अनुक्रम (Contents)
स्कूल पाठ्यक्रम में समाजशास्त्र का स्थान
स्कूल पाठ्यक्रम में समाजशास्त्र का स्थान- समाजशास्त्र को स्कूल पाठ्यक्रम में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। आज समाजशास्त्र विषय देश भर के स्कूलों में पढ़ाया जा रहा है। इसका श्रेय माध्यमिक शिक्षा आयोग को है।
इस विषय सामग्री ऐसी हो जिसमें छात्रो को सामाजिक पर्यावरण के अन्तर्गत परिवार, समुदाय, राज्य तथा राष्ट्र के पर्यावरणो का स्थान प्राप्त हो जिससे छात्र उन सामाजिक के शक्तियो एवं आंदोलनो के विषय में जान सके जिनमें वे रहते है। वर्तमान समय में हो रहे सामाजिक परिवर्तन से मानवीय संबंधो में जटिलता आ रही है।
इस जटिलता को समझने एवं समाज में व्यवस्थित होने के लिए सामाजिक विषयों का ज्ञान होना आवश्यक है। आज देश में जहाँ वैज्ञानिक प्रगति हो रही है वहीं दूसरी तरफ सामाजिक समस्याओं जैसे साम्प्रदायिकता, जातिवाद, आतंकवाद आदि बुराईया फैल रही है। इन बुराईयों से समाज को सुरक्षित करने हेतु शिक्षा प्रणाली में ऐसे विषय की आवश्यकता महसूस की गयी जो वैज्ञानिक प्रगति के साथ सामाजिक सामंजस्य कर सके।
शिक्षाविदों ने अध्ययन के बाद पाया की समाजशास्त्र के पढ़ने से मानव में सामाजिक कुशलता एवं सहयोग की योग्यता उत्पन्न होती है। जब छात्रों को समाजशास्त्र स्कूल स्तर पर पढ़ाया जाएगा तो उनमें सामाजिक गुण एवं आदर्शों का निर्माण होगा। जो सामाजिक चरित्र निर्माण के लिए आवश्यक है। स्कूल पाठ्यक्रम में समाजशास्त्र की स्थिति निम्नलिखित दृष्टिकोण के आधार पर है:
1. सामाजिक
2. शैक्षिक
3. मनोवैज्ञानिक
1. सामाजिक
आज सभी समाजशास्त्री, शिक्षाशास्त्री, मनोवैज्ञानिक तथा अध्यापक वर्ग इस पर एकमत है कि समाजशास्त्र की शिक्षा अति महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके द्वारा ही विद्वेषो, द्वंद तथा भेद-भाव को दूर किया जा सकता है। अंतर्राष्ट्रीय तनाव तथा युद्ध की सम्भावना को तभी दूर किया जा सकता है जब मानवीय संबंध अच्छे होंगे। ड्यूवी के अनुसार समस्त शिक्षा जाति सामाजिक चेतना द्वारा ही प्रस्फुटित होती है। इससे यह प्रतीत होता है कि समाजशास्त्र को पाठ्यक्रम में इसी सामाजिकता की भावना से स्थान प्रदान किया गया है।
समाजशास्त्र का उद्देश्य सामाजिक चरित्र का निर्माण करना है। यह कार्य व्यक्ति समाज में रहकर ही कर सकता है। समाजशास्त्र छात्रों को अपनी जीवन क्रियाओं के जानने-परखने में भी सहयोग देता है। जब छात्र अध्ययन करेंगे तब उनमें विभिन्न व्यवसायों तथा उनकी योग्यताओं का ज्ञान जाएगा जो छात्रो की रूचि को निर्धारित करेगा।
समाजशास्त्र के द्वारा छात्रो में कई प्रकार की रूचियाँ उत्पन्न की जा सकती है जो अवकाश के समय के सदुपयोग के लिए उपयोगी होगी। इन विभिन्न प्रकार के मूल्यों के कारण ही समाजशास्त्र को स्कूल पाठ्यक्रम में स्थान दिया गया है।
2. शैक्षिक
मनोविज्ञान विषय के अनुसार हमारे मस्तिष्क में कल्पना, निर्णय, स्मरण, तर्क, चिन्तन आदि शक्तियाँ है। मनोविज्ञान के अनुसार विभिन्न विषयो द्वारा विभिन्न शक्तियो का विकास किया जा सकता है। किसी एक शक्ति को विकसित करने के लिए एक विशेष विषय का अध्ययन किया जाता है। प्रशिक्षण के द्वारा मस्तिष्क की शक्ति विकसित की जाती है इसे मानसिक प्रशिक्षण कहा जाता है इस दृष्टिकोण से समाजशास्त्र महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके द्वारा छात्रो में तर्क तथा निर्णय लेने की शक्ति का विकास होता है।
