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संशोधित राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1992 पर प्रकाश डालिए।
समिति की नियुक्ति – संसद द्वारा मई 1986 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति अपनाई गई थी। नीति की कारवाई योजना से संसद द्वारा अगस्त 1986 में अपनाया गया था एवं विस्तार से अनुसरण किया गया था। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 के पैरा 11.5 में नीति के विभिन्न मापदण्डों के क्रियान्वन की प्रत्येक पाँच वर्षों में पुनरीक्षण करने की परिकल्पना की गई है।
केन्द्रीय सरकार द्वारा मई 1990 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति के पुनरीक्षण हेतु आचार्य राममूर्ति की अध्यक्षता में एक समिति नियुक्त की गयी थी। समिति ने अपनी रिपोर्ट 26 दिसम्बर 1990 को प्रस्तुत की। रिपोर्ट संसद के दोनों सदनों के समक्ष 9 जनवरी 1991 में रखी गई। केन्द्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड ने 8-9 जनवरी 1991 को हुई अपनी बैठक में राममूर्ति रिपोर्ट के विचार हेतु अपनाई जाने वाली प्रक्रिया की जाँच की तथा निर्णय लिया कि सिफारिशों पर विचार करने के लिए अध्यक्ष मानव संसाधन विकास मन्त्री द्वारा केन्द्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड समिति गठित की जाए।
उपर्युक्त निर्णय के अनुसार में 31 जुलाई 1991 को केन्द्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड के अध्यक्ष ने राममूर्ति समिति की रिपोर्ट को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय शिक्षा नीति के विभिन्न मानदण्डों के क्रियान्वन तथा जब से नीति तैयार की गई है तब से अन्य संगत विकास के पुनरीक्षण और राष्ट्रीय शिक्षा नीति में किए गए परिवर्तनों के सम्बन्ध में सिफारिशें करने के लिए एक समिति नियुक्त की। इस समिति के अध्यक्ष श्री एन० जनार्दन रेड्डी मुख्यमंत्री व शिक्षा मन्त्री, आन्ध्र प्रदेश थे।
जर्नादन रेड्डी समिति – 1992 के सुझाव
जर्नादन रेड्डी समिति ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1996 और राममूर्ति समीक्षा समिति 1990 में संशोधन की दृष्टि से जो मुख्य सुझाव दिए, वे निम्नलिखित हैं-
खण्ड तीन – राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली
संशोधन सम्पूर्ण भारतवर्ष में +2 स्तर को स्कूल शिक्षा के अंग के रूप में स्वीकार करने का संकल्प जोड़ा गया।
खण्ड चार- समानता के लिए शिक्षा
संशोधन
1. समग्र साक्षरता अभियान पर अधिक जोर दिया गया।
2. राष्ट्रीय साक्षरता मिशन को निर्धनता निवारण, राष्ट्रीय एकता, पर्यावरण संरक्षण, लघु परिवार, नारी समानता को प्रोत्साहन, प्राथमिक शिक्षा के सार्वजनिकरण और प्राथमिक स्वास्थ्य, परिचर्या से जोड़ने की बात कही गयी।
3. व्यवसाय तथा स्वरोजगार केन्द्रित तथा आवश्यकता व रूचि पर आधारित व्यवसायिक व कौशल प्रशिक्षण पर अधिक जोर दिया गया।
4. नव साक्षरों के लिए साक्षरता के उपरान्त सतत् शिक्षा के कार्यक्रम उपलब्ध कराये जायें।
खण्ड पाँच – विभिन्न स्तरों पर शैक्षिक पुर्नगठ्न संशोधन
1. आपरेशन ब्लैकबोर्ड को अधिक व्यापक बनाया जायेगा। जहाँ 1986 की नीति में दो कमरे और दो अध्यापक की बात कही गयी थी वहाँ इस संशोधन में कहा गया कि विद्यालय में तीन कमरे और तीन अध्यापक की व्यवस्था की जायेगी।
2. भविष्य में नियुक्ति होने वाले 50 प्रतिशत महिलाएं होगी।
3. आपरेशन ब्लैकबोर्ड को उच्च प्राथमिक स्तर पर विस्तृत किया जायेगा।
4. किसी तरह से शिक्षा से वंचित कामकाजी बच्चों तथा लड़कियों के लिए अनौपचारिक शिक्षा के कार्यक्रम को सुदृढ़ और विस्तृत किया जायेगा।
5. 21वीं सदी के प्रवेश के पहले 14 वर्ष तक की आयु के बालकों के लिए निःशुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा उपलब्ध कराने का आन्दोलन चलाया जायेगा।
6. माध्यमिक शिक्षा में लड़कियों, अनुसूचित जाति व जनजाति के बच्चों के नामांकन विशेषकर विज्ञान, वाणिज्य और व्यवसायिक धाराओं पर जोर दिया जायेगा।
7. अधिक से अधिक विद्यालयों में कम्प्यूटर शिक्षा सुलभ करायी जायेगी। 8. प्राचीन भाषाओं तथा संस्कृति के शिक्षण तथा अनुसंधान को प्रोत्साहित किया जायेगा।
9. मुक्त शिक्षा प्रणाली को सुदृढ़ किया जायेगा।
10. मूल्यांकन में सुधार लाने के लिए राष्ट्रीय मूल्यांकन संगठन का निर्माण किया जायेगा।
खण्ड छः तकनीकी तथा प्रबन्ध संशोधन
अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद् को सुदृढ़ किया जायेगा तथा यह विकेन्द्रीकृत ढंग से राज्य सरकारों व उच्च गुणवत्ता वाली तकनीकी संस्थाओं की अधिक सहभागिता करेगी।
खण्ड आठ शिक्षा के पाठ्यक्रम तथा प्रक्रिया का अभिनवीकरण
संशोधन – 1. जनसंख्या शिक्षा को जनसंख्या नियंत्रण की राष्ट्रीय व्यूह रचना के एक महत्वपूर्ण अंग के रूप में देखा जायेगा। इसे सभी स्तरों पर चेतना के विकास के लिए लागू किया जायेगा।
2. परीक्षा संस्थाओं के दिशा निर्देशों के रूप में राष्ट्रीय परीक्षा सुधार प्रारूप तैयार किया जायेगा।
खण्ड दस- शिक्षा का प्रबन्ध
संशोधन- 1. प्रशासनिक प्राधिकरण की तर्ज पर शैक्षिक प्राधिकरण की स्थापना राष्ट्रीय तथा राज्य स्तर पर की जायेगी।
2. नौवी पंचवर्षीय योजना के दौरान तथा उसके बाद शिक्षा पर व्यय राष्ट्रीय आय के 6 प्रतिशत से अधिक होने को सुनिश्चित किया जायेगा।
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