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परामर्श की अवधारणा (Concept of Counselling)
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और इसी समाज में रह कर वह अपने अस्तित्व को सुरक्षित करता है, अपनी पारिवारिक व सामाजिक उत्तरदायित्यों का निर्वहन करता है, सांस्कृतिक क्रिया-कलापों मे सहभागी बनता है और वह सारे कार्य करता है जिससे वह समाज का एक उत्तरदायी नागरिक बन सके। समाज में रह कर इन सारे कृत्यों का निर्वहन करते समय उसके समक्ष अनेक समस्याएँ उत्पन्न होती हैं जिनका उत्पन्न होना स्वाभाविक है। ये समस्याएँ भी भिन्न-भिन्न स्वरूप की होती हैं। इन समस्याओं के निस्तारण के बाद ही व्यक्ति आगे बढ़ सकता है। समस्याओं को हल करने में व्यक्ति जो सहायता व्यक्तिगत सलाह के रूप में प्राप्त करता है, वहीं परामर्श की अवधारणा का जन्म होता है। परामर्श हमारे मानव समाज में सभ्यता के उद्गम से ही उपस्थित है, इसलिए कहा जा सकता है कि परामर्श की अवधारणा उतनी ही प्राचीन है जितनी प्राचीन मानव सभ्यता । यदि हम इतिहास एवं पौराणिक ग्रन्थों पर दृष्टिपात करें तो पाते हैं कि प्रत्येक राजा राज्य प्रबन्ध हेतु परामर्श प्राप्त करता था। किसी-किसी राज्य का संचालन ही परामर्श मण्डल द्वारा संचालित किया जाता था। परामर्शदाताओं की राज्य संचालन में अति महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। रामायण एवं महाभारत काल की यदि हम बात करें तो वहाँ राजा दशरथ के मन्त्री सुमंत थे जो कि राज्य कार्य में परामर्श दिया करते थे। लंका में रावण के परामर्शदाता के रूप में उसके मामा माल्यवन्त एवं भाई विभीषण थे। हस्तिनापुर साम्राज्य में कौरवों के परामर्शदाता अतिनीतिवान विद्वान, महाज्ञानी, विदुर थे। मगध साम्राज्य में चन्द्रगुप्त मौर्य के परामर्शदाता के रूप में चाणक्य का नाम प्रमुखता से आता है, जिनकी सहायता या परामर्श के द्वारा चन्द्रगुप्त मौर्य ने घनानन्द को नष्ट कर मगध में मौर्य साम्राज्य स्थापित किया। इस प्रकार देखा जा सकता है कि परामर्श सदैव प्रत्येक काल में अलग-अलग रूपों में उपस्थित रहा है। इसका आशय यही है कि जितनी प्राचीन हमारी मानव सभ्यता है उतनी ही प्राचीन परामर्श एवं उसकी अवधारणा।
सामाजिक संरचना एवं व्यवस्था बदलने के साथ अब परामर्श के स्वरूप और प्रक्रिया में भी बहुत परिवर्तन हो चुका है। परामर्श अब एक अनिवार्य सामाजिक आवश्यकता के रूप में है। विद्यालयों में अनिवार्यता के साथ परामर्शदाता (Counsellor) उपस्थित रहता है जो छात्रों की व्यक्तिगत, शैक्षिक एवं व्यावसायिक समस्याओं के समाधान में सहायता प्रदान करता है। परामर्श अब एक विशुद्ध व्यावसायिक प्रक्रिया के रूप में अपना स्थान बना चुका है जो योग्य, अनुभवी एवं प्रशिक्षित व्यक्तियों के द्वारा सम्पादित किया जाता है। मनुष्य के जीवन में आने वाली इन समस्याओं के निस्तारण/समाधान करने के लिए निर्देशन प्रक्रिया से सम्बन्धित विभिन्न प्रकार की सेवाओं को संगठित किया जाता है।
मायर्स महोदय (Myers) ने निर्देशन की निम्नलिखित आठ सेवाओं का वर्णन किया है-
(1) व्यावसायिक सूचना सेवा (Vocational Information Service)
(2) आत्मविश्लेषण सेवा (Self-inventory Service),
(3) व्यक्तिगत तथ्य संकलन सेवा (Personal Data Collection Service)
(4) परामर्शदाता सेवा (Counsellor Service)
(5) व्यावसायिक तैयारी सेवा (Vocational Preparation Service),
(6) नियुक्ति सेवा (Employment Service).
(7) समायोजन सेवा (Adjustment Service) एवं
(8) शोध सेवा (Research Service)।
उपरोक्त सभी सेवाओं में परामर्श सेवा सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण एवं प्राचीन है। परामर्श सेवाओं के बिना निर्देशन कार्यक्रम अर्थहीन है। निर्देशन सेवा के अन्तर्गत व्यक्तियों की समस्याओं का समाधान खोजने का प्रयास किया जाता है। चूँकि प्रत्येक समस्या का स्वरूप एवं गम्भीरता का स्तर भिन्न-भिन्न होता है। इसलिए इनके समाधान हेतु निर्देशन कार्यक्रम के अन्तर्गत कई विधियों का प्रयोग किया जाता है। इन्हीं विधियों में से एक परामर्श सेवा प्रदान करना है। निर्देशन कार्यक्रम में परामर्श सेवा सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण सेवा है परामर्श के अभाव में निर्देशन का कार्य कभी पूर्ण नहीं हो सकता। प्राचीन काल से ही परामर्श किसी न किसी रूप से मानव समाज से जुड़ा रहा है। प्राचीन काल में परामर्श का कार्य सरल एवं सहज था लेकिन आज जैसे-जैसे समाज की जटिलताओं में वृद्धि हुई उसी प्रकार परामर्श भी एक जटिल कार्य हो गया है जिसकी प्रक्रिया को सुचारू ढंग से संचालित करने के लिए अब योग्य, प्रशिक्षित एवं अनुभवी व्यक्तियों की आवश्यकता होती है। परामर्श सेवा की प्रक्रिया एवं उसके सभी पक्षों को जानने से पूर्व यह आवश्यक है कि परामर्श का अर्थ एवं परिभाषा समझ ली जाए।
परामर्श का अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and Definitions of Counselling)
परामर्श एक अति प्राचीन शब्द है जो किसी न किसी रूप में समाज में सदैव उपस्थित रहा है। यह एक जीवन पर्यन्त चलने वाली सतत् प्रक्रिया है। दुनिया में कोई ऐसा व्यक्ति नहीं हैं जिसने कभी परामर्श न दिया हो या परामर्श न लिया हो। परिवार में माता-पिता बुजुगों व बड़े भाई-बहन, विद्यालय में शिक्षक, समाज में प्रबुद्ध व अनुभवी व्यक्ति, कार्यक्षेत्र में प्रगति करता है और साथ में समाज की भी प्रगति होती है। परामर्श के सन्दर्भ में अनेक वरिष्ठ व अनुभवी अधिकारी आदि से परामर्श मिलता है जिससे वह व्यक्ति सही दिशा में विद्वानों ने अलग-अलग परिभाषाएँ दी हैं। कुछ परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं-
वेक्टर शब्दकोश में परामर्श के अर्थ को स्पष्ट करते हुए लिखा गया है- Webster Dictionary के अनुसार, “परामर्श परस्पर विचारों का आदान-प्रदान या पारस्परिक तर्क-वितर्क या पूछताछ है।”
According to Webster Dictionary, “Consultation is mutual interchanging of opinions or debating together.”
