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सम्प्रेषण या संचार का अर्थ, परिभाषाएँ, प्रकृति या विशेषताएँ, उद्देश्य, प्रक्रिया तथा महत्त्व

सम्प्रेषण या संचार का अर्थ
सम्प्रेषण या संचार का अर्थ

सम्प्रेषण या संचार का अर्थ (Meaning of Communication)

सम्प्रेषण या संचार का अर्थ (Meaning of Communication)- संचार लैटिन शब्द ‘Communico’ से बना है जिसका आशय है आपस में बाँटना; किसी वस्तु में साझा करना। संचार को संवहन तथा सम्प्रेषण भी कहते हैं। यह दुतरफा प्रक्रिया है जिसमें अपने अनुभव की साझेदारी के लिए वक्ता को श्रोता की तथा लेखक को पाठक की आवश्यकता होती है। इसमें दोनों पक्षों को भाषा की जानकारी होना आवश्यक है। जब तक श्रोता वक्ता के बात पर ध्यान देने का इच्छुक न हो तब तक संचार या संचार की प्रक्रिया पूरी नहीं हो पाती है। संचार की बात को किसी अन्य व्यक्ति तक पहुँचाना होता है तो उसे उसी अर्थ में समझ लें जिस अर्थ में कहने वाला व्यक्ति अपनी बात कहना चाहता है।

सम्प्रेषण या संचार की परिभाषाएँ (Definitions of Communication)

सम्प्रेषण या संचार की प्रमुख परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं-

पिटर बिरल-” संचार एक ऐसी प्रक्रिया है जिसकी सहायता से व्यक्तियों या संगठनों के मध्य सूचना इस रूप में संचारित की जाती है, जिससे उसके फलस्वरूप उत्तर में प्रतिक्रिया प्राप्त हो ।”

विलियम क्यूमेन एवं चार्ल्स- “संचार दो या दो से अधिक व्यक्तियों के मध्य तथ्यों, विचारों, अभिमतों या मनोभावों का विनिमय है।”

वाई. ऐ. रिचर्डस- “यदि एक व्यक्ति अपने परिवेश से इस ढंग से पेश आये कि उससे दूसरा व्यक्ति प्रभावित हो और दूसरे व्यक्ति के मन में जो अनुभूति उत्पन्न हो, वह पहले व्यक्ति की अनुभूति के समान हो और अशंत: उस अनुभुति के कारण है, तब संचार का बोध होता है।”

कोलियर्स एनसाइक्लोपीडिया – ” एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति, एक प्राणी से दूसरे प्राणी या एक बिन्दु से दूसरे बिन्दु तक सूचना का अन्तरण ही संचार कहलाता है।”

विलियम स्कॉट – “प्रशासनिक संचार एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें संगठनात्मक लक्ष्यों को पूर्ति करने वाले, प्रति सूचना द्वारा सुनिश्चित कार्यों को प्रकाश में लाने के प्रायोजन से विचारों का संचारण एवं विशुद्ध प्रत्युत्तर सम्मिलित रहता हैं।”

रूस्तम एस डॉवर- “संचार किसी संगठन के व्यक्तियों के मध्य सार्थक रूप से एक-दूसरे को प्रभावित करने वाली एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके फलस्वरूप उनके मध्य अर्थ एक समझ को क्रियान्वित होती है।”

न्यूमैन एवं समर के अनुसार, “यह दो या दो से अधिक व्यक्तियों के मध्य तथ्य, सलाहों या भावनाओं का विनिभय होता है।”

ऑक्सफोर्ड इंग्लिश डिक्शनरी के अनुसार, “संचार से आशय विचारों एवं ज्ञान आदि के विनिमय अथवा पहुँचाने से है। ऐसा शब्दों, लेखों अथवा चिह्नों के माध्यम से किया जा सकता है।”

अमेरिकन प्रबन्धकीय ऐसोसिएशन (American Mangement Asso- ciation)— के अनुसार, “संचार से आशय किसी ऐसे व्यवहार से है जिसका परिणाम आशय का विनिमय होता है।”

