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परामर्शदाता की भूमिका | परामर्शदाता के उत्तरदायित्व | परामर्शदाता के कार्य

परामर्शदाता की भूमिका
परामर्शदाता की भूमिका

परामर्शदाता की भूमिका (Role of Counsellor)

बूफोर्ड स्टेफलर एवं डब्ल्यू. हेरोल्ड ग्रांट (Buford Stefffire and W. Harold Grant) द्वारा सम्पादित पुस्तक “Theories of Counselling” में ई.जी. विलियमसन (E.G. Williamson) द्वारा लिखित एक लेख में परामर्शदाता की भूमिका का विस्तृत वर्णन किया गया है। संक्षेप में उस पुस्तक में वर्णित परामर्शदाता की भूमिका इस प्रकार है-

(1) व्यक्ति / छात्रों को उनके व्यवहार परिवर्तन में सहायता (To Help Person/Students in Changing their Behaviour)- अधिगम के द्वारा छात्रों के व्यवहार में परिवर्तन लाना परामर्शदाता का उद्देश्य होता है। छात्र / सेवार्थी स्वयं की विशेषताओं, रुचियों, योग्यताओं एवं व्यवहारों के विषय में अधिक से अधिक जानना चाहते हैं। व्यक्ति के सम्पूर्ण व्यक्तित्व के लिए इन सभी के ज्ञान का क्या महत्व / उपयोग है? उसके लिए यह जानना आवश्यक है। इसके अतिरिक्त उसे उपलब्ध अन्य अवसरों के विषय में भी ज्ञान होना चाहिए। उसे समाज से स्वयं को जोड़ने वाले तरीकों का भी ज्ञान होना चाहिए। क्या निर्णय लेना है, कैसे निर्णय लेना है? एवं उत्तम निर्णय लेने की प्रक्रिया को निरन्तर कैसे बनाया जाए? उसे यह भी सीखना चाहिए। ये सभी व्यवहार में परिवर्तन लाने वाली प्रक्रियाएँ हैं जिनमें परामर्शदाता सहायक होता है।

(2) व्यक्ति / छात्रों के व्यवहार में सुधार लाने में सहायता (To Help Person/Students in Modifying their Behaviour) – अधिगम के द्वारा व्यक्ति / विद्यार्थी के व्यवहार में सुधार लाना, परामर्शदाता का एक अन्य मुख्य उद्देश्य होता है। इस दृष्टिकोण से परामर्शदाता एक शिक्षक के स्वरूप में होता है। परामर्शदाता एवं सेवार्थी दोनों मिलकर यह निर्णय करते हैं कि कौन से व्यवहार में सुधार लाना है एवं उसके लिए क्या उपयुक्त विषयवस्तु (Content ) / विधि/ ( Method) है।

(3) सूचनाएँ एकत्र करना एवं उनका परीक्षण करना (The Collect and Examine Informations)— परामर्शदाता सेवार्थी के सहयोग से उसके एवं उसके परिवेश से सम्बन्धित सूचनाएँ एकत्र करता है। एकत्रित सूचनाओं के महत्त्व एवं उपयोग के विषय में वह विचार करता है। कुछ अस्वीकार कर दी जाती हैं एवं कुछ का अनुगमन (Follow-up) किया जाता है। ये सूचनाएँ सम्भावित हल का स्रोत होती हैं।

(4) प्रश्न पूछना (Questioning) – आवश्यक होने पर परामर्शदाता प्रार्थी से प्रश्न पूछता है। इन प्रश्नों का स्वरूप इस प्रकार का होता है कि परामर्शदाता सेवार्थी को भली प्रकार समझने के लिए सूचनाएँ प्राप्त कर लेता है। प्रश्नों का उपयोग परामर्शदाता द्वारा बहुत सावधानीपूर्वक किया जाता है। कई बार प्रश्नों का विवेकहीन एवं अधिक उपयोग हानिकारक सिद्ध हो सकता है।

(5) सुझाव प्रदान करना (Give Suggestions) – परामर्शदाता कई बार सेवार्थी को ध्यानपूर्वक सुनता है, उससे वार्तालाप करता है एवं सामान्य सुझाव देता है। अनेक बार सामान्य सुझाव परामर्श की प्रारम्भिक की अवस्था में दिए जाते हैं एवं विशिष्ट सुझाव परामर्श की बाद की अवस्था में।

