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वार्तालाप विधि (Discussion Method)- विशेषताएँ, प्रकार, सीमाएँ/कमियाँ, सुधार हेतु सुझाव

वार्तालाप विधि
वार्तालाप विधि

वार्तालाप विधि (Discussion Method)

वार्तालाप विधि को शिक्षण की एक लोकतान्त्रिक विधि के रूप में माना जाता है, जिसमे विद्यार्थियों को अधिक सक्रिय रहना पड़ता है। यह सदैव एक विद्यार्थी केन्द्रित विधि है जिसमें शिक्षक केवल निरीक्षक एवं निर्देशक के रूप में कार्य करता है।

ली महोदय के अनुसार, “वार्तालाप एक शैक्षिक समूह क्रिया है जिसमें विद्यार्थी सहयोग पूर्वक एक दूसरे से किसी समस्या पर विचार करते हैं।”

According to Lee, “Discussion is an educational group activity in which the teacher and students cooperatively talk over some problem or topic.”

इस विधि में कोई एक विषय / शीर्षक ले लिया जाता है और शिक्षक विद्यार्थियों को उस विषय / शीर्षक पर वर्तालाप या वाद विवाद करने के लिए प्रेरित करता है। इस विधि के प्रयोग द्वारा शिक्षक एवं विद्यार्थियों में अन्तःक्रिया के अवसर बढ़ते हैं। इस विधि को सफलता पूर्वक प्रयोग के लिए यह आवश्यक है कि विद्यार्थियों को अपने विचार अभिव्यक्त करने की स्वतन्त्रता हो। इस विधि में सभी विद्यार्थियों को अपने विचार अभिव्यक्त करने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए लेकिन शिक्षक एक निरीक्षक एवं निर्देशक की भाँति कार्य करता रहता है।

वार्तालाप विधि की विशेषताएँ (Characteristics of Discussion Method)

वार्तालाप विधि की निम्नलिखित प्रमुख विशेषताएँ हैं-

(1) यह विधि छात्रों को क्रियाशील बनाती है।

(2) इस विधि द्वारा छात्रों में सृजनात्मक शक्तियों का विकास होता है।

(3) यह एक लोकतान्त्रिक विधि है जिसमें सभी छात्रों को प्रश्न पूछने एवं उत्तर देने का समान अधिकार है।

(4) इस विधि के द्वारा छात्रों में सक्रियता एवं मौलिकता का विकास होता है।

(5) छात्रों के व्यवहार में वांछित परिवर्तन इस विधि के प्रयोग द्वारा किया जा सकता है।

(6) छात्रों को अपने विचार अभिव्यक्त करने का अवसर मिलता है इसलिए उनकी सम्प्रेषण क्षमता में सुधार होता है।

(7) इस विधि के द्वारा शिक्षक एवं छात्रों में परस्पर निकटता बढ़ती है एवं वे एक दूसरे को भली-भाँति समझने लगते हैं।

(8) इस विधि के प्रयोग द्वारा ज्ञानात्मक एवं भावात्मक पक्षों के उच्च उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सकता है।

(9) इस विधि से छात्रों की तर्कशक्ति में वृद्धि होती है, उनके ज्ञान कोश में वृद्धि होती हैं। तथा उनमें अपनी बात कहने का कौशल विकसित होता है।

(10) इस विधि के द्वारा छात्रों के आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।

(11) इस विधि में लोकतान्त्रिक मूल्यों का अनुसरण किया जाता है।

(12) समूह में रहकर कार्य करने की आदत एवं सहयोग की भावना का विकास होता है।

(13) इस विधि में आलोचना के अवसर उपलब्ध होते हैं, इसलिए त्रुटिपूर्ण आयामों का खण्डन सम्भव है।

(14) कुछ छात्र जो समस्या समाधान एवं अपने निर्णय लेने में कमजोर होते हैं उनके लिए यह विधि अधिक उपयोगी होती है।

(15) इसमें छात्रों को सामाजिक-अधिगम (Social Learning) के अधिक अवसर मिलते हैं।

वार्तालाप विधि के प्रकार (Types of Discussion Method)

वार्तालाप विधि के मुख्यतः दो प्रचलित प्रकार होते हैं-

(1) औपचारिक (Formal)

(2) अनौपचारिक ( Informal)

(1) औपचारिक वार्तालाप विधि (Formal Discussion Method)- औपचारिक वार्तालाप विधि का प्रयोग पूर्व निर्धारित कार्यक्रम एवं उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए किया जाता है। औपचारिक वार्तालाप के अपने निर्धारित नियम एवं सिद्धान्त होते हैं। यह एक औपचारिक वार्तालाप या बातचीत होती है जिसे शिक्षक प्रश्न एवं उत्तर द्वारा नियन्त्रित करता है। यह शिक्षक एवं विद्यार्थियों के मध्य होता है।

