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शान्ति निकेतन | शान्ति निकेतन के उद्देश्य | शान्ति निकेतन की विशेषताएँ

शान्ति निकेतन
शान्ति निकेतन

शान्ति निकेतन (Shanti Niketan)

भारतीय शिक्षा को ‘शान्ति निकेतन’ के रूप में रविन्द्रनाथ टैगोर की महान देन है। भारतीय परम्पराओं पर आधारित इस शिक्षा के केन्द्र ने महान देशवासियों के सृजन, उच्चादर्शों की स्थापना एवं जन-जीवन के जागरण में जितना अधिक योगदान दिया, उतना अधिक भारत के कदाचित ही किसी शिक्षा केन्द्र ने दिया हो। यहाँ हम ‘शान्ति निकेतन’ के सम्बन्ध में प्रकाश डाल रहे हैं-

1. स्थिति एवं स्थापना (Location and Establishment)– विश्वकवि रविन्द्रनाथ टैगोर के पिता महर्षि देवेन्द्रनाथ टैगौर ने सन् 1863 में बंगाल के बोलपुर से लगभग डेढ़ मील पूर्व की ओर एक आश्रम की स्थापना की। कहा जाता है कि महर्षि देवेन्द्रनाथ टैगोर जब एक बार भ्रमण करते हुए उस स्थान से निकले तब उन्हें उस स्थान के शांत व एकांत प्राकृतिक वातावरण ने आकृष्ट कर लिया और उन्होंने सोचा कि एकांत साधना की दृष्टि से यह स्थान पूर्णतः उपयुक्त है। उन्होंने वह भूमि खरीद ली और वहाँ एक आश्रम की स्थापना कर उसका नाम ‘शांति निकेतन’ रखा।

चालीस वर्ष की आयु में अपने पिता की सहमति से रविन्द्रनाथ ने सन् 1901 में वहाँ ‘शांति निकेतन’, विद्यालय की स्थापना की। यद्यपि ‘शांति निकेतन’ विद्यालय व्यवस्थित रूप से चल रहा था, लेकिन रविन्द्र उतने से ही सन्तुष्ट न थे और सन् 1905 से ही वह भारत में एक ऐसे उच्च शिक्षा केन्द्र की कल्पना कर रहे थे जहाँ कि शिक्षा पूर्ण भारतीय आदर्शों के अनुसार दी जाय। इसीलिये उन्होंने 6 मई, 1952 को उक्त शिक्षा संस्था ‘शांति निकेतन’ को अन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय में परिणत कर उसका नाम ‘विश्व भारती’ रखा।

मई, 1961 से भारतीय संसद के अधिनियम के अनुसार ‘विश्व भारती’ केन्द्रीय सरकार के संरक्षण में आ गया और उसे केन्द्रीय विश्वविद्यालय माना गया। इस समय पं० जवाहरलाल नेहरू इसके प्रथम कुलपति थे।

2. शान्ति निकेतन के उद्देश्य (Aims of Shanti Niketan)

‘शान्ति निकेतन’ की स्थापना के समय रविन्द्रनाथ के समक्ष निम्नांकित मुख्य उद्देश्य थे-

1. भारतीय संस्कृति व आदर्शों के आधार पर शिक्षा प्रदान करना।

2. प्राच्य (ईस्टर्न) संस्कृति से सामंजस्य स्थापित कर उनमें घनिष्ठता उत्पन्न करते पाश्चात्य संस्कृति व विज्ञान का समरूप अध्ययन करना।

3. सहबन्धुत्व की भावना विकसित करते हुए पूर्वी और पश्चिमी देशों को एकता के सूत्र में आबद्ध करना तथा विश्वशांति की स्थिति उत्पन्न करना ।

4. वास्तविक दृष्टि से ‘विश्व भारती’ को एक ऐसा सांस्कृतिक विश्व केन्द्र बनाना जहाँ धर्म, साहित्य, विज्ञान, इतिहास व अन्य भारतीय और पाश्चात्य सभ्यताओं का शोधपूर्ण अध्ययन किया जा सके।

(3) शिक्षण संस्थाएँ (Educational Institutions)

इस समय विश्व भारती विश्वविद्यालय के अन्तर्गत निम्नलिखित शिक्षण संस्थाएँ कार्य कर रही हैं-

(1) पाठ भवन- यह अपने ढंग का एक प्रगतिशील विद्यालय है जिसमें प्रारम्भिक व माध्यमिक शिक्षा का आयोजन किया गया है तथा इसमें अध्ययन करने वाले विद्यार्थियों की आयु सामान्यतः 6 से 15 वर्ष तक की होती है।

(2) शिक्षा भवन- यह एक कॉलेज है जहाँ कि इंटरमीडिएट आर्ट्स और साइंस की शिक्षा का प्रबन्ध है।

(3) विद्या भवन- यहाँ बी० ए०, एम० ए० और पी-एच० डी० के स्तर तक की शिक्षा का प्रबन्ध है तथा भारतीय दर्शन, बौद्ध धर्म, संस्कृत, हिन्दी, पालि, प्राकृत, फारसी, अरबी, बंगला आदि विषयों में शोध की पूर्ण सुविधा प्रदान की जाती है।

(4) विनय भवन- यह प्रशिक्षण महाविद्यालय है और इसमें अध्यापकों के प्रशिक्षण का पूर्ण प्रबन्ध है।

