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वस्तुनिष्ठ परीक्षणों का अर्थ, गुण एवं विशेषताएँ, प्रकार, वस्तुनिष्ठ परीक्षा के प्रश्नों के रूप, दोष व हानियाँ

वस्तुनिष्ठ परीक्षणों का अर्थ
वस्तुनिष्ठ परीक्षणों का अर्थ

वर्तमान समय में वस्तुनिष्ठ परीक्षाओं का प्रयोग व्यापक स्तर पर होने लगा है। आज के इस वैज्ञानिक एवं औद्योगिक युग में इनकी उपयोगिता इतनी बढ़ गई है कि इनका प्रयोग एक अध्यापक तक सीमित नहीं रहा बल्कि औद्योगिक प्रबन्धक, पिता, मालिक, सेना, अधिकारी, सरकारी अफसर आदि भी अपने-अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिये इनका प्रयोग करते हैं।

वस्तुनिष्ठ परीक्षणों का अर्थ (Meaning of Objective Tests)

वस्तुनिष्ठ परीक्षण के सम्बन्ध में छात्रों एवं अध्यापकों में सबसे अधिक जिज्ञासा (Curiosity) तो यह जानने की होती है कि वस्तुनिष्ठ परीक्षाओं को वस्तुनिष्ठ (Objective) की संज्ञा क्यों दी जाती है। परीक्षा के उत्तरों के मूल्यांकन पर परीक्षक के दृष्टिकोण में पड़ने वाले प्रभाव की दृष्टि से मोटे रूप में परीक्षाओं को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है प्रथम व्यक्तिगत या आत्मगत परीक्षाएँ (Subjective Examination) और द्वितीय वस्तुनिष्ठ या विषयगत परीक्षाएँ (Objective Examination) । व्यक्तिगत या आत्मगत परीक्षाओं का तात्पर्य उन परीक्षाओं से है जिनके उत्तरों के मूल्यांकन में परीक्षकों के दृष्टिकोण का प्रभाव पड़ता है अर्थात् यदि इस परीक्षा के किसी प्रश्न का उत्तर अलग-अलग समय पर परीक्षक जाँचता है तो दृष्टिकोण में परिवर्तन होते रहने के कारण अलग-अलग अंक प्राप्त होते हैं। चूँकि निबन्धात्मक परीक्षाओं में मूल्यांकन पर परीक्षकों के दृष्टिकोण का प्रभाव पड़ता रहता है अतः उन्हें व्यक्तिगत या आत्मगत परीक्षाओं के नाम से सम्बोधित किया जाता है। दूसरी ओर वस्तुनिष्ठ व विषयगत परीक्षाओं का तात्पर्य उन परीक्षाओं से होता है जिनके प्रश्नों के उत्तरों के मूल्यांकन पर परीक्षकों के दृष्टिकोण का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है चाहे उन उत्तरों को अलग-अलग परीक्षक जाँचें और चाहे एक ही परीक्षक कई बार जाँचे छात्र को सदैव वही अंक प्राप्त होते हैं। इस प्रकार वस्तुनिष्ठ परीक्षाओं का तात्पर्य उन परीक्षाओं से है जिनके प्रश्नों के उत्तरों की जाँच में परीक्षक के दृष्टिकोण का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है और इसीलिए इन परीक्षाओं को वस्तुनिष्ठ (Objective) की संज्ञा दी गई है। मूल्यांकन में परीक्षक के दृष्टिकोण का प्रभाव न पड़ने पाए इसके लिए इन परीक्षाओं में अन्य कई गुणों व विशेषताओं का समावेश करना पड़ता है और इन सभी के आधार पर वस्तुनिष्ठ परीक्षाओं को परिभाषित करते हुए कहा जा सकता है कि वस्तुनिष्ठ परीक्षाओं का तात्पर्य उन लिखित या कागज पेन्सिल परीक्षाओं व परीक्षणों (Written or Paper Pencil Examination or Test ) से है जिनमें व्यक्तिनिष्ठता (Subjectivity) से प्रभावित हुए बिना सम्पूर्ण पाठ्यक्रम से छोटे-छोटे अनेक प्रश्न पूछे जाते हैं और पूर्णतया सत्य (True) या असत्य (False) होते हैं, उनका उत्तर देने के लिए कुछ विशेष चिन्ह बनाने होते हैं या केवल कुछ शब्द लिखने होते हैं तथा इन सब विशेषताओं के कारण परीक्षकों को इनका मूल्यांकन करने में किसी प्रकार की व्यक्तिगत छूट नहीं होती है। चूँकि ये परीक्षाएँ आज के युग की देन हैं अतः इन्हें नवीन परीक्षाएँ (New Type Examination) भी कहा जाता है।