सी.बी. गुड महोदय (1945) ने अपने शैक्षिक शब्दकोश (Educational Dictionary) में परामर्श को परिभाषित करते हुए लिखा है- परामर्श अकेले एवं व्यक्तिगत रूप से व्यक्तिगत, शैक्षिक, व्यावसायिक समस्याओं में सहायता प्रदान करना है जिसमें सभी सम्बन्धित तथ्यों का अध्ययन तथा विश्लेषण किया जाता है। इन समस्याओं का समाधान प्रायः विशेषज्ञों, विद्यालय, सामुदायिक साधनों और व्यक्तिगत साक्षात्कारों की सहायता से खोजा जाता है तथा परामर्श प्राप्तकर्ता को अपना निर्णय स्वयं लेना सिखाया जाता है।”
According to C.V. Good (Dictionary of Education), “Counselling is the individualised and personalised assistance with personal, educational, vocational problems in which all pertinent facts are studied and analysed and a solution is sought, often with the assistance of specialists, school and community resources, and personal interviews in which the counsellee is taught to make his own decisions.”
शोस्टार्म एवं ब्रैमर के अनुसार, “परामर्श दो व्यक्तियों के मध्य उद्देश्यपूर्ण एवं पारस्परिक सम्बन्ध है जिसमें एक व्यक्ति, जो प्रशिक्षित है, दूसरे को, स्वयं को या वातावरण बदलने में सहायता प्रदान करता है।”
According to Shostrom and Brammer, “Counselling is a purposeful, reciprocal relationship between two people in which one, a trained person, helps the other to change himself or his environment”.
मायर्स के अनुसार, “परामर्श का आशय दो व्यक्तियों के मध्य ऐसे सम्बन्ध से है जिसमें एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को एक विशेष प्रकार की सहायता प्रदान करता है।”
रुथ स्ट्रैंग के अनुसार, “परामर्श एक आमने-सामने का सम्बन्ध है जिसमें परामर्शदाता एवं सेवार्थी दोनों की ही वृद्धि होती है।”
According to Ruth Strong, “Counselling is a face-to-face relationship in which growth takes place in the counsellor as well as the counsellee.”
वोलबर्ग ने परामर्श को साक्षात्कार का ही एक रूप बताते हुए इसे निम्न शब्दों में परिभाषित किया है- परामर्श साक्षात्कार का वह प्रकार है जिसमें प्रार्थी को, स्वयं को अधिक पूर्णता से समझने में सहायता प्रदान की जाती है जिससे कि वातावरण या समायोजनात्मक कठिनाइयों को दूर किया जा सके।”
According to Wolberg, “Counselling is a form of interviewing in which the client is helped to understand himself more completely in order to correct an environment or adjustment difficulty.”
सी. गिलबर्ट रेन के अनुसार, “सर्वप्रथम परामर्श व्यक्तिगत होता है। यह एक समूह के साथ सम्पादित नहीं किया जा सकता है। सामूहिक परामर्श जैसे शब्द असंगत है। व्यक्तिगत परामर्श जैसा शब्द भी असंगत हैं क्योंकि परामर्श सदैव व्यक्तिगत ही होता है।”
According to C. Gilbert Wren, “First of all Counselling is personal. It cannot be performed with a group. Group Counselling is an anomaly, the terms are not in harmony. Personal Counselling is a tautology, Counselling is always personal.”
रॉबिन्सन के अनुसार- परामर्श शब्द उन सभी दो व्यक्तियों वाली परिस्थितियों को शामिल करता है जिसमें एक व्यक्ति जो ग्राहक है, को स्वयं और उसके वातावरण के साथ समायोजित होने में सहायता प्रदान की जाती है।”
According to Robinson, “The term Counselling covers all types of two person situations in which one person, the client is helped to adjust more effectively to himself in his environment.”
कार्ल रोजर्स के अनुसार, परामर्श निर्धारित रूप से संरचित, स्वीकृत सम्बन्ध है जो परामर्श प्राप्तकर्ता को पर्याप्त मात्रा में स्वयं को समझने में सहायता प्रदान करता है जिससे वह नए ज्ञान के आलोक में सकारात्मक कदम उठा सके।”
According to Carl Rogers, “A definitely structured permissive relationship which allows the client to gain an understanding to himself to a degree which enables him to take positive steps in the light of his new orientation.”
एरिक्सन के अनुसार, “एक परामर्श साक्षात्कार व्यक्ति से व्यक्ति का सम्बन्ध है जिसमें एक व्यक्ति अपनी समस्याओं एवं आवश्यकताओं के साथ दूसरे व्यक्ति के पास सहायता के लिए जाता है।”
According to Erickson, “A Counselling interview is a person-to-person relationship in which one individual with problems and needs turns to another person for assistance.”
