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भाषा का अर्थ एवं परिभाषा लिखिए।
भाषा का अर्थ एवं परिभाषा – भाषा भावों एवं विचारों की अभिव्यक्ति का माध्यम तथा सही साधन होती है। भाषा की प्रमुख क्रियायें बोलना, लिखना, पढ़ना तथा सुनना है। भाषा की शुद्धता से आशय शुद्ध बोलना, शुद्ध लिखना, शुद्ध पढ़ना तथा सुनना है। इन क्रियाओं की शुद्धता व्याकरण पर आधारित होती है अर्थात व्याकरण से इनमें शुद्धता आती है। भाषा का अमूल्य वरदान मनुष्य को ही प्राप्त है। भाषा ईश्वरीय व प्रकृति की देन है लेकिन भाषा का निर्माण व्यक्ति ने स्वयं किया है। विश्व में अनेक भाषाओं का निर्माण हुआ है जिससे वहां के है निवासी अपने भावों एवं विचारों की अभिव्यक्ति एवं सम्प्रेषण करते हैं। भाषा मानवीय कलाकृति है।
मनुष्य सामाजिक प्राणी है तथा समाज में रहने के कारण उसे हमेशा विचारों का आदान प्रदान करना पड़ता है। इस विचार विनिमय का सर्वोत्तम एवं मानवीय माध्यम भाषा है। इस प्रकार जिस वार्तालाप तथा लेख से अपने विचारों को व्यक्त करते हैं वही भाषा है। भाषा के दो रूप हैं-
1. मौखिक भाषा, 2. लिखित भाषा
मनुष्य अपने विचारों को व्यक्त करने के लिए कुछ शब्दों का उपयोग करता है और ये शब्द किसी सार्थक प्रतीकों द्वारा निर्मित होते हैं। इसी प्रकार लेखन के अन्तर्गत भी सार्थक ध्वनि प्रतीकों की वह वयवस्था है जिसके माध्यम से इसके प्रयोक्ता या श्रोता परस्पर विचारों का आदान-प्रदान करते हैं। विचारों का यह आदान प्रदान मौखिक या लिखित दोनो रूपों में हो सकता है।
भाषा की परिभाषा – भाषा के सम्बन्ध में कुछ विद्वानों की परिभाषाएँ निम्न प्रकार हैं रामचन्द्र वर्मा के अनुसार “मुख – से उच्चारित होने वाले शब्दों और वाक्यों आदि का वह समूह जिसके द्वारा मन की बात बतायी जाती है, भाषा कहलाती है।
स्वीट- “धवन्यात्मक शब्दों के द्वारा विचारों को प्रकट करना ही भाषा है”
प्लेटो – “विचार आत्मा की मूक या धवन्यात्मक बातचीत है, लेकिन वही जब धवनयात्मक होकर होठों पर प्रकट होती है तो उसे भाषा की संज्ञा प्रदान करते हैं।”
भोलानाथ तिवारी के अनुसार – “भाषा उच्चारण अवयवों से उच्चारित स्वेच्छाचारी ध्वनि प्रतीकों की वह स्थिति है जिसके द्वारा एक समाज के लोग परस्पर भावों एवं विचारों का आदान प्रदान करते हैं।”
वान्द्रिरा के अनुसार – “भाषा एक प्रकार का चिन्ह है, चिन्ह से आशय उन प्रतीकों से है जिनके द्वारा मानव अपना विचार दूसरों पर प्रकट करता है। ये प्रतीक कई प्रकार के होते हैं जैसे स्पर्श ग्राहा नेत्रग्राहा और श्रोत्राग्राहा।
भाषा की विशेषताएं
भाषा की प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हैं-
1. भाषा स्थूलता से सूक्ष्मता और प्रौढ़ता की ओर जाती है- भाषा प्रारम्भ में स्थूल होती है लेकिन धीरे-धीरे वह सूक्ष्म भावों तथा विचारों के आदान प्रदान के लिए सूक्ष्म तथा अप्रौढ़ से प्रौढ़ होती जाती है। परन्तु ये सभी बातें प्रयोग पर भी निर्भर करती है।
2. भाषा अर्जित सम्पत्ति है – मनुष्य भाषा का अर्जन अपने चारों ओर के वातावरण से करता है। इस तथ्य की पुष्टि अनेक उदाहरणों से की जा सकती है यदि एक भारतीय बालक का अंग्रेजी के वातावरण में पालन पोषण किया जाय तो अंग्रेजी ही सीखता है। अतः स्पष्टतः भाषा अर्जित सम्पत्ति है न कि पैतृक सम्पत्ति ।
3. भाषा का अर्जन अनुकरण द्वारा होता है – भाषा का अर्जन अनुकरण द्वारा होता है। बच्चे के सामने माँ रोटी को रोटी कहती है। वह उसे सुनता है और धीरे धीरे उसे स्वयं कहने का प्रयत्न करने लगता है। वस्तुतः अनुकरण मनुष्य का सबसे बड़ा गुण है। हम भाषा को अनुकरण के द्वारा ही सीखते हैं।
4. भाषा कठिनता से सरलता की ओर अग्रसर होती है- सच्चाई यही है कि मनुष्य – कम श्रम में महत्तम कार्य करना चाहता है। मनुष्य की यही प्रवृत्ति भाषा के लिए भी उत्तरदायी है जैसे-टेलीविजन को मात्र टी० वी० कहकर भी काम चला लिया जाता है। व्याकरण में भी यही नियम लागू होता है जिसके अन्तर्गत शुरू में तो अनेक रूपों तथा अपवादों की अधिकता थी। लेकिन धीरे धीरे आधुनिक भाषाओं तक आते आते नियम बनकर रूप कम हो गये तथा – अपवादों की अधिकता भी कम हो गयी।
5. भाषा चिर परिवर्तनशील है- वस्तुतः भाषा के मौखिक रूप को भाषा कहा जाता है लिखित रूप तो उसके पीछे पीछे चलता है। मौखिक भाषा को व्यक्ति अनुकरण द्वारा सीखता है लेकिन अनुकरण सदैव अपूर्ण होता है इसी कारण भाषा में सदैव परिवर्तन होते रहते हैं। अनुकरण पर शारीरिक तथा मानसिक विभिन्नता का प्रभाव पड़ता है जिसकी सूक्ष्म विभिन्नता भी भाषा में परिवर्तन का कारण बन जाती है।
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