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व्यावसायिक निर्देशन का अर्थ, परिभाषा, उद्देश्य, कार्य तथा आवश्यकता

व्यावसायिक निर्देशन का अर्थ
व्यावसायिक निर्देशन का अर्थ

व्यावसायिक निर्देशन (VOCATIONAL GUIDANCE)

इस विश्व में प्रत्येक व्यक्ति को जीवन जीने के लिए अपनी आवश्यकताएँ पूरी करना अनिवार्य है। ऐसा न कर पाने की स्थिति में उसका अस्तित्व समाप्त हो सकता है। व्यक्ति की इन आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु धन आवश्यक होता है। धनार्जन के लिए किसी व्यवसाय या रोजगार की आवश्यकता होती है। शिक्षा प्राप्त कर लेने के बाद समाज में अपने अस्तित्व स्थापना हेतु व्यक्ति के लिए यह आवश्यक होता है कि वह अपने जीविकोपार्जन का साधन चुने। जीविकोपार्जन के साधन के रूप में कोई रोजगार या व्यवसाय हो सकता है। बहुधा देखा गया है कि बहुत से लोग अपने परम्परागत व्यवसाय को ही अपनाते हैं लेकिन प्रत्येक व्यक्ति अपने परम्परागत व्यवसाय में सफल हो यह आवश्यक नहीं है। ऐसा इसलिए होता है। क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति की योग्यता, क्षमता एवं रुचि भिन्न होती है।

कुछ व्यक्ति परम्परागत व्यवसाय को छोड़ नवीन व्यवसाय अपनाते हैं और उच्च स्तर की सफलता को प्राप्त करते हैं। कौन सा व्यवसाय / रोजगार किसके लिए उपयुक्त है? यह जानने के लिए यह आवश्यक है कि उस व्यक्ति विशेष में निहित क्षमता, योग्यता एवं रुचि के विषय में सम्पूर्ण जानकारी रखी जाए जिसको व्यवसाय / रोजगार के सम्बन्ध में सहायता प्रदान करनी है। व्यवसाय / रोजगार चयन के क्षेत्र में दी गयी निर्देश सेवा/सहायता/सलाह ही व्यावसायिक निर्देशन है। व्यावसायिक निर्देशन का उदय अनौपचारिक रूप से बहुत प्राचीन समय से मान सकते हैं। निर्देशन सेवा का प्रारम्भ व्यावसायिक निर्देशन से ही हुआ। व्यावसायिक निर्देशन, निर्देशन सेवा का एक अति प्रकार है जो प्रत्येक व्यक्ति के लिए अति आवश्यक है।

व्यावसायिक निर्देशन का अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and Definitions of Vocational Guidance)

निर्देशन के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण कार्य करने वाले विद्वान फ्रैंक पार्सन्स (Frank Parsans) ने सर्वप्रथम ‘व्यावसायिक निर्देशन’ शब्द का प्रयोग 01 मई 1908 ई. में अपनी एक संक्षिप्त रिपोर्ट में किया लेकिन पार्सन्स महोदय ने व्यावसायिक निर्देशन की कोई उल्लेखनीय परिभाषा नहीं दी। सर्वप्रथम व्यवस्थित रूप से व्यावसायिक निर्देशन की परिभाषा “नेशनल वोकेशनल गाइडेन्स एसोसिएसन (National Vocational Guidance Association)” ने अपनी एक रिपोर्ट में सन् 1937 में दी। इनके अनुसार, “व्यावसायिक निर्देशन किसी व्यक्ति को एक व्यवसाय को चुनने, उसके लिए आवश्यक तैयारी करने, उसमें नियुक्ति पाने एवं वहाँ प्रगति करने के लिए सूचना, अनुभव तथा सुझाव देने में सहायता की एक प्रक्रिया है।”

According to National Vocational Guidance Association, 1937, “Vocational Guidance is the process of assisting the individual to choose an occupation, prepare for it. It concerned primarily with helping individuals make decisions and choices necessary in planning future and building a career decisions and choices necessary in effecting satisfactory vocational adjustment.”

व्यावसायिक निर्देशन का आशय यह लिया जा सकता है कि कार्य विशेष के लिए उचित व्यक्ति का चयन या व्यक्ति विशेष के लिए उचित कार्य / व्यवसाय का चयन ही व्यावसायिक निर्देशन हैं किन्तु यह एक आर्दश स्थिति है। व्यवहार में ऐसा नहीं होता है।