इंगलिश और इंगलिश के अनुसार, “परामर्श एक सम्बन्ध है जिसमें एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को उसकी समायोजन सम्बन्धी समस्याओं को समझने एवं उन्हें हल करने में सहायता देता है। प्रायः समायोजन के क्षेत्र शैक्षिक परामर्श, व्यावसायिक परामर्श, सामाजिक परामर्श आदि होते हैं।”
According to English and English, “Counselling is a relationship in which one person endeavours to help another to understand and solve his adjustment problems. The area of adjustment often educational Counselling, vocational Counselling, social Counselling, etc. “
उपरोक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि परामर्श दो व्यक्तियों के मध्य एक ऐसा व्यक्तिगत सम्बन्ध है जिसमें पहला व्यक्ति अर्थात परामर्शदाता दूसरे व्यक्ति अर्थात परामर्श प्राप्तकर्ता को उसकी विभिन्न समस्याएँ चाहे वह किसी भी प्रकार (समायोजन सम्बन्धी, शैक्षिक, व्यावसायिक, सामाजिक, व्यक्तिगत आदि) की हों समझने एवं उन्हें हल करने में सहायता प्रदान करता है। परामर्श उद्देश्यपूर्ण एवं गतिशील प्रक्रिया होती है तथा परामर्शदाता प्रशिक्षित होता है।
परामर्श की विशेषताएँ (Characteristics of Counselling)
उपरोक्त वर्णित विभिन्न परिभाषाओं के अध्ययन एवं विश्लेषण के फलस्वरूप परामर्श की निम्नलिखित विशेषताएँ स्पष्ट होती हैं-
(1) परामर्श किसी व्यक्ति को सहायता प्रदान करने वाली प्रक्रिया है।
(2) परामर्श किसी व्यक्ति के साथ उसकी समस्या के बारे में बात करना है।
(3) परामर्श सामूहिक रूप से नहीं प्रदान किया जा सकता है।
(4) परामर्श एक उद्देश्यपूर्ण एवं गतिशील प्रक्रिया है।
(5) परामर्श प्रक्रिया में प्रायः दो व्यक्ति होते हैं जिसमें एक व्यक्ति अर्थात परामर्शदाता के पास सामान्यतः तथ्य, अनुभव एवं योग्यताएँ होती हैं और दूसरे व्यक्ति अर्थात परामर्श प्राप्तकर्ता के पास नहीं।
(6) परामर्शदाता परामर्श प्राप्तकर्ता की समस्याओं का विश्लेषण करता है उनके हल हेतु उसे सहायता प्रदान करता है।
(7) परामर्श समस्त निर्देशन कार्यक्रम का एक महत्त्वपूर्ण एवं सक्रिय भाग है जिसके बिना निर्देशन कार्यक्रम पूरा नहीं हो सकता है।
(8) परामर्श दो व्यक्तियों के मध्य अन्तः क्रिया है जिसमें परामर्शदाता दूसरे व्यक्ति की समस्या समाधान में सहायता करता है।
(9) परामर्श पूर्णतया स्वनिर्देशन (Self Guidance) पर आधारित है।
(10) परामर्श एक व्यावसायिक सेवा (Professional Service) के रूप में होती है।
(11) परामर्श सदैव व्यक्ति (परामर्श प्राप्तकर्ता -Client) की समस्या पर केन्द्रित होता है।
(12) परामर्श प्रक्रिया लोकतांत्रिक (Democratic) होती है। परामर्श प्राप्तकर्ता (Client) स्वतन्त्र होता है। वह परामर्शदाता की सलाह मानने हेतु बाध्य नहीं होता।
(13) परामर्श सौहार्दपूर्ण, मधुर एवं सहयोगात्मक वातावरण में ही सम्भव हैं।
(14) एक उत्तम परामर्श, परामर्श प्राप्तकर्ता द्वारा लिए गए निर्णय के रूप में होता है।
(15) परामर्श व्यक्ति का व्यक्ति के साथ आमने-सामने (Face to Face) का सम्बन्ध होता है। यह सम्बन्ध परामर्शदाता एवं परामर्श प्राप्तकर्ता (Client) के मध्य होता है।
(16) परामर्श एक अधिगम केन्द्रित (Learning Oriented) प्रक्रिया होती है।
(17) परामर्श निर्देशन का एक पक्ष है।
(18) परामर्श का उद्देश्य प्रार्थी (Client) की सहायता करना है जिससे वह स्वतंत्र रूप से अपनी समस्या का समाधान कर सके।
(19) परामर्श एक व्यावसायिक कार्य है जिसे एक प्रशिक्षित, योग्य एवं अनुभवी व्यक्ति द्वारा सम्पन्न किया जाना चाहिए।
(20) परामर्श की प्रक्रिया में परामर्शदाता एवं परामर्श प्राप्तकर्ता दोनों का समान रूप से महत्त्व होता है।
(21) परामर्श का स्वरूप प्रार्थी की समस्याओं एवं भावनाओं के अनुसार बदला जा सकता है।
(22) परामर्श, परामर्शदाता द्वारा की गई भविष्यवाणी की उपयुक्तता पर आधारित होता है।
(23) प्रत्येक प्रकार का परामर्श साक्षात्कार निर्मित होता है।
(24) परामर्श व्यक्तियों के उनमें उपस्थित दोषों या अयोग्यताओं को दूर करने या उनमें सुधार लाने में सहायता प्रदान करता है जो उनके सीखने में बाधक होते हैं।
(25) परामर्श व्यक्तियों को चयन करने तथा चयनित हल पर अमल करने में सहायता प्रदान करना है।
(26) परामर्श व्यक्तियों को उनकी व्यवहार सम्बन्धी समस्याओं को समझने एवं हल करने में सहायता प्रदान करता है। इसमें व्यक्ति के संवेग (Emotions) एवं अभिप्रेरणाएँ (Motivations) प्रमुख होती हैं।
(27) परामर्श की प्रक्रिया में बातचीत एवं वाद-विवाद द्वारा समस्या को स्पष्ट किया जाता है तथा कौशलपूर्ण प्रश्नों के माध्यम से परामर्शदाता समस्या एवं समस्या के महत्त्व का पता लगाता है।
(28) परामर्श शब्द के स्थान पर शिक्षण, निर्देशन या मनोचिकित्सा (Psychotherapy) आदि शब्दों का प्रयोग नहीं किया जा सकता है।
आर्बकल महोदय (Arbuckle) ने परामर्श में तीन बातों, तत्त्वों / विशेषताओं का उल्लेख किया है जिस पर लगभग सभी परामर्श सिद्धान्त सहमत हैं-
(1) परामर्श की प्रक्रिया में दो व्यक्ति संलग्न होते हैं।
(2) परामर्श प्रक्रिया का उद्देश्य छात्रों को इस योग्य बनाना है कि वे अपनी समस्याएँ स्वतन्त्र रूप से हल कर सकें।
(3) परामर्श एक व्यावसायिक रूप से प्रशिक्षित व्यक्ति का व्यावसायिक कार्य होता है।
विलियम काटल (William Cottle) महोदय ने परामर्श का तीन के स्थान पर पाँच तत्त्व / बातों / विशेषताओं को बताया है। उनके अनुसार-
