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राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1992 या राममूर्ति कमेटी 1992

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1992 या राममूर्ति कमेटी 1992
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1992 या राममूर्ति कमेटी 1992

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1992 या राममूर्ति कमेटी, 1992 (National Education Policy of 1992 or Ramamurty Committee 1992)

राममूर्ति कमेटी का गठन भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 के कार्यों को कार्यान्वयन हेतु किया गया। राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 ने शारीरिक व मानसिक विकलांग बालकों को समाज के अन्य सामान्य बालकों के साथ शिक्षा देने का सुझाव किया था।

इसके अन्तर्गत क्रियात्मक कार्यक्रमों (POA) का भी क्रियान्वयन किया गया इसमें मुख्यतः अध्यापकों का प्रशिक्षण, प्रशासकों के उत्थान के लिये कार्यक्रम संसाधित प्रदेश तथा जिला प्रशिक्षण संस्थाओं, जैसे-SCERT and DIET में प्रेक्षकों की निपुणताओं का विकास आदि उनमें से कुछ प्रमुख हैं-

1. विकलांग शिक्षा को सामाजिक कल्याण कहा जाता है।

2. मुख्यतः सारी विशिष्ट संस्थाएँ महानगरों व नगरों में स्थित हैं। बहुत ही कम संस्थाओं को छोड़कर सामान्यतः ऐसा देखा जाता है कि गैर-सरकारी शिक्षा संस्थाएँ जिला या तहसील के स्तर पर नहीं हैं। उपलब्ध आँकड़ों के अनुसार सम्पूर्ण भारत के बाधितों की शिक्षा के लिये 215 जिलों में विशिष्ट शिक्षा संस्थाएँ नहीं हैं जबकि कागजों के अन्तर्गत 1000 विशिष्ट शिक्षा संस्थाएँ हैं।

3. समन्वित शिक्षा का कार्यक्रम समाज कल्याण विभाग को देख-रेख में 1974 से प्रारम्भ हुआ, जिसमें सामान्य विद्यालयों के साथ विशिष्ट विद्यालय भी प्रारम्भ किये गये। इसका मुख्य कारण सभी अध्यापकों की संवेदनशीलता न होना था।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अन्तर्गत शारीरिक रूप से बाधित बालकों की शिक्षा के लिये पर्याप्त साधन नहीं प्रदान किये गये। इसके कारण निम्नलिखित थे-

1. विकलांगों की शिक्षा के लिये सामान्य शिक्षा पर बल न देना।

2. सामान्य शिक्षा संस्थाओं को विशिष्ट शिक्षा संस्थाओं से पूर्णतया अलग समझा जाता है। इसमें सबसे प्रमुख कारण हैं- शिक्षा हेतु संसाधनों तथा प्रशिक्षकों की कमी होना। जिसे कल्याण मंत्रालय तथा मानव संसाधन विभाग पर विकास करने के लिये छोड़ दिया जाता है।

शैक्षिक क्रियान्वयन का प्रारूप (Educational Programme of Act)

शैक्षिक क्रियान्वयन के प्रारूप (POA) की स्थापना मुख्यतः विशिष्ट शिक्षा संस्थाओं की जिला तथा तहसील स्तर पर स्थापित करने हेतु की गई थी। इसमें पाठ्यक्रम को विकसित करना तथा बाधितों हेतु प्रारम्भिक शिक्षा की व्यवस्था करने का लक्ष्य रखा गया था । शैक्षिक क्रियान्वयन के प्रारूप ने बाधित बालकों हेतु विशिष्ट शिक्षा संस्थाओं की स्थापना पर बल दिया था। लेकिन इन्होंने सेवाएँ प्रदान करने पर कोई बल नहीं दिया।

एक प्रकार के दोष हेतु सर्वप्रथम अन्वेषण, फिर पुनर्वास कार्य का विकास तथा विशिष्ट शिक्षा संस्थाओं हेतु सेवाएँ उपलब्ध कराना (POA) शैक्षिक क्रियान्वयन के प्रारूप का मुख्य कारण था।