(6) सेवार्थी को सूचनाएँ उपलब्ध कराना (To Provide Informations to Counsellee) – परामर्शदाता सेवार्थी को आवश्यक सूचनाएँ भी उपलब्ध कराते हैं। ये सूचनाएँ सेवार्थी के स्वयं के बारे में, उसके सामाजिक परिवेश, चयनित मनोवैज्ञानिक प्रत्ययों या निर्णय लेने की प्रक्रिया के विषय में भी हो सकती है। परामर्शदाता ये सूचनाएँ सेवार्थी द्वारा कही गई बातों से उनके अभिलेखों, उसकी भावनाओं, मूल्यों, दृष्टिकोणों आदि से प्राप्त करता है।

(7) सेवार्थी के विषय में सूचनाओं की व्याख्या ( Interpretation of Informations about Counsellee)- परामर्शदाता सेवार्थी से सम्बन्धित की व्याख्या करता है। यह कार्य प्राप्त आँकड़ों को संगठित करने से सम्बन्धित होता है लेकिन कई बार यह एक भिन्न प्रकार की ही क्रिया होती है क्योंकि कई बार इन सूचनाओं के प्रति सेवार्थी द्वारा अभिव्यक्त प्रतिक्रिया की ओर अधिक ध्यान दिया जाता है।

(8) सेवार्थी के सामाजिक वातावरण के विषय में सूचना उपलब्ध कराना (To Provide Information about Counsellee’s Social Environment)- परामर्शदाता सेवार्थी को उसके सामाजिक वातावरण के विषय में भी सूचनाएँ उपलब्ध कराता है। ये सूचनाएँ रोजगार / नौकरी के अवसरों, विद्यालय, आर्थिक साधन, सामुदायिक सुविधाएँ और सेवाएँ, विभिन्न प्रशिक्षण कार्यक्रम, उन्नति की दिशाओं एवं अवसरों, नागरिक उत्तरदायित्वों आदि से सम्बन्धित हो सकती हैं। इसके अतिरिक्त इन सूचनाओं में वर्तमान सामुदायिक दृष्टिकोण, सामाजिक मूल्यों, मूल्यों एवं दृष्टिकोणों में हो रहे परिवर्तन, राष्ट्र से सम्बन्धित सूचनाएँ आदि को सम्मिलित किया जा सकता है।

(9) मानव व्यवहार से सम्बन्धित प्रत्ययों के विषय में सूचना प्रदान करना (To Provide Information Related to Different Concepts of Human Behaviour) – परामर्शदाता परामर्श प्रक्रिया के अन्तर्गत सेवार्थी को मानव व्यवहार के प्रत्ययों के विषय में भी सूचनाएँ देता है। वह सेवार्थी को कुछ ऐसी सूचनाएँ भी प्रदान कर सकता है जिससे उन्हें बुद्धि, शैक्षिक योग्यता, रुचि, योग्यता, यान्त्रिक अभिरुचि (Mechanical Aptitude) लेखन सम्बन्धी अभिरुचि (Clerical Aptitude) आदि के विषय में स्पष्टता प्राप्त हो।

(10) सेवार्थी के विषय में सूचनाएँ एकत्र करना (To Collect Informations about the Counsellee)- परामर्शदाता पर सेवार्थी से सम्बन्धित सूचनाएँ एकत्रित करने का उत्तरदायित्व होता है। परामर्शदाता मनोवैज्ञानिक परीक्षण की सहायता से, उसके विद्यालय, शैक्षिक रिकार्ड, कार्य रिकार्ड, स्वास्थ्य रिकार्ड आदि के द्वारा सेवार्थी के विषय में सूचनाएँ एकत्र करता है तथा इन सूचनाओं की जाँच भी करता है।