(1) दोनों व्यक्तियों (परामर्शदाता एवं परामर्श प्राप्तकर्ता) के मध्य पारस्परिक सम्बन्ध आवश्यक है।
(2) परामर्शदाता एवं परामर्श प्राप्तकर्ता के बीच विचार-विमर्श के अनेक साधन हो सकते हैं।
(3) प्रत्येक परामर्शदाता अपना कार्य पूरे ज्ञान से करता है।
(4) परामर्श का स्वरूप परामर्श प्राप्तकर्ता की मनोदशा एवं भावनाओं के अनुसार होता है।
(5) प्रत्येक परामर्श साक्षात्कार निर्मित होता है।
परामर्श की मूलभूत अवधारणाएँ (Basic Assumptions of Counselling)
परामर्श एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें विद्यार्थी / व्यक्ति (परामर्श प्राप्तकर्ता) व्यावसायिक रूप प्रशिक्षित एक व्यक्ति (परामर्शदाता) के साथ कुछ विशिष्ट एवं निश्चित उद्देश्यों को पूर्ण करने के लिए कार्य करता है एवं ऐसे व्यवहारों को सीखता है जिनके अर्जन द्वारा इन विशिष्ट एवं निश्चित उद्देश्यों को पूरा किया जा सकता है। एक सफल परामर्श प्रक्रिया निम्नलिखित चार आधारभूत मान्यताओं पर आधारित होती है-
(1) परामर्श प्राप्तकर्ता की इच्छा जानना (To Know the Willingness of Client)- परामर्श प्रक्रिया में यह माना जाता है कि परामर्श प्राप्तकर्ता परामर्श प्रक्रिया में भाग लेने के लिए इच्छुक है। एक सफल परामर्श सेवा के लिए यह आवश्यक है कि परामर्श प्राप्तकर्ता इस प्रक्रिया में पूर्णतया भाग ले एवं पूर्ण सहयोग करे।
(2) परामर्शदाता अनुभवी एवं योग्य व्यक्ति होता है ( Counsellor is an Experienced and Able Person) – परामर्श प्रक्रिया को प्रभावपूर्ण एवं सफल बनाने के लिए यह आवश्यक है कि परामर्शदाता योग्य एवं अनुभवी व्यक्ति हो। उसमें परामर्श प्राप्तकर्ता के सरलतापूर्वक मधुर सम्बन्ध बनाने एवं उसके उद्देश्यों को पूरा करने में सहायता करने की योग्यता हो।
(3) अनुकूल वातावरण (Appropriate Environment)- परामर्श की सफलता हेतु अनुकूल एवं उचित वातावरण जिसमें गोपनीयता के प्रति परामर्श प्राप्तकर्ता आश्वस्त हो, आवश्यक है।
(4) आवश्यकता पूर्ति में सक्षम (Able to Fulfil Needs) – परामर्श सेवा के द्वारा परामर्श प्राप्तकर्ता की तात्कालिक (Immediate) और दीर्घकालीन (Longtime ) आवश्यकताएँ पूरी होनी चाहिए। साथ ही जब परामर्श प्राप्तकर्ता को किसी विशिष्ट सहायता की आवश्यकता हो उस समय उसे परामर्शदाता द्वारा परामर्श उपलब्ध होना चाहिए।
इनके अतिरिक्त जी.डब्लू आलपोर्ट (G. W. Allport) ने निम्न दो मूलभूत अवधारणाओं का वर्णन किया है-
(1) व्यवहार सीखा जाता है और उसमें सुधार सम्भव है (Behaviour is Learned and can be Improved) – व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन किया जा सकता है। व्यक्ति को नई परिस्थितियों एवं परिवर्तनों के योग्य बनाना जिससे कि वह उचित ढंग से समायोजित हो सके, यह कार्य परामर्श द्वारा किया जा सकता है।
(2) परामर्श सीखने की परिस्थिति है (Counselling is a Learning Situation)-व्यक्ति / विद्यार्थी को स्वयं की सहायता करने में सहायता देने, वातावरण, परिस्थिति एवं स्वयं को समझने में सहायता करने जिससे जीवन में समायोजन की नई विधियाँ सीख सके, आदि का कार्य परामर्श करता है। परामर्श का आधुनिक उपागम (Modern Approach) विधियों (Methods) पर आधारित न होकर परामर्शदाता के दृष्टिकोणों (Attitudes) पर केन्द्रित है। इसके अनुसार परामर्शदाता का दृष्टिकार अधिकारवादी (Authoritation) न होकर लोकतांत्रिक (Democratic) होना चाहिए।
परामर्श के क्षेत्र (Scope of Counselling)
परामर्श का सम्बन्ध व्यक्ति के जीवन के सभी पक्षों से है। परामर्श सेवाएं व्यक्ति समूह तथा युग्मों (Couple) को दी जाती हैं। परामर्श लोगों के लिए एक तात्कालिक चिकित्सा केन्द्र की तरह होता है जहाँ लोगों को सुझाव दिए जाते हैं। किसी समस्या का प्रभावी निराकरण करने के लिए परामर्श प्रक्रिया को महत्त्व दिया जाना चाहिए। अतः परामर्श के महत्त्व को ध्यान में रखते हुए उसके क्षेत्रों का वर्णन निम्नलिखित प्रकार से है-
(1) मनोवैज्ञानिक परामर्श (Psychological Counselling) – आर. डब्ल्यू, व्हाइट ने सर्वप्रथम मनोवैज्ञानिक परामर्श शब्द की उत्पत्ति की। इसमें परामर्शदाता एक चिकित्सक की भाँति समस्या के निराकरण का सुझाव देते हैं। इसमें सामान्य बातचीत के द्वारा परामर्शदाता प्रार्थी की दबी हुई इच्छाओं, भावनाओं, संवेगों को अभिव्यक्त करने में सहायता प्रदान करता है। इस परामर्श का उपयोग व्यावसायिक स्तर भी होता है। मानसिक विकारों को दूर करने के लिए मनोचिकित्सकों द्वारा परामर्श दिया जाता है।
(2) व्यक्तिगत परामर्श (Individual Counselling) – व्यक्तिगत परामर्श का क्षेत्र बहुत विकसित है। इसमें हर उम्र के लोगों को परामर्श दिया जा सकता है तथा उनकी समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। व्यक्तिगत परामर्श का क्षेत्र निम्न प्रकार से है।
(i) किशोरावस्था के परिवर्तनों से होने वाली चिन्ताओं, किशोर तथा माता-पिता के अन्तर्सम्बन्ध, साथियों के साथ व्यवहार में आने वाली समस्याओं का निराकरण करने में व्यक्तिगत परामर्श सहयोगी होता है।
(ii) व्यक्तिगत समस्याओं के कारण लोगों में चिन्ता तथा क्रोध का भाव बढ़ जाता है। जिसका प्रभाव व्यक्ति के व्यवहार पर पड़ता है। अतः ऐसी स्थिति में क्रोध पर नियन्त्रण करने के लिए व्यक्तिगत परामर्श की मदद ली जा सकती है।
(iii) बच्चों को विद्यालय तथा परिवार के परिवेश में समायोजन करने में कठिनाई होती है अतः बच्चों के व्यक्तिगत परामर्श के द्वारा उन्हें अनुकूल बनाया जाता है। जिससे वे भी अपने अनुभव को साझा करते हैं।