सिरिल बर्ट ने बल दिया है कि समाजशास्त्र द्वारा शिक्षा का स्थानान्तरण अधिक होता है। समाजशास्त्र में छात्रों को विचार, तर्क, निर्णय, स्मरण तथा कल्पना शक्ति के अवसर प्राप्त होते है। समाजशास्त्र की पाठ्य सामग्री अखण्ड होती है जो सीखने की प्रक्रिया के लिए आवश्यक है। गेस्टाल्ट मनोविज्ञान के अनुसार सीखने की प्रक्रिया सम्पूर्ण की जाती है अर्थात् सम्पूर्ण का ज्ञान देने के बाद अंश का ज्ञान दिया जाए। इस प्रक्रिया को सरलता से सीखा जा सकता है। इस सिद्धांत को समाजशास्त्र में उपयोग किया जा सकता है।
समन्वय के सिद्धांत के आधार पर भी समाजशास्त्र को पाठ्यक्रम में स्थान दिया जाता है। इसके अन्तर्गत सभी सामाजिक तत्वों का समन्वय किया जाता है। उपरोक्त पक्षो के आधार पर समाजशास्त्र को पाठ्यक्रम में स्थान दिया जा रहा है।
3. मनोवैज्ञानिक
मनोवैज्ञानिको के अनुसार छात्र के व्यक्तित्व निर्माण में वातावरण की मुख्य भूमिका होती है। बुद्धि-लब्धि के सिद्धांत के अनुसार बुद्धि को अनुकूल वातावरण द्वारा बढ़ाया जा सकता है। समाजशास्त्र का पठन-पाठन छात्रो को अच्छे एवं बुरे का ज्ञान देता है और उन्हें अपनी आवश्यकता या रूची के अनुसार वातावरण निर्माण का अवसर भी देता है। छात्र अपनी रूची के अनुसार, कौन सा वातावरण लाभप्रद होगा जिससे उसके व्यक्तिव का विकास होगा, चुन सकता है। जॉन ड्यूवी के अनुसार शिक्षा जीवन है। जब शिक्षा जीवन है तो छात्र अपने वातावरण की ठोस परिस्थितियों से प्राप्त अनुभव द्वारा बहुत कुछ तथा आसानी से सीख सकता है। छात्र अपने दैनिक जीवन में भी बहुत कुछ सीखता है। समाजशास्त्र दैनिक जीवन की परिस्थितियों की समझ देता है और इस समझ के लिए समाजशास्त्र आवश्यक है।
उपरोक्त सामाजिक, शैक्षिक एवं मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण के कारण स्कूल पाठ्यक्रम में समाजशास्त्र को स्थान दिया जा रहा है।
इसी भी पढ़ें…
- मनोगामक कौशलों हेतु प्रशिक्षण से आप क्या समझते हैं? | कौशल शिक्षण के सोपान
- वृत्तिका विकास से आप क्या समझते हैं?
- वृत्तिका विकास तथा रोजगार चयन को प्रभावित करने वाले कारक
- रोयबर द्वारा वृत्तिक विकास के महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त
- वृत्तिका विकास का बहुलर द्वारा किए गए वर्गीकरण
- निर्देशन का महत्त्व
- निर्देशन के विभिन्न सिद्धान्त
- निर्देशन कार्यक्रम की विशेषताएँ
- निर्देशन कार्यक्रम को संगठित करने के उपाय, विशेषताएँ तथा प्रकार
- निर्देशन का क्षेत्र, लक्ष्य एवं उद्देश्य
- निर्देशन का अर्थ | निर्देशन की परिभाषा | निर्देशन की प्रकृति | निर्देशन की विशेषताएँ
- निर्देशन की आवश्यकता | सामाजिक दृष्टिकोण से निर्देशन की आवश्यकता
- अभिप्रेरणा क्या है ? अभिप्रेरणा एवं व्यक्तित्व किस प्रकार सम्बन्धित है?
- अभिप्रेरणा की विधियाँ | Methods of Motivating in Hindi
- अभिप्रेरणा का अर्थ, परिभाषा एवं प्रकार
- अभिप्रेरणा को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक
- अभिक्रमित अनुदेशन का अर्थ, परिभाषाएं, प्रकार, महत्त्व, उपयोग/लाभ, सीमाएँ
- शिक्षा में सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी का अनुप्रयोग
- शिक्षा में सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी का क्षेत्र