B.Ed./M.Ed.

वृत्तिका विकास तथा रोजगार चयन को प्रभावित करने वाले कारक

वृत्तिका विकास तथा रोजगार चयन को प्रभावित करने वाले कारक
वृत्तिका विकास तथा रोजगार चयन को प्रभावित करने वाले कारक

वृत्तिका विकास तथा रोजगार चयन को प्रभावित करने वाले कारक

व्यक्ति के वृत्तिका चयन तथा विकास को अनेक कारक प्रभावित करते हैं। इनमें प्रमुख कारक परिवार, आर्थिक-सामाजिक स्तर, व्यावसायिक अवसर तथा व्यक्ति से सम्बन्धित गुणों और क्षमताओं से जुड़े हुए हैं। इसके अतिरिक्त छात्र के स्वयं के अनुभव भी वृत्तिक चयन और विकास की प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं। लेकिन यह भी सत्य है कि बालक ये अनुभव अनेक स्रोतों से अर्जित करता है। वृत्तिका विकास और चयन प्रक्रिया को प्रभावित करने वाले कारकों का विवरण अधोलिखित है—

1. पारिवारिक कारक- बालक जिस परिवार में जन्म लेता है उस परिवार के वातावरण और परिस्थितियों का प्रभाव जीवनपर्यन्त उस पर रहता है। बाल्यकाल से ही परिवार के वातावरण का प्रभाव व्यक्ति पर इतन गहरा होता है कि व्यक्ति के विचार, कार्य करने के ढंग और उसके व्यवहार में यह परिलक्षित होता है। व्यक्ति के वृत्तिका विकास में उसकी मानसिक योग्यताओं, अभिवृत्ति, अभिरुचि तथा व्यक्तित्व के गुणों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। इन गुणों को कुछ सीमा तक बालक वंशानुक्रम से प्राप्त करता है और कुछ सीमा तक वातावरण से अर्जित करता है। स्पष्ट है कि परिवार का प्रभाव गर्भावस्था से ही प्रारम्भ हो जाता है।

परिवार घटक से सम्बन्धित निम्नलिखित कारक हैं जो वृत्तिका चयन और विकास को प्रभावित करते हैं-

(i) भौगोलिक स्थिति- यहाँ भौगोलिक स्थिति से हमारा आशय ग्रामीण अथवा नगरीय क्षेत्र से है। ग्रामीण क्षेत्र के बालक को व्यावसायिक जगत् और उससे सम्बन्धित वृत्तियों का इतना ज्ञान नहीं होता है जितना नगरीय क्षेत्र के बालक को होता है। इसी प्रकार नगरीय क्षेत्र झुग्गी-झोपड़ियों के क्षेत्र के बालकों का ज्ञान पोष कॉलोनी में रहने वाले बालकों की तुलना में सीमित होता है। यही कारण है कि ग्रामीण बालकों की अपेक्षा नगरीय बालकों में वृत्तिक विकास शीघ्र होता है।

(ii) भौतिक परिस्थितियाँ — यदि परिवार का स्थान ऐसा है जहाँ स्वास्थ्यवर्धक परिस्थितियों का अभाव है तो ऐसे परिवार के सदस्य सामान्यतः अस्वस्थ रहते हैं। उदाहरण के लिए मकान में वायु, प्रकाश, पीने के स्वच्छ जल की आपूर्ति आदि की कमी अस्वास्थ्यकर वातावरण पैदा कर देती है। ऐसे वातावरण में प्रतिभाशाली बालक भी अस्वस्थता के कारण आशानुकूल प्रगति करने में असमर्थ रहता है।