(iv) विषाद, कुण्ठा से ग्रसित व्यक्ति को भी परामर्श द्वारा सामान्य स्थिति में लाया जा सकता है। अतः व्यक्तिगत परामर्श मनोवैज्ञानिक रूप से भी वैध है।
(v) पारिवारिक मुद्दों को सुलझाने में व्यक्तिगत परामर्श की भूमिका अहम होती है। व्यक्तिगत परामर्श घर के बड़े-बुजुर्ग भी कर सकते हैं इसके लिए किसी विशेषज्ञ की आवश्यकता नहीं होती हैं।
(vi) लिंग पहचान तथा लिंग भामिका को समझाने के लिए परामर्श की आवश्यकता होती है। प्रायः लोग सेक्स या उससे सम्बन्धित समस्या को बताने में संकोच करते हैं अतः व्यक्तिगत परामर्श ऐसे लोगो की मदद करता है।
(vii) अन्तर्सम्बन्धों में गतिशीलता बनाए रखने के लिए परामर्श की आवश्यकता होती है। किसी व्यक्ति के सम्बन्धों में मतभेद होने पर उन्हें आपसी बातचीत व परामर्श के द्वारा सुधारा जा सकता है।
(viii) अविवाहित, तलाकशुदा, विधवा लोगों की व्यक्तिगत समस्याओं को कम करने तथा उनको सुखी जीवन व्यतीत करने में व्यक्तिगत परामर्श सहयोग करता है।
(ix) कार्यस्थल पर होने वाली समस्याओं जैसे कार्य का भार, समयावधि में कार्य पूरा करने का दबाव, सहकर्मियों के साथ सम्बन्ध आदि के साथ समायोजन करने में परामर्श सहायता करता है।
(x) युवा अवस्था में कार्यशक्ति तथा उत्साह बहुत अधिक होता है अतः इस शक्ति को सही दिशा में ले जाने के लिए परामर्श की आवश्यकता होती है।
(3) वैवाहिक तथा पूर्व-वैवाहिक परामर्श (Marital and Pre-Marital Counselling)— वैवाहिक तथा पूर्व-वैवाहिक परामर्श का क्षेत्र निम्न प्रकार से है-
(i) वैवाहिक सम्बन्धों को मजबूत तथा स्पष्ट रखने के लिए परामर्श की जरूरत होती है जिससे सम्बन्धों में गतिशीलता बनी रहती है।
(ii) वैवाहिक जीवन के लिए व्यक्ति को परामर्श की मदद लेनी पड़ती है। यह परामर्श परिवार के सदस्य भी दे सकते हैं।
(iii) वैवाहिक जीवन में सामन्जस्य बनाए रखने के लिए दम्पति को एक दूसरे से परामर्श विचार करना चाहिए। इससे आपसी सम्बन्धों में मृदुता बनी रहती है।
(iv) विवाह के उपरान्त सन्तान उत्पत्ति के लिए कुछ व्यक्तिगत समस्याएँ होती हैं जिनका जिक्र व्यक्ति सामान्यतौर पर नहीं कर पाता है। अतः व्यक्तिगत परामर्श इन परिस्थितियों में सहयोगी होता है।
(v) परिवार नियोजन तथा आर्थिक प्रबन्धन के लिए भी व्यक्तिगत परामर्श की मदद ली जाती है।
(vi) विवाह से पूर्व जीवन साथी चयन करने में होने वाली समस्या को भी परामर्श द्वारा समाप्त किया जा सकता है।
(vii) विवाह को लेकर लडके व लडकियों के मन में जो भी चिन्ता होती है उनको वे परामर्श द्वारा दूर कर सकते हैं।
(viii) विवाह से पूर्व होने वाले वर-वधू एक-दूसरे को अच्छी तरह से समझ लें ताकि इनके भावी जीवन में कोई मतभेद न हो इसके लिए वे व्यक्तिगत परामर्श का प्रयोग कर सकते हैं।
(4) पारिवारिक परामर्श (Family Counselling) – इस प्रकार के परामर्श का उपयोग सामान्यतः पारिवारिक कलह या विवाद को समाप्त करने के लिए किया जाता है। परिवार में रहने वाले सदस्यों का अपना-अपना व्यवहार होता है। अतः प्रत्येक सदस्य को अन्तर्वैयक्तिक सम्बन्धों को सुधारने के लिए परामर्श की आवश्यकता होती है। परिवार के बड़े-बुजुर्ग अपने अनुभवो के आधार पर समस्याओं का समाधान करते हैं तथा खुशहाली लाते हैं। परिवार एक इकाई की तरह होती है जिसमें प्रत्येक सदस्य का अपना महत्त्व होता है। इन सबको एक साथ रखने के लिए परामर्श की आवश्यकता होती है।
परामर्श की आवश्यकता (Need of Counselling)
परामर्श का अस्तित्व मानव सभ्यता के विकास के समय से ही है। प्राचीन काल से ही परामर्श किसी न किसी रूप में मानव समाज में उपस्थित रहा है। समय, परिस्थिति एवं समस्या की प्रकति के आधार पर इसका स्वरूप बदलता रहा है।
व्यक्ति को किसी न किसी रूप में किसी न किसी से परामर्श, चाहे वह औपचारिक रूप से समाज में परामर्श की उपस्थिति उसकी आवश्यकता को दर्शाती है। वर्तमान समय में प्रत्येक हो या अनौपचारिक रूप से आवश्यक होता है।
वर्तमान में परामर्श की आवश्यकता को निम्न बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-
(1) समस्या के निदान हेतु (For Diagnosis of the Problem) – परामर्श प्रक्रिया में परामर्शदाता अपने प्रश्न कौशल से सर्वप्रथम समस्या उत्पन्न होने के कारणों को जानने का प्रयास करता है।
(2) समस्या समाधान में सहायता हेतु (For Assistance in Solving the Problem) – परामर्श प्रक्रिया में परामर्शदाता समस्या के कारणों को जान कर परामर्श प्राप्तकर्ता को उसकी समस्या को हल करने में उसकी सहायता करता है। इसलिए समस्या समाधान हेतु परामर्श आवश्यक होता है।
(3) समस्या समाधान की योग्यता विकसित करने हेतु (For Developing Ability to Solve the Problem) – परामर्श का उद्देश्य परामर्श प्राप्तकर्ता के अन्दर स्वयं समस्या समाधान की योग्यता विकसित करना है। उत्तम परामर्श वही माना जाता है। जिसके फलस्वरूप व्यक्ति स्वयं समस्या का समाधान कर सके। इसलिए परामर्श सेवा की आवश्यकता होती है।
(4) व्यक्तियों / विद्यार्थियों की व्यक्तिगत समस्याओं के समाधान हेतु (For Solving the Personal Problems of Persons / Students) – परामर्श सेवा किसी भी व्यक्ति या विद्यार्थी की व्यक्तिगत समस्याओं को दूर करने में सहायक होती है। जीवन भर व्यक्ति को किसी न किसी प्रकार की व्यक्तिगत समस्याओं से दो-चार होना पड़ता है। विद्यार्थी को भी अपने विद्यार्थी जीवन में अनेक व्यक्तिगत समस्याएँ चाहे वह पारिवारिक स्तर पर हो या सामाजिक स्तर पर ही जूझना पड़ता है। इस प्रकार की व्यक्तिगत समस्याओं को हल करने में परामर्श सहायक होता है।
