अनुक्रम (Contents)
दहेज प्रथा पर निबंध | Essay on Dowry System in Hindi
दहेज प्रथा पर निबंध | Essay on Dowry System in Hindi- भारतीय समाज में अनेकों समस्यायें पायी जाती हैं जिनमें एक प्रमुख समस्या दहेज की है। हमारे समाज में दहेज एवं कलंक के रूप में है। लोग विवाह को एक पवित्र न संस्कार मानकर व्यापारिक दृष्टिकोण अपनाते हैं, अर्थात् वे दहेज में लम्बी रकम व कीमती सामान की माँग करते हैं। जितना अधिक दहेज को आज बुरा माना जाता है उतना बुरा पहले नहीं माना जाता था क्योंकि आज के समय में दहेज विवाह की शर्त बन गई है। कभी-कभी तो यह देखने को मिलता है कि दहेज के कारण बारातें वापस चली जाती हैं।
दहेज प्रथा क्या है ?
दहेज उस धन या सम्पत्ति को कहते हैं जो विवाह के समय कन्या पक्ष द्वारा वर पक्ष को दिया जाता है। हिन्दू विवाह से सम्बन्धित विभिन्न समस्याओं में से दहेज समस्या एक भीषण समस्या है।
“दहेज वह धन या सम्पत्ति है जो विवाह के अवसर पर लड़की के माता-पिता या अन्य निकट सम्बन्धियों द्वारा दी जाती है।” – फेयर चाइल्ड
“दहेज का अर्थ कोई ऐसी सम्पत्ति या मूल्यवान निधि है जिसे (i) विवाह करने वाले दोनों पक्षों में से एक पक्ष ने दूसरे पक्ष को अथवा (ii) विवाह में भाग लेने वाले दोनों पक्षों में से किसी एक पक्ष के माता-पिता या किसी अन्य व्यक्ति ने किसी दूसरे पक्ष को विवाह के समय पूर्व अथवा पश्चात् विवाह की एक आवश्यक शर्त के रूप में देना स्वीकार किया हो।” – दहेज निरोधक अधिनियम, 1961 के अनुसार
दहेज का आशय उस रकम से लगाया जाता है जो कन्या पक्ष के लोग विवाह के समय बेटी के ससुराल वालों को देते हैं। प्राचीन समय में दहेज उसे माना जाता था जो कन्या का पिता कन्यादान करते समय अपनी बेटी को वस्त्र, आभूषण व धन आदि देता था। लेकिन इस दहेज को कन्या का पिता दान स्वरूप स्वयं की मर्जी से अपनी बेटी व दामाद को देता था। जबकि आज ऐसा नहीं है। वर्तमान समय में दहेज ने इतना भयंकर रूप धारण कर लिया है कि इसके कारण अनेक कन्याओं का जीवन बर्बाद हुआ कुछ युवतियों की दहेज के कारण हत्या भी कर दी जाती है, जिसे दहेज हत्या के नाम से जाना जाता है। जिन व्यक्तियों के पास दहेज देने को नहीं होता है उन्हें अपनी बेटियों के विवाह में काफी परेशानी उठानी पड़ती है, कुछ व्यक्ति तो अपनी पुत्रियों का विवाह दहेज के कारण नहीं कर पाते हैं और उन्हें कुंवारी ही रहना पड़ता है इससे क्षुब्ध होकर कभी-कभी माता-पिता स्वयं ही आत्महत्या कर लेते हैं। इस प्रकार दहेज एक सामाजिक कोढ़ बन चुका है। आज दहेज का स्वरूप अत्यन्त विकराल रूप धारण करता चला जा रहा है। आज दहेज वर मूल्य समझा जाता है। जितना अच्छा वर होता है उतना ही अधिक दहेज भी देना पड़ता है। कुछ लोग दान और दहेज को एक ही मानते हैं, जबकि इन दोनों में अन्तर है। दान वह धन है जो विवाह के समय कन्या पक्ष, वर पक्ष को अपनी स्वेच्छा से देता है, जबकि दहेज वह धन है जो कन्या पक्ष विवाह से पूर्व वर पक्ष को देता है। दहेज विवाह से पूर्व ही एक निश्चित धनराशि के रूप में तय कर लिया जाता है जो कन्या पक्ष को निश्चित रूप से देना होता है। इस प्रकार दहेज विवाह की एक शर्त है। जिसे पूरा किए बिना विवाह नहीं हो सकता है। व्यावहारिक रूप से दहेज वर मूल्य ही होता है जो उसके माता-पिता या संरक्षक उसकी योग्यता के अनुसार माँगते हैं। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि दान वह धन या उपहार है जिसे कन्या पक्ष के लोग स्नेहवश वर और कन्या को देते हैं जबकि दहेज वह निश्चित धन है जिसकी स्पष्ट मॉग वर पक्ष की ओर से की जाती है। दान पहले से निश्चित नहीं किया जाता है बल्कि दहेज पहले से ही निश्चित कर लिया जाता है। दान कन्या पक्ष की स्वेच्छा और सामर्थ्य पर निर्भर करता है जबकि दहेज वर पक्ष के व्यक्तिगत गुण या परिवार दोनों की स्थिति पर निर्भर करता है। दान देना अनिवार्य नहीं होता है जबकि दहेज देना अनिवार्य होता है, दहेज न देने पर शादी रुक भी सकती है।
दहेज प्रथा की उत्पत्ति के कारण (Causes of Origin of Dowry System)
दहेज प्रथा की उत्पत्ति के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-
1. बाल विवाह (Child Marriage)- बाल विवाह अत्यन्त बुरी प्रथा है, जिसके कारण लड़के या लड़कियों को स्वयं अपने जीवन साथी चुनने का अवसर नहीं मिलता है और लड़के के माता पिता दहेज लेकर उनकी शादी कर देते हैं।
2. जीवन साथी चुनने का सीमित क्षेत्र (Limited Field of Choosing male) – जाति और उप-जातियों में विवाह होने से उपयुक्त वर मिलना कठिन होता है जिससे वर-मूल्य या दहेज प्रथा का प्रादुर्भाव होता है।
3. कुलीन विवाह (Hypogamy)- कुलीन विवाह होने के कारण उच्च कुल में लड़कों की काफी कमी होती है और लड़की वालों को ऊँचे कुल में बढ़-चढ़ कर दहेज देने के लिए बाध्य होना पड़ता है।
4. हिन्दू लड़कियों में विवाह अनिवार्य है (Marriage is Compulsory for Hindu Girls)- हिन्दुओं में लड़कियों का विवाह करना अनिवार्य होता है जिसका लाभ लड़के वालों के पिता अधिक से अधिक उठाते हैं और अत्यधिक दहेज की मांग करते हैं।
दहेज के कुप्रभाव या दोष
1. स्त्रियों की निम्न स्थिति- दहेज के कारण स्त्रियों की सामाजिक स्थिति गिर जाती है, उनका जन्म अपशकुन माना जाता है।
2. बालिका वध- दहेज की अधिक मॉग होने के कारण कई व्यक्ति कन्या को पैदा होते ही मार डालते हैं।
3. मानसिक बीमारियाँ- दहेज एकत्र करने एवं योग्य वर की तलाश में माता-पिता चिन्तित रहते हैं। माता-पिता में विवाह एवं दहेज की चिन्ता के कारण कई बीमारियां पैदा हो जाती है।
4. पारिवारिक विघटन- कम दहेज देने पर कन्या को ससुराल में अनेक प्रकार के कष्ट दिये जाते हैं। दोनों परिवारों में तनाव और संघर्ष पैदा होते हैं व पति-पत्नी का जीवन निर्धारित हो जाता है।
5. अपराध को प्रोत्साहन- दहेज जुटाने के लिये व्यक्ति कई अपराधों की ओर उन्मुख होता है रिश्वत खोरी, चोरी, गबन, आत्महत्या, भ्रष्टाचार आदि।
6. ऋणग्रस्तता- दहेज देने के लिये कन्या के पिता को रकम उधार लेनी पड़ती है या अपनी जमीन, जेवरात, मकान आदि को गिरवी रखना पड़ता है।
7. अनैतिकता- दहेज के अभाव में लड़कियों का देर तक विवाह न होने पर कुछ लड़कियाँ अपनी यौन इच्छाओं की पूर्ति अनैतिक तरीकों से करती हैं, इससे भ्रष्टाचार बढ़ता है।
8. आत्महत्या एवं हत्या- जिन लड़कियों को दहेज अधिक नहीं दिया जाता है, उन्हें अपनी ससुराल में साधारणतः सम्मान नहीं मिल पाता और कई बार उन्हें परेशान भी किया जाता है, उनके साथ दुर्व्यवहार किया जाता है। इस स्थिति से मुक्ति पाने के लिये लड़कियों आत्महत्या कर लेती हैं।
