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समूह परिचर्या का अर्थ
समूह परिचर्चा मुख्यतः विचारों के आदान-प्रदान का मौलिक स्वरूप है जिसमें दो पक्ष किसी विषय से सम्बन्धित अपने-अपने विचारों का परस्पर आदान-प्रदान करते हैं। हरबर्ट गुली ने परिचर्चा के बारे में लिखा है, “परिचर्चा उस समय होती है जब व्यक्तियों का एक समूह आमने-सामने की स्थिति में एकत्रित होकर मौखिक अन्तःक्रिया द्वारा सूचनाओं का आदान-प्रदान करते हैं या किसी सामूहिक समस्या पर कोई निर्णय लेते हैं।” इस परिभाषा के अध्ययन से परिचर्चा की कुछ विशेषताओं की ओर के ध्यान आकृष्ट होता है-
1. समूह की उपस्थिति – परिचर्चा के लिये प्रथम विशेषता समूह की उपस्थिति से सम्बन्धित है। यह दूसरी बात है कि समूह छोटा या बड़ा हो सकता है।
2. विचारों का मौखिक आदान-प्रदान- समूह के व्यक्ति आमने-सामने बैठकर अपने अपने विचार मौखिक रूप में व्यक्त करते हैं। अन्य व्यक्ति उन विचारों पर अपनी प्रतिक्रिया अभिव्यक्त करते हैं।
3. अन्तः क्रिया का होना- समूह के प्रत्येक सदस्य को अपने विचार रखने की स्वतंत्रता – होती है। बिना अन्तःक्रिया के परिचर्चा सम्भव नहीं है।
4. उद्देश्यपूर्ण चर्चा– परिचर्चा सदैव उद्देश्यपूर्ण होती है और उद्देश्य समूह के सभी व्यक्तियों को स्पष्ट होता है। परिचर्चा या तो किसी समस्या या किसी निर्णय लेने से सम्बन्धित होती है।
5. परिचर्चा का क्रमबद्ध विकास– परिचर्चा में चल रही विचार-विमर्श की प्रक्रिया का क्रमबद्ध रूप में विकास होता है।
6. नेता की उपस्थिति– परिचर्चा में नेतृत्व प्रदान करने की उपस्थिति आवश्यक है। नेतृत्व के अभाव में परिचर्चा में भटकाव पैदा हो सकता है।
सामूहिक परिचर्चा का संगठन
परिचर्चा के संगठन या संचालन के लिये निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिये-
1. परिचर्चा की योजना बनाना–परिचर्चा प्रारम्भ करने से पूर्व उसकी योजना बनाने में तीन बातों पर ध्यान देना चाहिये वे निम्न हैं-
(अ) परिचर्चा प्रारम्भ करने के पूर्व जिन कार्यों की योजना बनानी चाहिये,
(i) भौतिक सुविधाओं की योजना में भवन, उपकरण, फर्नीचर आदि सम्मिलित हैं।
(ii) भागीदारों का चयन करते समय ध्यान रहे कि वे एक प्रकार की समस्या से ग्रसित हों तथा नेतृत्व के लिये नेता का चयन कर लेना चाहिये।
2. सूचना संग्रहण – सूचना प्रदान करने के लिये पहले से ही सूचनाओं का संग्रह कर लेना चाहिये। कभी-कभी विशेषज्ञों को भी आमंत्रित करना चाहिये ।
3. भाषा – परिचर्चा में ऐसी भाषा का प्रयोग हो जिसको सभी सदस्य समझते हों और जिसमें विचारों का आदान-प्रदान सुगम हो ।
4. अभिवृत्ति तथा आचार नीति- परिचर्चा संचालक तथा भागीदारों की अभिवृत्ति तथा आचार-विचार पर इसकी सफलता निर्भर रहती है। परिचर्चा में वस्तुनिष्ठता होनी चाहिये।
5. भागीदारों का सहयोग- परिचर्चा की सफलता के लिये भागीदारों का सहयोग आवश्यक है।
सामूहिक परिचर्या के लाभ
शिक्षण और निर्देशन दोनों ही क्षेत्रों में परिचर्चा प्रविधि का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इस प्रविधि के कुछ लाभ निम्नलिखित हैं-
1. सही निर्णय सम्भव- परिचर्चा के माध्यम से पाठ्यक्रम निर्माण, छात्रों की समस्याओं, शर्मीले छात्रों के बारे में कुछ उपयोगी और सही निर्णय लिये जा सकते हैं।
2. श्रम विभाजन सम्भव- परिचर्चा सम्मिलित सदस्यों को छोटे समूहों में विभक्त करके प्रत्येक समूह को समस्या का एक-एक भाग आबंटित कर दिया जाये तो प्रत्येक समूह उस पर चर्चा करके निर्णय पर पहुँचेगा। ऐसा करके श्रम विभाजन का लाभ प्राप्त होगा।
3. सामाजिकता का विकास– परिचर्चा में होने वाली अन्तःक्रिया के कारण छात्रों में सामाजिकता का विकास होता है। इससे छात्रों का व्यवहार परिमार्जित होकर उनके आचार-विचारों में परिवर्तन होता है।
4. व्यक्तित्व का विकास– परिचर्चा में भाग लेने से छात्र वार्तालाप का ढंग सीखते हैं और समस्या समाधान और तर्कशक्ति का विकास होता है। तथ्यों का विश्लेषण कर निर्णय तक पहुँचने की क्षमता का विकास होता है। इस प्रकार यह प्रविधि व्यक्ति के विकास में सहायक है।
5. समूह के निर्णय उत्तम होते हैं— समूह द्वारा लिये गये निर्णय समस्या के विभिन्न पक्षों पर चर्चा करके लिये जाते हैं। अतः सामूहिक निर्णय व्यक्तिगत निर्णयों से अधिक उत्तम होते हैं।
6. समूह प्रेरणा का स्रोत– समूह में परिचर्चा के समय सभी सदस्य अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करने के उद्देश्य से अपनी योग्यता तथा क्षमता का अधिकतम प्रदर्शन करते हैं। इस प्रकार समूह उनको प्रेरणा प्रदान करता है।
7. समय की बचत- सामूहिक परिचर्चा द्वारा निर्देशन सम्बन्धी कार्य करने में समय की बचत होती है।
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