(5) व्यक्तियों / विद्यार्थियों की व्यावसायिक समस्याओं के समाधान हेतु (For Solving the Vocational Problems of Persons/Students) – जीवन व्यतीत करने के लिए धनार्जन अनिवार्य होता है और धनार्जन के लिए व्यक्ति को सम्पादित करना पड़ता है। नौकरी हो या व्यवसाय या खेती-बाड़ी या अन्य कोई कार्य। किस व्यक्ति/छात्र के लिए कौन सा कार्य उपयुक्त होगा, किसमें वह बेहतर कुछ तरीके से कार्य कर सकता है, किस कार्य में उसकी रुचि है और किस कार्य के वह कार्य योग्य है? आदि से सम्बन्धित समस्याओं के समाधान हेतु परामर्श सेवा अति आवश्यक है। इन सभी समस्याओं का समाधान परामर्श की सहायता से सम्भव है।
(6) विद्यार्थियों की शैक्षिक समस्याओं के समाधान हेतु (For Solving the Educational Problems of Students) – विद्यार्थियों के समक्ष कभी-कभी अनेक शैक्षिक समस्याएँ उठ खड़ी होती हैं जैसे- वह किस संस्था में प्रवेश ले? किस पाठ्यक्रम में प्रवेश ले? प्रवेश से सम्बन्धित प्रक्रिया क्या है? कौन सा पाठ्यक्रम उसके लिए उपयुक्त होगा? इस प्रकार की सभी शैक्षिक समस्याओं के समाधान में परामर्श सहायक होता है तथा आवश्यक भी होता है।
(7) समायोजन सम्बन्धी समस्याओं के समाधान हेतु (For Solving the Problems Related to Adjustment ) – जब कोई बालक घर के वातावरण से बाहर विद्यालयी वातावरण में प्रवेश करता है या नए विद्यालय में प्रवेश लेता है या कोई व्यक्ति नए स्थान पर जाता है तो इस परिस्थिति में कभी-कभी विद्यार्थी या व्यक्ति को नए विद्यालय / नए वातावरण / नए स्थान में समायोजित होने में समस्या महसूस होती है। परामर्श की सहायता से विद्यार्थी / व्यक्ति की इन समस्याओं का समाधान सम्भव होता है। इसलिए इन शैक्षिक समस्याओं के समाधान हेतु परामर्श आवश्यक होता है।
(8) व्यक्तित्व विकास हेतु (For Personality Development) – एक विद्यार्थी / व्यक्ति का विकास उसके व्यक्तित्व के सन्तुलन पर निर्भर करता है। एक सन्तुलित एवं विकसित व्यक्तित्व वाला व्यक्ति / विद्यार्थी प्रत्येक दिशा में विकास करेगा एवं सफल होगा। इसलिए सन्तुलित व्यक्तित्व का विकास करना आवश्यक होता है। सन्तुलित व्यक्तित्व के विकास में आने वाली समस्याओं का निराकरण परामर्श द्वारा सम्भव होता है। अतः परामर्श व्यक्तित्व विकास में आने वाली समस्याओं के समाधान हेतु आवश्यक होता है।
(9) बीमारियों के निदान एवं उपचार हेतु (For Diagnosis and Treatment of Diseases) – व्यक्ति के बीमार होने पर उसे चिकित्सक के यहाँ जाना पड़ता है। चिकित्सक व्यक्ति की बीमारी के कारणों को ज्ञात करता हैं फिर उसके उपचार हेतु परामर्श देता है। इस प्रकार चिकित्सक (Doctor) परामर्श के द्वारा बीमार व्यक्ति को उपचार प्रदान करता है। इसलिए परामर्श बीमारियों के निदान एवं उपचार हेतु आवश्यक होता है।
(10) मानसिक रोगियों के उपचार हेतु (For Treatment of Mental Patients)- मानसिक रोगियों के उपचार हेतु परामर्श एक उपयोगी प्रविधि है। साक्षात्कार एवं निरीक्षण द्वारा मनोचिकित्सक पहले बीमारी के कारणों को जानने का प्रयास करता है। इसके बाद परामर्श सेवा प्रदान कर उस मनोरोगी के उपचार की व्यवस्था करता है।
परामर्श के लक्ष्य/उद्देश्य (Aims / Objectives of Counselling)
प्राप्तकर्ता की रुचि, आवश्यकता एवं वातावरण को ध्यान में रखते हुए उद्देश्यों का परामर्श प्रक्रिया का सबसे महत्त्वपूर्ण अंग उद्देश्यों का निर्धारण करना है। परामर्श निर्धारण किया जाता है। परामर्श मनोवैज्ञानिकों ने परामर्श को मनोचिकित्सा (Psychotherapy) का समानार्थी या पर्यायवाची माना है और इस बात को ध्यान में रखते हुए ही उददेश्य निर्धारित किए जाते हैं। राबर्ट डब्ल्यू. व्हाइट ने इसे निम्न शब्दों में अभिव्यक्त किया है, “जब कोई व्यक्ति मनोचिकित्सक के रूप में कार्य करता है, उसका उददेश्य अभीष्ट प्रभाव डालने या सहमति प्राप्त न होकर मात्र अच्छे स्वास्थ्य की स्थिति को पुनः स्थापित करना होता है। एक मनोचिकित्सक को न कुछ बेचना होता है और न ही कुछ प्रस्तावित करना।”
According to Robert W. White, “When a person acts in the capacity of the therapist, his goal is not to dominate and persuade, but simply to restore a state of good health. A therapist has nothing to sell and nothing to prescribe.”
सेवार्थी/प्रार्थी केन्द्रित परामर्श (Client-Centred Counselling) की प्रकृति के विषय में विचार करते हुए ए.एन. ब्वाय और जी.जे. पाइन ने परामर्शदाता द्वारा विशेष रूप से माध्यमिक स्तर के विद्यालय के विद्यार्थियों को “अधिक परिपक्व एवं स्वयं क्रियाशील बनने सकारात्मक एवं रचनात्मक तरीके से आगे बढ़ने, अपने साधनों एवं क्षमताओं के उपयोग द्वारा सामाजीकरण की ओर बढ़ने में सहायता देने” के उद्देश्य पर ध्यान केन्द्रित करने को कहा है। इस प्रकार छात्र को अपनी योग्यता एवं क्षमता का पता लगाने तथा उनका उसके सामाजिक विकास में उपयोग करना परामर्श का उद्देश्य है ।
According to A.N. Boy and G.J. Pine, “To help the student become more mature and more self-actuated, to help student more forward in a positive and constructive way, to help the student to grow towards socialisation by utilising his own resources and potential.”
