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मृदा प्रदूषण (SOIL POLLUTION)
मृदा को असंपीडित (unconsolidated) कणों की एक परत के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो अपक्षयित पत्थरों, कार्बनिक पदार्थो, जल तथा वायु से बनती है जो पृथ्वी के अधिकांश भाग के ऊपर एक ऊपरी सतह बनाती है और उत्पादकता, पादपों की गुणवत्ता तथा भौमजल को कम करते हैं। यदि मृदा अपरदन पाप वृद्धि में सहायक होती है। मृदा प्रदूषण मृदा में होने वाला वह बदलाव है जो ऐसे पदार्थों तथा कारकों के उसमें मिलने या उसमें से निकल जाने से होता है जो उसकी उत्पादकता, पादपों की गुणवत्ता तथा भौमजल को कम करते हैं। यदि मृदा अपरदन (erosion) अथवा अत्यधिक उपयोग के कारण मृदा की उत्पादकता में कोई कमी आती है तो इसे ऋणात्मक मृदा प्रदूषण (negative soil pollution) कहते हैं और यदि उत्पादकता में कमी मृदा में अवांछित तत्त्वों के मिलने (जैसे-पीड़कनाशी तत्त्वों, उर्वरकों, औद्योगिक व्यर्थ पदार्थों, सफाई की कमी) के कारण होती है तो यह धनात्मक मृदा प्रदूषण (Positive soil pollution) कहलाता है। भूदृश्य/तृतीय प्रदूषण उर्वरक भूमि में निरन्तर व्यर्थ पदार्थ (उदाहरण राख, कीचड़, कचरा, कूड़ा, औद्योगिक व्यर्थ पदार्थ, टूटे डिब्बे, बोतलें आदि) डालते रह कर उसे बंजर भूमि में परिवर्तित करना है।
कारण (CAUSES)
(i) उद्योगों के बहिःस्त्राव/व्यर्थ पदार्थ (Effluents/Wastes Industries)- ये उन उद्योगों के होते हैं जो कागज, रसायन, रबर, पेट्रोलियम उत्पाद, सीमेन्ट, चीनी, उर्वरक, कपड़ा, पीड़कनाशी पदार्थों आदि का निर्माण करते हैं। बहि:स्रावों में अनेकों विषाक्त पदार्थ जैसे सायनाइड, अम्ल, क्षार, क्रोमेट तथा धातुएँ जैसे पारद, ताँबा, जस्ता, सीसा, कैडमियम आदि होते हैं। भट्टियों से भी फ्लाई ऐश (fly ash) निकलती है जो न सिर्फ मृदा को प्रदूषित करती है बल्कि वायु तथा जल को भी प्रदूषित करती है।
(ii) कृषि रसायनों का अत्यधिक उपयोग (Excessive Use of Agrochemicals)- ये प्राकृतिक सूक्ष्म वनस्पतिजात् (microflora) में कमी करके मृदा का क्षरण करते हैं। प्रदूषकों के भूमि में निक्षालन (leaching down) से भौमजल प्रदूषित हो जाता है (तृतीय विष)। कृषि रसायनों में पीड़कनाशी (जैसे कीटनाशक, कवकनाशक) शैवालनाशक, रोडेन्टनाशक तथा खरपतवारनाशक तत्त्व तथा उर्वरक सम्मिलित हैं। प्रचलित उपयोग किए जाने वाले कुछ पीड़कनाशी हैं-डी०डी०टी०, एल्ड्रिन, मेलेथियॉन, पेराथियॉन, बी०एच०सी० (बेन्जीन हैक्सा क्लोराइड), डाइएल्ड्रिन आदि।
(iii) व्यर्थ पदार्थ सन्निक्षेप (Waste Dumps)- शहरी व्यर्थ पदार्थों, औद्योगिक व्यर्थ पदार्थों तथा चिकित्सीय अथवा अस्पताल के व्यर्थ पदार्थों के सन्निक्षेपण से मृदा प्रदूषित हो जाती है। शहरी व्यर्थ पदार्थों में घरेलू तथा रसोई में बर्तन आदि की धुलाई का गंदा पानी, मवेशी तथा मुर्गी पालन के व्यर्थ पदार्थ, बूचड़खाने के व्यर्थ पदार्थ तथा कचरे के रूप में फेंके गए ठोस व्यर्थ पदार्थ सम्मिलित हैं। इसमें अरबों टन कचरा जैसे घरेलू व्यर्थ पदार्थ, कागज, प्लास्टिक, धातु के डिब्बे, पेटियाँ, रद्दी कपड़े, जूते तथा पठन सामग्री आदि सम्मिलित हैं। औद्योगिक तथा चिकित्सीय ठोस व्यर्थ पदार्थ भी मृदा प्रदूषण का प्रमुख स्रोत है। अस्पताल के व्यर्थ पदार्थों में कार्बनिक पदार्थ, रसायन, धातु की सुइयाँ, प्लास्टिक तथा गैस बोतलें, पट्टियां आदि होती हैं।
(iv) रेडियोधर्मी व्यर्थ पदार्थ (Radio Active Waste)- नाभिकीय विस्फोटों से होने वाले रेडियोधर्मी अवपात (fallout) तथा नाभिकीय परीक्षण प्रयोगशालाओं और नाभिकीय ऊर्जा केन्द्रों के रेडियोधर्मी व्यर्थ पदार्थ भी मृदा को प्रदूषित करते हैं। रेडियोधर्मी पदार्थ मृदा में लम्बे समय तक बने रहते हैं क्योंकि सामान्यत: उनकी अर्ध आयु (half life) लम्बी होती है। उदाहरण के लिए स्ट्रॉन्शियम-90 (Strontium-90) की अर्ध आयु 28 वर्ष