9. निम्न जीवन स्तर- कन्या के लिये दहेज जुटाने के लिये परिवार को अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति में कटौती करनी पड़ती है। फलस्वरूप जीवन स्तर गिर जाता है।
10. विवाह की समाप्ति- दहेज के अभाव में कई लोग अपने वैवाहिक सम्बन्ध कन्या पक्ष से समाप्त कर लेते हैं। दहेज के अभाव में तोरण द्वारा से बारात तक लौटा लेते हैं और कई कन्याओं को कुंवारी रहना पड़ता है।
11. बहुपत्नी विवाह- दहेज प्राप्त करने के लिए एक व्यक्ति कई विवाह करता है, इससे बहुपत्नीत्व का प्रचलन बढ़ता है।
12. बेमेल विवाह- दहेज के अभाव में कन्या का विवाह अशिक्षित, वृद्ध, कुरुप, अपंग एवं अयोग्य व्यक्ति के साथ भी करना पड़ता है। फलस्वरूप कन्या को जीवन भर कष्ट उठाना पड़ता है।
दहेज प्रथा के लाभ अथवा गुण (Advantages or Merits of Dowry System)
दहेज प्रथा के लाभ अथवा गुण निम्नलिखित हैं-
1. दहेज के कारण अशिक्षित, अयोग्य व कुरूप कन्याओं का विवाह भी बड़ी आसानी के साथ हो जाता है।
2. दहेज प्रथा के कारण बाल विवाह प्रथा का अन्त हो गया क्योंकि दहेज देने की असमर्थता के कारण कन्याओं की आयु काफी बढ़ जाती है।
3. दहेज देने की असमर्थता के कारण कन्याओं की शादी काफी देर से हो पाती है, जिससे उन्हें पढ़ने का पूर्ण अवसर प्राप्त होता है। यही कारण है कि आज देश में शिक्षित नारियों का प्रतिशत बढ़ता जा रहा है।
4. कन्याओं को दहेज में इतना सामान व धन मिल जाता है कि यदि उन्हें परिवार से अलग भी कर दिया जाता है तो उन्हें अपनी गृहस्थी जमाने में कोई परेशानी नहीं होती है।
5. दहेज अन्तर्जातीय विवाहों को प्रोत्साहित करता है जिससे भावनात्मक एकता और राष्ट्रीय एकता को बल मिलता है।
दहेज प्रथा की हानियाँ (Demerits of Dowry System)
दहेज प्रथा की हानियों निम्नलिखित हैं-
1. आत्महत्या एवं शिशु हत्या- आज जब कन्या पक्ष वर की तलाश में अत्यधिक परेशान हो जाता है और उसे वर नहीं मिलता है और यदि मिल भी जाता है तो दहेज के कारण विवाह नहीं हो पाता है तो उस स्थिति में या तो लड़की या फिर उसके माता-पिता आत्महत्या कर लेते हैं।
2. बेमेल-विवाह- जब दहेज के कारण माता-पिता को अपनी कन्या के योग्य वर नहीं मिलता है तो वे अपनी कन्याओं का विवाह बेमेल करने को भी तैयार हो जाते हैं। अधिकांश ऐसा सुनने को मिलता है कि 20 वर्ष की लड़की की शादी 40 वर्ष के व्यक्ति के साथ हुई या फिर लड़की काफी सुन्दर होती है त लड़का कुरूप ।
3. ऋणग्रस्तता- शादी-विवाह में अत्यधिक दहेज देने के कारण लड़की के माता-पिता को ऋण लेना पड़ता है। जिसकी अदायगी उन्हें वर्षों तक ब्याज सहित करनी पड़ती है।
4. दो परिवारों का तनाव- यदि दहेज के लेन-देन में किसी प्रकार कमी रह जाती है तो दोन पक्षों के बीच में तनाव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इसका तनाव का परिणाम कभी-कभी बहुओं के भुगतान करना पड़ता है।
5. कन्याओं का दुखद वैवाहिक जीवन- शादी में जितना दहेज तय होता है यदि उतना दहेज पूरा नहीं होता है तो परिवार की बहुओं की स्थिति अत्यन्त दयनीय हो जाती है। उन्हें मारा-पीटा जाता है कभी-कभी तो उनकी हत्या भी कर दी जाती है।
दहेज प्रथा के निवारण के उपाय (Remedial Measures of Dowry System).
