
लोक विज्ञान आन्दोलन (People Science Movement)
लोक विज्ञान आन्दोलन का प्रारम्भ वैज्ञानिक शिक्षण की चुनौतियों के सन्दर्भ में हुआ है। इस आन्दोलन में विज्ञान की नई-नई खोजों को सम्मिलित करते हुए समाज के परिवर्तित स्वरूप के अनुसार विषय-वस्तु को सम्मिलित किया गया है।
लोक विज्ञान आन्दोलन का उद्देश्य विज्ञान के आलोचनात्मक समझ पर आधारित है। यह आन्दोलन सामान्य लोगों को यह सूचित करती है कि विज्ञान ने क्या किया है ? ‘कैसे’ एवं ‘क्यों’ किया है ? इसके मुद्दों में नीतियों का विश्लेषण शिक्षा प्राप्त कर रहे लोगों के गतिशील जनमत आदि शामिल है। 20वीं शताब्दी ने विज्ञान और तकनीकी ने यह भूमिका निभाई है कि समाज को कैसे कार्य करना चाहिए। न केवल उत्पादन में, अर्थशास्त्र में एवं युद्ध में; बल्कि यह संस्कृति को परिभाषित करने में, लोकमत में, राजनीति में, संगीत में तथा सरकारी कार्यों में विज्ञान एवं तकनीकी ज्ञान ने अपनी एक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है।
शिक्षण प्रशिक्षण कार्यक्रमों में नवाचारी शिक्षण प्रविधियों का प्रयोग करके ग्रामीण महिलाओं को स्वास्थ्य सम्बन्धी सूचनाओं के लिए किसानों को कृषि कार्य हेतु प्रयोगों द्वारा प्रशिक्षित करना एवं मृदा संरक्षण एवं सुधार आदि के लिए कार्य करना लोक विज्ञान आन्दोलन (PSM) का मूल उद्देश्य है। निर्धनतम व्यक्ति के जीवन स्तर एवं स्थितियों को सुधारने के लिए विज्ञान ने अपने वायदे को प्रयोगों एवं अभ्यास के माध्यम से पूरा करने का गतिशील पक्ष प्रस्तुत किया है।
लोक विज्ञान आन्दोलन के पास सामाजिक समूहों की दशाओं को सुधारने के लिए विश्वनीय मध्यवर्ती इतिहास है। प्रायः जो हानियाँ विज्ञान एवं तकनीकी द्वारा होती हैं उसका भी सम्पूर्ण विवरण इसके पास होता है। लोक विज्ञान आन्दोलन संविधान एवं संगठनात्मक स्वरूपों को और उनके क्रियाकलापों की प्रकृति को अलग कर देता है। अवैज्ञानिक प्रवृत्तियाँ एवं नीतियाँ कुछ प्रमुख आध गरभूत मुद्दों यथा स्वास्थ्य पर विकासजनिक क्रियाकलापों के परिणामस्वरूप विज्ञान एवं तकनीकी के गलत प्रयोग द्वारा पर्यावरण पर गलत प्रभाव डालती है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में विज्ञान शिक्षण के माध्यम से तथा वैज्ञानिक ज्ञान के प्रयोग द्वारा इस आन्दोलन को सफल बनाया जाता है।
लोक विज्ञान आन्दोलन का प्राथमिक दर्शन विज्ञान एवं तकनीकी के प्रयोग द्वारा समाज के सतत् विकास का लक्ष्य प्राप्त करना है। लोक विज्ञान आन्दोलन का समूह लोगों की आवश्यकताओं को तकनीकी ज्ञान के विभिन्न सन्दर्भों में आलोचनात्मक समझ अथवा ज्ञान के विज्ञान एवं तकनीकी वृद्धि एवं विकास करने के योग्य बनाने में उपयोगी है।
भारत में लोक विज्ञान आन्दोलन की उत्पत्ति को 1950 में चिन्हित किया गया, जब विभिन्न प्रकार के संगठन वैज्ञानिक जागरुकता को सामान्य लोगों के बीच में क्रियान्वित कर रहे थे। केरल शस्त्र साहित्य परिषद (KSSP) मराठी विज्ञान परिषद, आसाम विज्ञान सोसाइटी और बंगा विज्ञान परिषद इस कार्यक्रम में मुख्य रूप से सहभागी थे।
इन्होंने विज्ञान एवं तकनीकी के विषय से सूचनाओं के विस्तार के लिए साहित्य का प्रकाशन भारत के विभिन्न भाषाओं में किया। इससे KSSP ने 1960 ई० से 1970 ई० में जनसंगठन बनाया सर्वप्रथम भारत में PSM का प्रथम सम्मेलन नवम्बर, 1978 में त्रिवेन्द्रम में केरल साहित्य शस्त्र परिषद (KSSP) ने किया।