(iii) परिवार का आर्थिक सामाजिक स्तर– परिवार का आर्थिक और सामाजिक स्तर बालक के वृत्तिका विकास को प्रभावित करता है। उच्च आर्थिक स्तर वाले परिवार के बालकों को अच्छी गुणात्मक शिक्षा प्राप्त करने के अवसर उपलब्ध होते हैं तथा ऐसे परिवारों के सामाजिक सम्बन्ध प्रायः सामाजिक रूप से प्रतिष्ठित परिवारों तथा उच्च पदों पर पदासीन अधिकारों से होते हैं। दूसरी ओर निर्धन परिवारों के बालकों को ये सुविधाएँ नहीं मिलती हैं। आर्थिक स्तर कारण ही उच्च आर्थिक स्तर वाले माता-पिता की अपने बच्चों से सम्बन्धित शैक्षिक और वृत्तिका से जुड़ी आकांक्षाएँ भी ऊँची होती हैं। उच्च-स्तर से सम्बन्धित बालकों को उत्तम प्रकार के वृत्तिका अवसर उपलब्ध होते हैं और उनके माता-पिता अपने प्रभाव और सम्बन्ध के आधार पर अपने बच्चों का उत्तम वृत्तिका में स्थान करवाने में सफल होते हैं।

(iv) जाति-धर्म सम्बन्धी कारक- परिवार के सांस्कृतिक कारक जिनमें जाति और धर्म का प्रमुख स्थान है वृत्तिका विकास और चयन को प्रभावित करते हैं। भारत में इन दोनों कारकों की भूमिका अधिक प्रभावशाली है। यहाँ बहुत पहले से ही जाति और रोजगार से जुड़े होने से बालक पर परिवार और उनके समाज का दबाव पारिवारिक व्यवसाय को ही अपनाने पर पड़ता है। इस प्रकार वृत्तिका चयन में जाति बाधा बन जाती है। यह रूढ़िवादी प्रवृत्ति अब धीरे-धीरे समाप्त हो रही है।

(v) वृत्तिका सम्बन्धी सूचनाएँ- बालक के परिवार के आर्थिक व सामाजिक स्तर के अनुसार ही वृत्तिका सम्बन्धी सूचनाएँ मिलती हैं। उच्च स्तर वाले परिवार के बालकों को उच्च स्तर की जीविकाओं जैसे—प्रशासनिक, व्यापारिक तथा निजी क्षेत्र की कम्पनियों के बारे में सूचनाएँ सरलता से प्राप्त हो जाती हैं। इसका कारण उनके पिता का वृत्तिकाओं से सम्बन्धित ज्ञान है। इसके विपरीत निम्न स्तर परिवार के बालकों को उच्च स्तर की जीविकाओं की सूचनाएँ उपलब्ध नहीं हो पाती हैं। इनको केवल कौशल या अकौशल सम्बन्धी रोजगार की सूचनाएँ प्राप्त होती हैं।

(vi) कार्य मूल्यों पर परिवार का प्रभाव- बालक परिवार से कार्य मूल्य सीखता है। इसका प्रभाव वृत्तिका चयन पर पड़ता है। यदि परिवार में आर्थिक पक्ष प्रबल है तो बालक उन रोजगारों के चयन को प्राथमिकता देगा जिनमें आर्थिक आय अधिक होती है। यदि परिवार सामाजिक कार्यों में अधिक भाग लेता है तो बालक उन व्यवसायों को प्राथमिकता देगा जिनके द्वारा वह समाज की भलाई के कार्य अधिक कर सके। इस प्रकार परिवार का चिन्तन और कार्य बालक के वृत्तिका चयन को प्रभावित करते हैं।

(vii) परिवार का सांवेगिक स्तर- परिवार की नकारात्मक सांवेगिक स्थिति का बालक के व्यवहार और व्यक्तित्व पर प्रभाव पड़ता है। यदि माता-पिता परस्पर झगड़ते रहते हैं तो वे बच्चों पर अधिक ध्यान नहीं देते हैं। परिणामस्वरूप बालक परिवार में अपने को उपेक्षित अनुभव करता है। ऐसी दशा में वह न तो वृत्ति का विकास कर पाता है और न अपनी क्षमता के अनुरूप वृत्तिका का चयन कर पाता है।

