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परीक्षण के विभिन्न प्रकार | Different kinds of Test in Hindi

परीक्षण के विभिन्न प्रकार
परीक्षण के विभिन्न प्रकार

परीक्षण के विभिन्न प्रकार (Different kinds of Test)

परीक्षण के विभिन्न प्रकार निम्नलिखित हैं-

(1) व्यक्तिगत परीक्षण (Individual Test)

व्यक्तिगत परीक्षण वे होते हैं जिन्हें एक समय में केवल एक ही व्यक्ति पर प्रशासित किया जा सके। इन परीक्षणों के प्रशासन के लिए परीक्षक को पूरा ध्यान देना पड़ता है और उसका प्रशिक्षित होना भी अनिवार्य होता है। ऐसे परीक्षणों के प्रशासन की विधियाँ प्रमापीकृत होती हैं, पर परीक्षार्थी, को आयु, योग्यता आदि के आधार पर परीक्षक उसमें आवश्यक परिवर्तन कर सकता है। इन परीक्षणों से प्राप्त परिणाम अधिक विश्वसनीय होते है क्योंकि परीक्षण की सारी परिस्थिति पर परीक्षक का पूर्ण नियन्त्रण रहता है। इस प्रकार के परीक्षणों में शाब्दिक के साथ-साथ क्रियात्मक पद भी होते हैं। उदाहरणार्थ, डॉ. भाटिया का बुद्धि परीक्षण, रोर्शा-परीक्षण और टी. ए. टी (T.A.T)।

(2) सामूहिक परीक्षण (Group Test)

व्यक्तिगत परीक्षणों के विपरीत इन परीक्षणों को एक ही समय में सैकड़ों व्यक्तियों पर प्रशासित किया जा सकता है। इससे समय और धन की बचत होती है तथा प्रशिक्षित व्यक्तियों की कमी भी नहीं अखरती । इसके द्वारा होने वाले निष्कर्ष अधिक प्रतिष्ठित होते हैं। आज के व्यस्त युग में इनका प्रचलन निरन्तर दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है। कुछ वर्षों पहले ये परीक्षण व्यक्तिगत समझे जाते थे, आज उनका प्रयोग भी सामूहिक परीक्षणों के रूप में होने लगा है। प्रोजेक्ट द्वारा इन परीक्षणों को समूह पर प्रशासित किया जाता है। सामूहिक परीक्षणों में बाह्य परिस्थितियाँ बहुत-कुछ एक-सी रहती हैं। एक ही परीक्षक द्वारा सभी परीक्षार्थियों को एक से निर्देश प्राप्त होते हैं। यह कही व्याख्या करने या उदाहरणों को स्पष्ट करने की आवश्यकता होती है तो सबके लिए समान ही होते हैं।

(3) मौखिक और लिखित परीक्षण (Verbal and Written Test)

मौखिक परीक्षणों का प्रयोग प्रायः कक्षा में वास्तविक ज्ञान के मापन के लिए अध्यापक द्वारा किया जाता है यह परीक्षण अनेक रूप में हो सकते हैं। इनका प्रयोग छोटी कक्षाओं में बहुतायत से होता है। परन्तु इनसे प्राप्त परिणाम अधिक विश्वसनीय और वस्तु वस्तुगत नहीं होने होते क्योंकि इनमें आत्मगतता की मात्रा काफी अधिक होती है। साक्षात्कारों में भी इसी प्रकार के परीक्षण का प्रयोग किया जाता है।

लिखित परीक्षणों का प्रयोग अधिकांश वैज्ञानिक अध्ययनों में किया जाता है। इनकी परिस्थितियाँ तथा प्रश्न पूर्ण रूप से मानकीकृत होते हैं। अतः इनसे प्राप्त निष्कर्ष अधिक विश्वसनीय तथा वस्तुगत होते हैं। मनोविज्ञान के हर क्षेत्र; यथा-निष्पत्ति, बुद्धि व्यक्तित्व, रुचि आदि में इसी प्रकार की परीक्षाओं को प्रयोग होता है।

(4) गति परीक्षा (Speed Test) तथा शक्ति परीक्षण (Power Test)

