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मनोगामक कौशलों हेतु प्रशिक्षण से आप क्या समझते हैं? | कौशल शिक्षण के सोपान

मनोगामक कौशलों हेतु प्रशिक्षण
मनोगामक कौशलों हेतु प्रशिक्षण

मनोगामक कौशलों हेतु प्रशिक्षण

शिक्षा का उद्देश्य केवल बौद्धिक और सामाजिक विकास करना ही नहीं है अपितु शारीरिक विकास करना भी है। अनुदेशन में शारीरिक विकास के लिए क्रियात्मक पक्ष पर ध्यान दिया जाता है। क्रियात्मक पक्ष के उद्देश्यों की प्राप्ति कुछ कौशलों के विकास की सहायता से की जाती है। शरीर के विभिन्न अंगों के संचालन में कुशलता को सामान्य भाषा में मनोगामक कौशल कहते हैं। मनोगामक योग्यता व्यक्ति के वे सामान्य गुण होते हैं जिनका सम्बन्ध अनेक प्रकार के कौशलों से होता है। क्रो एवं क्रो के अनुसार, “गामक विकास से आशय उन शारीरिक क्रियाओं से है जो नाड़ियों और मांसपेशियों की क्रियाओं के समन्वय से सम्भव होती हैं।”

मनोगामक कौशल में तीन विशेषताएँ होती हैं जो निम्नलिखित हैं—

1. इस प्रकार के कौशल में शारीरिक तथा मांसपेशीय अनुक्रिया एक श्रृंखला के रूप में होती हैं।

2. इसमें शारीरिक और मांसपेशीय गतिविधियों का समन्वय रूप में संचालन होता है।

3. मनोगामक कौशल व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक और मांसपेशीय क्षमताओं पर निर्भर होता है। मनोगामक कौशल का शिक्षण तीन अवस्थाओं में किया जाता है-

1. ज्ञानात्मक अवस्था – इस प्रथम अवस्था में कौशल से सम्बन्धित सैद्धान्तिक ज्ञान दिया जाता है। इसमें कौशल के विकास के लिए आवश्यक क्रियाएँ मौखिक रूप में छात्रों को समझाई जाती हैं।

2. स्थिरीकरण अवस्था- प्रथम चरण में कौशल विकास के लिए आवश्यक जिन क्रियाओं को प्रदर्शन द्वारा छात्र को समझाया गया, उनका अभ्यास द्वितीय चरण में करवाया जाता है। अभ्यास इतना अधिक करवाना चाहिये कि वह कौशल आदत बन जाए।

3. स्वायत्त- कार्य करने की आदत तीसरी अवस्था में स्वचालन का रूप धारण कर लेगा। जब छात्र स्वतः सुधरे रूप में कार्य करने लगे तो उसे स्वचालन कहते हैं।

कौशल शिक्षण के सोपान

मनोगामक कौशल के शिक्षण के लिए निम्नलिखित सोपानों का उपयोग किया जाता है-

1. कौशल का विश्लेषण- जिस कौशल का प्रशिक्षण देना है उसका सर्वप्रथम विश्लेषण करना आवश्यक है। विश्लेषण में कौशल के सभी पक्षों पर विचार करना आवश्यक है।

2. पूर्व व्यवहारों का मापन करना- प्रशिक्षण के दूसरे चरण में पूर्व आवश्यक व्यवहारों का मापन ज्ञानात्मक, स्थिरीकरण और स्वायत्त स्तर पर करना चाहिये। कौशल के लिए आवश्यक शारीरिक और क्रियात्मक क्षमताओं को निश्चित करना भी आवश्यक है।

3. कौशल के तत्त्वों के प्रशिक्षण की व्यवस्था करना- इसमें ऐसे अवसर पैदा किये जाते हैं जिनमें छात्र नवीन कौशल का अभ्यास कर सके।

4. कौशल की व्याख्या तथा प्रदर्शन करना- इस सोपान में शिक्षक कौशल के सभी तत्त्वों को समझाता है और इसके बाद कौशल अभ्यास का अवसर दिया जाता है।

5. बुनियादी अधिगम परिस्थिति पैदा करना- इसमें तीन बुनियादी परिस्थितियों तथा समीपता, अभ्यास और पुनर्बलन को एक ही अधिगम परिस्थिति में समन्वित किया जाता है।

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shubham yadav

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