विलियन जी. स्कॉट (William G. Scott) – के अनुसार, “प्रशासनिक संचार एक प्रक्रिया है जिसमें विचारों का शोषण एवं दोहराव सम्मिलित है जिसका उद्देश्य ऐसे कार्य करवाना है जिनमें कम्पनी के उद्देश्यों की प्रभावपूर्ण पूर्ति हो सके । “

चार्ल्स ई. रैडफील्ड (Charies E. Redfield) – के अनुसार, “टेलीफोन तार व रेडियो आदि ही संदेशवाहन के साधन नहीं समझे जाने चाहिए, वस्तुत: संदेशवाहन से तात्पर्य उस भावाभिव्यक्ति से है, जिसके द्वारा एक व्यक्ति का आशय दूसरा व्यक्ति समझ सके। “

लुईस ए. ऐलन (Loius A. Allen) के अनुसार, “सन्देशवाहन उन समस्त बातों का योग है जिन्हें एक व्यक्ति उस समय करता है जबकि वह किसी अन्य व्यक्ति के मस्तिष्क में कुछ समझाना चाहता यह अर्थ का पुल है इसके अन्तर्गत कहने सुनने व समझने की एक विधिवत् निरन्तर प्रक्रिया चलती रहती है।”

एम. डब्ल्यू. कमिंग (M. W. cumming) के अनुसार, “सन्देशवाहन शब्द एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को संचार करने की प्रक्रिया का विवेचन करता है (सन्देश के अन्तर्गत तथ्य, विचार, भावनायें सलाह सम्मिलित है) जिससे कि एक-दूसरे के विचारों को आपस में समझ सकें। “

उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर निष्कर्ष स्वरूप यह कहा जा सकता है कि संचार या संवहन कम से कम दो व्यक्तियों के मध्य दृष्टिकोणों अथवा सूचनाओं के विनिमय की प्रक्रिया है। यह मौखिक या लिखित हो सकता है।

संचार की प्रकृति या विशेषताएँ (Nature or Characteristics of Communication)

संचार एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को संदेश देने एवं पारस्परिक समझ उत्पन्न करने की प्रक्रिया है। इसके अन्तर्गत लक्ष्यों को प्राप्त करने के भरसक प्रयास किए जाते हैं। संचार की प्रकृति सूचनाओं एवं अन्तर्सम्बन्धों के आदान-प्रदान करने की होती है । अतएव संचार की प्रकृति को निम्नलिखित तथ्यों से समझा जा सकता है-

(1) संचार एक जन्मजात गुण है- संचार स्वाभाविक रूप से एक जन्मजात प्राकृतिक गुण है। इसके अन्तर्गत जन्म, मृत्यु आदि सभी सम्मिलित हैं। लेकिन बिना वैज्ञानिक आधार के यह पूर्ण नहीं हो सकता।

(2) संचार एक सार्वभौमिक प्रकृति है – संचार के सिद्धान्त अथवा विचारधाराएँ सार्वभौमिक प्रकृति के होते हैं। संचार की सर्वव्यापकता का सिद्धान्त सम्प्रेषण की महत्त्वपूर्ण विशेषता है।

(3) संचार एक सामाजिक प्रक्रिया है- संचार समाज के प्रत्येक व्यक्ति में समाहित है। अतएव समाज के प्रत्येक व्यक्ति की अनिवार्य आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए संचार रूपी तन्त्र की आवश्यकता होती है।

(4) संचार कला एवं विज्ञान है – संचार प्रक्रिया में सदैव दोनों तत्त्व पाए जाते हैं। कला एक ऐसा कौशल है जिसे अभ्यास द्वारा किया जा सकता है और विज्ञान किसी विषय विशेष से सम्बन्धित क्रमबद्ध ज्ञान को सैद्धान्तिक दृष्टिकोण के आधार पर अध्ययन किया जा सकता है।

(5) संचार एक मानवीय प्रक्रिया है- वास्तव में संचार एक मानवीय प्रक्रिया है क्योंकि इसके दोनों पक्ष एवं प्राप्तकर्त्ता सामाजिक प्राणी होते हैं।