सन् 1937 ई. में संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) के एक संगठन “राष्ट्रीय व्यावसायिक निर्देशन संघ (National Vocational Guidance Association)” ने व्यावसायिक निर्देशन को परिभाषित करने का प्रयास किया। इस संघ के प्रतिवेदन के अनुसार, “व्यावसायिक निर्देशन व्यक्ति को किसी व्यवसाय के चुनाव करने, उसके लिए तैयारी करने, उसमें प्रवेश पाने में सहायता करने वाली प्रक्रिया है। मुख्य रूप से इसका सम्बन्ध भविष्य की योजनाएँ बनाने एवं जीवनचर्या के निर्माण हेतु किए जाने वाले निर्णयों एवं विकल्प के चुनावों में व्यक्ति को सहायता प्रदान करने से है। ये निर्णय एवं चयन सन्तोषजनक व्यावसायिक सामन्जस्य के लिए आवश्यक हैं।”

According to Report of the Committee of the National Vocational Guidance Association, “Vocational Guidance is the process of assisting the individual to choose an occupation, prepare for it, enter upon and progress in it. It is concerned primarily with helping individuals make decisions and choices involved in planning a future and building a career decisions and choices necessary in effecting satisfactory vocational adjustment.”

अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO – 1949) व्यावसायिक निर्देशन के अर्थ को स्पष्ट करते हुए निम्न शब्दों में इसे परिभाषित किया, “व्यावसायिक निर्देशन किसी व्यक्ति को उसकी व्यक्तिगत विशेषताओं और व्यावसायिक अवसरों के अनुसार व्यावसायिक चयनों एवं प्रगति से सम्बन्धित समस्याओं के समाधान में सहायता प्रदान करना है।”

According to the General Conference I.L.O. (1949), “Vocational Guidance is the assistance given to an individual in solving problems related to occupational choice and progress with due regard for the individual characteristics and their relation to occupational opportunities.”

निर्देशन के क्षेत्र में अपना योगदान देने वाले सुपर महोदय ने व्यावसायिक निर्देशन की परिभाषा इन शब्दों में दी है, “व्यावसायिक निर्देशन व्यक्ति विशेष को सहायता प्रदान करने वाली प्रक्रिया है जिससे व्यक्ति अपने व्यवसाय में समायोजित हो सके, मानवीय शक्ति का प्रभावोत्पादक ढंग से उपयोग कर सके एवं समाज के आर्थिक विकास के लिए सुविधाएं प्रदान कर सकें। “

According to Super, “Vocational Guidance is the process of helping the individual so that he may adjust in the occupation, and may make effective use of human power and to provide facilities for economic development of the society.”

व्यावसायिक निर्देशन व्यवस्थित एवं अव्यवस्थित दोनों प्रकार से हो सकता है। सोद्देश्य निर्देशन जो विद्यालय या अन्य संस्थाओं द्वारा दिए जाते हैं, व्यवस्थित निर्देशन कहलाता हैं। इसके विपरीत अनायास ही अनजाने में हमारे मित्रों, शुभचिन्तकों, संरक्षकों, रिश्तेदारों आदि से जो निर्देशन प्राप्त हो जाते हैं, अव्यवस्थित निर्देशन कहलाता है। व्यावसायिक निर्देशन चाहे व्यवस्थित हो, या अव्यवस्थित इसका प्रमुख उद्देश्य मानव शक्तियों को संकलित एवं संरक्षित करना है। इसी दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए मायर्स महोदय ने व्यावसायिक निर्देशन की परिभाषा निम्न प्रकार से दी है, “व्यावसायिक निर्देशन मूलरूप से युवाओं की अमूल्य जन्मजात शक्तियों / प्रतिभाओं एवं विद्यालयों में प्रदत्त महंगे प्रशिक्षण को सुरक्षित रखने का प्रयास है। व्यक्ति को आत्मसन्तोष तथा समाज की सफलता की दृष्टि से इन संसाधनों के नियोग एवं उपयोग में सहायता करके व्यावसायिक निर्देशन इन संसाधनों को सुरक्षित रखने का प्रयास करता है।”

According to Myers, “Vocational Guidance is fundamentally an effort to conserve the priceless native capacities of youth and the costly training provided for youth in the schools. It seeks to conserve these richest of all human resources by aiding the individual to invest and use them, where they will bring greatest satisfaction and success to himself and is a great extent to society.”

उपरोक्त परिभाषाओं का यदि हम गम्भीरतापूर्वक विश्लेषण करें तो हमें व्यावसायिक निर्देशन की कुछ विशेषताएँ स्पष्ट होती हैं जो निम्नलिखित हैं-

(1) व्यावसायिक निर्देशन एक प्रक्रिया है तथा विभिन्न उद्देश्यों, साधनों एवं प्रविधियों आदि को समन्वित रूप से ध्यान में रखकर व्यावसायिक निर्देशन की इस प्रक्रिया को सम्पन्न किया जाता है।

(2) व्यवसाय चयन एवं व्यावसायिक समायोजन के लिए आवश्यक है कि व्यक्ति स्वयं की योग्यताओं, रुचियों, अभिरुचियों, सफलताओं एवं अभिप्रेरणाओं को समझें।

(3) कार्य से सम्बन्धित एवं कार्य में संलग्न व्यक्तियों के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त की जाए।

