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नवाचार का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition of Innovation)
‘नवाचार’ अंग्रेजी भाषा के शब्द ‘इनोवेशन’ (Innovation) का हिन्दी रूपान्तर है। ‘नवाचार’ दो पदों के संयोग से बना है-‘नव’ + ‘आचार’ । ‘नव’ शब्द नवीनता का परिचायक है तथा ‘आचार’ शब्द का अर्थ आचरण या व्यवहार अथवा परिवर्तन से है। इस प्रकार नवाचार शब्द का आशय ‘नवीन परिवर्तन’ से है। नवाचार इस प्रकार का परिवर्तन है जो पूर्व स्थापित विधियों, कार्यक्रमों, वस्तुओं और परम्पराओं में नवीनता का समावेश दृढ़ इच्छा-शक्ति से करता है। 1917 ई० में यूनेस्को सम्मेलन में नवाचार को स्पष्ट करते हुए कहा गया – नवाचार एक नूतन विचार का प्रारम्भ है। यह एक प्रक्रिया अथवा तकनीकी है जिसका विस्तृत उपयोग प्रचलित व्यवहारों एवं तकनीकी के स्थान पर किया जाता है। यह परिवर्तन के लिए परिवर्तन नहीं बल्कि इसका क्रियान्वयन और नियन्त्रण, परीक्षण एवं प्रयोगों के आधार पर किया जाता है।
प्रत्येक नवाचार 6 चरणों से होकर गुजरता है- (i) खोज अथवा शोध, (ii) परीक्षण, (iii) मूल्यांकन, (iv) विकास, (v) विस्तार अथवा फैलाव और (vi) उपयोग हेतु स्वीकार करना।
इस तरह नवाचार नूतन विचारों को खोजने की प्रवृत्ति है और इसके द्वारा लोगों में नवचेतना आती है।
विभिन्न विद्वानों ने नवाचार की परिभाषा भिन्न-भिन्न प्रकार से दी है। यहाँ कुछ परिभाषाएँ प्रस्तुत की जा रही हैं-
फेयरचाइल्ड- “कोई नई बात जो प्रचलित से भिन्न हो और परिवर्तित परिस्थितियों में उपयोग में लाई गई हो, नवाचार कहा जाता है।”
ई० एम० रोजर्स- “नवाचार एक ऐसा विचार है जिसकी प्रतीति व्यक्ति नवीन विचार के रूप में करें।”
एम० बी० माइल्स- “नवाचार समझ-बूझकर किया जाने वाला नवीन और विशिष्ट परिवर्तन है, जिसे किसी प्रणाली के उद्देश्यों को प्राप्त करने हेतु अधिक प्रभावकारी समझा जाता है।”
एच० जी० वारनेट-“नवाचार एक विचार है, व्यवहार है अथवा वस्तु है, जो नवीन है और वर्तमान स्वरूप से गुणात्मक दृष्टि से भिन्न है।”
एच० एस० भोला- “नवाचार एक प्रत्यय है, एक अभिवृत्ति है, कौशलयुक्त एक उपकरण है अथवा इनमें से दो अथवा दो से अधिक ऐसे तथ्य हैं जिन्हें व्यक्ति ने अथवा संस्कृति ने पहले व्यावहारिक रूप से न अपनाया हो ।”
शिक्षा में नवाचार की आवश्यकता एवं उद्देश्य (Needs and Objectives of Innovation in Education)
शिक्षा में नवाचार की आवश्यकता एवं उद्देश्य को निम्न प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है-
(1) शिक्षा में गुणात्मक और मात्रात्मक प्रसार के लिए- भारत में शिक्षा का गुणात्मक और मात्रात्मक प्रसार दोनों ही आवश्यक हैं। इसके हेतु शैक्षिक नवाचारों को अपनाना होगा।
(2) सामाजिक आकांक्षाओं और अपेक्षाओं की पूर्ति हेतु- हमारी सामाजिक आकांक्षाओं में निरन्तर परिवर्तन हो रहा है और हम भौतिक प्रगति के लिए चिन्तित हैं। इन आकांक्षाओं और अपेक्षाओं की पूर्ति के लिए शैक्षिक नवाचारों को अपनाना आवश्यक होगा।
(3) बढ़ती हुई जनसंख्या की शैक्षिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु- भारत में जनसंख्या विस्फोट अत्यन्त व्यापक रूप से देखा जा रहा है। इस बढ़ती हुई जनसंख्या की शैक्षिक आवश्यकताओं की पूर्ति शैक्षिक नवाचारों को अपनाकर ही की जा सकती है।
(4) प्रौद्योगिकीकरण से उत्पन्न आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु- हमें प्रौद्योगिकीकरण से उत्पन्न आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु जनशक्ति का विकास करना है इसलिए भी शैक्षिक नवाचारों को अपनाने की आवश्यकता है।