ब्वाय और पाइन ने सामान्य नैदानिक परामर्श के विषय में विचार करते हुए जिन उद्देश्यों को ध्यान में रखने का संकेत दिया है वे हैं- “प्रार्थी को अधिक अच्छा करने में सहायता देना अर्थात प्रार्थी को अपने महत्त्व को स्वीकार करने, वास्तविक स्व एवं आदर्श ‘स्व’ के मध्य अन्तर समाप्त करने में सहायता देने तथा व्यक्तियों को अपनी वैयक्तिक समस्याओं के समाधान में और अधिक स्पष्टता से विचार करने में सहायता देना।”
According to A.N. Boy and G.J. Pine, “To help the counsellee ‘feel better’, i.e.. to help the counsellee accept himself to diminish the disparity between real self and ideal self, and to help persons think more clearly in solving their own personal problems.”
उपरोक्त कथन से स्पष्ट है कि परामर्शदाता या मनोचिकित्सक का कार्य केवल प्रार्थी (Counselee/Client) के मानसिक स्वास्थ्य को सामान्य बनाना होता है। अपना कोई दृ ष्टिकोण या आग्रह प्रार्थी पर थोपना या आरोपित करना परामर्शदाता का उद्देश्य नहीं होता है। परामर्श का उद्देश्य परामर्श प्राप्तकर्ता में आत्मबोध जागृत करना है। इस प्रकार परामर्श का उद्देश्य प्रार्थी / परामर्श प्राप्तकर्ता / सेवार्थी को स्वयं कार्य करने तथा अधिकतम परिपक्व तरीके से विचार-विमर्श करने में सहायता करना है।
इसके अतिरिक्त उसकी स्वयं की क्षमताओं, योग्यताओं एवं सम्भावनाओं की स्वयं के सामाजिक विकास में उपयोग करना भी परामर्श का महत्त्वपूर्ण उद्देश्य होता है। इस प्रकार परामर्श का उददेश्य विद्यार्थी को अधिक परिपक्व बनाने में उसकी सहायता करना, उसे स्वयं सक्रिय बनने एवं स्वयं का यथोचित विश्लेषण एवं मूल्यांकन करने की योग्यता विकसित करने में सहायता करना है।
अमेरिकन मनोवैज्ञानिक संघ ने परामर्श के उद्देश्यों जो कि कुल तीन हैं, को निम्न शब्दा में अभिव्यक्त किया है-
(1) प्रार्थी / सेवार्थी / परामर्श प्राप्तकर्ता द्वारा स्वयं की क्षमताओं, अभिप्रेरकों एवं आत्मदृष्टि- कोणों को यथार्थ रूप में स्वीकार करना।
(2) प्रार्थी / सेवार्थी / परामर्श प्राप्तकर्ता द्वारा सामाजिक, आर्थिक और व्यावसायिक वातावरण के साथ तर्कयुक्त समायोजन की स्थापना।
(3) वैयक्तिक विभिन्नता (Individual Difference) की समाज द्वारा स्वीकार्यता तथा समुदाय, रोजगार व वैवाहिक सम्बन्धों के क्षेत्र में उनका निहितार्थ ।
उपरोक्त वर्णित उद्देश्यों का यदि हम विश्लेषण करें तो इस आधार पर परामर्श के तीन मुख्य उद्देश्य माने जा सकते हैं। वे तीन उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
(1) आत्मज्ञान (Knowledge of Self).
(2) आत्म स्वीकृति (Self Acceptance) एवं
(3) सामाजिक समरसता (Social Harmony)।
(1) आत्मज्ञान (Knowledge of Self)- परामर्श का प्रथम एवं महत्त्वपूर्ण उद्देश्य व्यक्ति/ प्रार्थी / परामर्श प्राप्तकर्ता / सेवार्थी को स्वयं के मूल्यांकन में सहायता प्रदान करना है व्यक्ति को स्वयं के विषय में जानने, अपनी शक्ति, क्षमता, योग्यता एवं सम्भावनाओं को पहचानने में परामर्श की आवश्यकता पड़ती है। किसी व्यक्ति के लिए परामर्श एक ज्योति की भाँति कार्य करता है, जिसके प्रकाश में व्यक्ति को अपने आंतरिक स्वरूप एवं वाह्य स्वरूप को पहचानने में सहायता मिलती है। इस कार्य के लिए (आत्मज्ञान एवं स्व मूल्यांकन के लिए) परामर्श की अनेक विधियों का प्रयोग किया जाता है। उदाहरण स्वरूप- साक्षात्कार परामर्श, सेवार्थी केन्द्रित परामर्श, अनिदेशात्मक परामर्श आदि। परामर्श प्रक्रिया की सफलता का आंकलन इस बात से किया जाता है कि प्रार्थी / सेवार्थी / परामर्श प्राप्तकर्ता को उसके आत्मज्ञान से परिचित कराने में कहाँ तक सहायता प्राप्त हुई। संक्षेप में कहा जा सकता है कि परामर्श की प्रक्रिया व्यक्ति को आत्मज्ञान के साथ-साथ उसे अपनी सहायता स्वयं करने के योग्य बनाती है, अर्थात् परामर्श व्यक्ति के अन्दर विभिन्न प्रकार की समस्याएँ सुलझाने में अन्तर्दृष्टि विकसित करता है, जिससे वह योग्यतानुसार अपनी क्षमता द्वारा समस्याओं का निराकरण करने में सक्षम बन सके। इस प्रकार प्रार्थी / व्यक्ति / सेवार्थी को आत्मज्ञान, स्वमूल्यांकन एवं स्वयं समस्याएँ सुलझाने हेतु अन्तर्दृष्टि विकसित करने में सहायता देना परामर्श का प्रथम एवं महत्त्वपूर्ण उद्देश्य है।
(2) आत्म-स्वीकृति (Self- Acceptance) – परामर्श का दूसरा महत्त्वपूर्ण उद्देश्य आत्म स्वीकृति में व्यक्ति को सहायता प्रदान करना है। आत्म स्वीकृति से तात्पर्य व्यक्ति द्वारा स्वयं के व्यक्तित्व को वह जैसा भी है उसी रूप में, स्वीकार करना है। अनेक बार ऐसा होता है कि व्यक्ति अपने बारे में एक उचित दृष्टिकोण नहीं बना पाते। अपने बारे में दूसरे जैसा दृष्टिकोण रखते हैं या धारणा बनाए हुए होते हैं, वह व्यक्ति उसी रूप में अपने को मान लेता है। लेकिन जहाँ व्यक्ति का दूसरों द्वारा स्वीकृत रूप होता है वहीं उसे अपने स्वरूप को यथार्थ रूप में स्वीकार करना होता है। उदाहरण के लिए- यदि कोई व्यक्ति बाह्य रूप से सुन्दर नही है तो दूसरे लोग उसके बारे में यह धारणा बना लेते हैं कि वह व्यक्ति कुरूप है अर्थात् उसे एक कुरूप व्यक्ति के रूप में स्वीकार करते