(4) व्यावसायिक निर्देशन हेतु आवश्यक ज्ञान, दक्षता, कौशल, योग्यता एवं तथ्यों के सम्बन्ध में सूचनाएँ एकत्र की जाएं।

संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि व्यावसायिक निर्देशन व्यक्तियों को विभिन्न व्यावसायों में समायोजित होने में सहायता करता है। व्यावसायिक निर्देशन का कार्य उचित व्यवसाय चयन में सहायता करना ही नहीं अपितु उसमें प्रवेश पाने तथा उसमें प्रगति करने में भी सहायता प्रदान करना है। जिस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति की आवश्यकताएँ भिन्न-भिन्न होती हैं और इन्हीं आवश्यकताओं के आधार पर उन व्यक्तियों का चयन किया जाता है जो उस व्यवसाय विशेष के लिए उपयुक्त हों।

व्यावसायिक निर्देशन के उद्देश्य (Objectives of Vocational Guidance)

व्यावसायिक निर्देशन का उददेश्य छात्र / व्यक्ति को व्यवसाय के चयन तथा उसके निर्वहन में सहायता प्रदान करना है। इसके उद्देश्य बिन्दुवत् इस प्रकार हैं-

(1) छात्रों / व्यक्तियों को व्यवहार सम्बन्धी सूचनाएँ प्रदान करना।

(2) विभिन्न व्यवसायों हेतु आवश्यक योग्यता, क्षमता आदि के बारे में छात्रों/व्यक्तियों को जानकारी प्रदान करना।

(3) विभिन्न व्यवसायों/कार्यों / रोजगार के साधनों को देखने के अवसर प्रदान करना।

(4) विद्यार्थियों / व्यक्तियों को व्यावसायिक प्रशिक्षण की तैयारी कराना।

(5) विद्यार्थियों / व्यक्तियों को व्यवसाय / रोजगार सम्बन्धी प्रयोगात्मक परीक्षाओं की तैयारी कराना।

(6) छात्रों / व्यक्तियों को व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान कराने वाली संस्थाओं के विषय में जानकारी प्रदान करना।

क्रो एवं क्रो (Crow and Crow) ने व्यावसायिक निर्देशन के निम्नलिखित उद्देश्य बताए हैं-

(1) उपयुक्त सूचनाएँ प्रदान करना (To Provide Proper Information)- विद्यार्थियों / व्यक्तियों को भिन्न-भिन्न प्रकार के व्यवसायों के बारे में भिन्न-भिन्न प्रकार की सूचनाएँ प्रदान करना जिससे कि वे अपनी बुद्धि, रुचि एवं अभिरुचि का उपयोग कर अपने लिए उपयुक्त व्यवसाय का चयन कर सकें।

(2) व्यवसाय में समायोजन हेतु सहायता देना (To Assist for Adjustment in Occupation)-विद्यार्थी / व्यक्ति को उस व्यवसाय में समायोजित होने में सहायता प्रदान करना जिसमें वह समर्पित भाव से संलग्न हैं।

(3) प्रशिक्षण केन्द्रों की जानकारी देना (To Provide Information of Training Institutions) – विद्यार्थियों / व्यक्तियों को उन विभिन्न संस्थाओं के विषय में जानकारी प्रदान करना जहाँ व्यावसायिक प्रशिक्षण की व्यवस्था होती है साथ ही इन संस्थाओं में प्रवेश आदि के नियम तथा मिलने वाली सुविधाओं से भी अवगत कराना।

(4) अभिक्षमता का ज्ञान कराना (To Provide Knowledge of Capacity) छात्रों/व्यक्तियों को उनकी अभिक्षमता का ज्ञान कराने से सहायता करना साथ ही उन्हें इस तथ्य से भी अवगत कराना कि किस व्यवसाय हेतु उनमें पर्याप्त रुचि, रुझान, बुद्धि एवं अभिक्षमता है।

(5) आत्मविश्वास विकसित करना (To Develop Self-Confidence) –छात्रों/व्यक्तियों विशेष रूप से मानसिक, शारीरिक एवं आर्थिक रूप से पिछड़ों को व्यवसाय प्रारम्भ करने सम्बन्धी विचारों एवं कार्यक्रमों में विश्वास तथा उनमें आत्मविश्वास विकसित करने में सहायता करना ।

(6) अभिरुचि का विकास करना (To Develop Aptitude) – विद्यार्थियों / व्यक्तियों में, व्यवसाय विशेष जिनमें उनकी रुचि है उसके प्रति अभिरुचि उत्पन्न करना।

(7) व्यवसाय संचालन हेतु अन्तःशक्तियों का ज्ञान कराना (To Make Aware about Inner Potentialities for Business Operation) – विद्यार्थी / व्यक्ति को उसकी योग्यताओं, अभिरुचियों एवं अन्तःशक्तियों के विषय में इस ढंग की सूचना प्राप्त करने में सहायता करना जो व्यवसाय संचालन में अति आवश्यक हैं।