(11) सेवार्थी के प्रासंगिक / सम्बन्धित वातावरण के विषय में सूचनाएँ एकत्र करना (To Collect Informations about the Relevant/Related Environment of the Counsellee) – परामर्शदाता सेवार्थी से सम्बन्धित वातावरण के विषय में सूचनाएँ एकत्र करता है जिसमें सेवार्थी रहता है या भविष्य में रहने की सम्भावना है। वह उससे सम्बन्धित विद्यालय, व्यवसायों / रोजगारों / कार्य अवसरों, समुदाय आदि के विषय में सूचनाएँ एकत्र करता है। सेवार्थी के वातावरण से जिसमें वह रहता है, यदि परामर्शदाता पूर्णतः अनभिज्ञ हैं तो परामर्शदाता उस वातावरण के विषय में अधिकतम सूचनाएँ एकत्र करता है एवं उसके विषय में सीखता है।

(12) सलाहकार के रूप में परामर्शदाता (Counsellor as an Advisor)- एक सलाहकार के रूप में भी परामर्शदाता कार्य करता है। वह सेवार्थी को निर्णय लेने में, एक अनुमानित निर्णय निर्धारित करने में समाधान के विकल्पों के विषय में सूचनाएँ प्राप्त करने के विषय में, अन्य व्यक्तियों से तर्क करने आदि पर सलाह दे सकता है। परामर्शदाता द्वारा दी गई सलाह सेवार्थी को निर्णय लेने में सहायता करती है।

(13) सेवार्थी से सम्बन्धित व्यक्तियों से वार्तालाप (Conversation of Counsellor with Persons Related to Counsellee)- सेवार्थी के साथ वार्तालाप के अतिरिक्त परामर्शदाता सेवार्थी के माता-पिता, अभिभावक, शिक्षकों, मित्रों, नियुक्तिकर्ताओं आदि से मिलकर सूचना प्राप्ति हेतु बातचीत कर सकता है। यह बातचीत गोपनीय होती है और इसका उद्देश्य सेवार्थी के साथ प्रभावशाली ढंग से कार्य करने एवं उसकी सहायता करना होता है।

(14) निर्णय प्रक्रिया के विषय में सूचना प्रदान करना (To Provide Information about Decision-Making Process) – परामर्शदाता सेवार्थी को निर्णय प्रक्रिया के विषय में भी सूचना प्रदान करता है। वह सेवार्थी के साथ मिल कर उसके द्वारा लिए गए निर्णयों की समीक्षा भी कर सकता है। वह सेवार्थी को अवगत कराता है कि निर्णय सहजता के साथ क्रमिक रूप से लिए जाते हैं। परामर्शदाता को उसे यह विश्वास दिलाना पड़ता है कि उसके द्वारा लिए गए निर्णय परिवर्तित नहीं किए जाएँगे और वह निर्णय लेने में सक्षम है।

(15) मानकीय आँकड़े एकत्रित करना (To Collect Normative Data) – परामर्शदाता का एक आवश्यक कार्य है मानकीय आँकड़े एकत्र करना। किसी परीक्षण से प्राप्त आँकड़े तब अर्थहीन हो जाते हैं जब उनकी तुलना किसी परिचित विशेषताओं वाले व्यक्ति के अंकों से नहीं की जाती अर्थात् प्राप्त आँकड़ों की तुलना किसी मानक से होनी चाहिए। वर्तमान में अधिकतर परीक्षणों के लिए कई मानक (Norms) उपलब्ध हैं। परामर्शदाता को यह निर्णय लेना होता है कि तुलना के लिए कौन सा मानक उपयुक्त होगा। कई बार उपयुक्त मानक उपलब्ध नही होते हैं, उस स्थिति में परामर्शदाता को यह तय करना पड़ता है कि वह ऐसे मानक किस प्रकार प्राप्त करें।

स्टीवर्ट महोदय (Stewart) ने परामर्शदाता के निम्न मुख्य कर्त्तव्य बताए हैं-

(1) व्यक्ति / विद्यार्थी के उसके अनुभवों का मूल्यनिर्धारित करने में सहायता देना।

(2) व्यक्ति / विद्यार्थी से सम्बन्धित सामग्री एकत्र करना।

(3) व्यक्ति / विद्यार्थी की आवश्कताओं एवं समस्याओं को समझना।

(4) विद्यालय, परिवार तथा कक्षा के मध्य तालमेल स्थापित करना।

(5) विद्यालय के विभिन्न कार्यों के मध्य तालमेल स्थापित करना ।

(6) विद्यार्थी / व्यक्ति से मुलाकात करना।

(7) शैक्षिक उन्नति एवं सामाजिक मेलजोल के मध्य तालमेल उत्पन्न करना।

8) सामूहिक निर्देशन करना।

संक्षेप में परामर्शदाता के विभिन्न कार्यों को निम्नलिखित बिन्दुओं द्वारा समझा जा सकता है-