उसी समय में देश के विभिन्न भागों में PSM के विषय में दिलचस्पी अथवा रुचि जागृत हो गयी तब इसके बाद PSM के द्वितीय सम्मेलन की आवश्यकता का अनुभव किया गया। जिसकी मेजवानी केरल में KSSP द्वारा किया गया। सम्मेलन का सम्बन्ध PSM को परिभाषित करने की आवश्यकता पर प्रकाश डालना था जिससे समस्त भारत के परिप्रेक्ष्य में इस कार्यक्रम के क्रियाकलापों को एवं इसके उद्देश्यों को स्पष्ट रूप से जाना जा सके।
लोक विज्ञान आन्दोलन के प्रमुख कार्यक्रम
देश में PSM के कार्यक्रम की पहचान के लिए चार क्षेत्र निर्धारित हैं- (1) स्वास्थ्य (2) शिक्षा (3) पर्यावरण (4) लोगों के साथ संचार माध्यम के रूप में कला का प्रयोग करना ।
इन चारों आधारों का संक्षिप्त वर्णन एक उभयनिष्ठ कार्यक्रम द्वारा देश में संयुक्त कार्यवाही द्वारा किया गया, जो निम्न है-
1. स्वास्थ्य (Health)
यदि स्वास्थ्य सम्बन्धी आन्दोलनों पर विचार किया जाये तो इस सन्दर्भ में स्वास्थ्य वितरण पद्धति की उपयुक्तता एवं प्रासंगिकता पर प्रश्न उठाये जाते हैं। अतः लोक स्वास्थ्य आन्दोलन PSM एक निर्णायक उपकरण है।
स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार के बावजूद ग्रामीण क्षेत्र में इस कार्यक्रम का विशेष झुकाव है। इसका उद्देश्य सम्पूर्ण भारतीय स्तर पर गैर व्यावसायिकों को सम्मिलित करते हुए संसाधनों की उपलब्धता एवं मानवशक्ति को इस प्रकार के क्रियाशील कार्यक्रमों में सम्भव बनाना है। सम्मेलन द्वारा औषधियों का वैज्ञानिक ढंग से परीक्षण करने तथा इसके वैकल्पिक व्यवस्था पर विशेष बल प्रदान किया गया जिससे प्रत्येक क्षेत्र में स्वास्थ्य रक्षा हो सके।
आन्दोलन द्वारा जनमानस में ‘एण्टी रिहाइड्रेशन इरस’ के योगात्मक प्रयोग पर ध्यान आकर्षित कर उन्हें शिक्षित किया गया तथा ‘ओरल रिहाइड्रेशन थिरेपी’ (ORT) को डायरिया से बचने के लिए साधारण तरीकों या उपायों से अवगत कराया गया।
महिलाओं में ‘एनीमिया’ की बीमारी एक बड़ा मुद्दा है। ‘एण्टीसीमिक डूग्स’ की चिकित्सीय सुविधा द्वारा तथा गर्भावस्था के समय बेहतर चिकित्सीय सुविधाओं द्वारा इनको स्वस्थ बनाने का कार्य इस आन्दोलन द्वारा किया जा रहा है। एनीमिया को निर्धनता एवं निर्धन सामाजिक आर्थिक दशाओं का परिणाम मानते हुए इसे प्रकाशित किया गया है।
2. शिक्षा (Education)
UPE सरकार की असफलता का ज्वलंत प्रकरण शिक्षा का क्षेत्र है जो कि प्रौढ़ शिक्षा से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित था। स्वास्थ्य एवं शिक्षा विज्ञान को लोकप्रिय बनाने के लिए सम्बन्धी समस्याओं पर अध्यापकों को सम्मिलित करते हुए तथा शैक्षिक क्रियाकलापों को उद्देशित करते हुए विचार विमर्श किया गया जिससे लोगों को विज्ञान एवं स्वास्थ्य के सम्बन्ध में ज्ञान प्राप्त हो सके एवं सामान्य रूप से शिक्षा की समस्याएँ दूर हो सकें।
इस कार्य के लिए निम्नलिखित गतिविधियों एवं क्रियाकलापों का सुझाव दिया गया (1) विज्ञान एवं साहित्य को बच्चों के लिए लोकप्रिय बनाने हेतु केरल शस्त्र साहित्य परिषद KSSP की भाँति पत्रिका का प्रकाशन करना।
(2) पुस्तकालय, कार्यशाला (वर्कशाप), श्रृव्य-दृश्य साधनों एवं सचल प्रदर्शनियों के माध्यम से सामुदायिक विज्ञानों के केन्द्रों का आयोजन करना ।
(3) PSM के विचारों के उन्नयन के लिए कला एवं थियेटर का उत्प्रेरक माध्यम के रूप में प्रयोग करना ।
(4) शिक्षा की समस्याओं को दूर करने के लिए क्षेत्र अध्ययन एवं सर्वेक्षण विधियों को अत्यधिक ठोस आधार प्रदान कर समझ विकसित करना ।
3. पर्यावरण (Environment)
