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भाषा आकलन पर निबंध | Essay on Language Assessment in Hindi

भाषा आकलन पर निबंध
भाषा आकलन पर निबंध

भाषा आकलन पर निबंध (Essay on Language Assessment)

भाषा आकलन पर निबंध- भारतवर्ष में मातृभाषा का अर्थ है भारत की कोई प्रादेशिक भाषा, जैसे-हिन्दी, गुजराती, मराठी, बंगला, तमिल, मलयालम, तेलुगू आदि। थोड़े-से व्यक्तियों की मातृभाषा अंग्रेजी भी है। पर प्रादेशिक भाषाओं के अतिरिक्त भारत में अनेक उप-भाषाएँ भी हैं। विद्यालय में ये उप-भाषाएँ नहीं पढ़ाई जातीं। अतः जिनकी मातृभाषा कोई उप-भाषा है, उनके लिए स्कूल में पढ़ाई जाने वाली मातृभाषा न होकर एक नई भाषा ही है। उदाहरण के लिए, ब्रजभाषी व्यक्ति के लिए हिन्दी या खड़ी बोली मातृभाषा नहीं है। जब यदि किसी हिन्दी परीक्षण में हम ब्रज प्रदेश एवं खड़ी बोली प्रदेश के व्यक्तियों के लिए समान मानक बनायें तो यह न्यायोचित नहीं होगा, क्योंकि दोनों का नगरों में बोली जाने वाली एवं स्कूल में पढ़ाई जाने वाली साहित्यिक हिन्दी भाषा पर समान रूप से अधिकार नहीं होगा। जिन व्यक्तियों की स्कूल एवं घर की भाषा समान है, उन्हें निस्सन्देह लाभ रहेगा।

भाषा के अन्तर्गत अनेक बातें सम्मिलित हैं, जैसे- वाचन, लेखन शब्द-अर्थ, उपसर्ग-विसर्ग, विदेशी एवं अन्य भाषाओं के शब्दांश तथा मुहावरे, साहित्यिक पुस्तकों के लेखक, साहित्यिक पुस्तकों की विषय-वस्तु, भाषा की यांत्रिक शब्द-रचना, व्याकरण आदि। हमने वाचन एवं लेखन का अलग वर्णन केवल उनके महत्त्व एवं उनकी अलग समस्याओं को ध्यान में रखकर किया है।

विदेशी भाषा: अंग्रेजी – भारतवर्ष में सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण विदेशी भाषा अंग्रेजी है, यद्यपि यह उतनी विदेशी नहीं लगती जितनी कि फ्रेंच, रूसी या जर्मन। इसका कारण यह है कि वर्षों तक अंग्रेजी भाषा हमारी शिक्षा का माध्यम रही है। सरकारी एवं व्यापारिक पत्र-व्यवहार, सैनिक आदेश, विज्ञापन, प्रमुख समाचार पत्र एवं पत्रिकाएँ सभी अंग्रेजी में निकलती रही हैं। कुछ व्यक्ति तो अपनी मातृभाषा की अपेक्षा अंग्रेजी भाषा में अपने विचारों को अधिक सुन्दर एवं स्पष्ट रीति से व्यक्त कर हैं। भारतीयकरण या मातृभाषा के उत्थान का नारा कितना ही जोर से क्यों न बुलंद किया जा रहा हो, अब भी सभी विज्ञानों में अनुसंधान कार्य का प्रकाशन प्राय: अंग्रेजी भाषा में ही होता है। इसका कुछ भी कारण क्यों न हो-लम्बी दासता से उत्पन्न प्रवृत्ति, प्रयोग न होने से भारतीय भाषाओं में भाव-अभिव्यक्ति में असुविधा, कुछ लोगों का निहित स्वार्थ-यह सत्य है कि अभी एक लम्बी अवधि तक हम अंग्रेजी से मुक्ति नहीं पा सकेंगे। ऐसी अवस्था में अंग्रेजी के परीक्षणों का निर्माण एवं प्रयोग आवश्यक है। अंग्रेजी पर परीक्षण बनाना अपेक्षाकृत अधिक उपयोगी भी है, क्योंकि सम्पूर्ण भारत में उस परीक्षण का प्रयोग सम्भव है। प्रादेशिक भाषाओं के परीक्षणों के साथ यह बात नहीं है। इनका प्रमापीकरण एवं प्रयोग एक निश्चित क्षेत्र में ही सीमित रहेगा। पर यह परीक्षण ऐसा होना चाहिए कि भारतीय बालकों की आवश्यकता की पूर्ति करता हो। अंग्रेजी जिनकी मातृभाषा है, उन बालकों के लिए बनाये गये इंगलिश एवं अमरीकी परीक्षण हमारे देश में उपयुक्त नहीं है, क्योंकि बालकों का स्तर भारतीय बालकों के अनुरूप नहीं हो सकता।