हैं और वह व्यक्ति भी दूसरों की इस स्वीकृत धारणा को स्वीकार कर लेता है कि वह कुरूप है, जबकि उस व्यक्ति का अन्तर्मन बहुत सुन्दर है। इसी प्रकार बाह्य रूप से (सुन्दर दिखने वाले व्यक्ति को सभी सुन्दर व्यक्ति के रूप में उसे स्वीकृत करते हैं और वह व्यक्ति भी यही स्वीकार करता है जबकि आचार-विचार और व्यवहार में वह अच्छा व्यक्ति नहीं होता है। यहाँ परामर्श सेवा प्रदान करने वाले व्यक्ति को यह समझाना चाहिए कि वास्तविक सुन्दरता शरीर की नहीं हृदय की होती है और हृदय स्वयं के वास्वतिक मूल्यांकन के रूप में अपने यथार्थ स्वरूप को ही स्वीकृति देनी की सुन्दरता के आधार पर ही अपने व्यक्तित्व को वह स्वीकार करे। इस प्रकार व्यक्ति चाहिए। इस कार्य हेतु परामर्श सहायक सिद्ध होता है। यदि व्यक्ति अपने वास्तविक स्वरूप को पहचान लेता है तो उसे अपने जीवन के उददेश्यों का निर्धारण करने में आसानी होती है तथा उसे वह सफलतापूर्वक प्राप्त कर सकता है। और साथ ही उसके विकास का पथ प्रशस्त होता है।
(3) सामाजिक समरसता (Social Harmony) – परामर्श का एक अहम् उद्देश्य व्यक्ति को अपने वातावरण से समायोजन के योग्य बनाना होता है जिससे कि वह सामाजिक समरसता स्थापित कर सके । व्यक्ति यदि अपने समाज एवं सामाजिक वातावरण से उचित समायोजन स्थापित नहीं कर पाता तो अनेक समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं। सामाजिक जीवन एवं सामाजिक व्यवहार को समझने तथा समाज-सम्मत व्यवहार व कार्य करने के लिए व्यक्ति को अपने व्यक्तिगत संकुचित स्वार्थ की सीमा रेखा से बाहर निकलना पड़ता है।
मुक्त किसी भी व्यक्ति के लिए ऐसा करना तभी सम्भव हो सकता है जब वह दया, क्षमा, सहिष्णुता, उदारता, विनम्रता, मित्रता करने की योग्यता आदि जैसे गुणों से परिपूर्ण हों। परामर्श के द्वारा व्यक्ति की संकीर्ण विचारधारा एवं पूर्वाग्रहों से किया जाता है। साथ ही उसको अपने समाज, सामाजिक जीवन एवं सामाजिक वातावरण के साथ समायोजन स्थापित करने में सहायता मिलती है। इस प्रकार सामाजिक समायोजन में व्यक्ति की सहायता करना परामर्श का एक अति महत्त्वपूर्ण उद्देश्य है ।
छात्रों के लिए परामर्श के उद्देश्य (Objectives of Counselling for Students)
डंसमूर (Dunsmoor) एवं मिलर (Miller) महोदय ने छात्र परामर्श के सम्बन्ध मे आठ उद्देश्य बताए हैं। इनके अनुसार छात्र- परामर्श के सामान्य उद्देश्य छात्रों को आत्मनिर्भर बनाने में सहायता करना है। इनके द्वारा बताए गए आठ उद्देश्य निम्न हैं-
(1) छात्रों को उनकी सफलता के महत्त्व से सम्बन्धित विषयों की जानकारी देना।
(2) छात्र के विषय में वे सूचनाएँ प्राप्त करना जिनकी सहायता से उसकी समस्याओं का समाधान हो सके।
(3) शिक्षक एवं छात्र के मध्य पारस्परिक अवबोध / समझ की भावना विकसित करना।
(4) छात्र को अपनी समस्याओं का समाधान निकालने की योजना बनाने में सहायता करना।
(5) छात्र को अपनी रुचियों, योग्यताओं एवं अवसरों को समझकर अपने को और बेहतर तरीके से जानने में सहायता करना।
(6) विशिष्ट योग्यताओं एवं सकारात्मक / उचित दृष्टिकोणों को प्रोत्साहित एवं विकसित करना।
(7) शैक्षिक प्रगति हेतु उपयुक्त प्रयास करने की प्रेरणा देना।
(8) छात्रों को शैक्षिक एवं व्यावसायिक चयन की योजना बनाने में सहायता देना।
उपरोक्त वर्णित छात्र परामर्श के उद्देश्य कुछ सीमा तक सामान्य परामर्श का आधार भी बन सकते हैं। परामर्श की प्रक्रिया जिन उद्देश्यों को लेकर चलती है उनको पूरा करना तभी सम्भव है जब प्रक्रिया के अन्य अंग अर्थात् प्रार्थी / परामर्श प्राप्तकर्ता एवं परामर्श प्रदाता के सम्बन्ध भली प्रकार से निर्धारित हों। इसलिए प्रार्थी एवं परामर्शदाता के सम्बन्धों की जानकारी आवश्यक होती है।
परामर्श के कार्य (Functions of Counselling)
परामर्श व्यक्ति/विद्यार्थी के जीवन निर्माण की दिशा में एक मार्गदर्शक क्रिया है। परामर्श द्वारा व्यक्ति के जीवन में उत्पन्न अवरोधों / बाधाओं / समस्याओं को दूर कर उसके जीवन पथ को प्रशस्त करने का प्रयास किया जाता है। परामर्श का प्रथम प्रयास समस्याग्रस्त व्यक्ति में स्वयं समस्या समाधान की योग्यता का विकास करना है।
परामर्श के सामान्य कार्यों (विशेषकर शिक्षा के क्षेत्र में) के विषय मे क्लेरेन्स जी. डंसमर (Clarance G. Dunsmoor) और लियोनार्ड एम. मिलर (Leonard M. Miller) ने कुछ संकेत दिए हैं जो निम्नलिखित हैं-
(1) परीक्षा में बेहतर परिणाम एवं सफलता के लिए विद्यार्थियों को आवश्यक सूचनाएँ एवं परामर्श प्रदान करना।
(2) विद्यार्थियों को उनकी समस्याओं के समाधान हेतु आवश्यक सूचनाएँ प्रदान करना।
(3) शिक्षकों एवं विद्यार्थियों के मध्य आपसी संवाद एवं समझदारी स्थापित करना।
(4) विद्यार्थियों को निर्धारित कार्य योजना सफल बनाने में सहायता प्रदान करना।
(5) विद्यार्थियों में उचित मनोवृत्ति (Right Attitude) एवं विशेष योग्यताओं को विकसित करना।
(6) विद्यार्थियों की रुचियों, अभिरुचियों, योग्यताओं एवं क्षमताओं को विकसित करने में सहायता प्रदान करना।
(7) विद्यार्थियों को उपयुक्त शैक्षिक एवं व्यावसायिक नियोजन करने में सहायता प्रदान करना।
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