गति परीक्षणों में सामान्य कठिनाइयों के कुछ प्रश्न होते हैं जिन्हें परीक्षार्थी को शीघ्रातिशीघ्र हल करना होता है। ऐसे परीक्षण में प्रश्नों की संख्या बहुत अधिक होती है और परीक्षार्थी उन्हें तीव्र गति से हल करने की चेष्टा करता है। उदाहरणार्थ डॉ. जलोटा का बुद्धि-परीक्षण जिसमें परीक्षार्थी को 20 मिनट में 100 प्रश्न हल करने होते हैं। इन परीक्षणों में प्रश्नों की संख्या इतनी अधिक होती है कि कोई भी परीक्षार्थी निश्चित अवधि में उन्हें पूरा नहीं कर सकता । निश्चित समय में किसी परीक्षार्थी ने कितने सही उत्तर दिये हैं उसी से उसके कार्य की गति का मापन होता है।

शक्ति परीक्षणों में, दूसरी ओर इतना अधिक समय दिया जाता है कि हर परीक्षार्थी सारे प्रश्नों को हल करने का प्रयास कर सके। इस प्रकार के परीक्षणों में प्रश्न की कठिनाई आरोही क्रम में बढ़ती जाती है। परीक्षा में कुछ प्रश्न इतने कठिन होते हैं कि उन्हें कोई हल न कर सके। ऐसा इस कारण किया जाता है ताकि किसी भी परीक्षार्थी को पूर्ण अंक प्राप्त न हों। ऐसा करने से यह ज्ञात होता है कि कोई परीक्षार्थी कठिनाई के किस स्तर तक प्रश्न हल कर सकता है। यदि ऐसा न किया जाये और परीक्षार्थी सारे प्रश्न हल कर सकें तो, प्रश्न उठता है कि परीक्षार्थी किस सीमा तक प्रश्नों को हल करने की योग्यता रखता है? और इस प्रश्न का उत्तर पाने का अन्य कोई रास्ता नहीं है।

व्यावहारिक दृष्टि से गति और शक्ति परीक्षणों में केवल अंशों का अन्तर होता है। अधिकांश परीक्षणों में शक्ति और गति दोनों को विभिन्न अनुपात में सम्मिलित किया जाता है। ऐसा मुख्यतः बुद्धि-परीक्षणों में होता है। निष्पत्ति के क्षेत्र में टंकन हस्त लेखन आदि का मूल्यांकन करने वाले परीक्षण भी इसी प्रकार के होते हैं।

(5) प्रमापीकृत परीक्षण (Standardization Test) 

प्रमापीकरण के आधार पर परीक्षणों को मुख्यतः दो वर्गों में विभाजित किया जाता है। ऐसे परीक्षण जिन्हें मनोवैज्ञानिकों, शिक्षा-शास्त्रियों, प्रकाशन-गृहों, मनोवैज्ञानिक ब्यूरों या अनुसंधान संस्थाओं द्वारा अनेक अन्वेषकों की सहायता से बहुत बड़े समूह पर प्रशासित किया जाता है, तब उनकी वैधता, विश्वसनीयता एवं मानकों को ज्ञात किया जाता है प्रमापीकृत परीक्षण कहलाते हैं।

“एक प्रमापीकृत परीक्षण वह है, जिसकी विधि, यन्त्र और फलांकन विधि पहले से ही इस प्रकार निश्चित हो कि उसे विभिन्न स्थानों पर, विभिन्न समय में उसी क्षमता के साथ प्रशासित किया जा सके।”

(6) बुद्धि परीक्षण (Intelligence Tests)

यह परीक्षण व्यक्ति की सामान्य मानसिक योग्यता का मापन करते हैं और इसके द्वारा उसके समायोजन की ओर इंगित करते हैं। यह परीक्षण शाब्दिक और अशाब्दिक तथा व्यक्तिगत एवं सामूहिक चार प्रकार के होते है। इन चारों प्रकार के परीक्षणों का वर्णन हम ‘प्रशासन के आधार पर शीर्षक के अन्तर्गत कर आये हैं । बुद्धि-परीक्षणों के कुछ उदाहरण हम यहाँ दे रहे हैं, जैसे- जलोटा का सामान्य बुद्धि-परीक्षण डॉ. टण्डन का बुद्धि-परीक्षण, डॉ. जोशी का सामान्य मानसिक योग्यता परीक्षण, भाटिया निष्पादन परीक्षण माला, पिन्टर पेटर्सन निष्पादन परीक्षण सेग्यूइन आकार पटल, कोह का ब्लाक डिजाइन परीक्षण तथा नेशनल इन्सटीट्यूट ऑफ इण्डस्ट्रियल साइकॉलॉजी, लन्दन का NIIP 70/23 आदि।

