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संगठन का अर्थ
किसी को अस्तित्त्व में लाना ही संगठन या व्यवस्था कहलाता है। संगठन सीधे रूप में व्यक्तियों द्वारा नियोजन और उनके द्वारा किये गये प्रयत्नों से जुड़ा होता है। संगठन प्रशासन द्वारा निर्धारित लक्ष्य और उद्देश्य को उपलब्ध करने का यह एक माध्यम है। वास्तव में प्रशासन तो क्रियान्वयन स्तर से पूर्व की दशा है और योजना का क्रियान्वयन तो संगठन स्तर पर होता है। यह संगठन की रचना करने वाले व्यक्तियों के समूह की समन्वित क्रियाएँ हैं।
संगठन दो प्रकार का होता है— औपचारिक और अनौपचारिक। औपचारिक संगठन वह है जो बाह्य प्रशासक द्वारा स्थापित होता है। ऐसे संगठन में व्यक्तियों का पदासीन होना बाह्य प्रशासक के आदेश से सम्भव होता है। अनौपचारिक संगठन का उद्भव या तो औपचारिक संगठन से होता है या फिर समूह के पारस्परिक सम्बन्धों के कारण होता है। ऐसे संगठन में सदस्यों के मध्य निकटता का सम्बन्ध होता है और प्रत्येक सदस्य परस्पर अन्तःक्रिया के लिये स्वतंत्र होता है। समूह की रचना स्वेच्छा से होती है। समूह में किसी प्रकार का पदानुक्रम नहीं होता है। विद्यालय में निर्देशन कार्यक्रम उपर्युक्त दोनों प्रकार के संगठन प्रारूप के आधार पर प्रारम्भ किया जा सकता है। लेकिन विद्यालय के कर्मचारी और छात्रों की आवश्यकताओं के आधार पर द्वितीय प्रकार के कार्यक्रम संगठन को प्राथमिकता देना अधिक उचित होगा।
विद्यालयों में निर्देशन कार्यक्रम को उपयोगी बनाने के लिये इसका सुसंगठित और व्यवस्थित होना आवश्यक है। निर्देशन का महत्त्व जानते हुये भी हम लोग भारत में निर्देशन कार्यक्रम को प्रारम्भ करने में असफल रहे हैं। यदि हम अपने देश में विद्यालयों में अध्ययनरत प्रत्येक छात्र को निर्देशन सहायता उपलब्ध कराने का लक्ष्य बना लें तो निर्देशन कार्यक्रम को व्यवस्थित रूप देना होगा। निर्देशन कार्यक्रम को प्रारम्भ करने का दायित्व किसी एक व्यक्ति का उत्तरदायित्व नहीं है। यह एक सामूहिक उत्तरदायित्व है जिसमें विद्यालय के प्रत्येक कर्मचारी का सम्मिलित होना आवश्यक है। इस सम्बन्ध में जोन्स का कथन उपर्युक्त कथन की पुष्टि करता है कि “निर्देशन को विद्यालय के सामान्य जीवन से पृथक् नहीं किया जा सकता है, न इसको विद्यालय के किसी एक भाग में केन्द्रित किया जा सकता है, न इसको परामर्शदाता या प्रधानाचार्य के कार्यालय तक सीमित किया जा सकता है, क्योंकि निर्देशन सहायता देना कम या अधिक मात्रा में देना विद्यालय के स्टॉफ के प्रत्येक सदस्य का उत्तरदायित्व और कर्तव्य है। अतः इस कार्यक्रम में सभी का सहयोग होना तथा उसी प्रकार प्रशासित होना आवश्यक है।”
उपर्युक्त कथन से स्पष्ट है कि विद्यालय में निर्देशन कार्यक्रम का संगठन ऐसा हो जिसमें सभी कर्मचारियों का सहयोग प्राप्त हो सके। कार्यक्रम की सफलता उसमें संलग्न कर्मचारियों की स्वतः प्रेरणा, दूरदर्शिता, दक्षता पर निर्भर रहती है। निर्देशन कार्यक्रम के बारे में को और क्रो का सुझाव है कि “यह अधिक दृढ़ संगठित रूप का न होकर इसमें लचीलापन होना चाहिये ताकि आवश्यकतानुसार इसमें परिवर्तन करना सम्भव हो सके। साथ ही उनका सुझाव है कि कार्यक्रम में सभी सम्बन्धित व्यक्तियों का सहयोग होना चाहिये। “
व्यवस्थित कार्यक्रम के लाभ
एक सुसंगठित तथा व्यवस्थित निर्देशन कार्यक्रम अव्यवस्थित कार्यक्रम की अपेक्षा अधिक मितव्ययी और प्रभावशाली होता है। ऐसे कार्यक्रम में सभी सम्बन्धित व्यक्ति अपने उत्तरदायित्व को नियमानुसार पूरा करते हैं। डाउनिंग ने संगठित कार्यक्रम के लाभों का निम्न रूप में उल्लेख किया है-
1. सुव्यवस्था में स्रोतों तथा संसाधनों का अपव्यय बचता है तथा उपलब्ध सुविधाओं का अधिक लाभ उठाया जा सकता है।
2. छात्र ऐसे कार्यक्रम के उद्देश्य और क्षेत्र से अवगत होते हैं।
3. जो कार्य सफलता के प्रति प्रतिबद्ध है, वह कर्मचारियों तथा छात्रों को अभिप्रेरणा प्रदान कर उनमें रुचि पैदा करता है।
4. लक्ष्य प्राप्ति सुगम हो जाती है और कार्य सम्पन्न करना सरल हो जाता है।
5. छात्रों की आवश्यकताओं का निर्धारण शुद्धतापूर्वक हो सकता है।
6. सभी क्रियाओं में प्रभावशाली सामंजस्य स्थापित हो सकता है।
7. ऐसे कार्यक्रम में कम कर्मचारियों द्वारा लघु अवधि में अधिक छात्रों को सहायता प्रदान की जा सकती है।
8. प्रयासों या कार्यों की पुनरावृत्ति से बचा जा सकता है।
9. सभी कर्मचारियों के उत्तरदायित्वों को स्पष्ट किया जा सकता है।
10. संगठित अवस्था होने पर कुशल निर्देशनकर्मियों तथा अध्यापकों की सेवाओं का अधिक लाभ उठाया जा सकता है।
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