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निर्देशन का अर्थ
मनुष्य एक सामाजिक, बुद्धिमान और विवेकशील प्राणी है। इसी के आधार पर वह संसार के अन्य प्राणियों से बिल्कुल भिन्न है। वह बुद्धि के बल पर ही समाज के पर्यावरण और अन्य प्राणियों के साथ सामंजस्य स्थापित करता है। इसे स्थापित करने में उसे अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है जिसके लिए उसे अपने से बड़ों का सहयोग लेना पड़ता है। इस सहयोग के आधार पर वह समस्याओं के सम्बन्ध में उचित निष्कर्ष निकालने में, अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में उसे आसानी होती है। निर्देशन के आधार पर ही व्यक्ति अपनी योग्यताओं, क्षमताओं और कौशलों के बारे में ज्ञान प्राप्त करता है और अपने में निहित क्षमताओं का उचित प्रयोग करके अपने कार्य क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है।
जैसे जब भगवान राम ने लंका में सीता की खोज करायी थी तो हनुमान को अपनी शक्ति का आभास नहीं था जब उन्हें उनकी शक्ति और क्षमताओं के बारे में बताया गया तो वे समुद्र को लाँघ कर ही पार कर गए।
इस प्रकार निर्देशन का उद्देश्य व्यक्ति की समस्याओं का समाधान करना नहीं बल्कि इसके आधार पर व्यक्ति की क्षमताओं का बोध कराकर उसे इस योग्य बनाना होता है जिससे कि वह अपनी समस्याओं का समाधान खोजने में सक्षम हो जाए।
निर्देशन की परिभाषाएँ
निर्देशन की कोई सर्वमान्य परिभाषा नहीं है फिर भी कुछ परिभाषाएँ अग्रलिखित हैं-
कार्टर वी. गुड ने शिक्षा के शब्दकोष 1959 के अनुसार, “निर्देशन गतिशील पारस्परिक सम्बन्धों की प्रक्रिया है, जो व्यक्ति के दृष्टिकोणों और व्यवहारों को प्रभावित करने के लिए डिजाइन की जाती है।”
स्ट्रप्स एवं लिण्डक्विस्ट के अनुसार- “निर्देशन व्यक्ति के अपने लिए एवं समाज के लिए अधिकतम लाभदायक दिशा में उसकी सम्भावित अधिकतम क्षमता तक विकास में सहायक तथा निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है।”
नैप के अनुसार, “किसी विद्यार्थी के बारे में सीखना या जानना उसे समझने में सहायता देना, उसमें तथा उसके वातावरण में परिवर्तन लाना जो उसकी वृद्धि और विकास में सहायक हो, निर्देशन है।”
लफेयर के अनुसार, “निर्देशन शैक्षिक प्रक्रिया की उस व्यवस्थित एवं गठित अवस्था को कहा जाता है जो युवा वर्ग को अपने जीवन में ठोस बिन्दु व दिशा प्रदान करने की क्षमता को बढ़ाने में सहायता प्रदान करता है जिससे उसकी व्यक्तिगत अनुभवशीलता में समृद्धि के साथ अपने प्रजातान्त्रिक समाज में अपना निजी योगदान सम्भव हो सके।”
निर्देशन की प्रकृति व विशेषताएँ
1. निर्देशन की प्रकृति शैक्षिक मानी गई है। निर्देशन का अर्थ छात्रों को शिक्षा के क्षेत्र में आने वाली समस्याओं के बारे में तथा श्लोक वातावरण के सम्बन्ध में समायोजन के रूप में वर्णित किया गया है। इस प्रकार इसे शैक्षिक सेवा के रूप में परिभाषित किया गया है।
2. निर्देशन प्रक्रिया व्यक्ति में आत्म-निर्देशन का विकास करती है। इसके द्वारा व्यक्ति आत्मनिर्भर बन जाता है। वह अपने जीवन की समस्याओं का हल स्वयं खोजने में सक्षम हो जाता है।
3. निर्देशन का कोई स्वतन्त्र अस्तित्त्व नहीं है। यह तो एक प्रक्रिया है जिसका मुख्य उद्देश्य है व्यक्ति का उसकी सामाजिक, आर्थिक, बौद्धिक आवश्यकताओं के अनुरूप विकास करना। इस प्रकार अपना कोई स्वतन्त्र स्थान नहीं है।
4. निर्देशन प्रत्येक व्यक्ति प्रदत्त नहीं कर सकता है इसके लिए व्यक्ति में कुछ विशेष गुण होने चाहिए। कुछ विशिष्ट तकनीकी व कौशलों का ज्ञान होना चाहिए। इस प्रकार यह एक कुशल, प्रशिक्षित मनोवैज्ञानिक व्यक्ति होना चाहिए। यह एक कौशल युक्त प्रक्रिया है।
5. निर्देशन व्यक्ति को विभिन्न परिस्थितियों में समायोजित करने की क्षमता का विकास करता है। विभिन्न प्रकार की समस्याओं के साथ समायोजन करना इस प्रक्रिया द्वारा सिखाया जाता है। इस प्रकार निर्देशन एक हारे हुए व्यक्ति को नई शक्ति प्रदान करता है।
6. निर्देशन सहायता देने से कुछ अधिक है। इस सहायता की सीमा क्या होगी इसके बारे में कुछ नहीं कह सकते हैं। इस सहायता का सीमा क्षेत्र बहुत ही विस्तृत होता है। कब, किसको, कितनी सहायता की जरूरत होती है। इसको पहले से तय नहीं किया जा सकता है।
7. निर्देशन निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है। इसमें व्यक्ति पहले स्वयं को समझता है। अपनी क्षमताओं, रुचियों तथा अन्य योग्यताओं का अधिक से अधिक प्रयोग करना सीखता है। विभिन्न परिस्थितियों में वह अपने निर्णय स्वयं लेने की क्षमता का विकास करता है। इस प्रकार यह क्रिया लगातार चलती रहती है।
8. निर्देशन व्यक्ति में निहित सम्भावनाओं के अनुसार उसके सम्पूर्ण विकास पर बल देता है। निर्देशन द्वारा व्यक्ति अपनी वास्तविकता से परिचित हो जाता है। इस प्रकार निर्देशन आत्मसिद्धि में सहायक होता है।
9. निर्देशन व्यक्तिगत सहायता है। यह भले ही एक समूह को दी जा रही हो फिर भी उसके द्वारा विकास तो एक व्यक्ति विशेष का ही होता है, न कि सम्पूर्ण समूह का। इस प्रकार यह एक व्यक्तिगत सहायता देने वाली प्रक्रिया है।
10. निर्देशन की क्रिया जीवन से सम्बन्धित होती है। यह जीवन में औपचारिक और अनौपचारिक दोनों रूप में अपना योगदान देती है। औपचारिक निर्देशन तो व्यक्ति को उसके मित्रों व रिश्तेदारों से प्राप्त होता है तथा अनौपचारिक निर्देशन विद्यालय की संगठित निर्देशन सेवाओं के माध्यम से प्राप्त करता है।
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