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आदर्शवाद के अनुसार विद्यालय तथा पाठ्यक्रम की भूमिका
आदर्शवादी विद्यालय की आवश्यकता बालक के मानसिक विकास हेतु अधिक समझते हैं। उनकी राय में विद्यालय ही एक ऐसा स्थान है-
(1) जहाँ बालक अपने आध्यात्मिक तथा सांस्कृतिक विकास हेतु एक अच्छा वातावरण पाता है।
(2) जहाँ सामाजिक गुणों के विकास हेतु अच्छे अवसर मिलते हैं।
(3) जहाँ राष्ट्रीय एवं सामाजिक कल्याण से सम्बन्धित समस्याओं तथा उनके समाधान हेतु कार्य किये जाते हैं।
आदर्शवाद तथा पाठ्यक्रम (Curriculum and Idealism)
आदर्शवाद के अनुसार पाठ्यक्रम का स्वरूप निम्नलिखित प्रकार का होना चाहिये-
(1) आदर्शवाद में पाठ्यक्रम का आधार जीवन के सर्वोच्च आदर्श हैं।
(2) इसमें मानव जाति के अनुभवों को संगठित करना चाहिये।
(3) इसे सभ्यता तथा संस्कृति का प्रतीक होना चाहिये।
(4) पाठ्यक्रम में भौतिक एवं सामाजिक अनुभवों को सम्मिलित करना चाहिये।
(5) पाठ्यक्रम में आध्यात्मिक मूल्यों को स्थान मिलना चाहिये।
(6) पाठ्यक्रम में उच्च आदर्शों, अनुभवों तथा विचारों को स्थान देना चाहिये।
(7) पाठ्यक्रम में मानविकी तथा वैज्ञानिक दोनों प्रकार के विषयों का समावेश होना चाहिये। इस सम्बन्ध में जे. एस. रॉस के विचार अग्रलिखित प्रकार हैं-“मनुष्य को सच्चे तथा विशिष्ट अर्थों में मानव होने के लिये अपनी इस विरासत को ग्रहण करना चाहिये। वह सामान्य संस्कृति उसे अपने लिये पुन: प्राप्त और अर्जित करनी चाहिये और हो सके तो सामान्य भण्डार में कुछ देना चाहिये।”
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