(5) वैज्ञानिक और तकनीकी ज्ञान के प्रसार हेतु- आधुनिक युग में वैज्ञानिक और तकनीकी ज्ञान सभी के लिए आवश्यक सा हो गया है। इस वैज्ञानिक और तकनीकी ज्ञान के प्रसार के हेतु शैक्षिक नवाचारों की आवश्यकता है।
(6) शिक्षित बेरोजगारों को रोजगार के अवसर सुलभ कराने हेतु- भारत में शिक्षित बेरोजगारी की समस्या भी अत्यन्त भीषण है। हजारों की संख्या में परम्परागत शिक्षा प्राप्त नवयुवक-नवयुवतियाँ बेरोजगार हैं। इन्हें रोजगार के अवसर सुलभ कराने के लिए भी शैक्षिक नवाचारों को अपनाया जाना चाहिए।
(7) शिक्षा की पाठ्यचर्या में नूतन विषय सामग्री सम्मिलित करने हेतु- आज शिक्षा की पाठ्यचर्या में नूतन विषय-सामग्री सम्मिलित करना अत्यन्त आवश्यक है। इसके लिए भी शैक्षिक नवाचारों को अपनाना होगा।
(8) मानवीय संसाधनों के विकास हेतु- भारत में मानवीय संसाधनों की कमी नहीं है परन्तु इनका विकास समुचित रूप से नहीं हो सका है। इस कार्य को पूर्ण करने के लिए भी शैक्षिक नवाचारों को अपनाना होगा।
(9) कल्याणकारी समाजवादी समाज की रचना हेतु- भारत का लक्ष्य कल्याणकारी समाजवादी समाज की स्थापना है। इस लक्ष्य की पूर्ति में शिक्षा महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकती है। शैक्षिक नवाचारों को अपनाकर हम इस दिशा में आगे बढ़ सकते हैं।
उपर्युक्त के अतिरिक्त अन्य दृष्टियों से भी शैक्षिक नवाचारों को अपनाना आवश्यक है। आज के शिक्षण प्रशिक्षण कार्यक्रमों और शिक्षण प्रविधियों में मशीनों और संचार साधनों के उपयोग के लिए शैक्षिक नवाचारों को अपनाने की आवश्यकता है। परिवर्तनशील समाज के लिए शिक्षा का स्वरूप विकसित करने के लिए भी शैक्षिक नवाचारों की आवश्यकता का अनुभव किया जा रहा है।
शैक्षिक नवाचारों का क्षेत्र (Scope of Educational Innovation)
शैक्षिक नवाचारों का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक है। शिक्षा का उद्देश्य पाठ्यचर्या, शिक्षण विधि, मूल्यांकन, शिक्षण-प्रशिक्षण, शिक्षा – प्रशासन आदि सभी शैक्षिक नवाचारों के क्षेत्र हैं। यहाँ हम इस बात का उल्लेख कर रहे हैं कि शिक्षा के विभिन्न अंगों पर नवाचारों की छाप किस प्रकार पड़ रही है-
(1) शिक्षा के उद्देश्य- देश, काल और परिस्थितियों के अनुरूप शिक्षा के उद्देश्यों में परिवर्तन हुआ है। आधुनिक युग में भारत में वैज्ञानिक ज्ञान के प्रसार, औद्योगिक विकास और आधुनिकीकरण के फलस्वरूप प्राचीन मान्यताओं, मूल्यों एवं परम्पराओं में परिवर्तन हुआ है। आधुनिक युग में भारतीय शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य आर्थिक विकास होना चाहिए। आज देश को उत्पादनोन्मुखी की आवश्यकता है। शिक्षा का उद्देश्य राष्ट्रीय एकीकरण और राष्ट्रीय चेतना को बढ़ावा देना भी है। सर्वधर्म समभाव की भावना उत्पन्न करना, अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना और लोकतान्त्रिक मूल्यों की रक्षा एवं सामाजिक विकास तथा वैज्ञानिक ज्ञान का प्रसार शिक्षा का उद्देश्य है। भारतीय शिक्षा के अन्तर्गत इन नूतन विचारों का समावेश किया गया है तथा इन उद्देश्यों को शैक्षिक नवाचार अथवा परिवर्तन की संज्ञा दी जा सकती है।
(2) पाठ्यचर्या- भारत में शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर प्रचलित परम्परागत पाठ्यवस्तु परिवर्तित सामाजिक अपेक्षाओं के अनुकूल नहीं है। आज के युग में छात्र केन्द्रित पाठ्यक्रम, जीवन की परिस्थितियों पर आधारित पाठ्यक्रम एवं एकीकृत पाठ्यक्रमों की आवश्यकता है। शैक्षिक नवाचार के द्वारा पाठ्यक्रम में नूतन, उपयोगी एवं सम्यक् विषयवस्तु समाहित करने का प्रयास किया जा रहा है। नवाचारों के फलस्वरूप शिक्षा के पाठ्यक्रम में विज्ञान, तकनीकी और प्रौद्योगिकी की विषयवस्तु पर बल दिया जा रहा है। साथ ही व्यावसायिक विषयों, पर्यावरणीय शिक्षा, जनसंख्या-शिक्षा, उपभोक्ता शिक्षा, ऊर्जा- शिक्षा और समाजोपयोगी उत्पादन कार्यों की शिक्षा आदि नवीन विषयों को शैक्षिक नवाचार के रूप में स्वीकार किया गया है।