समन्वित शिक्षा हेतु शिक्षा विभाग द्वारा अनेक योजनाएँ लागू की गई हैं। वर्तमान में यह योजना मुख्य 19 राज्यों तथा केन्द्र शासित राज्यों में लागू की गई थी। इस योजना में 20,000 छात्र शिक्षा ग्रहण करते हैं तथा प्रति वर्ष 2 करोड़ रुपये व्यय किये जा रहे हैं।

2. करोड़ रुपये का व्यय निम्न कार्यों हेतु किया जाता था-

(i) शिक्षकों के वेतन व भत्ते हेतु।

(ii) विकलांगों बालकों को पहचान कर उनकी मदद करना।

(iii) विकलांग बालकों की शिक्षा हेतु अनुदेशन सामग्री उपलब्ध कराना।

शारीरिक रूप से बाधित बालकों की समस्याओं पर विचार करते हुए कमेटी ने निम्नलिखित संस्तुतियाँ प्रस्तुत की हैं-

1. सम्प्रेषण (Communication) की सहायता से प्रत्येक व्यक्ति को विकलांगों की समस्याओं से अवगत कराना।

2. जिस भी परिवार में शारीरिक या मानसिक बाधित बालक हैं, उस परिवार के सदस्यों को विशिष्ट प्रशिक्षण प्रदान करना तथा बालक का मूल्यांकन भी करना।

3. विकलांग बालकों हेतु लचीली शिक्षा की व्यवस्था करना।

4. श्रवण बाधित तथा बधिर बालकों की उनकी बाधिता के आधार पर शिक्षा देना। बधिरों हेतु सिर्फ मौखिक शिक्षा ही पर्याप्त नहीं होती। अतः उनके लिये मौखिक निर्देशिका (Oral mannual) तथा शारीरिक रूप से किये जाने वाले कार्यों का मस्तिष्क में रखते हुए शिक्षा के कार्यक्रम बनाये जाने चाहिये। यह कार्यक्रम बालकों के शारीरिक व मानसिक दोषों को देखकर बनाये जाने चाहिये।

5. विशिष्ट मानसिक दोषों से बाधित हेतु विशिष्ट पाठ्यक्रम बनाने चाहिये। इनका प्रयोग केवल बालकों की (3–R) शिक्षा के लिये आधार बनाने हेतु ही नहीं बल्कि उन्हें आत्मनिर्भर बनाने, स्वयं की देखभाल करने व भाषा कौशल सिखाने हेतु किया जाना चाहिये।

6. दृष्टि बाधित बालकों हेतु राष्ट्रीय संस्थान देहरादून (National Institute for Visually Handiapped-NIVH) में भारतीय ब्रेल नामक लिपि का विकास किया गया। इस विधि का अधिकाधिक प्रयोग अंधे बालकों की शिक्षा हेतु किया गया है।

7. विकलांग बालकों की विशिष्ट शिक्षा हेतु अध्यापकों के प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों में विशिष्ट विधियों को शामिल किया जाना चाहिये। इसमें बी. एड. को भी शामिल किया जाना चाहिये।

8. सेवारत अध्यापकों हेतु भी कार्यक्रम; जैसे- दूरस्थ शिक्षा तथा अनौपचारिक शिक्षा

आदि को कार्यक्रमों में शामिल किया जाना चाहिये।

9. शिक्षकों की शिक्षा में प्रशिक्षण कार्यक्रम तथा शिक्षण विधियों को उनके पाठ्यक्रम का आवश्यक भाग बनाना चाहिये।

10. मानसिक रूप से बाधित बालकों तथा नौजवानों हेतु व्यावसायिक शिक्षा केन्द्र खोले जाने चाहिये। उनके लाभ तथा आजीविका हेतु उन्हें विभिन्न कार्यशालाओं, कारखानों तथा कृषि कार्य पर नौकरियों के अवसर उपलब्ध कराये जाएँ।

11. विशिष्ट शिक्षा संस्थाओं के उत्तरदायित्वों को निम्न प्रारूपों के अनुसार परिभाषित करना चाहिये-

(i) प्राथमिक स्तर पर बालकों को पहचानकर उनके अनुरूप कार्यक्रम बनाना।

(ii) शारीरिक व मानसिक दोषी वह बालक जो सामान्य कक्षा में शिक्षा नहीं प्राप्त कर सकते, उन्हें समन्वित शिक्षा में सामान्य बालकों साथ शिक्षा प्रदान करना ताकि वह तिरस्कार व अपमान जैसी हीन भावनाओं से ग्रस्त न हों।