(1) सेवार्थी से सम्बन्धित सूचनाएँ / आँकड़े एकत्र करना।

(2) विभिन्न व्यवसायों / रोजगारों से सम्बन्धित सूचनाएँ / आँकड़े एकत्र करना।

(3) विभिन्न प्रकार के शैक्षिक कार्यक्रमों, प्रशिक्षण कार्यक्रमों, शैक्षिक संस्थाओं से सम्बन्धित सूचनाएँ एकत्र करना।

(4) साक्षात्कार की व्यवस्था करना।

(5) सौहार्द एवं सामाजिक सम्बन्ध स्थापित करना।

(6) अनुवर्तन / अनुगमन (Follow-up) कार्य करना।

(7) उपयुक्त अनुमोदन एवं प्रक्रिया का अनुसरण करना।

(8) समुचित भौतिक परिस्थितियों एवं सेवाएँ उपलब्ध करना ।

परामर्शदाता के उत्तरदायित्व (Responsibilities of a Good Counsellor)

परामर्शदाता के अपने कार्यों के प्रति निम्नलिखित उत्तरदायित्व होते हैं-

(1) छात्रों को परामर्श देना (Counselling of Students) – परामर्शदाता के प्राथमिक एवं महत्त्वपूर्ण उत्तरदायित्व छात्रों को परामर्श देना है। अनेक शोध अध्ययनों से स्पष्ट हुआ है कि परामर्शदाता प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से अपना 80 प्रतिशत समय छात्रों के साथ व्यतीत करते हैं। परन्तु वर्तमान समय में प्रत्यक्ष परामर्श को ही बहुमत प्राप्त है।

परामर्श छात्र व्यवहार की समस्याओं पर नियन्त्रण पाने समय प्रबन्धन एवं संगठनात्मक कौशल में सुधार करने शैक्षणिक लक्ष्यों को प्राप्त करने, छात्रों के साथ पारस्परिक समस्याओं को हल करने एवं व्यक्तिगत समस्याओं का समाधान करने से सम्बन्धित होता है। छात्र परामर्शदाता से सलाह लेकर रोजगार एवं शिक्षा के अवसरों की पहचान करता है।

(2) शिक्षकों एवं अभिभावकों के साथ सम्बन्ध स्थापित करना (Liaison with Teacher and Parents)- विद्यालय परामर्शदाता छात्रों सम्बन्धित विभिन्न गतिविधियों एवं समस्याओं का अकेले समाधान नही कर पाते ऐसे कई मामलों में, परामर्श प्रक्रिया में वह छात्र के शिक्षक या माता-पिता को भी सम्मिलित करते हैं। उदाहरण के लिए परामर्शदाता शिक्षकों के साथ सम्बन्ध बनाकर छात्र की अधिगम कठिनाइयों को दूर करने के लिए रणनीति विकसित करता है। विद्यालय परामर्शदाता छात्रों सम्बन्धित मामलों में जैसे- मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे या उनके व्यवहार सम्बन्धी मुद्दों पर शिक्षक व छात्र के माता-पिता से जानकारी प्राप्त करता है। अतः ऐसे में उसे शिक्षकों तथा अभिभावकों के साथ मधुर सम्बन्ध स्थापित करना उसकी आवश्यकता एवं उत्तरदायित्व दोनों ही है।

(3) वाह्य अभिकरणों से छात्रों को सम्बद्ध कराना (Interacting Students with External Agencies)- कुछ ऐसी परिस्थितियों में विद्यालय परामर्शदाताओं के समक्ष आती है। छात्रों की जब कुछ समस्याओं को विद्यालय स्तर पर हल करना उनके लिए कठिन होता जाता है। इन परिस्थितियों में विद्यालय परामर्शदाता छात्र की समस्याओं का समाधान करने के लिए बाहरी अभिकरणों को तैयार करते हैं जो छात्रों का उल्लेख कर सकते हैं। उदाहरण के लिए एक विद्यालय परामर्शदाता छात्र के माता-पिता से छात्र के मनोवैज्ञानिक परीक्षण के लिए सिफारिश कर सकता है। बाल कल्याण कानून के तहत एक विद्यालय परामर्शदाता भी बाल शोषण या इससे सम्बन्धित शोषण की घटनाओं की रिपोर्ट प्राधिकारी वर्ग के पास करनी होगी। अतः ऐसी स्थिति में इन वाय अभिकरणों से छात्रों को सम्बद्ध करना परामर्शदाता का महत्त्वपूर्ण उत्तरदायित्व है।

