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अक्षर-विन्यास की अशुद्धियों के निराकरण | Removal of Errors and Letters-Placing in Hindi

अक्षर-विन्यास की अशुद्धियों के निराकरण
अक्षर-विन्यास की अशुद्धियों के निराकरण

अक्षर-विन्यास की अशुद्धियों के निराकरण (Removal of Errors and Letters-Placing)

अक्षर-विन्यास या वर्तनी सम्बन्धी अशुद्धियों के निराकरण के लिए बालक और अध्यापक-दोनों को प्रयत्न करना होगा। इस सम्बन्ध में जो साधन अपनाए जा सकते हैं, वे नीचे दिए जा रहे हैं-

1. स्वयं संशोधन विधि – इस विधि द्वारा यह प्रयास किया जाता है कि विद्यार्थी स्वयं अपनी अशुद्धियों को जान जाए। इस दिशा में यह उपाय काम में लाए जाते हैं-

(क) कोश का उपयोग करके,

(ख) शुद्ध शब्द-सूची देखकर,

(ग) अशुद्धियों का स्वतः निरीक्षण करके।

2. शुद्ध उच्चारण का अभ्यास- विद्यार्थियों की कई अशुद्धियाँ इस कारण भी होती हैं कि वह शब्दों का शुद्ध उच्चारण नहीं करते। अध्यापक को बालक के शुद्ध उच्चारण की ओर विशेष ध्यान देना होगा, विशेष रूप से संयुक्त वर्णों का उच्चारण शुद्ध करने के लिए अध्यापक को यह बताना होगा कि कौन-सा वर्ण मुख के किस भाग से उच्चरित किया जाता है।

3. सुलेख के अभ्यास द्वारा – सुलेख अभ्यास कराने से भी छात्रों की वर्तनी सम्बन्धी त्रुटियों का परिमार्जन हो जाता है और छात्रों का समय भी बच जाता है।

4. व्याकरण के नियमों को ज्ञान कराके- व्याकरण के ज्ञान के अभाव में ही वर्तन सम्बन्धी अशुद्धियाँ अधिक होती हैं। अतएव यह आवश्यक कि बालकों के व्याकरण सम्बन्धी ज्ञान को पुष्ट किया जाए। इस सम्बन्ध में व्याकरण निम्नलिखित नियमों का ज्ञान सहायक सिद्ध होगा-

(क) बहुवचन बनाने का नियम सिखाना,

(ख) क्रिया सम्बन्धी नियमों का ज्ञान कराना,

(ग) कारकों की जानकारी देना,

(घ) संयोजक अव्यय के बारे में बताना,

(ङ) ‘र’ का प्रयोग सिखाना

(च) वर्णों को संयुक्त करने का ज्ञान देना

(छ) उपसर्ग और प्रत्यय का ज्ञान कराना ।

5. शारीरिक दोषों का उपचार- जिन बालकों की वाणी अथवा श्रवणेन्द्रिय में किसी प्रकार का दोष हो, उसका उपचार वाणी- विशेषज्ञों, मनोवैज्ञानिकों अथवा चिकित्सकों द्वारा जल्दी से जल्दी करवा देना चाहिए।

6. अध्यापक द्वारा संशोधन- अध्यापक को नियमित रूप से विद्यार्थियों द्वारा किये गये कार्य का संशोधन करना चाहिए और अक्षर-विन्यास ( वर्तनी) सम्बन्धी अशुद्धियों की ओर उनका ध्यान आकृष्ट करते हुए शब्दों के शुद्ध स्वरूप को लिखने का अभ्यास करवाना चाहिए।

7. अक्षर-विन्यास का अभ्यास-अक्षर – विन्यास के अभ्यास का सबसे अच्छा साधन – शब्दों को बार-बार लिखवाना। जब बालक शब्दों को लिखते हैं तो उपर्युक्त बातों को क्रियान्वित करते हैं किसी शब्द को लिखते समय बालक उसका रूप भी देखता जाता है। साथ ही साथ वह मन-ही-मन में शब्दों का उच्चारण भी करता जाता है। लिखते समय उसके हाथ की माँसपेशियाँ भी सक्रिय रहती हैं। अतएव अक्षर-विन्यास सिखाने का सुलभ साधन शब्दों को लिखवाना है। बालकों को इस बात के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए कि वे लिखते समय मन-ही-मन शब्दों का उच्चारण भी करते जाएँ।