(6) संचार एक सतत् प्रक्रिया है- इसमें किसी प्रकार का अवरोध उत्पन्न नहीं होता है। जिससे आवश्यक प्रतिफल प्राप्त किया जा सकता है।

(7) विचारों का आदान-प्रदान- सम्प्रेषण का आशय है कि दो या दो से अधिक बालक या व्यक्तियों के बीच विचारों का आदान-प्रदान करना है जिसे विचारों को आपस में बाँटा जा सकता है।

(8) सम्प्रेषण द्विमार्गी विनिमय है- सम्प्रेषण के लिए दो व्यक्तियों का होना जरूरी है। कोई भी व्यक्ति अकेला सम्प्रेषण नहीं कर सकता, सम्प्रेषण का अर्थ सिर्फ अपनी बात को कहना ही नहीं है। इसमें एक व्यक्ति कहता है या करता है और दूसरा व्यक्ति करता है और सुनता है। आपसी समझ तभी पैदा हो सकती है, जब कहने वाला सुनने वालों की प्रतिक्रियाओं को भी स्वयं सुने और समझे।

(9) सम्प्रेषण का उद्देश्य आपसी समझ को बढ़ाना- सम्प्रेषण का उद्देश्य दूसरे व्यक्ति के दिमाग से कही गई बात को समझ पैदा करना है। यदि दूसरा व्यक्ति सम्प्रेषित संदेश को समझ नहीं पाता है तो सम्प्रेषण अधूरा माना जाएगा। लेकिन सम्प्रेषण का अर्थ यह बिल्कुल नहीं है कि दूसरा व्यक्ति पहले व्यक्ति की बात को माने ही, उसमें विश्वास करे ही, या उस पर आचरण करे ही, इसका अर्थ तो केवल इतना ही है कि दूसरा व्यक्ति वही समझे जो समझाया जा रहा है।

सम्प्रेषण या संचार का महत्त्व (Importance of Communication)

सम्प्रेषण किसी संस्था की आंतरिक कार्यप्रणाली के लिए आवश्यक है, क्योंकि यह प्रबन्धात्मक कार्यों (Managerial Functions) को एकत्रित करता है। इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए सम्प्रेषण की आवश्यकता निम्नलिखित है-

1. किसी संस्था के लक्ष्यों को स्थापित करने और उनका प्रसार करने के लिए सम्प्रेषण की आवश्यकता है।

2. लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए योजनाएँ विकसित करने हेतु सम्प्रेषण की  आवश्यकता पड़ती है।

3. मानव तथा अन्य संसाधनों को प्रभावशाली ढंग से संगठित करने के लिए सम्प्रेषण की आवश्यकता है।

4. किसी संगठन के सदस्यों का चयन करने, उनका विकास करने तथा उनका मूल्यांकन करने के लिए सम्प्रेषण आवश्यक हैं।

5. एक ऐसे वातावरण का निर्माण करने, उसका नेतृत्व करने, उसे दिशा प्रदान करने तथा उसे अभिप्रेरित करने के लिए सम्प्रेषण आवश्यक होता है जिसमें व्यक्ति योगदान करना चाहता है।

6. कार्यरत व्यक्तियों के निष्पादन (Performance) पर नियंत्रण रखने के लिए सम्प्रेषण की आवश्यकता होती है।

7. किसी संस्था को उसके बाहरी वातावरण से सम्बन्ध करने के लिए सम्प्रेषण आवश्यक है।

सम्प्रेषण का उद्देश्य (Objectives of communication) 

प्रत्येक प्रकार के सम्प्रेषण के पीछे कोई न कोई उद्देश्य होता है। ये उद्देश्य चेतन एवं अचेतन दोनों रूपों में हो सकते हैं तथा किसी विशिष्ट आवश्यकता से जुड़े होते हैं। सम्प्रेषण के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

1. सूचना प्रदान करना, प्राप्त करना आवश्यक इसका आदान-प्रदान करना ।

2. सम्बन्धों को विकसित करना एवं बरकरार रखना।

3. दूसरों को किसी निर्धारित तरीके से सोचने विचारने पर सहमत करना अथवा किसी दूसरे द्वारा सुझाये गये ढंग से कार्य करना।