(4) छात्र कल्याण एवं अधिगम सहायता समितियों में सहभागिता (Participation in the Student Welfare and Learning Support Committees) – विद्यालय परामर्शदाता विद्यालय के छात्र कल्याण एवं अधिगम सहायता समितियों के अभिन्न अंग है। विद्यालय परामर्शदाता अन्य समिति के सदस्यों के साथ छात्रों से सम्बन्धित विषयों पर चर्चा करके सूचनाएँ एकत्रित करते हैं तथा छात्र कल्याण एवं अधिगम समर्थन सम्बन्धी विषयों से सम्बन्धित जानकारी प्राप्त करते हैं। इन समितियों के एक भाग के रूप में विद्यालय परामर्शदाता को भी छात्र कल्याण को बढ़ावा देने एवं अधिगम स्तर में सुधार का आंकलन कने का उत्तरदायित्व उठाते हैं।

(5) मूल्यांकन एवं परामर्श कार्यक्रम में सुधार (Improvement in Education and Counselling Programme) – विद्यालय परामर्शदाता परामर्श देने के पहले व्यक्ति के पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक तथा धर्म के विषय में पूरी जानकारी सही प्राप्त करते हैं। उसके जीवन में आयी सफलता एवं असफलता किस प्रकार की थी तथा प्रार्थी ने उसके प्रति किस प्रकार का व्यवहार अपनाया तथा इस व्यवहार का अगले व्यवहार पर क्या प्रभाव पड़ा आदि से सम्बन्धित जानकारियाँ एकत्र करता है। इसी आधार पर प्रार्थी के मूल्यांकन एवं परामर्श कार्यों में सुधार करने का प्रयास करते हैं।

(6) अन्य उत्तरदायित्व (Other Responsibilities) उपर्युक्त उत्तरदायित्वों के अतिरिक्त परामर्शदाता के अन्य उत्तरदायित्व इस प्रकार हैं-

(i) प्रार्थी की आवश्यकताओं एवं समस्याओं को समझना।

(ii) विद्यालय, कक्षा एवं उसके आस-पास के पर्यावरण के साथ प्रार्थी का सामंजस्य स्थापित करना।

(iii) परामर्शदाता का प्रमुख उत्तरदायित्व परामर्श प्रार्थी के व्यवहार में परिवर्तन करना है। वह प्रार्थी को उसकी योग्यताओं, रुचियों व विशेषताओं की जानकारी दें तथा उनके उपयोग व महत्त्व का ज्ञान कराएँ व स्वयं निर्णय की क्षमता विकसित करें।

(iv) परामर्शदाता का यह भी उत्तरदायित्व है कि वह प्रार्थी को यह बताएँ कि भविष्य में कैसे निर्णय लिया जाए तथा उसके द्वारा पूर्व में लिए गए निर्णयों में कमी क्यों है।

(v) प्रार्थी परामर्श प्रक्रिया के दौरान अनेक सूचनाएँ परामर्शदाता को देता है। यही सूचनाएँ परामर्शदाता एवं समस्त परामर्श प्रक्रिया को एक दिशा देती है। अतः परामर्शदाता का प्रमुख उत्तरदायित्व इन सूचनाओं को गोपनीय रखना भी है।

(vi) परामर्शदाता का उत्तरदायित्व है कि वह मानव व्यवहार एवं प्रकृति से प्रार्थी को अवगत कराए जिससे वह समस्याओं के प्रति सजग हो जाए।

(vii) निर्णयन की क्षमता को सही दिशा प्रदान करना परामर्शदाता का उत्तरदायित्व है।

(viii) परामर्शदाता अनेक प्रकार की सूचनाएँ प्रार्थी से एकत्र करता है तथा उन सूचनाओं का विश्लेषण करके कुछ परिणाम प्राप्त करता है। परामर्शदाता इन सूचनाओं को पुनः परामर्श प्रक्रिया के दौरान प्रार्थी को प्रदान करता है।