(v) जैविक रोगाणु (Biological Pathogens)- मानव तथा जानवरों के मल में की होती है। विद्यमान रोगाणु पादप, जन्तुओं तथा मानवों में मृदा जनित रोग उत्पन्न कर सकते हैं।
(vi) खनन कार्य (Mining Operations)- भूमिगत खनिज निक्षेपों को बाहर निकालने के लिए पृथ्वी की सतह की खुदाई की जाती है (इसे विवृत खनन कहते हैं)। यह उपरिमृदा (top soil) को नष्ट कर देता है और क्षेत्र को विषाक्त धातुओं तथा रसायनों से प्रदूषित कर देता है।
प्रभाव (EFFECTS)
(i) औद्योगिक बहि:स्राव मृदा के विषाक्तता स्तर को बढ़ा देते हैं। बहि:स्रावों में उपस्थित भारी धातुएँ मृदा में उपस्थित उपयोगी सूक्ष्मजीवों को नष्ट कर देती हैं और मानवों में रोग पैदा करती 1970 में, जापान में लगभग 200 व्यक्ति मृदा में उपस्थित कैडमियम प्रदूषण द्वारा इटाई-इटाई (itai-itai) रोग से मर गए थे।
(ii) डी०डी०टी० तथा बी०एच०सी० जैसे कृषि रसायन दीर्घस्थायी (persistent) तथा वसा में घुलनशील होते हैं। ये जैविक आवर्धन (Biological magnification) दर्शाते हैं। उर्वरकों का अधिक प्रयोग मृदा के नाइट्रेट के स्तर को भी बढ़ा देता है। इससे ब्लू बेबी सिन्ड्रोम (Blue baby syndrome) के होने की भी संभावना रहती है। कृषि रसायनों के अत्यधिक प्रयोग से प्राकृतिक सूक्ष्म वनस्पतिजात् में कमी आ जाती है जिससे मृदा ह्रास (soil deterioration) भी हो जाता है।
(iii) वाहित मल द्वारा होने वाले मृदा प्रदूषण के भी वही प्रभाव होते हैं जो प्रदूषित जल के होते हैं। ये मनुष्य में कुछ सामान्य रोग जैसे पेचिश, आंत्रशोध (gastroenteritis), आंत्र बुखार (enteric fever), टिटेनस, ऐन्थ्रेक्स आदि उत्पन्न करते हैं।
(iv) रेडियोधर्मी व्यर्थ पदार्थों से मानवों में कुरचनाएँ (malformation) तथा कैंसर हो जाता है।
(v) खानों की धूल (mine dust) जानवरों तथा मनुष्यों में अनेक विरूपताएँ पैदा करती है।
नियन्त्रण (CONTROL)
विभिन्न तरीकों से होने वाले मृदा प्रदूषण को विभिन्न विधियों द्वारा कम किया जा सकता है, जैसे-
(1) जैवनिम्नीकरणीय कृषि रसायनों का प्रयोग किया जाना चाहिए। डी०डी०टी० के स्थान पर मेथोक्सीक्लोर (methoxychlor) का प्रयोग करना चाहिए। कृत्रिम कीटनाशकों के स्थान पर कुछ पादपों जैसे एजाडिरेक्टा इंडिका (Azadirachta indica) (नीम), ओसीमम बेसीलिकम (Oscimum basilicum) (तुलसी), निकोटिआना टुबेकम (Nicotiana tobaccum) (तम्बाकू) आदि का प्रयोग किया जाना चाहिए।
(ii) वाहित मल आपंक (sewage sludge) तथा औद्योगिक ठोस व्यर्थ पदार्थों का उपयोग भूमि पर गड्ढों को समतल करने में किया जाना चाहिए। विषाक्त रसायन तथा हानिकारक धातुओं युक्त व्यर्थ पदार्थों को सड़क निर्माण में उपयोग किया जाना चाहिए। इमारतों के निर्माण के लिए फ्लाई ऐश ईंटों का प्रयोग किया जाना चाहिए।
(iii) ठोस व्यर्थ पदार्थों को भस्मीकरण (incineration-ऑक्सीजन की उपस्थिति में जलाना) तथा ताप अपघटन (pyrolysis-ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में दहन) द्वारा नष्ट किया जा सकता है। जैव निम्नीकरणीय व्यर्थ पदार्थों युक्त वाहित मल व्यर्थ पदार्थों को कृषि के लिए कार्बनिक खाद में परिवर्तित किया जा सकता है। मवेशियों के मल का उपयोग बायोगैस अथवा गोबर गैस बनाने के लिए किया जा सकता है।
प्रदूषण के प्रकार एवं स्रोत
भूमि प्रदूषण- स्रोत, कारण, रोकने के लिए नियंत्रण के उपाय
ध्वनि प्रदूषण – स्रोत, कारण, रोकने के लिए नियंत्रण के उपाय, ध्वनि प्रदूषण नियंत्रण कानून
वायू प्रदूषण- स्रोत, कारण, रोकने के लिए नियंत्रण के उपाय, वायु प्रदूषण नियंत्रण कानून
जल प्रदूषण,कारण, प्रभाव और नियंत्रण के उपाय
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