बहुत-से विद्यालयों में अक्षर-विन्यास के अभ्यास के लिए ‘श्रुतलेख’ (Dictation) का सहारा लिया जाता है। परंतु यह पद्धति अब उचित नहीं समझी जाती है। श्रुतलेख के द्वारा इस बात की जाँच तो कर सकते हैं कि विद्यार्थियों का अक्षर विन्यास कहाँ तक ठीक है, परंतु इसके द्वारा अक्षर-विन्यास सिखाया नहीं जा सकता। श्रुतलेख के द्वारा शब्दों के श्रवण का तथा अच्छी गति से लिखे का अभ्यास ही कराया जा सकता है।

अक्षर-विन्यास सिखाने का एक अन्य साधन है-वाचन के साथ इसका सम्बन्ध स्थापित करना। ऐसे प्रायः देखा गया है कि जिन बालक तथा बालिकाओं की रुचि वाचन में होती है और जो पत्र-पत्रिकाएँ आदि पढ़ते रहते हैं वे अक्षर-विन्यास सम्बन्धी अशुद्धियाँ बहुत कम करते हैं।

इनके अतिरिक्त अध्यापकों को पता होना चाहिए कि छात्रों में किस प्रकार की अक्षर- विन्यास सम्बन्धी अशुद्धियाँ पाई जाती हैं, ताकि वे पहले से ही इस सम्बन्ध में सजग रहें।

8. खेल विधि- अक्षर विन्यास या वर्तनी सम्बन्धी अशुद्धियों को दूर करने के लिए ‘खेल विधि’ का भी सहारा लिया जा सकता है। इस सम्बन्ध में कुछ खेलों का वर्णन नीचे की पंक्तियों में किया जा रहा है-

(i) अक्षर-विन्यास प्रतियोगिता- पहले कक्षा को दो समूहों में विभाजित कर लिया जाए । फिर पूछे गये शब्दों की वर्तनी, बारी-बारी से दोनों समूह बताएँ। जिस समूह की कम अशुद्धियाँ होंगी, वह विजयी समझा जायेगा। अन्त में वे बालक शब्द के शुद्ध स्वरूप को पाँच-पाँच बार लिखेंगे, जिन्होंने अक्षर-विन्यास सम्बन्धी अशुद्धियाँ की हैं।

(ii) श्यामपट्ट पर एक शब्द लिख दिया जाए। बालक उसे कुछ क्षण देखें। फिर उसे शब्द को ढाँप दिया जाए और बालकों को वर्तनी बताने के लिए कहा जाए।

(iii) किसी शब्द को लेकर उसके अक्षरों को उलट-फेर करके एक श्यामपट्ट पर लिख दिया जाए। फिर बालकों द्वारा शुद्ध शब्द की खोज कराई जाए; जैसे- ‘लबाक’ का शुद्ध शब्द ‘बालक’ होगा।

(iv) बालकों से शब्दों की अन्त्याक्षरी कराई जाए ।

(v) शब्दों में से किसी अक्षर को हटा दिया जाए। फिर बालकों को रिक्त स्थान की पूर्ति के लिए कहा जाए; जैसे- (i) क… ल, (ii)…लवा, (iii) पुस्त……..|

(vi) शब्द अक्षरों के परिवर्तन से नये-नये शब्द के बनाने का अभ्यास कराया जाए-‘कमला’ से ‘कलम’।

इसके लिए बालकों को शब्द कोष का प्रयोग करने के लिए प्रोत्साहित करते रहना चाहिए । इससे जहाँ भी उन्हें किसी शब्द के सम्बन्ध में संदेह होगा, वे उसका निवारण बड़ी सरलता कर सकेंगे और अक्षर – विन्यास सम्बन्धी अशुद्धियों से बचे रहेंगे।

9. शब्द-सूची- जिन शब्दों का बालक अशुद्ध विन्यास करता है और अध्यापक उनको शुद्ध कर देता है। ऐसे शब्दों की सूची बना लेनी चाहिए जिन्हें बालक अपनी छोटी अभ्यास-पुस्तिका में लिख लें। समय-समय पर वह इन शब्दों को देखें और उनका वाचन करें।

मूल्यांकन- पूर्वोल्लिखित पंक्तियों में उन विधियों का वर्णन है, जिनसे वर्तनी सम्बन्धी अशुद्धियों का निराकरण किया जा सकता है। अब इस बात की भी आवश्यकता है कि हम अपने कार्य का मूल्यांकन भी करें। मूल्यांकन को वैध, विश्वसनीय तथा उद्देश्यनिष्ठ बनाने के लिए यह आवश्यक है कि जिन वर्तनीगत भूलों को हमने सुधारने का प्रयास किया है, उन्हीं को अनेक रूपों में बालकों को लिखने का अवसर दिया जाए। इस प्रकार के शब्दों से युक्त गद्यांश बनाए जाकर, छात्रों से लिखवाकर उनका मूल्यांकन किया जा सकता है।

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shubham yadav

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