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स्वामी विवेकानन्द के शिक्षा के उद्देश्य | स्वामी विवेकानन्द के शिक्षा सम्बन्धी सिद्धान्त

स्वामी विवेकानन्द के शिक्षा के उद्देश्य
स्वामी विवेकानन्द के शिक्षा के उद्देश्य

स्वामी विवेकानन्द के शिक्षा के उद्देश्य

स्वामी विवेकानन्द के अनुसार शिक्षा के निम्नांकित उद्देश्य हैं-

(1) पूर्णता की ओर अग्रसर होने तथा उसे प्राप्त करने का उद्देश्य।

(2) छात्र के व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास का उद्देश्य।

(3) चारित्रिक विकास का उद्देश्य।

(4) नैतिक विकास का उद्देश्य।

(5) आध्यात्मिक विकास का उद्देश्य।

(6) त्याग की भावना का विकास का उद्देश्य।

(7) राष्ट्रीय एकता की भावना के विकास का उद्देश्य।

(8) धर्म के प्रति सही दृष्टिकोण विकसित करने का उद्देश्य।

(9) विविधता में एकता की भावना के विकास का उद्देश्य।

(10) श्रद्धा की में भावना उत्पन्न करने का उद्देश्य ।

(11) इच्छा शक्ति को सबल बनाने का उद्देश्य।

इस प्रकार स्वामी विवेकानन्द के अनुसार शिक्षा ऐसी होनी चाहिये, जो व्यक्ति को पूर्णता की ओर ले जाय। उसके अन्दर जो शक्तियाँ हैं, उन्हें वह पहचान सके। शिक्षा ऐसी होनी चाहिये, जो छात्र के शारीरिक, बौद्धिक, मानसिक, संवेगात्मक, नैतिक एवं आर्थिक विकास में सहयोग दे तथा छात्र को अपने सन्तुलित विकास के लिये अनुकूल वातावरण प्रदान करे, जो शिक्षा व्यक्ति का नैतिक तथा चारित्रिक विकास नहीं करती, वह शिक्षा निरर्थक है। व्यक्ति का चरित्र, राष्ट्र का चरित्र बनता है। व्यक्ति का नैतिक आचरण सामाजिक उत्थान में योग देता है। अत: शिक्षा को इस ओर ध्यान देना चाहिये। धर्म हमारी संस्कृति का मुख्य तत्व है। शिक्षा को चाहिये. कि छात्रों में धर्म के प्रति सही दृष्टिकोण विकसित करे तथा भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों का आचरण में ला सके और ऐसी क्षमता का विकास करे। हमारा देश अनेकताओं का देश है, धर्म, जाति, भाषा, संस्कृति एवं भूगोल सभी दृष्टि से देश में विविधताएँ हैं। शिक्षा का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य यह है कि वह इन विविधताओं में एकता की भावना खोजने का प्रयास करे। कुल मिलाकर हमारी शिक्षा का एकमात्र उद्देश्य मानव का निर्माण करना होना चाहिये।

स्वामी विवेकानन्द के शिक्षा सम्बन्धी सिद्धान्त

स्वामी विवेकानन्द के शिक्षा सम्बन्धी सिद्धान्त निम्नलिखित हैं-

(1) विद्यार्थी को व्यावहारिक प्रशिक्षण देना चाहिये।

(2) जहाँ तक हो सके विद्यार्थी काल में ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिये।

(3) व्यक्ति को स्वयं पर अनुशासन रखना आवश्यक है।

(4) व्यक्ति के विचार एवं आचरण में समन्वय होना चाहिये।

(5) छात्र सर्वांगीण विकास कर सकें, ऐसी शिक्षा होनी चाहिये।

(6) इस बात का स्मरण रखना चाहिये कि छात्र को कोई सिखा नहीं सकता, वह स्वयं सीखता है।

(7) ज्ञान तो व्यक्ति में पहले से ही है। उपयुक्त वातावरण की आवश्यकता होती है।

(8) छात्रों के साथ-साथ छात्राओं की शिक्षा पर भी समान रूप से ध्यान दिया जाना चाहिये।

(9) शिक्षक एवं शिष्य के बीच घनिष्ठ सम्बन्ध होना चाहये तथा शिक्षक को शिष्य के साथ स्नेह एवं सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार करना चाहिये।

(10) छात्र के आध्यात्मिक विकास के साथ ही भौतिक विकास पर भी ध्यान दिया जाना आवश्यक है।

(11) देश के औद्योगिक विकास के लिये तकनीकी शिक्षा अवश्य दी जानी चाहिये।

(12) भारत के निरक्षर लोगों को शिक्षित करने का प्रयास करना चाहिये।

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shubham yadav

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