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स्केलिंग प्रणाली क्या है? (What is scaling system in Hindi)
स्केलिंग प्रणाली क्या है? | What is scaling system in Hindi- भिन्न-भिन्न परीक्षकों के लिए प्राप्तांकों का अभिप्राय भिन्न-भिन्न हो सकता है कुछ परीक्षकों में अधिक अंक प्रदान करने की प्रवृत्ति होती है, कुछ परीक्षकों में कम अंक प्रदान करने की प्रवृत्ति होती है तथा कुछ परीक्षकों में औसत स्तर के अंक प्रदान करने की प्रवृत्ति होती है इस प्रकार की परिस्थिति में दो परीक्षकों के द्वारा समान अंक प्रदान करने पर भी उनका अर्थ भिन्न-भिन्न हो सकता है। उदाहरण के लिए कोई परीक्षक 20 से 90 के बीच में अंक प्रदान करता है, दूसरा परीक्षक 10 से 70 के बीच अंक प्रदान करता है तथा तीसरा परीक्षक 40 से 80 के बीच अंक प्रदान करता है, तब इन तीनों परीक्षकों के द्वारा प्रदान किया गए 55 प्राप्तांक का अर्थ पृथक-पृथक होगा। 55 का प्राप्तांक पहले परीक्षक की दृष्टि में औसत छात्र की अभिव्यक्ति होगा, दूसरे परीक्षक की दृष्टि में श्रेष्ट छात्र की अभिव्यक्ति होगा तथा तीसरे परीक्षक की दृष्टि में कमजोर छात्र की अभिव्यक्ति होगा स्पष्ट कि भिन्न-भिन्न परीक्षकों के लिए अंक प्रदान करने का मापदण्ड भिन्न-भिन्न हो सकता है। ऐसी स्थिति में विभिन्न परीक्षकों के द्वारा प्रदान किए गए प्राप्तांकों आधार पर छात्रों की तुलना करना तार्किक दृष्टि से उचित नहीं होगा । आन्तरिक परीक्षा के दौरान अध्यापकों के द्वारा छात्रों को प्रदान किए अंकों की तुलना करते समय इस प्रकार की कठिनाई और भी अधिक जटिल हो जाती है क्योंकि आन्तरिक मूल्यांकन में प्राप्तांकों का प्रसार, न्यूनतम सीमा व उच्चतम सीमा में मध्यमान तथा मानक विचलन में विभिन्न अध्यापकों लिए पर्याप्त अन्तर पाया जाता है।
ग्रेड प्रणाली के से भी यह समस्या समाप्त नहीं हो जाती है, उदाहरण के लिए, यदि कोई परीक्षक 5 बिन्दु ग्रेड प्रणाली में कुछ छात्रों को ए. (A) कुछ को बी. (B) कुछ को सी. (C) तथा अत्यन्त कम छात्रों को डी. (D) व एफ. (F) देता है तो उसके लिए औसत ग्रेड बी. (B) है ना किसी (C) औसत ग्रेड है। इसी प्रकार से यदि कोई परीक्षक ग्रेड ए. (Grade A) तथा ग्रेड बी. (Grade B) को बहुत कम छात्रों को देता है तथा सी. (C), डी. (D), व एफ. (F) ग्रेडों को काफी अधिक संख्या में छात्रों को देता है तो उसके लिए औसत ग्रेड सी. (C) के स्थान पर डी. (D) होगा। स्पष्ट है कि विभिन्न ग्रेड का अभिप्राय उनकी सैद्धान्तिक परिभाषा पर पूर्णरूपेण निर्भर न होकर काफी सीमा तक परीक्षक के द्वारा अपनाये गए मानदण्ड पर भी आधारित होता है। अतः, भिन्न-भिन्न परीक्षकों के द्वारा प्रदान किए जाने वाले ग्रेड की तुलना भी सरल नहीं है। छात्रों के प्राप्तांकों अथवा ग्रेड को तुलनीय (Comparable) बनाने के लिए यह आवश्यक है कि विभिन्न परीक्षकों के द्वारा प्रदान किए गए प्राप्तांकों अथवा ग्रेड में आवश्यक सुधार किए जाएँ। दूसरे शब्दों में, कहा जा सकता है कि परीक्षकों को आत्मनिष्ठता के कारण प्राप्तांकों अथवा ग्रेडों में आई विसंगतियों को दूर करना चाहिए । परीक्षकों के द्वारा अपनाए गए मापदण्ड की विभिन्नता के कारण आई विसंगतियों को दूर करके प्राप्तांक को अथवा ग्रेड को एक ही मापदण्ड पर ले आने की प्रक्रिया को परिमापन (Scaling) अथवा संशोधन (Calibration) कहते हैं । अतः, विभिन्न परीक्षकों के द्वारा प्रदान अंकों को एक ही मापदण्ड परिवर्तित करना ही परिमापन है । कभी-कभी विभिन्न विषयों की प्रकृति के कारण छात्रों के द्वारा विभिन्न विषयों में प्राप्त अंक अथवा ग्रेड के मानदण्ड भी भिन्न-भिन्न हो जाते हैं जैसे संस्कृत विषय में अधिकतर छात्र अधिक अंक प्राप्त करते हैं जबकि अंग्रेजी विषय में कम अंक प्राप्त करते है। इस प्रकार की परिस्थितियों में विभिन्न विषयों के प्राप्तांकों को एक ही मानदण्ड पर परिवर्तित करना भी परिमापन कहलाता है । प्राप्तांकों को परिमापान (Scaling) करने की अनेक विधियाँ हैं । इसमें से दो सर्वाधिक प्रचलित विधि—रेखीय परिमापन (Linear Scaling) तथा सामान्यीकृत परिमापन (Normalised Scaling) हैं।
