B.Ed./M.Ed.

मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से निर्देशन की आवश्यकता

मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से निर्देशन की आवश्यकता
मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से निर्देशन की आवश्यकता

मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से निर्देशन की आवश्यकता

मनोवैज्ञानिक दृष्टि से व्यक्ति के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास ही हमारी सम्पूर्ण शिक्षा प्रणाली का उद्देश्य है तथा मनुष्य का व्यवहार मूल प्रवृत्ति तथा उसके मनोभावों द्वारा प्रभावित होता है। उसकी मनो-शारीरिक आवश्यकताएँ होती हैं। इन आवश्यकताओं की सन्तुष्टि और मनोभाव व्यक्ति के व्यक्तित्व का निर्धारण करते हैं। व्यक्तित्व पर वातावरण का भी प्रभाव पड़ता है। वातावरण को सही दिशा में लाने हेतु निर्देशन की आवश्यकता होती है। यदि व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास में कुछ अवरोध उत्पन्न होते हैं, तो वे अवरोध व्यक्ति व समाज के लिए घातक सिद्ध हो सकते हैं। इससे व्यक्ति का व्यवहार असामान्य हो जाता है और उसमें मानसिक व संवेगात्मक विकृतियाँ पैदा हो जाती हैं। इन विकृतियों को निर्देशन सेवाओं द्वारा ही दूर किया जा सकता है। मनोवैज्ञानिक दृष्टि से निर्देशन की आवश्यकता अग्रलिखित तथ्यों के अन्तर्गत होती है-

1. संवेगात्मक विकास हेतु निर्देशन की आवश्यकता– मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से मनुष्य के जीवन में भावात्मक सन्तुलन का विशेष महत्त्व है क्योंकि मनुष्य के व्यक्तित्व का सन्तुलन उसके भावात्मक विकास पर ही निर्भर करता है। इससे व्यक्तित्व विकृत होने लगता है। अतः भावात्मक विकास हेतु संवेगात्मक विकास करना होगा। इस संवेगात्मक विकास के लिए परिवार, समुदाय, विद्यालय, पड़ोस आदि सभी उत्तरदायी हैं। जिन परिवारों में बालकों की आवश्यकताओं पर ध्यान नहीं दिया जाता है और उनकी समस्याओं का समाधान सहानुभूतिपूर्ण दृष्टिकोण से नहीं किया जाता वहाँ बालकों में अनेक दूषित भावनाएँ विकसित हो जाती हैं। बालकों के व्यवहार में हठ, क्रोध और स्वार्थ उत्पन्न हो जाता है तथा घृणा, उपेक्षा और निराशा की भावनाएँ पैदा हो जाती हैं। ये लोग अपने माता-पिता के आदेशों का पालन नहीं करते, उनका मन किसी काम में नहीं लगता। इसी प्रकार समुदाय में बालक का युवा होने पर अनेक समस्याओं से वास्ता पड़ता है, व्यावसायिक असफलता, समाज का उपेक्षापूर्ण व्यवहार, यौन एवं प्रेम की समस्याएँ आदि उसके जीवन को अस्थिर बना देती हैं।

जो माता-पिता अपने उत्तरदायित्वों की पूर्ति नहीं कर पाते हैं तथा सन्तानों से उन्हें अपेक्षित व्यवहार भी नहीं प्राप्त होता है वे व्यक्ति सामान्य नहीं रह पाते हैं। इसी तरह विद्यालय एवं पड़ोस का वातावरण भी व्यक्ति के संवेगात्मक सन्तुलन को बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। विद्यालय में बालकों के साथ अध्यापकों का उपेक्षापूर्ण व्यवहार उनकी संवेगात्मक स्थिति के सन्तुलन के लिए घातक होता है। यही स्थिति पड़ोसियों के व्यवहार के आधार पर उत्पन्न होती है। अमीर परिवार के बच्चों और गरीब परिवार के बच्चों में उपेक्षा और हीनता की भावना का विकास होता है। इस प्रकार बच्चों के सामने अनेक समस्याएँ पैदा होती हैं। इन परिस्थितियों में यदि व्यक्ति को उचित निर्देशन न मिले तो व्यक्ति का व्यक्तित्व असामान्य हो जाता है और संवेगात्मक विकास असन्तुलित हो जाता है। इन समस्याओं का समाधान निर्देशन के द्वारा ही सम्भव हो सकता है।