पर्यावरण की समस्याओं को विस्तृत वास्तविकता के रूप में समझा जा सकता है। वैज्ञानिक विश्लेषण पर्यावरणीय मुद्दों एवं इनके अन्तर्सम्बन्धों का प्रभावशाली क्रियाओं के लिए प्रमुख आधार प्रस्तुत करते हैं। वन विभाग के विधेयक (Bill) वनों के कार्यालयी अभिलेखों की पूर्ण जानकारी प्रदान करते हैं। जनजातियों जो जंगलों एवं उनसे प्राप्त होने वाली सुविधाओं पर आधारित है अथवा निर्भर है वह वन दोहन (वनों का कटाव) के कारण उनके जीवनचर्या में एवं उनके व्यापार में काफी गिरावट दर्ज हो रही है। वन विधेयक लोक-विज्ञान आन्दोलन के लिए एक प्रकाशिक बिन्दु है। यह न केवल लोगों के संघर्षों को कम करने में अग्रणी है बल्कि यह जनमत की गतिशीलता या पलायन को सामाजिक वानिकी के माध्यम से बाढ़, जंगली जीवन, सूखा आदि से संरक्षण प्रदान करने में सहायक है।
4. कला (Art)
लोगों के साथ संचार के लिए कला का प्रयोग करना, वार्तालाप या वाद-विवाद एक महान समझौता है। उत्तराखण्ड संघर्ष वाहिनी ने कला का प्रयोग प्रमुख संघर्षों के लिए यथा वनदोहन विरुद्ध संघर्षशील है इसके अतिरिक्त लोगों के प्रत्येक संघर्षों के लिए कार्यरत है। इन सभी अतिरिक्त गीत, कविताएँ एवं नाटक इसकी भावनाओं से सम्बन्धित हैं।
ऐसा अनुभव किया जाता है कि क्रियाशील लोगों की चेतनाओं के निर्माण करने के लिए अनुभवों का न केवल अदला-बदली करने का प्रयास करना चाहिए बल्कि कला का प्रयोग विभिन्न समूहों के लोगों की कला के प्रदर्शन हेतु चेतनाओं के निर्माण हेतु हथियार के रूप में करना चाहिए।
इससे न केवल एक-दूसरे के प्रयास को बल मिलेगा बल्कि लोगों की भावनाओं में सुदृढ़ता आयेगी। इस अदला-बदली के द्वारा वे अपने व्यष्टि एवं समष्टि अथवा सूक्ष्म एवं स्थूल स्थितियों के बीच में अनुबंधों को देखने एवं समझने में समर्थ होंगे। विभिन्न समूहों द्वारा प्रयोग किये जाने वाले पदार्थों की अदला-बदली, उनका रूपान्तरण एवं स्वीकृति एक लाभदायक कार्य के रूप में स्थान बनती है। इस प्रकार PSM, एक ऐसा प्रयास है जिसके माध्यम से स्वास्थ्य, शिक्षा, पर्यावरण एवं कला के अस्तित्व को स्वीकार करने का भरपूर प्रयास किया गया है। नवाचार को समाज में प्रक्षेपित करने में इन चारों तत्त्वों की विशेष भूमिका है। इनके सुदृढ़ व्यवस्थापन द्वारा ही हम समाज में नवीन प्रवृत्तियों को बालकों में जागृत करके उनके स्वर्णिम जीवन की खुशहाली एवं सर्वांगीण विकास को स्थान प्रदान किया जा सकता है।
पर्यावरण से सम्बन्धित कुछ प्रमुख विकास परियोजनाएँ (Some Various Development Project Related to Environment)
पर्यावरण को स्वच्छ, खुशहाल एवं स्वस्थ्य बनाने के लिए कुछ प्रमुख विकास परियोजनाओं की चर्चा की गयी है जो निम्न हैं-
(1) राज्य द्वारा पर्यावरणीय अवक्रमण को रोकने हेतु कदम उठाये जाने चाहिए। व्यर्थ पदार्थों को लाभकारी बनाने हेतु क्रियाकलाप अपनाना चाहिए।
(2) विज्ञान मूल्य-निष्क्रियता पर आधारित नहीं है। वानिकी के लिए तथा वन दोहन की जाँच के लिए वन विभाग द्वारा विज्ञान का प्रयोग किया जाना चाहिए।
(3) व्यर्थ पदार्थों का विज्ञान के क्षेत्र में उनकी समस्याओं के लिए PSM वैज्ञानिक विश्लेषण करके अपना दृष्टिकोण प्रदान न करता है। अतः लोक विज्ञान आन्दोलन का इस कार्य हेतु आधार प्रदान करना चाहिए।
(4) पर्यावरण का संरक्षण लोगों के संघर्षशील होने एवं राज्य के द्वारा व्यर्थ उत्पादों के लिए नीतियों के निर्धारण बिना सम्भव नहीं है।
उपयुक्त समस्याओं के समाधान हेतु राष्ट्रीय स्तर पर प्रयास एवं संयुक्त क्रियाकलाप आवश्यक हैं-
(1) वन नीति का आलोचनात्मक अध्ययन करके पर्यावरण संरक्षण सम्बन्धी का निर्धारण किया जाय।
(2) आवागमन में गतिशीलता होनी चाहिए।
(3) वननीति के सापेक्ष संगठित समूहों को त्यागना।
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