(iii) सामान्य शिक्षा संस्थाओं में विशिष्ट शिक्षा के कार्यक्रमों को उपयोग करने हेतु संसाधन एजेंसी के रूप में सेवाएँ उपलब्ध कराना।

12. आज देश में बालकों के लाभ हेतु अनेक प्रविधियों का विकास हो रहा है इन प्रविधियों में श्रवण बाधितों हेतु श्रवण यंत्र, दृष्टि बाधितों हेतु ब्रेल लिपि आदि का विकास किया गया है।

जर्मन में ब्रेलिकस ने एक कैसेट बनाया, जिस पर विश्वकोष (Eneyclopaedia) श्री उपलब्ध है।

अंधे बालकों हेतु टेकटाकों ने Viprotectile नामक यंत्र बनाया। इस यंत्र की खासियत यह थी कि इसमें छपी हुई सामग्री को उभारकर बनाया जाता है ताकि दृष्टि विहीन बालकों को शब्द की पहचान आसानी से हो सके। यह सारे यंत्र मुख्यतः शारीरिक बाधित बालकों हेतु प्रयोग किये जाते हैं।

13. शारीरिक व मानसिक बाधित बालकों की शिक्षा नीतियों को और अधिक प्रभावी बनाने हेतु सरकार ने जर्नादन कमेटी का गठन किया जिसने 1993 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।

नई शिक्षा नीति की समीक्षा 

नई शिक्षा नीति की समीक्षा हेतु सरकार ने महत्त्वपूर्ण कदम उठाये। नई शिक्षा नीति की समीक्षा समिति (NPERC) ने निम्नलिखित क्षेत्रों में राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NPE) को अनुपयुक्त पाया। यह क्षेत्र थे-

1. बाधित बालकों की सामान्य शिक्षा व्यवस्था पर राष्ट्रीय शिक्षा नीति ने महत्वपूर्ण कार्य न करके उसे वृहद् रूप नहीं दिया।

2. जिस प्रकार का व्यवहार सामान्य शिक्षा संस्थाओं के साथ किया जाता था, वह व्यवहार विशिष्ट शिक्षा संस्थाओं के साथ नहीं किया जाता था। विशिष्ट शिक्षा संस्थाओं में मुख्यतः आन्तरिक निरीक्षण तथा प्रबंध तंत्र आवश्यकता अनुसार उपलब्ध नहीं कराये जाते हैं। इन कार्यों को कल्याण मंत्रालय द्वारा मानव संसाधन विकास मंत्रालय पर छोड़ दिया जाता था।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति की समीक्षा समिति की संस्तुतियाँ (Recommendations of NPERC)

राष्ट्रीय शिक्षा नीति की समीक्षा समिति ने बाधित बालकों की शिक्षा के कार्यक्रमों से सम्बन्धित अनेक संस्तुतियाँ प्रदान कीं। यह संस्तुतियाँ निम्नलिखित थीं-

1. सभी व्यक्तियों को अपंगों की समस्याओं से अवगत कराना।

2. प्रचार के विभिन्न साधनों का प्रयोग करके; जैसे- रेडियो, समाचार तथा दूरदर्शन आदि की सहायता से बाधितों की समस्या व उनका समाधान प्रत्येक व्यक्ति को बताना।

3. राममूर्ति समिति ने बाधितों की शारीरिक व मानसिक पीड़ा के विषय में जानकर उनसे समय-समय पर की गई बातचीत आधार पर मूल्यांकन करके बालकों को अनेक अवसर उपलब्ध कराये।

4. राममूर्ति कमेटी के द्वारा बाधित बालकों को अलग-अलग श्रेणियों में बाँटकर उन्हें विशेष व लचीली शिक्षा देने पर बल दिया।

5. राष्ट्रीय शिक्षा नीति ने शारीरिक बाधित बालकों हेतु तकनीकी प्रावैधिक प्रविधियों के क्षेत्रों में नये अवसरों को खोजकर उस पर बल दिया तथा उनका विकास किया।

