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शिक्षा का प्राचीन अर्थ | Ancient meaning of education in Hindi

शिक्षा का प्राचीन अर्थ
शिक्षा का प्राचीन अर्थ

शिक्षा का प्राचीन अर्थ (Ancient meaning of education)

प्राचीनकाल में शिक्षा का अभिप्राय आत्म-ज्ञान तथा आत्म-प्रकाश के साधन के रूप में लिया जाता था। प्राचीन यूनान में व्यक्ति को राजनैतिक, मानसिक, शारीरिक एवं नैतिक सौन्दर्य के लिये शिक्षा दी जाती थी। रोम में शिक्षा का उद्देश्य केवल वीर सैनिक उत्पन्न करना था। प्राचीनकाल में हमारे देश में नीति नियम था, अनुशासन था, जो धर्म और सत्य का पर्याय होते हुए भी जीवन का गन्तव्य था। हमारा आचरण नीतिपरक था साथ ही शारीरिक और आत्मिक सम्बन्ध भी नैतिकता से ओतप्रोत था। नीति हमारी संस्कृति की नींव थी, जिस पर हमारे जीवन का भवन व्यवस्थित था। यही कारण है कि नीति-आधारित संस्कारजन्य शिक्षा व्यवस्था से हम सुखी थे। प्राचीन शिक्षा का उद्देश्य मनुष्य को नैतिक जीवन से पारेपूर्ण करना था और शिक्षा द्वारा वालक में अन्तःशक्तियों का विकास में तथा मानवीय ज्ञान का प्रकाश पैदा करना था। इस सभी के लिये शिक्षा द्वारा नैतिक आचरण पर बल दिया जाता था। इसी आदर्श को हृदयंगम कर वैदिक ऋषि समुदाय लोक कल्याण एवं आत्मिक विकास के लिये परमात्मा से प्रार्थना करते थे। इस प्रकार प्राचीन शिक्षा का मूल आधार नैतिक शिक्षा थी। मनुष्य की बुद्धि को यथाशक्ति पवित्र तथा संयमी बनाना शिक्षा का लक्ष्य था। उस समय नैतिक शिक्षा पर ही सम्पूर्ण बल दिया जाता था। “ठोस, गहरी एवं मजबूत नींव पर ही सुदृढ एवं ऊँची इमारत बन सकती है।” अत: बालकों की प्रारम्भिक शिक्षा में चारित्रिक विकास के महत्त्व को सर्वोपरि माना गया था। प्राचीन काल में मानवीय गुणों पर पैनी दृष्टि रखी जाती थी, बुद्धि और विवेक को सदैव मानवता की और उन्मुख रखना, शिक्षा का प्रथम और अन्तिम उद्देश्य था। प्राचीन शिक्षा में सत्यम् शिवम् सुन्दरम् के अनुसार विश्व-कल्याणार्थ सदैव सदाचारी चिन्तन किया जाता था। छात्र तपस्वी एवं व्रती बनकर शिक्षा प्राप्त करते थे। संयम से रहना उनका प्रमुख उद्देश्य था। सम्पूर्ण विश्व में नैतिक शिक्षा का युग दृष्टिगोचर होता था। छात्रों में गुरू एवं अपने से बड़ों के लिये आदर एवं श्रद्धाभाव था। किन्तु आज की शिक्षा में नैतिक मूल्यों का लगभग अभाव है। आज छात्र अपने गुरूजनों का अपमान कर स्वाभिमान से जीने की बात करते हैं, इसमें गरिमा का अनुभव करते हैं। प्राचीनकाल में सम्पूर्ण समाज में गुरूओं का आदर होता था।

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shubham yadav

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