(7) विशिष्ट अभियोग्यता परीक्षण (Test of Special Ability)

इस प्रकार के परीक्षण यह बताते हैं कि किसी विशिष्ट क्षेत्र में व्यक्ति को प्रशिक्षित किये जाने पर वह उसमें सफल होगा या नहीं। अभियोग्यता मनुष्य को किसी विशेष के कार्य करने की वर्त्तमान क्षमता को कहते हैं। अभियोग्यता में जन्मजात योग्यता के साथ-साथ प्रशिक्षण तथा अन्य अनुभव के प्रभाव भी सम्मिलित होते हैं। अभियोग्यता परीक्षण अनेक प्रकार के होते है; जैसे- कला व्यवसाय, भाषा तथा यन्त्रात्मक आदि। ओ कोनर चिमटी दक्षता परीक्षण (O’ Corner Dexterity Test), डॉ. ए. एन. शर्मा की यान्त्रिक अभिक्षमता परीक्षणमाला (M.A.T.B) मिनेसोटा यान्त्रिक संयोजन परीक्षण (Minnesota Mechanical Assembly Test), मायर कला निर्णय परीक्षण (Meirt Art Judgement Test), मिनेसोटा लिपिक परीक्षण, किरन गुप्ता का लिपिक अभिक्षमता परीक्षण, गिलफोर्ड जिम्मरमैन अभिरुचि सर्वेक्षण आदि इस प्रकार के परीक्षण के कुछ उदाहरण हैं।

(8) निष्पत्ति परीक्षण (Achievements Test)

निष्पत्ति परीक्षण दो प्रकार के होते हैं-सर्वे तथा नैदानिक । सर्वे परीक्षण वे हैं जिनमें किन्हीं विषयों या ज्ञान के क्षेत्र में सामान्य मापन होता है, जैसे हाई स्कूल में ज्यामिति या अन्य विषयों में ज्ञान स्तर का मापन करने वाले परीक्षण । नैदानिक परीक्षण किसी एक विषय या ज्ञान क्षेत्र में परीक्षार्थी की कमजोरियों का पता लगाते हैं, जैसे गणित में यह पता लगाना, कि परीक्षार्थी गणना में कमजोर है, सूत्रों को समझने में या प्रश्नों की भाषा इकाइयों में।

(9) पूर्व-कथन परीक्षण (Prognostic Tests)

इनका उद्देश्य स्कूल के किसी विषय में भावी सफलता की पूर्व सूचना देना है। यह इस बात का पता लगाते हैं कि स्कूल के किसी विषय में सफलता प्राप्त करने के लिए विद्यार्थी में जो दक्षता ज्ञान या योग्यता होनी चाहिए, वह उसमें है या नहीं। अतः ये अभियोग्यता परीक्षणों (Aptitude Tests) से काफी मिलते जुलते हैं। इन्हें निष्पत्ति-परीक्षणों के अन्तर्गत ही वर्गीकृत किया जाता है।

(10) विश्लेषणात्मक परीक्षण (Analytical Tests)

ये परीक्षण एक ही विषय के विभिन्न क्षेत्रों में व्यक्ति की योग्यता का विश्लेषण करते हैं। अतः ये नैदानिक परीक्षणों की भाँति ही होती हैं। उदाहरणार्थ, शान्त वाचन – योग्यता में शब्दार्थ वाचन गति, तथ्यों की समझ, मुख्य विचार समझने की सामार्थ्य आदि का पता लगाने वाले परीक्षण।

(11) निपुणता परीक्षाएँ (Mastery Tests)

इनका उद्देश्य केवल उन मौलिक विषयों, योग्यताओं या दक्षताओं का मापन करना है, जो प्रत्येक परीक्षार्थी के लिए आवश्यक हों।

(12) पारिस्थितिक परीक्षण (Situational Tests)