(ix) परामर्शदाता का यह भी उत्तरदायित्व है कि वह प्रार्थी से अधिकतम जानकारी हेतु प्रश्नों को पूछकर प्रार्थी के सम्बन्ध में आवश्यक आंकड़े एकत्र करने के लिए प्रार्थी को प्रोत्साहित करें।

(x) सभी लोगों के लिए यह कठिन होता है कि वह मानव मात्र के व्यावहारिक परिवर्तनों को समझ सकें। परामर्शदाता का यह भी उत्तरदायित्व है कि वह मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों की जानकारी प्रार्थी को भी दें जिससे कि वह अपनी समस्याओं को सही प्रकार से समझ सकें।

(xi) परामर्शदाता का मुख्य उत्तरदायित्व प्रार्थी को उचित सलाह देना है जिससे कि वह अपनी समस्या एवं उसके परिप्रेक्ष्य में उचित दृष्टिकोण विकसित कर सकें। परामर्शदाता अपनी सलाह को मनवाने हेतु प्रार्थी को बाध्य नहीं करता केवल सलाह देता है।

(xii) परामर्शदाता का सबसे प्रमुख उत्तरदायित्व मानकीकृत आँकड़ों को एकत्र करना क्योंकि इससे ही सम्पूर्ण परामर्श प्रक्रिया की वस्तुनिष्ठता प्रभावित होती है। xiii) परामर्शदाता परामर्श प्रक्रिया का अन्त वास्तव में प्रार्थी की समस्या समाधान हेतु स्वयं की क्षमता को पहचानने की क्षमता जाग्रत करने की सलाह देता है।

(xiv) परामर्शदाता का यह उत्तरदायित्व है कि वह प्रार्थी को इस प्रकार सहयोग दें कि उसमें वांछित व्यवहार करने की क्षमता उत्पन्न हो।

परामर्शदाता के कार्य (Works of Counsellor)

परामर्शदाता का कार्य अति महत्वपूर्ण होता है। अपने कार्य को सफलतापूर्वक सम्पन्न करने के लिए उसे कुछ बातों का ध्यान रखना पड़ता है। वे बाते हैं-

(1) प्रत्येक व्यक्ति का मौलिक महत्त्व है।

(2) चयन करना व्यक्ति का मूलभूत अधिकार है।

(3) समाज के साथ समायोजन स्थापित होना एक गतिमान प्रक्रिया है।

उपरोक्त तीनों बातें दार्शनिक तत्त्व हैं जिनको परामर्शदाता को सदैव ध्यान में रखना चाहिए। इनके अतिरिक्त परामर्शदाता को कुछ क्रियात्मक बातों पर भी ध्यान रखना आवश्यक होता है। जैसे-

(1) परामर्शदाता को अपनी निर्धारित सीमा या क्षेत्र में ही रहना चाहिए, इससे बाहर उसे नहीं जाना चाहिए ।

(2) परामर्शदाता का उद्देश्य सेवार्थी को समस्या का ज्ञान कराना है।

(3) परामर्शदाता को किसी वस्तु को सही करने वाले व्यक्ति के रूप में होना चाहिए।

(4) सेवार्थी के ऊपर उसे कोई समस्या नहीं थोपनी चाहिए ।

(5) परामर्शदाता को सेवार्थी के समक्ष सभी सम्भावनाएँ अभिव्यक्त कर देनी चाहिए।

(6) सेवार्थी की समस्या पर परामर्शदाता को विभिन्न दृष्टिकोणों से विचार-विमर्श करना चाहिए।

(7) परामर्शदाता को इस दृष्टिकोण से कार्य करना चाहिए कि अन्तिम निर्णय सेवार्थी को ही लेना है।

(8) सेवार्थी के लिए यदि सम्भावना का एक क्षेत्र बन्द हो रहा है तो परामर्शदाता को चाहिए कि उसके लिए सम्भावनाओं के अन्य क्षेत्रों से उसे अवगत कराए। उपरोक्त वर्णित कुछ आधारभूत बाते हैं जिनको एक सफल परामर्शदाता को ध्यान देनी चाहिए।

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shubham yadav

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