scope of Social Guidance) – मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। किन्तु सामाजिक सम्बन्ध छात्रों के लिए समस्या उत्पन्न करते हैं। विद्यालय/कालेज, शैक्षिक संस्थान समाज का लघु रूप है जहाँ अलग-अलग आर्थिक स्तर, भाषा तथा सामाजिक सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के छात्र पढ़ते है। अतः कभी-कभी इन्हीं भिन्नताओं के कारण छात्रों को सामाजिक सम्बन्ध स्थापित करने तथा समायोजन करने में समस्या होती है।
अतः छात्रों में स्वीकृति तथा सुरक्षा की भावना का विकास करना अत्यन्त आवश्यक है। छात्रों के सामाजिक सम्बन्धों में विकास तथा दूसरों के प्रति सहिष्णु बनाने का कार्य सामाजिक निर्देशन का है। औपचारिक निर्देशन शैक्षिक संस्थाओं द्वारा भी दिया जा सकता है तथा अनौपचारिक निर्देशन परिवार एवं धार्मिक संस्थानों द्वारा दिया जाता है।
(6) नैतिक निर्देशन के क्षेत्र (Scope of Moral Guidance) – नैतिक मूल्य हमारे जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। कई बार विविध कारकों के प्रभाव से छात्र अवांछनीय व्यवहार तथा झूठ बोलने लगते हैं। ऐसे छात्रों को उचित मार्ग पर लाने के लिए नैतिक निर्देशन की आवश्यकता होती है जिससे उन छात्रों का सर्वागीण विकास हो सके।
(7) स्वास्थ्य निर्देशन के क्षेत्र (Scope of Health Guidance) – स्वास्थ्य ही धन है। सम्पूर्ण स्वास्थ्य अर्थात् उपचारात्मक तथा निवारक उपाय प्राप्त करना ही स्वास्थ्य निर्देशन का लक्ष्य है। स्वास्थ्य निर्देशन प्राचार्य, डॉक्टर, काउन्सलर / मनोवैज्ञानिक, शिक्षक, छात्र तथा अभिभावकों का एक सहकारी प्रयास है जो स्कूल छात्रावास, कैंटीन आदि की देखभाल के निवारक उपायों को बढ़ावा देते हैं। अतः औपचारिक कक्षा के माध्यम से स्वास्थ्य शिक्षा तथा सूचना देना अत्यन्त आवश्यक है। वर्तमान समय में एचआईवी/एड्स, पोलियो, डॉयबिटीज, फ्लू आदि के बारे छात्रों को निर्देशित किया जा रहा है तथा उनमें जागरूकता विकसित की जा रही है। वर्तमान समय में स्वास्थ्य निर्देशन का क्षेत्र बहुत बढ़ गया है।
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