(8) व्यावसायिक सूचना देना (To Provide Vocational Information) – को विद्यालय में एवं विद्यालय के बाहर उन व्यवसायों / कार्यों के विषय में ज्ञान प्राप्त करने में सहायता करना जिन्हें वे प्रारम्भ कर अपनी आर्थिक स्थिति सुधार सकते हैं।

(9) निर्देशन प्रदाता में विश्वास उत्पन्न करना (To Develops Faith in Guidance Provider) – छात्रों / व्यक्तियों में निर्देशन प्रदाता में विश्वास उत्पन्न करना जिससे वे उससे मिलने वाले सुझावों से व्यवसाय के वास्तविक संचालन में अधिक से अधिक लाभ प्राप्त कर सकें।

(10) उत्तरोत्तर प्रगति (Gradual Progress) – छात्र / व्यक्ति को व्यवसाय सम्बन्धी उन सूचनाओं को प्रदान करना जिनके द्वारा आगे उन्हें प्रगति करने में अधिकतम लाभ हो सके और वे उत्तरोत्तर प्रगति कर सकें।

शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर व्यावसायिक निर्देशन के कार्य (Functions of Vocational Guidance at Different Levels of Education)

व्यावसायिक निर्देशन का मुख्य उद्देश्य छात्रों को व्यवसाय चयन में सहायता करना है। इस निर्देशन का स्वरूप इस प्रकार का होता है कि छात्र / व्यक्ति अपनी रुचि, योग्यता एवं क्षमता के अनुसार व्यवसाय चयन करने में सक्षम हो जाते हैं। वे अपने भविष्य की योजनाओं का निर्धारण कर उसे मूर्त स्वरूप प्रदान कर सकते हैं। व्यावसायिक निर्देशन की प्रक्रिया उपरोक्त उद्देश्य को लेकर शिक्षा के तीनों स्तरों पर संचालित होती है। शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर व्यावसायिक निर्देशन के कार्य को हम तीन वर्गों में विभाजित कर सकते हैं-

(1) प्राथमिक स्तर पर (At Primary Level).

(2) माध्यमिक स्तर पर ( At Secondary Level) एवं

(3) उच्च स्तर पर ( At Higher Level)

प्राथमिक स्तर पर व्यावसायिक निर्देशन के कार्य (Functions of Vocational Guidance at Primary Level)

प्राथमिक स्तर पर व्यावसायिक निर्देशन सेवा बुनियाद तैयार करता है। पाठ्यक्रम के माध्यम से आधारभूत कौशलों एवं दृष्टिकोणों का विकास करना चाहिए जो कार्य में सफलता के लिए आवश्यक होते हैं। व्यावसायिक सफलता के लिए या एक निपुण कार्यकर्ता / कर्मचारी / व्यवसायी के लिए कुछ सामान्य गुणों की आवश्यकता होती है, जैसे- कार्य को स्वच्छता से करना, कार्य को व्यवस्थित ढंग से करना, एक दूसरे के साथ मिल-जुलकर कार्य करने की आदत, कार्य के प्रति निष्ठा एवं ईमानदारी, सकारात्मक दृष्टिकोण, व्यवहार कुशलता, निःस्वार्थ भाव आदि। ये सभी गुण ऐसे हैं जो सामान्यतः शिक्षा के इसी स्तर के छात्रों में विकसित किए जाते हैं। अतः व्यावसायिक निर्देशन प्राथमिक स्तर पर इन छात्रों में इन गुणों को विकसित करने का कार्य करती है।

प्राथमिक स्तर पर आठवीं कक्षा व्यावसायिक निर्देशन सेवा की दृष्टि से काफी महत्त्वपूर्ण होती है। कक्षा आठ के बाद छात्र शिक्षा के माध्यमिक स्तर में प्रवेश करता है जहाँ सामान्य विषयों के साथ उसे कुछ विशिष्ट विषयों का अध्ययन करने का अवसर मिलता है। आठवीं कक्षा में उसे व्यावसायिक निर्देशन प्रदान कर माध्यमिक स्तर के विषय से अवगत कराया जाना चाहिए। आठवीं कक्षा के स्तर पर डेल्टा कक्षाएँ (व्यावसायिक निर्देशन प्रदान करने वाली कक्षा) चलाई जाती हैं। इस कक्षा में छात्र माध्यमिक स्तर के पाठ्यक्रम में से अपने लिए उपयुक्त विषयों का चयन करते हैं। इस स्तर पर व्यावसायिक निर्देशन बिना विद्यालय के सहयोग के सम्भव नहीं होता है। इसी स्तर से बालको को उनके कार्य के प्रति उन्मुख करने का प्रयत्न करना चाहिए। यह कार्य व्यावसायिक निर्देशन द्वारा किया जा सकता है।