4. दूसरों पर अपने प्रभाव को स्थापित करना, उसे बरकरार रखना तथा उसमें वृद्धि करना।

5. अपने विचारों एवं कार्यों के सम्बन्ध में निर्णय करना।

6. दूसरों से स्वयं अपने और अपनी कल्पना की अभिव्यक्ति करना।

7. शब्दों एवं अनुभवों की संवेदनशीलता की अभिव्यक्ति करना।

सम्प्रेषण की प्रक्रिया (Process of Communication)

1. सन्देश या प्रेषक-कोई भी सम्प्रेषण प्रेषक से शुरू होता है जिसके पास कोई चिन्तन या विचार होता है। यह विचार ऐसे एनकोड (Encode) किया जाता है जिसका अर्थ प्रेषक और प्राप्तकर्त्ता अच्छी प्रकार समझ सके।

एनकोडिंग सन्देश को मुख्य चार बातें प्रभावित करती हैं- (i) कौशल, (ii) दृष्टिकोण (iii) ज्ञान, (iv) सामाजिक-सांस्कृतिक प्रणाली।

कौशलों में शामिल होता है- बोलना, पढ़ना, सुनना और चिन्तन कौशल। हमारे ज्ञान की सीमा भी हमारी सम्प्रेषण गतिविधि को सीमित करती है, अर्थात् हमारी सम्प्रेषण गतिविधि इस बात पर निर्भर करती है कि किसी विशिष्ट प्रकरण या विषय में हमारा ज्ञान कितना है । जिसे जानते नहीं उसका सम्प्रेषण नहीं कर सकते।

2. सन्देश (Message) – हम जब भी कुछ बोलते हैं। हमारे पास जो विचार होते हैं, सामग्री होती है, वह सन्देश होता है। हम जब कुछ लिखते हैं तो लेखन कार्य ही सन्देश होता है। इसी प्रकार जब हम पेन्टिंग बनाते हैं तो वह ही हमारा सन्देश होता है। हमारी बाजुओं की हलचल, हमारे चेहरे के हावभाव ही सन्देश कहलाते हैं।

3. माध्यम (Medium) – सन्देश को एक स्थान या व्यक्ति से दूसरे स्थान या व्यक्ति तक स्थानान्तरण किया जाता है उसे ‘माध्यम’ कहते हैं। इस माध्यम या चैनल का चयन प्रेषक ही करता है। यह माध्यम या चैनल प्रेषक और प्राप्तकर्त्ता को जोड़ती है। यह माध्यम कम्प्यूटर, टेलीफोन, टेलीग्राफ, टेलीविजन या मेमोरेन्डम द्वारा संचारित किया जा सकता है। कई सन्देश को प्रेरित करने के लिए एक से अधिक माध्यम या चैनलों का प्रयोग किया जाता है। प्रत्येक चैनल या माध्यम के अपना लाभ तथा हानियाँ होती हैं।

4. डीकोडिंग (Decoding) – सन्देश को प्राप्तकर्त्ता की ओर भेजा जाता है। इस सन्देश को इस रूप में परिवर्तित किया जाता है कि जिसे प्राप्तकर्त्ता समझ सके। इस सन्देश को डीकोडिंग कहा जाता है। एनकोडिंग प्रेषक के कौशलों, दृष्टिकोणों, ज्ञान और सामाजिक-सांस्कृतिक प्रणाली पर निर्भर करती है।

5. प्रतिपुष्टि (Feedback) – यह सम्प्रेषण का आखिरी पद है प्रतिपुष्टि हमें यह बताती है कि सन्देश के हस्तानान्तरण में हम कितने सफल हुए, इससे हमें यह भी पता चलता है कि हमने बोध कितना किया है अर्थात् सन्देश को कितना समझ पाए हैं। कोई भी सम्प्रेषण नहीं होगा, जब तक इसे समझा न जाए। यह बोध या समझ प्रेषक और प्राप्तकर्त्ता को सन्देश के लिए तैयार रहना पड़ता है।

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shubham yadav

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