व्यक्तित्व को मापने की एक अन्य विधि पारिस्थितिक परीक्षण है, जिसे लोग प्रायः निष्पादन परीक्षण कहकर भी पुकार लेते हैं। इन परीक्षणों में परीक्षार्थी को प्रायः ऐसे कार्य करने होते हैं जिनका उद्देश्य छुपा होता है। इनमें से अधिकांश कार्य दैनिक परिस्थितियों से बहुत अधिक मिलते-जुलते हैं। इस प्रकार का विस्तृत कार्य दूसरी शताब्दी के अन्त में हार्टशेन तथा मे (Hartshone and May, 1928, 1929, 1930) तथा उनके सहयोगियों द्वारा परीक्षणों को विकसित किया गया। परीक्षणों की यह शृंखला स्कूल के बालकों पर मानकीकृत की गई तथा इसका सम्बन्ध नकेल, झूठ, चोरी, सहयोग तथा धैर्यपूर्ण व्यवहार से था। बहुत से विशेष परीक्षणों द्वारा वस्तुगत तथा मात्रात्मक प्रदत्त प्राप्त किये गये वयस्क लोगों के लिए इस प्रकार के परीक्षणों का विकास द्वितीय महायुद्ध के समय हुआ। यह परीक्षण सापेक्षिक रूप से जटिल और सूक्ष्म सामाजिक तथा संवेगात्मक व्यवहार से सम्बन्धित थे तथा इनके लिए विशेष सुविधाओं और प्रशिक्षित मनोवैज्ञानिकों की आवश्यकता पड़ती थी। परीक्षार्थी के फलांकों की व्याख्या इन परीक्षणों में प्रायः आत्मगत होती है।

(13) रुचि-परीक्षण (Interest Invetories) 

रुचि व्यक्तित्व का एक महत्त्वपूर्ण पक्ष है। अतः इसे मापनी के लिए अनेक परीक्षणों का विकास किया गया है जिनके द्वारा शैक्षिक व्यावसायिक तथा अन्य प्रकार की रुचियों का मापन किया जाता है। इनमें से सबसे विख्यात रुचि-परीक्षण स्ट्रोंग का व्यावसायिक रुचि प्रपत्र (Strong Vocational Blank [SVIB] है जिसका निर्माण स्ट्रोंग ई. के. (Strong E.K.) द्वारा किया गया था। आज भारत में भी अनेक रुचि प्रपत्रों का विकास हुआ है जिनमें मुख्य रूप से डॉ. चटर्जी का अभाषिक प्रपत्र 962 रूप तथा डॉ. आर. पी. सिंह का रुचि पत्र हैं। कुडर रुचि प्रपत्र (Kuder Interest Inventories) रुचि को अनेक आयामों में मापता।

(14) अभिवृत्ति परीक्षण (Aptitude Test)

अभिवृत्ति परीक्षणों के विकास से पहले भी यह अनुभव किया जाता रहा था कि बुद्धि-परीक्षण अपने उद्देश्य में सीमित है। इस सीमा को दूर करने के लिए सर्वप्रथम यान्त्रिक अभिवृत्ति को मापने के लिए कुछ परीक्षणों का निर्माण किया गया। बुद्धि-परीक्षणों द्वारा प्राप्त परिणाम विशेष रूप से अमूर्त कार्य से सम्बन्धित थे, जिनमें भाषा एवं अंकों के प्रतीकों का प्रयोग होता था। अतः इस बात की आवश्यकता अनुभव हुई कि ठोस और व्यावहारिक क्षमताओं को मापने की चेष्टा की जाये। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए अभिवृत्ति परीक्षणों का विकास हुआ। इसी के साथ-साथ कला, संगीत आदि की अभिवृत्ति को मापने के लिए परीक्षणों का विकास किया गया। अभिवृत्ति परीक्षणों द्वारा व्यक्तित्व के अनेक आयामों का मापन किया जाता है। उदाहरणार्थ सी-शोर का संगीत अभिवृत्ति परीक्षण होर्न का कला अभिवृत्ति बिनेट (Bennett) का यान्त्रिक अभिवृत्ति परीक्षण तथा मिनेसोटा (Minnesota) का परीक्षण है।

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shubham yadav

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