संक्षेप में कहा जा सकता है कि प्राथमिक स्तर पर व्यावसायिक निर्देशन निम्न कार्य करता है-

(1) छात्रों को कार्य के प्रति उन्मुख करना।

(2) डेल्टा कक्षा के माध्यम से व्यावसायिक पाठ्यक्रमों आदि के विषय में एवं अग्रिम कक्षा हेतु विषय चयन आदि जानकारी प्रदान करना।

(3) छात्रों में कुछ सामान्य गुणों, जैसे- कार्य की स्वच्छता एवं व्यवस्थित ढंग से करना मिल-जुल कर कार्य करना, कार्य के प्रति निष्ठा एवं ईमानदारी, व्यवहार कुशलता, निःस्वार्थ भाव आदि को विकसित करना।

(4) कार्य के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करना।

माध्यमिक स्तर पर व्यावसायिक निर्देशन के कार्य (Functions of Vocational Guidance at Secondary Level)

इस स्तर के विद्यार्थियों का विकास काफी स्तर तक हो चुका होता है। शारीरिक एवं मानसिक रूप से वे परिपक्व हो रहे होते हैं। किशोरावस्था में छात्र प्रवेश कर चुके होते हैं। अपने आस-पास के वातावरण में छात्र इस स्तर पर काफी सजग एवं सतर्क होते हैं। छात्रों की रुचियाँ विकसित हो चुकी होती हैं। उनकी योग्यता एवं क्षमता का अनुमान लगाया जा सकता है। छात्र रोजगार / व्यवसाय / कार्य की आवश्यकता एवं महत्त्व से परिचित हो चुके होते हैं। इसलिए शिक्षा का यह स्तर व्यावसायिक निर्देशन हेतु सर्वाधिक उपयुक्त काल माना जाता है। इस स्तर पर निर्देशन सेवा कार्यक्रम इस ढंग से संचालित / आयोजित करना चाहिए कि वह विद्यार्थियों को व्यवसाय का सही चयन करने में सहायक हो।

उच्च स्तर पर व्यावसायिक निर्देशन के कार्य (Functions of Vocational Guidance at Higher Level)

उच्च स्तर पर व्यावसायिक निर्देशन के निम्न कार्य हैं-

(1) छात्रों को अपनी क्षमता एवं सीमाओं की उचित परख करने में सहायता करना (To Assist the Students to Rightly Assess their Abilities and Limitations)- वैयक्तिक विभिन्नता एवं व्यक्तित्व की विशेषताओं के अनुसार छात्रों में उपलब्ध व्यावसायिक प्रवृत्तियों का पता लगाने एवं उन्हें अपने विषय में एक समुचित धारणा बनाने में व्यावसायिक निर्देशन सहायक हो सकता है।

(2) विद्यार्थियों को विभिन्न व्यवसायों एवं उनके लिए आवश्यक योग्यता के विषय में कैरियर परामर्शदाता द्वारा परिचित कराना (To Provide Informations about Different Occupations and their Eligibility by Career Counsellor)- देश में रोजगार / व्यवसायों की क्या स्थिति है? किस-किस व्यवसाय में रोजगार के कौन-कौन से साधन उपलब्ध हैं? किस कार्य के लिए क्या योग्यता चाहिए? आदि बातों की जानकारी व्यावसायिक निर्देशन के अन्तर्गत छात्रों को प्रदान की जाती है। माध्यमिक विद्यालयों को रोजगार विनिमय केन्द्रों, समाचार पत्र के विज्ञापनों, कारखानों एवं विभिन्न कम्पनियों के विषय में यथा सम्भव नवीन जानकारी प्राप्त करनी चाहिए जो विद्यार्थियों को व्यावसायिक निर्देशन प्रदान करने में आवश्यक होती है। इसे ही कैरियर (पेशा या जीवनवृत्ति) सम्बन्धी निर्देशन कहा जाता है। विभिन्न व्यवसायों से सम्बन्धित योग्यताओं, वेतन आदि के आधार पर इनका वर्गीकरण कर चार्ट आदि के द्वारा उससे सम्बन्धित जानकारी छात्रों को कैरियर मास्टर द्वारा प्रदान की जानी चाहिए। इसके साथ ही छात्रों की व्यवसायगत जटिलताओं की यथार्थ स्थिति छात्रों के समक्ष प्रस्तुत की जानी चाहिए जिससे छात्र उस स्थिति का सामना निर्भीक होकर कर सकें।

(3) विद्यार्थियों को सही विकल्प चुनने में सहायता देना (To Assist Students to Select Right Option)- विद्यार्थियों के लिए यह अति आवश्यक है कि वे उपलब्ध विकल्पों में से सही विकल्प अर्थात् अपने लिए उपयुक्त व्यवसाय का चयन करें। व्यवसाय के इस निश्चयीकरण की प्रक्रिया में व्यावसायिक निर्देश सहायक होता है। व्यवसाय के सही चयन में विद्यार्थियों की सहायता करना व्यावसायिक निर्देशन का कर्तव्य है।