दहेज प्रथा के निवारण के उपाय निम्नलिखित हैं-
1. अन्तर्जातीय विवाहों की छूट- समाज से अन्तर्जातीय विवाहों का प्रतिबन्ध हटाकर इनक – छूट दे देनी चाहिए। जिससे कोई भी लड़की किसी भी जाति में विवाह कर सकती है। इस प्रकार योग्य लड़कों का अभाव कम हो जाएगा और दहेज प्रथा का अन्त होगा।
2. पत्र पत्रिकाओं एवं फिल्मों द्वारा प्रचार- दहेज प्रथा को रोकने का प्रचार पत्र-पत्रिकाओं एव फिल्मों द्वारा किया जाना चाहिए क्योंकि आज के युग में फिल्मों का काफी अधिक महत्व है और ये व्यक्ति को अत्यधिक प्रभावित करती हैं। इसके साथ ही साथ पत्र-पत्रिकाओं द्वारा भी दहेज प्रथा को रोकने का प्रचार किया जाना चाहिए।
3. शिक्षा का विकास- लडको एवं लड़कियों को पूर्ण रूप से शिक्षित किया जाना चाहिए क्योकि कुछ लोग शिक्षा एवं ज्ञान के अभाव में दहेज माँगते हैं। यदि वे शिक्षित होगें तो उनमें बुद्धि का विकार होगा और दहेज की बुराई को समझ सकेंगे।
दहेज निरोधक अधिनियम, 1961 (Dowry Prohibition Act, 1961)
इस अधिनियम को 22 मई 1961 को राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त हुई। इस प्रकार यह विधेयक कानून के रूप में 1 जुलाई सन् 1961 से लागू हो गया। यह अधिनियम दहेज निरोधक अधिनियम 1961 के नाम से जाना जाता है। इस अधिनियम में 10 धाराएँ हैं जिनमें से कुछ प्रमुख निम्नलिखित हैं-
धारा 3 – इस धारा के अन्तर्गत यदि कोई व्यक्ति दहेज का लेन-देन करता है या इस कार्य मदद करता है तो उसे 6 मास का कारावास या 5000 रु. का जुर्माना हो सकता है।
धारा 4- इस धारा के अन्तर्गत यदि वर या कन्या के माता-पिता या संरक्षक से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में कोई दहेज की माँग करता है तो उसे भी उपर्युक्त दण्ड से दण्डित किया जा सकता है।
धारा 5- दहेज लेन-देन से सम्बन्धित किसी भी प्रकार का समझौता गैर-कानूनी होगा।
धारा 6- इस धारा के अन्तर्गत दहेज का उद्देश्य केवल विवाह करने वाली कन्या के लाभ के लिए होगा।
धारा 7- इस धारा के अन्तर्गत न्यायालय इस अधिनियम के अन्तर्गत होने वाले अपराधों पर तभी विचार करेगी जबकि होगी।
1. इस सम्बन्ध में कोई लिखित शिकायत की जाए।
2. यह शिकायत किसी प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट के न्यायालय में की जाए।
3. दहेज लेने-देने के एक वर्ष के अन्दर ही यह शिकायत की जानी चाहिए तभी इस पर सुनवाई होगी।
इस अधिनियम को और अधिक सफल बनाने के लिए 1986 में कुछ महत्वपूर्ण संशोधन किए गए और आज यह अधिनियम “दहेज निरोधक (संशोधित) अधिनियम, 1986 के नाम से जाना जाता है। इस संशोधित अधिनियम में दहेज लेने वालों को 5 वर्ष का कारावास व 15 हजार रुपए के दण्ड का प्रावधान रखा गया।
इस ‘बिल’ में निम्नलिखित कमजोरियाँ हैं-
1. इस अधिनियम में उपहारों को दहेज नहीं माना गया और उपहारों के जरिए दहेज दिया जाता है।
2. इस अधिनियम के अन्तर्गत यदि एक वर्ष के पश्चात् कोई दहेज की शिकायत की जाती है तो उस पर कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी।
3. इस अधिनियम के अनुसार कानून शिकायत करने वाले के अनुसार ही कार्य करता है।
भारत में दहेज की समस्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। स्पष्ट कीजिए।
भारत में हिन्दू विवाह की अनेक समस्यायें हैं, जिसमें एक गम्भीर समस्या दहेज प्रथा की है। दहेज, भारतीय समाज के लिए एक कलंक है। पहले दहेज इतना बुरा नहीं माना जाता था जितना कि आज माना जाता है क्योंकि आज दहेज एक शर्त बन गयी है। पहले दहेज में दान की भावना निहित होती थी और कन्या के माता-पिता अपनी स्वेच्छा से अपनी बेटी-दामाद को देते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है, आज के समय में दहेज एक सौदे की भांति तय कर लिया जाता है जोकि निश्चित और अनिवार्य रूप से कन्या पक्ष द्वारा वर पक्ष को देना होता है।