2. समाज के साथ समायोजन हेतु निर्देशन की आवश्यकता- मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज में रहते हुए वह जब तक सम्मान के साथ समायोजन नहीं बना पाएगा तब तक कुशल और प्रसन्नता का जीवन व्यतीत नहीं कर सकता है। इसलिए समाज के साथ समायोजन की क्षमता एवं योग्यताओं के विकास के लिए यह आवश्यक है कि उसे उसकी रुचि व योग्यता के अनुकूल अवसर प्राप्त हों। अगर किसी व्यक्ति को उसके परिवार में उसकी रुचि व योग्यता को प्रदर्शित करने के अवसर प्रदान किए जाएँ, तो वह परिवार से प्रेम करने लगेगा तथा परिवार के साथ समायोजन में कठिनाई नहीं आएगी। उसी प्रकार विद्यालय में भी उसके पाठ्यक्रम चयन व अध्यापकों की असंगति के कारण समायोजन की समस्या पैदा हो सकती है। विद्यालय के बाद रुचि का व्यवसाय न मिलने पर भी व्यक्ति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इस प्रकार की परिस्थितियों में समाज के साथ समायोजन करने के लिए निर्देशन की आवश्यकता होती है।

3. वैयक्तिक विभिन्नताओं के विकास हेतु निर्देशन की आवश्यकता– मनोवैज्ञानिक अनुसन्धानों द्वारा यह सिद्ध हो चुका है कि कोई भी दो व्यक्ति एक जैसे नहीं होते हैं। उनके व्यक्तित्व के अनेक पहलू एक-दूसरे से भिन्न होते हैं। उनके व्यवहार, सोच, कार्य करने की दशा में बहुत अन्तर होता है। व्यक्ति के व्यवहार को बदलने के लिए यह आवश्यक है कि इन वैयक्तिक विभिन्नताओं को महत्त्व दिया जाए तथा उनकी पहचान की जाए। शिक्षा बाल केन्द्रित होनी चाहिए इस सिद्धान्त का निर्धारण वैयक्तिक विभिन्नताओं के आधार पर ही किया गया है। इसी वजह से शिक्षक के बजाय बालक को अधिक क्रियाशील बनाने पर अधिक बल दिया जा रहा है। बालक के विकास की प्रक्रिया से अधिक जटिल है छात्रों की वैयक्तिक विभिन्नताओं के सम्बन्ध में जानकारी करना। विभिन्नताओं के बारे में जानकारी करने के बाद विकास की सही दिशा प्रदान करने की आवश्यकता होती है। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए निर्देशन सेवाओं की सहायता ली जा सकती है।

4. व्यक्तित्व के विकास हेतु निर्देशन की आवश्यकता- व्यक्तित्व शब्द बहुत ही व्यापक और जटिल है। इसे समझना आसान कार्य नहीं है। इसके अन्तर्गत व्यक्ति की मनो-शारीरिक विशेषताएँ सम्मिलित होती हैं। व्यक्ति के व्यक्तित्व का सम्पूर्ण विकास करना शिक्षा का मुख्य उद्देश्य है। कोई व्यक्ति भविष्य में अपने जीवन काल में क्या करेगा, वह क्या बनेगा, वह किस क्षेत्र में अपना योगदान दे सकता है। इसका निर्धारण उसके व्यक्तित्व पर निर्भर करता है। इसके बारे में पता लगाने के लिए अनेक मनोवैज्ञानिक परीक्षण तैयार हो चुके हैं। किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास किस दिशा में करना है उसके लिए उसे किस प्रकार की सहायता करना चाहिए, यह निर्देशन द्वारा सम्भव है। आनुवंशिक विशेषताओं को बदलना तो बहुत कठिन है, परन्तु पर्यावरणीय क्रियाओं को निर्देशन द्वारा नियन्त्रित किया जा सकता है जो व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास में बाधक होती हैं। आत्मविश्वास एवं दृढ़ इच्छा शक्ति द्वारा कठिन से कठिन कार्य को भी निर्देशन सेवाओं द्वारा हम पूरा कर सकते हैं।

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shubham yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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