(4) स्वयं के चयनित व्यवसाय में प्रवेश की तैयारी करने में सहायता देना (To Assist in Preparing for Entry in Occupation Selected for Self) – विशेषीकरण के इस युग में व्यवसाय या कार्य में प्रवेश से पहले उसे सुचारू ढंग से संचालित कर पाने के लिए प्रवेश पूर्व प्रशिक्षण प्राप्त किया जाता है। इस पर छात्रों को प्रशिक्षण संस्थाओं तथा सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा प्रदान किए जाने वाले अनुदान एवं अन्य सुविधाओं के विषय में जानकारी प्रदान की जाती है। यह कार्य व्यावसायिक निर्देशन के अन्तर्गत किया जाता है।

(5) विद्यार्थियों को यह निश्चित करने में सहायता देना कि वे उच्च शिक्षा में प्रवेश लें या व्यवसाय अपनाएँ (To Assist the Students to Decide whether to Take Entry in Higher Education or to Opt for Some Occupation)- माध्यमिक शिक्षा के बाद छात्रों के पास दो विकल्प होते हैं या तो वे पढ़ाई जारी रखते हुए उच्च शिक्षा में प्रवेश ले या फिर किसी व्यवसाय / कार्य / रोजगार को अपना कर जीविकोपार्जन प्रारम्भ कर लें। उनकी इस भावी योजना को तैयार करने में व्यावसायिक निर्देशन द्वारा सहायता प्रदान की जाती हैं। इस स्थिति में जिन छात्रों की मानसिक योग्यता उच्च शिक्षा के लिए उपयुक्त नहीं है उन्हें व्यवसाय / कार्य / रोजगार चयनित करने में सहायता दी जाती है जो व्यावसायिक निर्देशन के कार्य के अन्तर्गत आता है। इससे छात्रों के धन एवं समय की बर्बादी नहीं होती एवं उच्च स्तर पर प्रवेश सम्बन्धी कठिनाइयाँ भी दूर होती हैं।

व्यावसायिक निर्देशन की आवश्यकता (Need of Vocational Guidance)

निर्देशन व्यक्ति को समाज में अपने को स्थापित करने में सहायता प्रदान करता है। व्यक्ति की योग्यतानुसार यह निर्देशन उन्हें अपना कार्यक्षेत्र चुनने में सहायक होता है। अनुकूल व्यवसाय चयन करने पर ही व्यक्ति का वैयक्तिक, सामाजिक, सांस्कृतिक व आर्थिक विकास होता है साथ ही उसे आत्म सन्तुष्टि की प्राप्ति होती है।

व्यावसायिक निर्देशन की आवश्यकता को निम्न बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-

(1) व्यक्तिगत विभिन्नता (Individual Differences)- मनोवैज्ञानिक शोधों से यह स्पष्ट हो चुका है कि प्रत्येक व्यक्ति की योग्यता, क्षमता, रुचि, अभिरुचि, व्यक्ति, बौद्धिक क्षमता आदि भिन्न-भिन्न होती है इसलिए सभी व्यक्ति, सभी प्रकार के कार्य नहीं कर सकते हैं। यदि किसी व्यक्ति को उसकी रुचि एवं योग्यता का व्यवसाय या कार्य नहीं मिला है तो उसकी उपलब्धि एवं संतोष का स्तर प्रभावित होता है। व्यक्तियों / को उनकी योग्यता, क्षमता एवं रुचि के अनुसार कार्य / व्यवसाय चयन करने में व्यावसायिक निर्देशन की आवश्यकता होती है।

(2) व्यवसायों में विविधता एवं अधिकता (Variety and Overgrowth of Occupations) – वर्तमान में कार्यों/व्यवसायों में विविधता बहुत बढ़ गई है। इनकी संख्या भी बहुत अधिक हो गई है। छात्रों को शिक्षा पूरी करने के बाद किस व्यवसाय रोजगार/ कार्य में संलग्न होकर अपनी जीविका का अर्जन करना है यह उन्हें शिक्षा पूरी करने से पहले ही पता होना चाहिए। छात्रों को विद्यालय में ही विभिन्न व्यवसायों / कार्यों / रोजगारों से परिचित करा दिया जाना चाहिए जिससे वे अपने भावी व्यवसाय / कार्य / रोजगार के विषय में निर्णय ले सकें।