मानव संसाधन विकास मंत्रालय (Ministry of Human Resorce Development – MHRD) – भारत सरकार ने 1992 में मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अन्तर्गत शैक्षिक कार्यक्रम के प्रारूप (Programme of Action) को प्रतिपादित किया। इसके अन्तर्गत बाधित व्यक्तियों के लिये अनेक शिक्षा कार्यक्रम विकसित किये गये तथा उन्हें आगे तक ले जाने हेतु अनेक ऐसी ऐतिहासिक घटनाओं का उदाहरण दिया गया जो उदाहरणों को ध्यान में रखकर प्रदान की गई।

क्रियान्वयन के प्रारूप की संरचना, 1992 (Salient Features of Programme of Action, 1992) – क्रियान्वयन के प्रारूप 1991-92 में अनेक क विश्लेषण किये। उन्होंने अपने निष्कर्ष में पाया कि लगभग 30,000 लोग जो कि गम्भीर रूप से बाधित हैं। वह समन्वित शिक्षा योजना के अन्तर्गत पूर्णतः लाभ उठा रहे हैं। यह बालक सम्पूर्ण रूप से शिक्षा ग्रहण कर लेते हैं। इनके अतिरिक्त 60,000 तक बालक ऐसे हैं जो कि सामान्य दोषों से ग्रस्त हैं, जो विशिष्ट लाभ न लेकर केवल संसाधन से लाभ उठा रहे हैं।

आज विशिष्ट विद्यालयों में बाधित बालकों की बड़ी संख्या 1035 के लगभग शिक्षा प्राप्त कर रही है बाधितों के लिये समन्वित शिक्षा कार्यक्रम केन्द्र शासित प्रदेशों तथा द राज्यों में प्रत्येक राज्य के एक भाग में लागू किया जा रहा है। इस प्रकार के भाग के लगभग 90 प्रतिशत अपंग बालक सामान्य विद्यालयों में शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। एक बालक पर लगभग 2000 रुपये तक व्यय होते हैं परन्तु भविष्य में यह व्यय कम होने की सम्भावना है। इस कार्य में विभिन्न श्रेणियों में नये-नये संसाधन युक्त शिक्षकों का प्रशिक्षण कार्यक्रम अत्यधिक प्रभावशाली माना गया। इस प्रकार के प्रशिक्षण कार्यक्रम क्षेत्रीय विद्यालय तथा गैर-सरकारी संस्थानों द्वारा कराये जाते हैं। यहाँ पर शिक्षकों की प्रशिक्षण उत्पादन हेतु जिला शैक्षिक प्रशिक्षण परिषद् (DIET) की स्थापना की गई। जो विशेष कक्षाओं व सामान्य विद्यालयों या संस्थाओं में प्रदर्शन करके प्रशिक्षण कार्यक्रमों से 102 जिला शैक्षिक प्रशिक्षण संस्थान (District Institute of Education and Training) के शिक्षक लाभान्वित हो चुके हैं।

आज समाज कल्याण मंत्रालय ने विशिष्ट कक्षाओं हेतु प्रशिक्षित अध्यापकों को शिक्षा देने हेतु भेजा है, जिससे संस्थाओं के स्तर को सुधारा जा सके।

बाधित बालकों के पुनर्वास हेतु तथा उनकी स्थापना हेतु 17 व्यावसायिक केन्द्र श्रम मंत्रालय की देख-रेख में स्थापित किये गये सितम्बर, 1991 तक इस योजना के अन्तर्गत लगभग 66,000 अपंग व्यक्तियों का पुनर्वास हो चुका था अध्यापक प्रशिक्षण के कार्यक्रमों में अपंगों के लिये 3 प्रतिशत स्थान सुरक्षित है।

आज विशिष्ट शिक्षा संस्थाओं में शिक्षा के स्तर को उन्नतशील बनाने की अति आवश्यकता है। ऐसे बालक जो विभिन्न शारीरिक दोषों से पीड़ित हैं, उनके लिये आवश्यक सुविधाओं का विकास किया जाये। जो इन बालकों की प्रारम्भिक स्तर पर पहचान कर उनके कल्याण एवं शिक्षा हेतु योजनाओं व कार्यक्रमों में करना तथा उनमें सुधार करने की अति आवश्यकता है अतः यह कार्य बिना ठोस कदम उठाये व बिना आवश्यक साधनों के करना मुमकिन नहीं है।

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shubham yadav

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