रेखीय परिमापन में किसी परीक्षक के द्वारा प्रदान किए गए अंकों को रेखीय समीकरण (Linear Equation) के द्वारा परिवर्तित करते हैं। इस प्रकार के परिवर्तन से प्राप्तांकों के वितरण की प्रकृति नहीं बदलती है। रेखीय स्केलिंग दो आधार पर हो सकती है—
(1) प्राप्तांकों का विस्तार (Range of Scores) को समान करने के लिए तथा (2) प्राप्तांकों के मध्यमान व मानक विचलन को समान करने के लिए प्राप्तांकों के विस्तार को समान करते समय रेखीय समीकरण की सहायता से विभिन्न परीक्षकों के द्वारा प्रदान किए गए अंकों के न्यूनतम व अधिकतम प्राप्तांक कुछ भी हो सकते हैं परन्तु साधारणतः विभिन्न परीक्षकों के द्वारा प्रदान किए गए न्यूनतम प्राप्तांक निर्धारित कर लेते हैं !
इसी प्रकार से विभिन्न परीक्षक के द्वारा प्रदान किए गए अधिकतम प्राप्तांकों के औसत को परिवर्तित प्राप्तांकों के लिए अपेक्षित अधिकतम प्राप्तांक के रूप में स्वीकार कर लेते हैं। विभिन्न परीक्षकों के द्वारा प्रदान किए गए अंकों के मध्यमापन तथा मानक विचलन को एक समान करने के लिए भी रेखीय समीकरण का प्रयोग किया जाता है। इसके लिए सबसे पहले परिवर्तित प्राप्तांकों के लिए अपेक्षित मध्यमान तथा मानक विचलन का निर्धारण इच्छानुसार कुछ भी किया जा सकता है, परन्तु साधारणतः विभिन्न परीक्षकों के द्वारा प्रदान किए गए अंकों के मध्यमानों तथा मानक विचलनों के औसत को परिवर्तित प्राप्तांकों के अपेक्षित मध्यमान तथा मानक विचलन के रूप में स्वीकार कर लेते हैं ।
रेखीय परिमापन के द्वारा प्राप्तांकों में संशोधन करने पर प्राप्तांकों के वितरण (Skewness) तथा वक्रता (Kurtosis) मूल प्राप्तांकों के वितरण के समान ही रहती है। जब प्राप्तांकों को इस प्रकार से परिवर्तित किया जाता है कि परिवर्तित प्राप्तांकों का वितरण सामान्य प्रायिकता वितरण (NPC) के अनुरूप भी हो जाता है तब इस प्रकार की स्केलिंग को सामान्यीकृत स्केलिंग के नाम से ही पुकारते हैं। सामान्यीकृत स्केलिंग में किसी परीक्षक के द्वारा प्राप्त अंकों को किसी निश्चित मध्यमान तथा मानक विचलन पर परिवर्तित करने के साथ-साथ प्राप्तांकों का वितरण सामान्य प्रायिकता वक्र (NPC) के आकार को भी ग्रहण कर लेता है। वस्तुतः प्राप्तांकों के दो वितरकों का प्रसार अथवा मध्यमान व मानक विचलन एक समान होते हुए भी उनमें पर्याप्त भिन्नता हो सकती है जैसे (30, 32, 35, 41 व 62) तथा (30, 41, 50, 55, 58 व 62) तथा (28,32, 55 व 75) के लिए मध्यमान तथा मानक विचलन एक समान विचलन के समान होने पर भी प्राप्तांकों के वितरण की तुलना तब तक तर्कसंगत नहीं हो सकती जब तक दोनों वितरण की आकृति भी समान न हो अतः, कुछ परिस्थितियों में रेखीय स्केलिंग पर्याप्त नहीं होती है तब सामान्यीकृत स्केलिंग का प्रयोग करना होता है। शिक्षाशास्त्र, मनोविज्ञान, समाजशास्त्र आदि व्यावहारिक विज्ञानों में प्रयुक्त अधिकांश चरों का वितरण सामान होता है। इस लिए इनमें स्केलिंग के द्वारा प्राप्तांकों को इस प्रकार परिवर्तित किया जाता है कि मध्यमान व मानक विचलन एक समान हो जाएँ तथा वितरण सामान्य प्रायिकता वक्र (NPC) का आकार ले ले।
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