(3) विद्यार्थियों / व्यक्तियों के भावी जीवन में स्थिरता लाना (To Bring Stability in the Future Life of Students / Individuals) – व्यक्ति जब शिक्षा पूरी करने के बाद व्यावसायिक जीवन में प्रवेश करता है तब उसे शैक्षिक जीवन से बिल्कुल अलग एक नवीन वातावरण मिलता है। कभी-कभी किसी व्यक्ति का इस नवीन वातावरण से सटीक समायोजन स्थापित नहीं हो पाता जिसके कारण अनेक समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं। उचित समायोजन न हो पाने के कारण हो सकता है उस व्यक्ति को वह व्यवसाय ही छोड़ना पड़ जाए। इस स्थिति में उस व्यक्ति का जीवन अस्थिर हो सकता है इसलिए यह अति आवश्यक हो जाता है कि छात्रों को उनके विद्यार्थी जीवन में ही अनके भावी कार्य क्षेत्र का ज्ञान भली प्रकार प्रदान कर दिया जाए जिससे उनका भावी जीवन अस्थिर न हो इस कार्य के लिए व्यावसायिक निर्देशन की आवश्यकता पड़ती है।

(4) आर्थिक उन्नति के लिए (For Economic Progress) – मनुष्य की जीवन सम्बन्धी सभी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए धन की आवश्यकता होती है। धनोपार्जन हेतु व्यक्ति को व्यवसाय / कार्य / रोजगार करना पड़ता है। एक सुखी एवं समृद्धिपूर्ण जीवन बिताने के लिए व्यक्ति को अधिकतम धनोपार्जन करना पड़ता है। अधिकतम धनोपार्जन करने के लिए आवश्यक है कि व्यक्ति उस व्यवसाय का चयन करे जिसके लिए वह बिल्कुल सटीक है एवं जो उसके लिए सर्वोत्तम हो । यदि ऐसी स्थिति होती है तो व्यक्ति की आर्थिक उन्नति एवं समृद्धि निश्चित रहती है।

(5) व्यवसाय / कार्य / रोजगार के साधनों की उपलब्धता से परिचित कराने के लिए (For Introducing the Availablity of Occupation/Job/Sources of Employment) – भारत एक अपार जनसंख्या वाला देश है जहाँ बेरोजगारों की संख्या बहुत अधिक है। यहाँ प्रत्येक व्यक्ति / छात्र अपने भविष्य को लेकर चिन्ता में रहता है ऐसा इसलिए भी होता है क्योंकि रोजगार / व्यवसाय के उपलब्ध अनेक अवसरों के विषय में उसे जानकारी नहीं होती है। केन्द्र सरकार एवं राज्य सरकारें समय-समय पर रोजगार हेतु अनेक योजनाएँ लाती रहती हैं जिसमें सरकारी अनुदान की व्यवस्था भी रोजगार / व्यवसाय प्रारम्भ करने के लिए होती हैं। निर्देशन सेवाएँ इस कार्य के लिए महत्त्वपूर्ण हैं। व्यावसायिक निर्देशन द्वारा छात्रों / व्यक्तियों को उपलब्ध रोजगारों / व्यवसायों के विषय में जानकारी प्रदान की जा सकती है। इसके लिए व्यावसायिक निर्देशन आवश्यक है।

(6) सुखी, शान्त एवं स्वस्थ रहने के लिए (For Happy, Peaceful and Healthy Life)- यदि कोई व्यक्ति अपने मनोनुकूल व्यवसाय / रोजगार में संलग्न रहता है तो उसके जीवन में सुख एवं शान्ति बनी रहती है तथा उसका स्वास्थ्य भी ठीक रहता है किन्तु यदि कोई व्यक्ति अरुचिकर व्यवसाय या रोजगार में संलग्न होता है तो वह कुंठित रहता है, स्वभाव में चिड़चिड़ापन आ जाता है एवं उसके स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। इसलिए व्यक्ति का जीवन सुखमय, शान्तियुक्त तथा उसे स्वस्थ बनाए रखने के लिए व्यावसायिक निर्देशन की आवश्यकता पड़ती है।

(7) नियोक्ता के वित्तीय लाभ के लिए (For Financial Profit of Employer) – जब एक नियोक्ता किसी व्यक्ति को कार्य पर रखता है तो वह उसकी कुशलता के कारण रखता है। कुशल व्यक्ति के नियुक्त होने से उत्पादन में वृद्धि होती है और नियोक्ता को अधिक लाभ होता है। यदि इसी कार्य हेतु कोई अयोग्य या कम कुशल व्यक्ति नियुक्त हो जाता है तब इस स्थिति में नियोक्ता को आर्थिक क्षति होती है। व्यावसायिक निर्देशन की सहायता से उपयुक्त व्यक्ति का चयन कर इस बात को रोका जा सकता है इसलिए नियोक्ता के दृष्टिकोण से व्यावसायिक निर्देशन की आवश्यकता होती है।