इस प्रकार आज दहेज की समस्या इतनी बढ़ चुकी है जिससे कि अनेक कन्याओं का जीवन बर्बाद हो गया है। आज दहेज की समस्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। प्रतिदिन समाचार पत्रों में यह पढ़ने को मिलता है कि दहेज के कारण किसी युवती ने आत्महत्या की या फिर उसके ससुराल वालों ने उसे जलाकर मार दिया। दहेज प्रथा का स्वरूप आज विकृत होता जा रहा है और दहेज वर मूल्य का रूप धारण कर चुका हैं।
यद्यपि दहेज को रोकने के अनेकों कानूनी प्रयत्न और किये जा रहे हैं, फिर भी दहेज के लेन-देन में कोई अन्तर नहीं पड़ा है। आज वर की स्थिति के अनुसार दहेज विवाह से पूर्व ही निश्चित हो जाता है। यदि कोई कन्या पक्ष दहेज की रकम तय करके उसमें कमी कर देता है तो जैसे ही लड़की ब्याह कर ससुराल जाती है, वैसे ही उसे दहेज के ताने सुनने पड़ते हैं और अधिकांशतः मारपीट शुरू हो जाती है. जोकि बढ़कर एक दिन आत्महत्या या हत्या का रूप धारण कर लेती है।
पहले दहेज, दान के रूप में दिया जाता था और इसमें कन्या पक्ष की स्वेच्छा निहित होती थी, किन्तु आज ऐसा नहीं है। आज तो दहेज एक अनिवार्य शर्त बन चुकी है, जिसे निश्चित रूप से पूरा करना होता है। दहेज प्रथा का प्रचलन काफी प्राचीन समय से चला आ रहा है। पहले दहेज में वस्त्र, आभूषण और गायें आदि दी जाती थीं, जोकि कन्या और उसके पति के लिए होते थे, किन्तु जिसके माता-पिता लालची होते थे, वे लोग धीरे-धीरे इस पर अपना अधिकार जमाने लगे और अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए दहेज को एक सशस्त्र माध्यम बना लिया।
उपरोक्त विवेचन से यह स्पष्ट होता है कि दहेज यदि प्रेम व स्वेच्छा से दिया गया हो तो बुरी चीज नहीं है किन्तु यदि दहेज एक शर्त के रूप में दिया गया हो तो अत्यन्त बुरी चीज है। भारत में आज यह स्वेच्छापूर्ण नहीं रह गया है, और एक अनिवार्य शर्त बन गया है। यही कारण है कि इसमें दिन-प्रतिदिन वृद्धि होती जा रही है।
दहेज प्रथा के प्रचलन के कारण
दहेज प्रथा के प्रचलन के प्रमुख कारण निम्न प्रकार है –
1. सामाजिक स्थिति का प्रदर्शन- दहेज प्रथा को प्रोत्साहन देने वाला एक बहुत महत्वपूर्ण कारक समाज में व्यक्ति की स्थिति को भी प्रदर्शित करना होता है। प्रत्येक मनुष्य अपनी कन्या का विवाह सम्पन्न करने में अधिक पैसे इसलिये भी लगा बैठता है कि समाज के अन्य लोग समाज में उसकी ऊँची स्थिति की अनुभूति करें, ताकि उसकी प्रशंसा एवं अधिक हो सके।
2. सामाजिक मूल्यों की मान्यता- हमारे आज के समाज में असंख्य सामाजिक मूल्य हैं। प्रत्येक सामाजिक मूल्य का अपने अपने क्षेत्र में एक स्थान एवं महत्व है। समकालीन भारत में प्रत्येक व्यक्ति का मूल्य विशेष रुपये पैसे से तोला जाता है। यदि किसी वर अथवा कन्या के माता-पिता अपने लड़के अथवा लड़की के विवाह में अधिक धन व्यय करते हैं तो उन्हें समाज का प्रतिष्ठित व्यक्ति समझा जाता है, क्योंकि समाज में ऐसे मूल्य है जो दहेज प्रथा को प्रोत्साहन देते हैं।
3. परम्परायें – भारतीय लोग साधारण जीवन व्यतीत करते हैं एवं अपनी भेड़ा-चाल के लिये प्रसिद्ध हैं बहुत से लोग इसलिये भी दूसरे व्यक्तियों की देखा-देखी दहेज प्रथा स्वीकार कर लेते हैं कि उनको भी अपने लड़के एवं लड़कियों के विवाह को सम्पन्न कराने में ऐसा करना पड़ेगा, अतः यह परम्परा पीढ़ी दर पीढ़ी चलेगा।
इसी भी पढ़ें…
- अपराध की अवधारणा | अपराध की अवधारणा वैधानिक दृष्टि | अपराध की अवधारणा सामाजिक दृष्टि
- अपराध के प्रमुख सिद्धान्त | Apradh ke Siddhant
इसी भी पढ़ें…