(2) अनौपचारिक वार्तालाप विधि (Informal Discussion Method) – अनौपचारिक वार्तालाप में पूर्व निर्धारित नियम या सिद्धान्तों का प्रयोग नहीं किया जाता है। दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि अनौपचारिक वार्तालाप में भाग लेने वाले प्रतिभागी किसी नियम से नहीं बँधे होते। यह वार्तालाप शिक्षक एवं विद्यार्थियों के मध्य, विद्यार्थियों के मध्य हो सकता है। यदि यह विद्यार्थियों के मध्य होता है तो विद्यार्थी अपने एक नेता का चयन करते हैं जो उनका कार्यक्रम बनाता है।

वार्तालाप विधि के द्वारा छात्रों के व्यवहार में वांछित परिवर्तन लाया जाता है। उनकी सम्प्रेषण क्षमता अभिवृत्तियों, मूल्यों, सामाजिक विकास आदि में सकारात्मक परिवर्तन जो वांछित हैं, में परिवर्तन वार्तालाप विधि द्वारा सम्भव होता है। इस विधि के द्वारा छात्रों में मौलिकता एवं सक्रियता के विकास के अवसर मिलते हैं। सभी छात्रों को प्रश्न पूछने एवं उत्तर देने का समान अधिकार है, इस बात का इसमें ध्यान रखा जाता है।

वार्तालाप विधि की सीमाएँ/कमियाँ (Limitations/Demerits of Discussion Method)

वार्तालाप विधि की निम्नलिखित सीमाएँ / कमियाँ हैं-

(1) इसमें सभी छात्रों को स्वयं को अभिव्यक्त करने के अवसर तो उपलब्ध रहते हैं लेकिन सभी छात्र स्वयं को अभिव्यक्त करने या बोलने में समान रूप से सक्षम नहीं होते हैं।

(2) कभी-कभी विद्यार्थियों में आपस में ईर्ष्या एवं नकारात्मक स्पर्द्धा उत्पन्न हो जाती है।

(3) वार्तालाप के दौरान कभी-कभी छात्र विषय से हट कर काफी अलग चले जाते हैं।

(4) कभी-कभी वार्तालप के दौरान व्यक्तिगत स्तर पर आलोचना होने लगती है जिससे इसका नष्ट हो जाता है।

(5) प्रत्येक विषय हेतु इसको प्रयुक्त नहीं किया जा सकता है।

(6) छोटी कक्षाओं के लिए यह विधि अधिक उपयोगी नहीं है।

(7) कुछ ही छात्र अधिक सक्रियता प्रदर्शित करते हैं।

(8) कमजोर एवं पिछड़े छात्र और अधिक पिछड़ जाते हैं।

सुधार हेतु सुझाव (Suggestions for Improvement)

यदि वार्तालाप विधि को प्रयोग करते समय कुछ बातों को ध्यान में रखा जाए तो इसे और अधिक उपयोगी बनाया जा सकता है। वार्तालाप विधि के सुधार हेतु कुछ सुझाव इस प्रकार हैं-

(1) सभी छात्रों को बोलने के लिए समान अवसर मिले यह सुनिश्चित करना अति आवश्यक है।

(2) पिछड़े, कमजोर एवं न बोलने वाले छात्रों को प्रोत्साहित किया जाए कि वे आगे आएं एवं स्वयं को अभिव्यक्त करें।

(3) आलोचना के अवसर तो मिलने चाहिए लेकिन आलोचना सार्थक, सकारात्मक एवं रचनात्मक होनी चाहिए।

(4) छात्र वार्तालाप के दौरान विषय से न भटकें।

(5) किस विषय या किस प्रकरण पर वार्तालाप कराया जाए यह पारस्परिक विचार-विनिमय द्वारा तय होना चाहिए।

(6) ऐसे प्रकरण या विषय पर वार्तालाप करने से बचना चाहिए जो विवादास्पद हों या जिसमें अनावश्यक विवाद होने की सम्भावना हो।

(7) छात्रों से विचारोत्प्रेरक एवं विचारोत्पादक प्रश्न पूछ-पूछकर उन्हें वार्तालाप के लिए तैयार करना चाहिए।

(8) वार्तालाप सदैव उद्देश्यपूर्ण, सार्थक एवं रुचिपूर्ण होना चाहिए।

(9) शिक्षक को वार्तालाप के दौरान एक सक्रिय नियन्त्रक की भाँति कार्य करना चाहिए।

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