(3) शिक्षण प्रविधियाँ- जिस तरह शिक्षा के उद्देश्यों एवं पाठ्यचर्या में नवाचारों का समावेश हुआ है उसी तरह शिक्षण प्रविधियों में भी आज परम्परागत शिक्षण प्रविधियाँ असामयिक और उबाऊ लगने लगी हैं, फलस्वरूप शिक्षण के क्षेत्र में अनेक नूतन प्रविधियाँ प्रयोग में लायी जा रही हैं। इनमें प्रमुख हैं शिक्षण तकनीकी, अनुदेशन तकनीकी और व्यवहार तकनीकी ।
शिक्षण तकनीकी शिक्षण की प्रक्रिया का वस्तुनिष्ठ विश्लेषण करते हुए इसे वैज्ञानिक आधार प्रदान करती है। अनुदेशन तकनीकी के अन्तर्गत उन सभी विधियों और प्रविधियों का प्रयोग किया जाता है जिनकी सहायता से अधिगम के उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सकता है। व्यवहार तकनीकी में विशेषकर शिक्षण व्यवहार में सुधार, परिमार्जन और परिवर्तन लाने का प्रयास किया जाता है।
उपर्युक्त प्रविधियों के साथ ही अनुरूपित शिक्षण, सूक्ष्म शिक्षण और दृश्य-श्रव्य सामग्री का प्रयोग किया जाता है। ये सभी शिक्षण प्रविधियाँ शैक्षिक नवाचार के क्षेत्र में ही आती हैं।
(4) मूल्यांकन- पूर्व प्रचलित शब्द “परीक्षा” के स्थान पर आधुनिक युग में “मूल्यांकन” शब्द का प्रयोग किया जा रहा है। यह शैक्षिक नवाचार की ही देन है। मूल्यांकन का तात्पर्य शिक्षा के उद्देश्यों, पाठ्यचर्या और शिक्षण विधियों आदि की उपयोगिता का पता लगाने तथा उसके परिणामों की जानकारी करना है। आधुनिक युग में भारत में प्रचलित परीक्षा प्रणाली में विश्वसनीयता और वैधता का अभाव है, परिणामस्वरूप परीक्षाओं में सुधार लाने के हेतु मूल्यांकन की एक विश्वसनीय और वैध प्रक्रिया विकसित करने का प्रयास किया गया है।
वास्तव में मूल्यांकन एक शैक्षिक नवाचार है। इसके अन्तर्गत नई पद्धतियों का समावेश किया गया है। उदाहरण के लिए परीक्षाओं से व्यक्तिनिष्ठ अथवा संयोग के अंश को समाप्त कर रटने की पद्धति को हतोत्साहित करना, आन्तरिक मूल्यांकन, मूल्यांकन में सेमेस्टर प्रणाली लागू करना, अंकों के स्थान पर ग्रेडिंग प्रणाली अपनाना आदि सभी शैक्षिक नवाचारों की ही देन हैं।
(5) अनुशासन- अनुशासन एवं स्वतन्त्रता भी शैक्षिक नवाचार की देन है। शिक्षा में मनोवैज्ञानिक प्रवृत्ति के विकास के फलस्वरूप दमनात्मक अनुशासन का उन्मूलन हो चुका है। आधुनिक विचारधारा के अनुसार स्वतन्त्रता एवं अनुशासन का अत्यन्त घनिष्ठ सम्बन्ध है। अनुशासनात्मक नवाचारों में मुक्त्यात्मक अनुशासन, सामाजिक अनुशासन और वैयक्तिक अनुशासन के साथ ही सृजनात्मक अनुशासन और उपचारात्मक अनुशासन पर बल दिया जा रहा है। अनुशासन के साथ ही छात्रों को पर्याप्त स्वतन्त्रता प्रदान की जा रही है। इस तरह स्वानुशासन के वातावरण का विकास करने में शैक्षिक नवाचारों की महती भूमिका है।
(6) प्रशिक्षण- शिक्षण-प्रशिक्षण के क्षेत्र में भी नवाचारों का प्रादुर्भाव हुआ है और प्रशिक्षण की नूतन प्रणालियों को अपनाया जा रहा है। पत्राचार द्वारा प्रशिक्षण, दूरस्थ शिक्षा के द्वारा प्रशिक्षण, सेवारत प्रशिक्षण आदि नवाचार शिक्षा के क्षेत्र में प्रारम्भ किये गये हैं। इसके साथ ही विद्यालयी शिक्षकों के हेतु अभिनवन एवं लघु गहन कोर्स (पाठ्यक्रम) भी प्रारम्भ किये गये हैं।
इस प्रकार स्पष्ट है कि सम्पूर्ण शिक्षा व्यवस्था ही शैक्षिक नवाचारों के क्षेत्र में आ जाती है। आधुनिक युग में शिक्षा का कोई भी अंग नवाचारों से अछूता नहीं रह गया है।
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