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परीक्षण किसे कहते हैं? Parikshan Kise Kehte Hain
परीक्षा व्यक्ति के व्यावहारिक अध्ययन का साधन है जो उसे समझने में सहायता प्रदान करता है। परीक्षण के अन्तर्गत व्यक्ति की मानसिक प्रक्रिया का मूल्यांकन किया जाता है। विभिन्न विद्वानों ने परीक्षण की विभिन्न परिभाषाएँ दी हैं। वहाँ कुछ परिभाषाएँ प्रस्तुत की जा रही हैं-
(1) क्रोनवैक- “एक परीक्षण दो अथवा अधिक व्यक्तियों के व्यवहार का तुलनात्मक अध्ययन करने की व्यवस्थित प्रक्रिया है।”
(2) मन- “परीक्षण वह परीक्षा है जो किसी समूह से सम्बन्धित व्यक्ति की बुद्धि, व्यक्तित्व, अभिक्षमता एवं उपलब्धि को व्यक्त करती है ।”
(3) फ्रीमैन- “परीक्षण वह मानकीकृत यन्त्र है जो कि समस्त व्यक्तित्व के एक पक्ष अथवा अधिक वस्तुओं का मापन शाब्दिक अथवा अशाब्दिक अनुक्रियाओं अथवा अन्य किसी प्रकार के व्यवहार के माध्यम से करता है ।”
बालक की उपलब्धियों अथवा ज्ञानार्जन की मात्रा को जानकर ही हम उसके हेतु भविष्य में शिक्षा का रूप निर्धारित करते हैं। इसके लिए परीक्षाओं का आश्रय लेना पड़ता है। यही कारण है कि परीक्षा शिक्षा प्रक्रिया का महत्त्वपूर्ण अंग बन चुकी है। अत्यन्त प्राचीनकाल से ही परीक्षा का कार्य किसी-न-किसी रूप में होता रहा है। भारत में अति प्राचीन युग में मौखिक परीक्षाओं का प्रचलन था उसके बाद निबन्धात्मक परीक्षा प्रणाली का प्रचलन हुआ जो आज भी विद्यमान है। निबन्धात्मक परीक्षा प्रणाली के दोषों के निवारण के लिए वस्तुनिष्ठ परीक्षणों का प्रचलन हुआ।
परीक्षण के उद्देश्य या उपयोग (Aims or Uses of Tests)
परीक्षण के प्रमुख उद्देश्य या उपयोग निम्न प्रकार हैं-
(1) वर्गीकरण एवं चयन (Classification and Selection)- परीक्षण के आधार पर व्यक्तियों का वर्गीकरण सम्भव है। विभिन्न व्यवसयों, सेवाओं एवं शैक्षिक संस्थाओं में उपयुक्त व्यक्तियों का चयन करने में परीक्षणों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसके अतिरिक्त किसी विशेष कार्य में कौन-सा व्यक्ति उपयुक्त श्रेणी में होगा तथा वह उसमें कैसी सफलता प्राप्त करेगा, इसका अध्ययन भी परीक्षण का कार्य होता है।
(2) निदान (Diagnosis)- परीक्षणों के द्वारा समस्याओं तथा कमजोरियों का निदान भी सम्भव है। शिक्षा के क्षेत्र में सीखने की विभिन्न कठिनाइयों का पता लगाकर उनका निदान परीक्षणों की सहायता से किया जाता है। इसके अतिरिक्त कठिनाइयों की रोकथाम एवं उनके निराकरण दोनों में ही परीक्षण अत्यधिक सहायक सिद्ध होते हैं।
(3) मार्ग निर्देशन (Guidance)- परीक्षण व्यावसायिक एवं शैक्षिक क्षेत्रों में व्यक्ति का मार्ग निर्देशन करते हैं। परीक्षणों के माध्यम से शिक्षित भी अपनी शिक्षण-विधियों में आवश्यक परिवर्तन कर सुधार ला सकता है।
(4) तुलना करना (Comparison) – विभिन्न व्यक्तियों एवं विभिन्न समूहों की तुलना करने में परीक्षण का विशेष स्थान है। सांख्यिकीय गणना के आधार पर यह तुलना की जाती है।
(5) पूर्व कथन (Prediction)- पूर्व कथन का अर्थ है कि व्यक्ति की वर्तमान व भविष्य की क्षमताओं और योग्यताओं के आधार पर भविष्य के विषय में विचार प्रकट करना। विभिन्न परीक्षणों के माध्यम से व्यक्ति की बुद्धि, योग्यताओं, अभिक्षमताओं, रुचियों एवं व्यक्तित्व गुणों के सम्बन्ध में कहा जा सकता है। पूर्व कथन में उपलब्धि परीक्षणों, अभिक्षमता परीक्षणों एवं बुद्धि परीक्षणों का विशेष महत्त्व है।
(6) शोध (Research)- मनोवैज्ञानिक एवं शैक्षिक शोधों में परीक्षण एक साधन यन्त्र एवं उपकरण का कार्य करता है। परीक्षण के द्वारा अध्ययन के लिए आँकड़े एकत्रित किये जाते हैं। इसके आधार पर शोधकर्त्ता प्रयोगात्मक एवं नियंत्रित समूह का विभाजन करता है, अध्यापक विद्यार्थियों को विभिन्न समूहों में विभक्त कर सकता है, उनकी रुचि एवं अभिरुचि के सम्बन्ध में बता सकता है जिनका शोधों में महत्त्व है ।
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