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नवाचार के प्रकार (Types of Innovation )
नवाचार दो प्रकार के होते हैं- 1. समस्या समाधान सम्बन्धी नवाचार एवं 2. सामाजिक अंतः क्रियात्मक नवाचार दोनों प्रकार के नवाचार इस प्रकार स्पष्ट किये जा सकते हैं
1. समस्या समाधान सम्बन्धी नवाचार- स्थापित या प्रचलित प्रणाली, विधा या तंत्र में वांछित सुधार लाने के लिए अथवा किसी समस्या के निराकरण के लिए जब किसी नवीन विधि या तकनीक का प्रयोग किया जाता है, तो ऐसे नवाचार को ‘समस्या समाधान सम्बन्धी नवाचार’ की श्रेणी में रखा जाता है।
2. सामाजिक अंतः क्रियात्मक नवाचार- सामाजिक अंतः क्रियात्मक नवाचार में ऐसे नवाचारों को सम्मिलित किया जाता है जो अंतः क्रिया (Interaction) द्वारा अद्भुत हों। उदाहरणार्थ- शिक्षा के किसी उपकरण, परिवार, समुदाय, विद्यालय द्वारा अन्य अंगों जैसे शिक्षकों और विचारकों द्वारा आपसी विचार-विमर्श या वाद-विवाद से किसी नवाचार की जानकारी के बारे में पता लगना इस श्रेणी में सम्मिलित किया जाता है।
नवाचार अंगीकार करने के पद या प्रक्रिया (The Stages or Process of Adopting Innovation)
नवाचार एक प्रक्रिया है, जिसके कुछ निश्चित पद या अवस्थाएँ होती हैं। किसी नवाचार को अंगीकार करने में इन पदों का अनुसरण करना पड़ता है। ई० एम० रोजर्स ने नवाचार को अपनाने के लिए पाँच पदों की आवश्यकता बताई है। इनका विस्तृत विवरण इस प्रकार है
1. संज्ञान- नवावार को अंगीकार करने के लिए सर्वप्रथम व्यवहारकर्ता को नवाचार का ज्ञान प्राप्त करना होता है। इस पद में पहले नवाचार का परिचय प्राप्त किया जाता है और तदोपरान्त नवाचार का प्रयोग करने की विधियों को जानना और समझना होता है। नवाचार का संज्ञान विभिन्न स्रोतों से ही सकता है। ये स्रोत देश-विदेश की शिक्षा सम्बन्धी पत्रिकाएँ, जर्नल्स, शोध-पत्र एवं पत्रिकाएँ, सरकारी अभिलेख, जनसंचार के माध्यम, प्रसार सेवा या सेवारत प्रशिक्षण कार्यक्रम आदि हो सकते हैं। इन माध्यमों से नवाचार की जानकारी होती है।
2. जिज्ञासा- किसी वस्तु या विचार को स्वीकार करने के लिए यह आवश्यक है कि उसके प्रति जिज्ञासा, उत्सुकता या तत्परता हो। नवाचार को व्यापक रूप से अंगीकार करने के लिए जनमानस में उत्साह एवं जिज्ञासा जाग्रत करनी होती है। यह कार्य विचारकों, प्रशासन या स्वयंसेवी संगठन को करना चाहिए। इसके लिए आवश्यक है कि नवाचार अपनाने हेतु पर्याप्त एवं प्रोत्साहन दिया जाए।
3. परीक्षण- परीक्षण का अभिप्राय विचाराधीन नवाचार के गुण-दोषों एवं व्यवहारकर्ता की जाँच-परख से है। नवाचार तभी स्वीकार्य हो सकता है, जब व्यवहारकर्ता के मन में कोई संदेह एवं शंका न रहे। इस हेतु कार्यकर्ताओं की बैठकें एवं विचार-गोष्ठियाँ आयोजित कर नवाचार के सम्बन्ध में अधिकाधिक विचार-विमर्श का अवसर दिया जाना चाहिए।
4. मूल्यांकन- इसका अभिप्राय नवाचार के सम्बन्ध में लाभ-हानि का आंकलन करना है. नवाचार अंगीकार करने वाला व्यक्ति नवाचार अपनाने में आई कठिनाइयों एवं समस्याओं के सनाधान पर विचार करता है। वह यह भी हिसाब लगाता है कि नवाचार अपनाने से क्या लाभ हो सकता है ? यदि लाभ का पक्ष प्रबल होता है, तो वह उसे स्वीकार करने के लिए तैयार होता है अन्यथा नहीं।
5. आत्मसात करना- नवाचार को स्वीकार करने या आत्मसात करने की स्थिति अन्तिम अवस्था है। यदि पूर्व के चारों पदों पर उसे अनुकूल परिणाम प्राप्त होते हैं, तभी वह उसे आत्मसात करता है। नवाचार को आत्मसात करने में व्यक्तिगत भिन्नताओं का प्रभाव पड़ता है। अनेक व्यक्ति नवाचार को खुले मन से स्वीकार करते हैं, तो कुछ असमंजस की स्थिति में रहते हैं। प्रगतिशील लोग नवाचार जल्दी स्वीकार कर लेते हैं, जबकि परम्पराओं एवं रूढ़ियों से ग्रस्त लोग नवाचार को शीघ्र ग्रहण नहीं कर पाते।
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