(5) हिन्दी भवन- यहाँ पर एम० ए० स्तर तक हिन्दी शिक्षण की व्यवस्था है तथा हिन्दी में शोधकार्य करने की पूर्ण सुविधा दी जाती है।

(6) कला भवन- इसमें ललित कलाओं की शिक्षा दी जाती है और काढ़ना, पिरोना, बुनना, चमड़े आदि का कार्य आदि कलाएँ भी सिखाई जाती हैं। यहाँ का चित्रकला विभाग विश्वविख्यात है।

(7) शिल्प भवन- यहाँ विभिन्न प्रकार के कुटीर उद्योगों व हस्तकलाओं की शिक्षा दी जाती है।

(8) संगीत भवन- इसमें संगीत, नृत्य और अभिनय की शिक्षा का उत्तम प्रबन्ध है।

(9) चीन भवन- यहाँ भारतीय विद्यार्थी चीन की संस्कृति का और चीनी विद्यार्थी भारतीय संस्कृति का अध्ययन करते हैं।

(10) श्री निकेतन- शांति निकेतन से 1 मील दूर सुरूल नामक स्थान पर ‘श्री निकेतन’ नामक ग्राम्य संस्था की स्थापना की गयी है, जिसके निम्नांकित उद्देश्य हैं-

(क) ग्राम समस्याओं का अध्ययन कर जनसाधारण का ध्यान उनकी ओर आकृष्ट करना।

(ख) ग्रामवासियों को सफाई, स्वास्थ्य व सहकारिता के आदर्श बतलाते हुए कृषि की उत्तम विधियों तथा कुटीर उद्योगों की शिक्षा देना।

(ग) ग्राम्य समस्याओं को हल करने के लिये ग्रामवासियों को सहयोग देना और उनमें स्नेह, सहानुभूति व सहयोग की भावना विकसित करना।

(घ) छात्रों में ग्राम सेवा व ग्रामीणों के प्रति सहानुभूति की भावना उत्पन्न कर कृषि, पशुपालन, मुर्गीपालन, कताई, बुनाई, बढ़ईगीरी, लुहारी आदि विषयों की व्यावहारिक शिक्षा देना।

(ङ) स्काउटिंग के आदर्शों व प्रशिक्षण के आधार पर गाँवों में साक्षरता का प्रसार करना और ग्रामवासियों को उत्तम नागरिकता के लाभ से परिचित कराना।

शान्ति निकेतन की विशेषताएँ (Characteristics of Shanti Niketan)

संक्षेप में शान्ति निकेतन की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-

1. विश्व भारती में भारत के सभी भागों के शिक्षक नियुक्त हैं और यहाँ न केवल भारत, अपितु एशिया व यूरोप के सभी देशों के छात्र-छात्राएँ अध्ययन करने के लिये आते हैं।

2. विद्यार्थी इस विश्वविद्यालय की किसी भी शिक्षण संस्था में प्रवेश लेकर अन्य संस्थाओं में भी शिक्षण प्राप्त कर सकते हैं तथा इसके लिये उन्हें अलग से कोई शुल्क नहीं देना पड़ता।

3. विश्व भारती में नियमित और आकस्मिक दोनों प्रकार के विद्यार्थियों को प्रवेश करने की सुविधा प्राप्त है।

4. प्राचीनकालीन शिक्षा पद्धति की भाँति विश्व भारती में भी गुरु-शिष्य में परस्पर स्नेह व सौहार्द की भावना पाई जाती है।

5. यहाँ विभिन्न आयु के छात्रों के लिये पृथक छात्रावासों की व्यवस्था है।

6. इस विश्वविद्यालय में अन्य सामान्य विश्वविद्यालयों की भाँति शिक्षा की व्यवस्था नहीं है, अपितु खुले मैदान में या वृक्ष के नीचे विद्याध्ययन किया जाता है।

7. विश्व भारती का पाठ्यक्रम अत्यन्त विस्तृत है और छात्र अपनी रुचि व योग्यताओं के अनुरूप विषयों का चयन कर सकते हैं।

8. यहाँ सामूहिक जीवन पर विशेष बल दिया जाता है और छात्रों में समाज सेवा की भावना विकसित की जाती है।

9. इस विश्वविद्यालय में विद्यार्थियों के निजी डेरी फार्म अस्पताल और कारखाने हैं।

10. यहाँ एक विशाल पुस्तकालय है, जिसमें असंख्य पुस्तकें हैं।

11. विश्व भारतीय का अपना एक प्रकाशन विभाग भी है तथा विश्व भारती’ नामक पत्रिका भी प्रकाशित की जाती है।

12. इसमें विद्यार्थियों के निजी न्यायालय हैं। वही दण्ड व्यवस्था करते हैं, लेकिन शारीरिक दण्ड नहीं दिया जाता।

साहित्य के क्षेत्र में नोबुल पुरस्कार विजेता टैगोर को जितना अधिक महत्त्व एक साहित्यिक के रूप में है, उतना ही अधिक महत्त्व एक शैक्षिक दार्शनिक के रूप में भी है। टैगोर गुरुदेव के नाम से पुकारे जाते हैं और निःसन्देह वे गुरुओं में श्रेष्ठ थे। शैक्षिक विचारक के रूप में उन्होंने शिक्षा के व्यापक दृष्टिकोण को अपनाया और अपने विचारों को ‘विश्व भारती’ के रूप में प्रत्यक्ष रूप दिया।

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shubham yadav

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