विभिन्न भाषाओं में शब्द-गणना- भाषा का विकास बालक में क्रमशः होता है प्रारम्भ में वह थोड़े-से शब्द ही जानता है। पर सामाजिक विकास एवं शिक्षा के साथ-साथ वह अधिक शब्द सीखता है। उसका शब्द-भंडार बढ़ता जाता है। आगे चलकर व्यक्ति के व्यवसाय एवं प्रशिक्षण के अनुरूप उसका शब्द भण्डार बढ़ता है। कानून-विशेषज्ञों, डॉक्टरों, व्यापारियों, शिक्षकों-सबका अपना अलग क्षेत्र है। किसी विशिष्ट अवस्था या कक्षा के स्तर पर परीक्षण की रचना करते समय भी यह ध्यान रखना पड़ता है कि उस अवस्था या कक्षा तक कितने शब्द भण्डार की आशा की जाती है। इस सम्बन्ध में अनेक अध्ययन हुए हैं। यह ज्ञात किया जाता है कि किसी स्तर पर कौन-से शब्द सर्वाधिक प्रयोग में आते हैं। थॉर्नडाइक ने 1922 में अंग्रेजी भाषा के 20,000 सर्वाधिक प्रचलित शब्दों की एक सूची प्रकाशित की थी। अनेक पाठ्य पुस्तकों की रचना में इस शब्द सूची की सहायता ली गई है। भारतवर्ष में श्री जे. सी. कोनिंग ने हिन्दी भाषा में 1,000 शब्दों की एक शब्द-सूची प्रकाशित की थी, जिसमें सर्वाधिक प्रचलित शब्द थे। बाद में मध्य भारत के शिक्षा विभाग की सहायता से इसमें बढ़ा कर 4,000 शब्द कर दिये गये। अब तो लगभग सभी भाषाओं में इस प्रकार की शब्द- सूचियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं। ऐसी सूचियों की सहायता लेना अत्यन्त आवश्यक है, क्योंकि भारत की प्रादेशिक भाषाओं में अनेक पर्याप्त रूप से विकसित हैं। प्रत्येक का अपना साहित्य है और विस्तृत शब्दावली है। संस्कृत एवं अन्य भाषाओं से शब्दावली लेकर इनके विकास की सम्भावना भी काफी है। एक साधारण व्यक्ति से यह आशा नहीं की जाती कि वह इस सम्पूर्ण शब्दावली से परिचित हो।

भाषा योजना का विश्लेषण- भाषा परीक्षणों के निर्माण से पहले उन दक्षताओं का जानना, जिस पर कि शाब्दिक अभिव्यक्ति निर्भर है, उपादेय होगा। भाषा- योग्यता में निहित दक्षताओं की एक संक्षिप्त, पर विश्लेषणात्मक रूपरेखा निम्नलिखित है-

1. शब्द (Words)- वर्ण विन्यास – आवश्यक शब्दों के वर्ण जानना। शब्द चयन-समान एवं विरोधी शब्द; अर्थपूर्ण ढंग से शब्द-योग। शुद्ध प्रयोग-संज्ञा, क्रिया, क्रिया-विश्लेषण आदि का । शब्दकोष का प्रयोग-अर्थ एवं उच्चारण समझना।

2. वाक्य (Sentences) – प्रकार नकारात्मक, कथनात्मक, प्रश्नवाचक आदि। रूप- सरल, मिश्रित, पूर्ण, अपूर्ण । संगठनः विचार-क्रम।

3. कण्डिका (Paragraph)- रचना – एकता, सम्बद्धता। रूप– लम्बाई, प्रारम्भिक एवं अंतिम वाक्य। संगठन-रूपरेखा, विचार-क्रम।

4. पत्र-लेखन (Letter-witing) – व्यापारिक, सामाजिक एवं अन्य प्रकार के पत्रों को लिखते समय उचित विषय-वस्तु, भाषा का चुनाव, उपयुक्त शीर्षक।

5. सामान्य बातें (General)- दीर्घ अक्षर – वाक्यों के प्रारम्भिक अक्षर उपाधि, नाम के पहले । विराम-चिह्न – कॉमा, विराम आदि। हस्त लेखन सुस्पष्टता एवं गति।

6. तट – स्थान या हाशिया (margin) – बायीं ओर; पृष्ठ के ऊपर एवं नीचे; कण्डका के पूर्व।