(8) मानव शक्ति का सही उपयोग तथा विकास करने में (In Proper Utilisation and Development of Manpower) – हमारा देश विश्व का दूसरा सबसे बड़ी जनसंख्या वाला देश है। इस अपार जन शक्ति का सदुपयोग हो सके, इसके लिए व्यावसायिक निर्देशन की सहायता से प्रत्येक व्यक्ति को उसकी योग्यता, क्षमता, रुचि एवं अन्य प्रतिभाओं का ज्ञान करवाया जाना चाहिए। इससे देश विकास करेगा एवं देश की अपार जनशक्ति उपयुक्त ढंग से नियोजित हो सकेगी। मानव शक्ति का सही उपयोग तथा विकास हो सके इस कार्य हेतु व्यावसायिक निर्देशन की आवश्यकता होती है।

(9) बदलते परिदृश्य से समायोजन स्थापित करने हेतु (For Establishing Adjustment with Changing Scenarios) – आज समाज तेजी से परिवर्तित हो रहा है। आर्थिक, सामाजिक, व्यावसायिक सांस्कृतिक आदि प्रत्येक क्षेत्रों में तीव्र परिवर्तन देखने को मिल रहा है। व्यावसायिक दशाओं में भी बहुत परिवर्तन हो चुका है। नए परिदृश्य में व्यक्ति को समायोजित होने के लिए निर्देशन की आवश्यकता पड़ती है। नवीन व्यवसायों के विषय में जानकारी देने, पुराने व्यवसायों में नवीनता लाने तथा व्यवसायों से सम्बन्धित विभिन्न प्रशिक्षण संस्थाओं एवं प्रशिक्षण कार्यक्रमों के विषय में सूचनाएँ व्यक्तियों / छात्रों को व्यावसायिक निर्देशन के माध्यम से प्रदान करने हेतु व्यावसायिक निर्देशन अति आवश्यक है।

व्यावसायिक निर्देशन एवं शैक्षिक निर्देशन का सम्बन्ध (Relation of Vocational and Educational Guidance)

निर्देशन सेवा एक सम्पूर्ण प्रक्रिया है। सभी प्रकार की निर्देशन सेवाएँ अन्ततः एक ही उद्देश्य को लेकर आगे बढ़ती हैं। वह उद्देश्य है- छात्र / व्यक्ति के जीवन की सम्भावित सर्वागीण उन्नति एवं सफलता जो समाज को आगे बढ़ाए, उसे प्रगतिशील बनाए। इस दृष्टि से व्यावसायिक एवं शैक्षिक दोनों प्रकार के निर्देशनों में निकट सम्बन्ध है। शिक्षा का एक अति महत्त्वपूर्ण उद्देश्य है- छात्र / व्यक्ति को इस योग्य बनाना कि वह आत्म निर्भर बन सके, अपनी जीविका का अर्जन कर सके जिसके फलस्वरूप अपनी पारिवारिक एवं सामाजिक उत्तरदायित्वों का निर्वहन कर सके। कोई भी शिक्षा योजना तब तक सफल नहीं हो सकती जब तक वह व्यक्ति / छात्र के व्यावसायिक पक्ष को भी अपने अन्तर्गत न शामिल करें।

जीवन का एक महत्त्वपूर्ण पुरुषार्थ ‘अर्थ’ को माना गया है इसलिए शिक्षा धनोपार्जन की योग्यता विकसित करने को महत्त्वपूर्ण स्थान देती है। इसी प्रकार व्यावसायिक निर्देशन सेवा का आधार शैक्षिक उपलब्धि एवं सफलता है। शैक्षिक सफलता का आधार समुचित निर्देशन है। अतः व्यावसायिक निर्देशन सेवा शैक्षिक निर्देशन की उपेक्षा नहीं कर सकती।

शैक्षिक निर्देशन पर व्यावसायिक दृष्टिकोण का प्रभाव रहता है एवं बिना समुचित शैक्षिक निर्देशन के व्यावसायिक निर्देशन की प्रक्रिया पूरी नहीं हो सकती है। दोनों में जो अन्तर है वो उनके प्रयोजन के महत्त्व की दृष्टि से है। व्यावसायिक निर्देशन में व्यावसायिक दृष्टिकोण को प्रमुखता दी जाती है एवं शैक्षिक निर्देशन में शैक्षिक उपलब्धि एवं विद्यालयी जीवन में समायोजन प्रमुख उद्देश्य रहता है। शैक्षिक एवं व्यावसायिक निर्देशन दोनों में ही विषय चयन हेतु छात्रों की योग्यता, क्षमता एवं रुचि को ध्यान में रखकर सहायता दी जाती है। दोनों ही निर्देशन में छात्र की व्यक्तिगत विभिन्नता केन्द्र बिन्दु होती है। बिना उचित शैक्षिक निर्देशन के व्यावसायिक निर्देशन की प्रक्रिया सही दिशा में नहीं बढ़ सकती तथा बिना उचित व्यावसायिक निर्देशन के शैक्षिक निर्देशन अपने उद्देश्यों को प्राप्त नहीं कर सकता।

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shubham yadav

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