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गिज्जू भाई के अनुसार शिक्षा का अर्थ, पाठ्यक्रम, शिक्षण विधि और अनुशासन सम्बन्धी विचार

गिज्जू भाई के अनुसार शिक्षा का अर्थ
गिज्जू भाई के अनुसार शिक्षा का अर्थ

गिज्जू भाई के अनुसार शिक्षा का क्या अर्थ है ?

गिज्जू भाई एक ऐसे महान् शिक्षाशास्त्री और विचारक थे जिन्होंने बच्चों की शिक्षा के लिए अपना सारा जीवन समर्पित कर दिया था। वे गांधी जी के समकालीन तो थे ही, उनके परम भक्त और शिष्य भी थे। गांधी जी के बेसिक शिक्षा आन्दोलन से प्रभावित हो कर ही उन्होंने शिक्षा सुधार के क्षेत्र में कदम रखा और आजीवन बच्चों की सेवा में लगे रहे। उन्होंने न केवल बच्चों की शिक्षा का उत्तरदायित्व सँभाला बल्कि उनकी शिक्षा के लिए मौलिक चिन्तन भी किका। शिक्षक प्रशिक्षण के क्षेत्र में भी उनका योगदान कभी न भुलाई जा सकने वाली एक ऐसी प्रणाली के रूप में है जो भविष्य में भी शिक्षकों का मार्गदर्शन करती रहेगी।

गिज्जू भाई का जीवन वृत्त (Life History of Gijju Bhai)

गिज्जू भाई का जन्म सौराष्ट्र के चितलगाँव में गांधी जी के जन्म के 16 वर्ष बाद 15 नवम्बर सन् 1885 ई. को हुआ था। इनका पूरा नाम गिरजा शंकर भगवान की बधका था। इनके स्नेही स्वभाव के कारण लोग इनका नाम न लेकर इन्हें गिज्जू भाई कह कर सम्बोधित करते थे। अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद जीविका का आरम्भ उन्होंने एक वकील के रूप में किया। स्वभाव से परिश्रमी तथा कर्त्तव्यनिष्ठ होने के कारण उन्होंने अपने पेशे साथ कभी लापरवाही नहीं की। वकालत भी इतनी लगन और निष्ठा से की कि अपने प्रत्येक मुकदमे का गहन अध्ययन करके ही बहस करते थे, किन्तु उनका दार्शनिक एवं शिक्षक मन उन्हें बार-बार इस व्यवसाय से विमुख होने के लिए प्रेरित कर रहा था। अन्ततः उन्होंने वकालत छोड़ दी और सन् 1916 में ‘दक्षिणामूर्ति विद्यार्थी भवन’, भावनगर के ‘विनय भवन’ नामक नागरिक शिक्षक केन्द्र में शिक्षक बन गये। शिक्षक बन कर इन्होंने ढाई से 6 वर्ष तक के बालकों की व्यावहारिक समस्याओं का गहन अध्ययन किया और उन्हें दूर करने का बीड़ा उठाया।

शिक्षा की अवधारणा (Concept of Education)

गिज्जू भाई के अनुसार, “शिक्षा जीवनव्यापी प्रक्रिया है। इस प्रवृत्ति का उद्गम हमारे भीतर से है। उद्गम का मूल है अन्तरात्मा की भूख। कोई आदमी किसी को सिखा नहीं सकता। विकास की आधारशिला है अनुभव। अनुभव स्वतन्त्र क्रिया में निहित है और स्वतन्त्र क्रिया बाहरी अविरोध में एवं भीतर के यथेच्छ, अनवरत प्रतिहत आविष्कार में निहित है। नई दृष्टि शिक्षा में इसी आविष्कार का पोषण करेगी, मार्ग के विरोधों को हटाकर व्यक्ति के समक्ष अपने जीवन के उद्देश्य को सिद्ध करने की अनुकूल स्थितियाँ जुटायेगी।”

नई और पुरानी शिक्षा व्यवस्था की तुलना करते हुए गिज्जू भाई का मानना है कि पुरानी शिक्षा प्रणाली सरल रीति से प्रसन्न करके शिक्षा देती थी, जबकि नई शिक्षा तब तक प्रतीक्षा करती है जब तक कि खुशी की उत्पत्ति स्वयं नहीं होती। पुरानी शिक्षा शिक्षण की सफलता को इन बातों से मापती है कि ज्ञान कितना मिला, जबकि नई पद्धति शिक्षण का मूल्यांकन इस रूप में करती है कि हर प्रकार के ज्ञान को ग्रहण करने की बालक की शक्ति कितनी बढ़ी।

गिज्जू भाई और पाठ्यक्रम (Gijju Bhai and Curriculum)

पाठ्यक्रम का निर्धारण गिज्जू भाई बालकों की वैयक्तिक विभिन्नताओं के आधार पर करने के समर्थक हैं। इसीलिए वे बच्चों की मानसिक आयु (Mental age) के अनुसार उनका पाठ्यक्रम निश्चित करने की बात करते हैं। उदाहरण के रूप में प्रतिभावान और मन्द बुद्धि बालकों के लिए पूरी तरह समान पाठ्यक्रम को वे उचित नहीं मानते। दोनों के सम्यक् विकास के लिए पाठ्यक्रम में इस प्रकार का अन्तर होना चाहिए, जिससे दोनों के व्यक्तित्व को सुखानुभूति के साथ विकसित किया जा सके। यह कार्य बुद्धि परीक्षण द्वारा बुद्धि लब्धि (I. Q) प्राप्त करके किया जा सकता है। जूनियर स्तर (8वीं कक्षा) के बाद पाठ्यक्रम को निम्नलिखित वर्गों में बाँटा जा सकता है

