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परामर्शदाता के कार्य
प्रत्येक विद्यालय में परामर्शदाता होता है। परामर्श देने के लिये या तो अध्यापक को ही प्रशिक्षण दिलवा दिया जाता है या परामर्श विशेषज्ञ की नियुक्ति की जाती है। परामर्शदाता के निम्नलिखित कार्य होते हैं-
1. छात्रों की योग्यताओं, रुचियों, अभियोग्यताओं एवं शारीरिक गुणों का वस्तुनिष्ठ मापन करना।
2. प्राप्त करना। छात्र के घर के परिवेश, आर्थिक स्तर एवं व्यक्तित्व से सम्बन्धित विभिन्न अंगों का ज्ञान प्राप्त करना।
3. सांवेगिक कठिनाइयों के प्रति सचेत रहना। ऐसे छात्रों को विशेषज्ञों के पास भेजना।
4. छात्रों को परीक्षाफलों से परिचित कराना।
5. छात्रों में स्वतः प्रेरणा और स्वतन्त्रता विकसित करने में उनकी सहायता करना जिससे वे आत्मनिर्देशन में प्रगति कर सकें।
6. नवीन कक्षाध्यापक एवं अन्य विद्यालय कर्मचारियों को निर्देशन कार्यक्रम का ज्ञान कराना।
7. विद्यालय, गृह एवं समाज के मध्य सम्बन्ध विकसित करने में सहायता देना।
8. छात्रों की मनोवैज्ञानिक जाँच करना।
9. विद्यालयों से विभिन्न प्रकार के प्रदान करना। पाठ्यक्रम के बारे में सूचनाएँ एकत्रित करना एवं छात्रों को प्रदान करना।
10. विभिन्न व्यवसायों से सम्बन्धित सूचनाएँ देना।
11. छात्रों को स्वयं समझने तथा भविष्य की योजना बनाने में सहायता देना।
12. विद्यालय के आलेखों की व्याख्या करना, जिससे छात्र परिचित नहीं होते हैं।
13. विद्यालय के साथ घनिष्ठ सम्पर्क बनाये रखना।
14. उन अध्यापकों की सहायता करना जिनकी कक्षा में समस्यात्मक छात्र होते हैं।
15. युवकों को विभिन्न जीविकाओं में प्रस्थापना करने में युवक- नियोक्ता सेवाओं की सहायता करना।
16. निर्देशन सेवाओं का फल ज्ञात करने के लिये निर्देशित छात्र का उत्तरोत्तर अध्ययन करना।
17. माता-पिता की मीटिंग करना, उनसे सम्पर्क बनाये रखना।
18. छात्रों को यथार्थ स्थिति का अध्ययन कराने के लिये भ्रमणादि का आयोजन रखना।
19. सामूहिक निर्देशन का प्रबन्ध करना, जिससे सामाजिक समायोजन को प्रोत्साहन दिया जा सके।
20. विद्यालय की विभिन्न समितियों में रुचि दिखाना।
परामर्शदाता के आवश्यक गुण
परामर्शदाता के कार्यों का अध्ययन स्पष्ट करता है कि निर्देशन कार्यक्रम का प्रमुख व्यक्ति यही है। रूथ स्ट्रेंग ने परामर्शदाता के महत्त्व को स्पष्ट करते हुये कहा है—“परामर्शदाता एक माली की भाँति है, जो मिट्टी तैयार करता है तथा प्रत्येक पौधे को स्वयं उगने में सहायता करने के लिये प्रत्येक कार्य करने को उत्साहित रहता है।”
परामर्शदाता को कार्यकुशल व्यक्ति बनने के लिये निम्नलिखित गुणों से युक्त होना चाहिये-
1. बौद्धिक क्षमता अधिक मात्रा में होनी चाहिये।
2. व्यक्तियों का सहानुभूतिपूर्ण एवं वैषयिक ज्ञान।
3. विस्तृत सामान्य ज्ञान और विस्तृत रुचियाँ।
4. स्थिर एवं भली-भाँति समायोजित व्यक्तित्व|
5. सामाजिक और आर्थिक दशाओं एवं उनके प्रभाव का ज्ञान ।
6. छात्रों एवं साथी कर्मचारियों को प्रेरणा देने की योग्यता।
7. व्यक्तिगत एवं सामाजिक सम्बन्ध स्थापित करने की योग्यता।
8. कक्षा की परिस्थितियों और शिक्षण के उत्तरदायित्वों का ज्ञान।
9. व्यवसाय का कार्य करने की शर्तों का ज्ञान।
10. अन्य व्यक्तियों के साथ सहकारिता के आधार पर कार्य करने की योग्यता।
एक अच्छे परामर्शदाता में निम्नलिखित गुण होने चाहिये-
1. माता-पिता के साथ कार्य करने के लिये आवश्यक गुण-
(i) माता-पिता का विश्वास प्राप्त करने की योग्यता।
(ii) उनसे सम्मान प्राप्त करने की क्षमता।
(iii) छात्रों की समायोजन की समस्याओं के समाधान में माता-पिता का सहयोग प्राप्त करना।
(iv) माता-पिता का सम्मेलन संगठित करने की योग्यता।
2. छात्रों के साथ कार्य करने के लिये आवश्यक गुण-
(i) छात्रों की समूह परीक्षाएँ लेने की योग्यता ।
(ii) छात्रों को सूचनाएँ प्रदान करने के लिये विभिन्न स्रोतों से सूचनाएँ संगृहीत करना।
(iii) छात्रों के व्यक्तित्व का मूल्यांकन करने की योग्यता।
(iv) समाजमिति बनाने एवं व्याख्या करने की योग्यता।
(v) छात्रों को परामर्श देने की क्रिया का ज्ञान।
(vi) छात्रों का साक्षात्कार लेने की योग्यता ।
3. समाज के साथ कार्य करने के लिये आवश्यक गुण-
(i) सामाजिक क्रियाओं में भाग लेने की योग्यता ।
(ii) नियोक्ताओं के साथ मधुर सम्बन्ध स्थापित करने की योग्यता
(iii) निर्देश कार्यक्रम के लिये समाज की सहायता प्राप्त करने की योग्यता।
(iv) सामाजिक सेवाओं की सहायता प्राप्त करने की योग्यता ।
4. अध्यापकों का सहयोग प्राप्त करने के लिये आवश्यक गुण
(i) निर्देशन समिति में नेतृत्व करने की योग्यता।
(ii) प्रधानाचार्य एवं अध्यापकों का विश्वास प्राप्त करना ।
(iii) सेवाकालीन कार्यक्रम संगठित करना ।
(iv) पुस्तकालयाध्यक्ष का सहयोग प्राप्त करने की योग्यता
5. कार्यक्रम का नेता बनने के गुण- यह गुण भी परामर्शदाता में होने चाहिये। उसको निर्देशन कार्यक्रम की क्रियाओं एवं निर्देशन कार्यक्रम के संगठित रूप का ज्ञान होना चाहिये। उसको बाल-मनोविज्ञान का ज्ञान भी होना चाहिए।
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