वर्ण विन्यास आकलन (Spelling Assessment)- विचारों के संवहन में सही भाषा अत्यन्त उपयोगी है। अंग्रेजी भाषा में बिना सही वर्ण-विन्यास (Spelling) के भाषा सही नहीं मानी जायेगी। इसी कारण स्कूलों में सही वर्ण विन्यास में प्रशिक्षण पर आवश्यक बल दिया जाता है। विशिष्ट शब्दों के वर्णविन्यास में बालक पारंगत हो, ऐसी चेष्टा की जाती है। पर ऐसा विशेषकर प्रारम्भिक कक्षाओं में किया जाता है। हाई स्कूल या समकक्ष कक्षाओं में वर्ण विन्यासों का शिक्षण पाठ्यक्रम में सम्मिलित नहीं किया जाता। पर विद्यार्थी से यह आशा की जाती है कि वह शब्दों को शुद्ध लिखेगा। बिना इसके उसकी रचना अपूर्ण समझी जाती है एवं उसके अंक काट लिए जाते हैं।

विदेशों में, विशेषकर अमेरिका के जो वर्ण विन्यास परीक्षण बने हैं, उनका आधार कुछ विशिष्ट शब्दों का चयन, जिसमें प्रायः विद्यार्थी गलती करते हैं। आयर्स रिन्सलैण्ड, थॉर्नडाइक प्रभृति व्यक्तियों ने ऐसे शब्दों की सूक्तियाँ बनाई हैं। आयोवा वर्ण विन्यास मापदण्ड 3,000 शब्दों पर आधारित है पर यह परीक्षण अब पुराना पड़ गया है। साईमन्स – बिक्सलर सस्टैन्डर्ड हाई स्कूल वर्ण विन्यास परीक्षण से लेकर 12वीं कक्षाओं तक के लिए है। इसमें 2910 शब्दों को कठिनाई के क्रम में व्यवस्थित किया गया हैं।

वर्ण विन्यास परीक्षण की रचना में सर्वप्रथम समस्या है-शब्दों का चयन | यह अत्यन्त आवश्यक है कि उन शब्दों को लिया जाए जो परीक्षार्थी के लिए उपयोगी हों। शब्द के चयन में कुछ प्रसिद्ध शब्द – सूचियों, जैसे-थॉर्नडाइक अध्यापक शब्द पुस्तक हॉर्न आधारभूत लेखन-शब्द भण्डार आदि का प्रयोग करते हैं। शब्द कितने कठिन हों, यह दूसरी समस्या है । विद्यार्थियों के स्तर एवं विद्यालय में वे किस कक्षा में पढ़ते हैं, इस आधार पर शब्दों की कठिनाई का निर्णय करते हैं। शब्दों की संख्या न बहुत कम होनी चाहिए, न बहुत अधिक। 25 से कम शब्द की नहीं होने चाहिए और 100 से अधिक नहीं। वर्ण विन्यास परीक्षण जहाँ तक हो, लिखित होने चाहिए। हॉर्न के अनुसार प्रत्यास्मरण (Recall) परीक्षण, प्रत्यभिज्ञा (Recognition) परीक्षणों में उत्तम रहते हैं।

वर्ण विन्यास परीक्षणों से विद्यार्थी के वर्ण विन्यास स्तर के सम्बन्ध में महत्त्वपूर्ण सूचना मिलती है। इनसे उनकी व्यक्तिगत कठिनाइयों पर भी प्रकाश पड़ता है। यह जान लेने के पश्चात् कि विद्यार्थी किन शब्दों के वर्ण विशेष रूप से नहीं जानता, इन पर अभ्यास कराने में विशेष ध्यान देना चाहिए विद्यार्थी जो रचना या निबंध लिखे, उसमें वर्ण-विन्यास सम्बन्धी भूलों का पता लगाना चाहिए। वर्ण विन्यास सम्बन्धी कठिनाइयों के कारण का पता लगाने के लिए उसकी बुद्धि-लब्धि, विद्यालय में प्राप्त अंक, वाचन परीक्षणों में प्राप्त अंक, स्कूल में उपस्थिति, दृष्टि एवं श्रवण सम्बन्धी कठिनाइयों, सामान्य स्वास्थ्य, व्यक्तिगत गुण आदि सम्बन्ध में तथ्य एकत्र करने चाहिए। तत्पश्चात् उसके दोषों के प्रतिकार के लिए अनेक विधियों का प्रयोग किया जा सकता है; जैसे शब्दों का नियमित अध्ययन, शारीरिक कठिनाइयों का निराकरण, उचित उच्चारण का अभ्यास, सफल प्रयास के द्वारा बालक में विश्वास जाग्रत करना।

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shubham yadav

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