2. बालक की योग्यताएँ एवं क्षमताएँ- बालक की शैक्षिक एवं मानसिक योग्यताएँ भी वृत्तिका विकास और चयन को प्रभावित करती हैं। प्रायः देखा गया है कि उच्च शैक्षिक योग्यता और उच्च बौद्धिक योग्यता वाले बालक उच्च बौद्धिक स्तर वाली जीविकाओं का चयन करते हैं। यह सच भी है कि उच्च शैक्षिक और बौद्धिक कार्यों को उच्च मानसिक क्षमता से युक्त व्यक्ति ही कर पाते हैं। निम्न मानसिक क्षमता वाले बालक प्रायः शारीरिक और कौशल युक्त कार्यों को ही प्राथमिकता देते हैं।

3. आर्थिक कारण– वृत्तिका विकास और चयन में आर्थिक पक्ष की महत्त्वपूर्ण भूमिका रहती है। अधिक आर्थिक आय वाले रोजगार प्रायः प्रत्येक बालक के लिए आकर्षक होते हैं। लेकिन यह भी सत्य है कि वृत्तिका नियोजन में बालक की योग्यता तथा अभिरुचि पर आर्थिक पक्ष की अपेक्षा अधिक ध्यान दिया जाता है। प्रायः देखा गया है कि वेतन कम होने पर भी यदि बालक को अपनी योग्यता और रुचि के अनुरूप वृत्तिका में स्थान मिलता है तो कार्य करते हुए अत्यधिक प्रसन्नता और सन्तुष्टि मिलती है। यह भी सत्य है कि योग्यता और रुचि के अभाव में जो बालक वेतन के आकर्षण में किसी वृत्तिका विकास की तैयारी करते हैं वे असफल होकर अवसाद और दबाव पीड़ित रहते हैं।

4. व्यक्तित्व सम्बन्धी गुण तथा रुचि- व्यक्ति गुणों का प्रारूप होता है न कि कुछ विशेषताओं की सूची मात्र। इसीलिए वृत्तिका विकास और वृत्तिका चयन पर व्यक्तित्व का प्रभाव पड़ता है। बालकों की व्यावसायिक रुचियाँ वृत्तिका विकास में सहायक होती हैं। व्यक्तित्व के गुण बालक के वृत्तिका समायोजन में अधिक सहायता करते हैं। दो प्रकार के व्यक्तित्व वाले व्यक्ति पाये जाते हैं जिनमें से एक अन्तर्मुखी व्यक्तित्व और दूसरे बहिर्मुखी व्यक्तित्व वाले होते हैं। बहिर्मुखी व्यक्तित्व वाले बालक उन रोजगारों में सफल होते हैं जहाँ उनको समाज के अनेक व्यक्तियों से सम्पर्क स्थापित करना होता है जबकि अन्तर्मुखी स्वयं अथवा अपने कार्य में व्यस्त रहता है। अभिरुचि के आधार पर बालक की किसी वृत्तिका में मानी सफलता का अनुमान लगाया जाता है।

5. सरकार की नीतियाँ- सरकार की नीतियाँ भी वृत्तिका विकास को प्रभावित करती हैं। सरकार द्वारा निश्चित की गई आरक्षण नीति का वृत्तिका विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। इससे योग्य बालकों के लिए वृत्तिका अवसरों की कमी हो गई है। दूसरी ओर आरक्षित वर्ग के बालकों को निम्न शैक्षिक योग्यता के मानदण्ड के आधार पर ऐसे उच्च बौद्धिक स्तर वाले रोजगारों में नियुक्ति मिल जाती है जिससे कार्य की गुणात्मकता प्रभावित होती है। इसे हम सामाजिक परिवर्तन का वृत्तिका विकास पर कुप्रभाव कह सकते हैं।

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shubham yadav

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