(1) साहित्यिक वर्ग, (2) विज्ञान वर्ग, (3) कला वर्ग, (4) वाणिज्य वर्ग, (5) कृषि वर्ग।

उक्त वर्गों के विभाजन का मुख्य आधार यही है कि प्रत्येक छात्र अपनी योग्यता, रुचि, क्षमता और अभियोग्यता के अनुसार अपने लिए उपयुक्त पाठ्यक्रम का चयन कर सके। गिज्जू भाई द्वारा प्रस्तावित पाठ्यक्रम में इतनी विविधता है कि छात्र अपनी इच्छाओं और आकांक्षाओं के अनुरूप गीत, संगीत, नृत्य, काव्यकला, नाटक आदि के क्षेत्र में भी समुचित अध्ययन कर सकें।

गिज्जू भाई और शिक्षण विधियाँ (Gijju Bhai and Methods of Teaching)

गिज्जू भाई बाल-शिक्षा के विशेषज्ञ थे। अतः बच्चों की शिक्षा में किन-किन विधियों का कब और कैसे प्रयोग करना है, वे अच्छी तरह जानते थे। उनके अनुसार भाषा का ज्ञान सर्वप्रथम वाचन, रेखांकन और लेखन के द्वारा दिया जाना चाहिए। भाषा शिक्षण में समूह गीत, लोकगीत, कविता आदि को भी सम्मिलित किया जाना चाहिए। भाषा के साथ ही व्याकरण की शिक्षा भी दी जानी चाहिए। व्याकरण के लिए वे खेल विधि को सर्वोत्तम मानते थे।

गणित की शिक्षा के विभिन्न उपकरणों जैसे लोहे के इन्सेट, अक्षरों व गिनती के कार्ड, छोटी-छोटी लकड़ियों के सन्दूक आदि के द्वारा प्रदान करना चाहते थे। भूगोल व इतिहास के लिए वे ग्लोब और नक्शों की सहायता लेने के पक्षधर थे। इस प्रकार रुचिकर सहायक सामग्री द्वारा वे बाल-शिक्षा की बहुत रोचक बना देना चाहते थे।

गिज्जू भाई ने बाल-शिक्षा के लिये जिन विधियों का प्रयोग किया है, उन्हें निम्न रूप में क्रमबद्ध किया जा सकता है

(1) खेल-विधि,

(2) कहानी – कथा श्रवण विधि,

(3) प्रश्न उत्तर या पहेली विधि,

(4) योजना विधि,

(5) नाटक व अभिनय,

(6) व्याख्यान एवं उपदेश,

(7) अनुभव द्वारा तथा करके सीखना,

(8) माण्टेसरी विधि,

(9) किण्डरगार्टन विधि,

(10) प्रदर्शनी एवं चलचित्र,

(11) स्वाध्याय विधि,

(12) तर्क व चिन्तन विधि,

(13) गीत-संगीत विधि,

(14) नृत्य विधि,

(15) आनन्द विधि ।

गिज्जू भाई ने उक्त विधियों का प्रयोग करने में इस बात का विशेष ध्यान रखा है कि बच्चों के स्वाभाविक एवं सहज विकास में किसी प्रकार की बाधा न आ सके तथा बच्चे आनन्दित रह कर बिना थके हुए हँसते-खेलते शिक्षा ग्रहण कर सकें।

गिज्जू भाई और अनुशासन (Gijju Bhai and Discipline)

अनुशासन के विषय में गिज्जू भाई के विचार उनके समय की परिस्थितियों को देखते हुए मौलिक कहे जा सकते हैं। जिस समय उन्होंने दक्षिणामूर्ति भवन में प्रवेश किया उस समय बालकों को पुरानी विधियों से अनुशासित रखने का प्रचलन था। गिज्जू भाई ने वहाँ अपने विचारों को कार्य रूप में परिणत करना प्रारम्भ किया। उन्होंने शिक्षण की ऐसी विधियों का प्रचलन शुरू किया जिससे छात्र प्रसन्न रहकर स्वयं अनुशासित रहते थे। बच्चों की छोटी-छोटी शरारतों, चालाकियों और गतिविधियों को वे अनुशासनहीनता के रूप में ग्रहण न करके उनकी आयुजन्य स्वाभाविक क्रियायें मानते थे। अतः अनुशासनहीनता की समस्या ही उत्पन्न नहीं होती थी। उनकी दृष्टि में बच्चों की ये क्रियायें ही उनकी कल्पनाशीलता, सृजनात्मक प्रतिभा, रुचियों तथा क्षमताओं की द्योतक होती हैं। इनका दमन न करके इनको समुचित दिशा प्रदान की जानी चाहिए जिससे बालकों के व्यक्तित्व का प्राकृतिक विकास सम्भव हो सके।

इस प्रकार गिज्जू भाई बच्चों को गांधी की भाँति प्यार करते हुए उन्हें पूरी स्वतन्त्रता दिये जाने के आधार पर ही अनुशासन स्थापित करना चाहते हैं। जिस प्रकार गांधी जी बच्चों की क्रियात्मक शक्ति का विकास करके उन्हें स्वअनुशासन के लिए प्रेरित करते थे, उसी प्रकार गिज्जू भाई भी बच्चों में आत्मानुशासन के समर्थक थे । इस प्रकार के अनुशासन को गुणात्थात्मक अनुशासन (Emancipationistic Discipline) की श्रेणी में रखा जा सकता है। उन्होंने अपने बाल मन्दिर में उसी प्रकार के अनुशासन के सम्बन्ध में अनेक प्रयोग किये और इसे सफलतापूर्वक स्थापित भी किया था।

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shubham yadav

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