वस्तुनिष्ठ परीक्षाओं के गुण एवं विशेषताएँ (Merits and Characteristics of Objective Tests)

वस्तुनिष्ठ परीक्षाओं में प्रायः वे समस्त गुण व विशेषताएँ पाई जाती हैं जो कि एक अच्छी परीक्षा में निहित रहती हैं। ये गुण व विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

(1) प्रामाणिकता (Validity)- अच्छे परीक्षक की प्रथम विशेषता है उसमें प्रामाणिकता या वैधता का पाया जाना परीक्षण की उस विशेषता से है जिस विशेषता का अध्ययन या मापन करने के लिए परीक्षण का निर्माण किया जाता है उसी विशेषता का ही वह अध्ययन मापन करता है। उदाहरण के लिए यदि बुद्धि मापन के लिए कोई परीक्षण निर्माण किया जाता है तो वह बुद्धि का मापन करे न कि अर्जित योग्यता या शिक्षा का ।

(2) विश्वसनीयता (Reliability)- एक अच्छे परीक्षण की दूसरी विशेषता है उसमें विश्वसनीयता का होना। विश्वसनीयता का तात्पर्य परीक्षण की उस विशेषता से है जिसके कारण कोई परीक्षण दुधारा, तिबारा या जितनी बार आवश्यकता पड़े उसे व्यक्तियों पर प्रयोग किया जाए तो सब बार, प्रथम बार की तरह फलांक (Scores) प्राप्त हों। ऐसा न हो कि पहले बार 60, दूसरी बार 40 तथा तीसरी बार 79 फलांक या अंक प्राप्त हों। परीक्षण की इसी विशेषता के कारण ही किसी परीक्षण का फल प्रतिपन्न (Accurate) तथा एकरस (Consistent) होता है।

(3) वस्तुनिष्ठता (Objectivity)- वस्तुनिष्ठता या विधायकता का तात्पर्य परीक्षण की उस विशेषता से है जिसके कारण परीक्षण के प्राप्तांकों का बालकों पर परीक्षक की रुचि इत्यादि का कोई प्रभाव नहीं पड़ पाता है। इस विशेषता के अस्तित्व के लिए यह आवश्यक है कि परीक्षण के प्रत्येक प्रश्न का उत्तर निश्चित तथा स्पष्ट हो जिसके विषय में परीक्षकों में किसी प्रकार का मतभेद न हो ।

(4) प्रमाणीकरण (Standardization)- प्रमाणीकरण का तात्पर्य किसी परीक्षण की उस विशेषता से है जिसके अनुसार परीक्षण के निर्देशन, प्रश्न परीक्षण की विधि तथा जाँचने का तरीका इत्यादि पहले से ही निर्धारित कर दिया जाता है। ऐसा करने से विभिन्न व्यक्तियों के प्राप्तांकों की विभिन्न समय तथा स्थानों पर तुलना की जा सकती है। मनोवैज्ञानिक परीक्षणों के प्रमाणीकरण होने पर ही उनमें विश्वसनीयता (Reliability) तथा प्रमाणिकता (Validity) की विशेषताएँ प्राप्त होती हैं।

(5) व्यापकता (Comprehensiveness)- व्यापकता का अभिप्राय परीक्षण की उस विशेषता से है जिसके अनुसार जिस योग्यता के मापन के लिए परीक्षण का निर्माण किया गया है, उसके समस्त पहलुओं से सम्बन्धित प्रश्न के परीक्षण-पद (Tests terms) निर्धारित किए जाएँ। ऐसा नहीं होना चाहिए जैसा कि आजकल परम्परागत परीक्षाओं में पाठ्यक्रम के केवल थोड़े से भागों से प्रश्न पूछे जाते हैं

(6) विभेदकारी शक्ति (Discriminating Power)- विभेदकारी शक्ति का अभिप्राय परीक्षण की उस विशेषता से है जिसके अनुसार अच्छे तथा कमजोर विद्यार्थियों में अन्तर मालूम किया जा सके। परीक्षण में यह विशेषता होनी चाहिए कि अच्छे विद्यार्थियों को अधिक अंक प्राप्त हों और कमजोर विद्यार्थियों को कम अंक प्राप्त हों। ऐसा नहीं होना चाहिए कि अच्छे और कमजोर विद्यार्थी दोनों समान अंक पावें।

(7) सामान्यक (Norms)- प्रमाणीकरण का दूसरा महत्त्वपूर्ण अंग प्रमाणीकरण न्यादर्श (Standardization Sampie) है। न्यादर्श का तात्पर्य उस जन-समूह से है जो कि उस सम्पूर्ण जनसंख्या (Total Population) का पूर्णरूपेण प्रतिनिधित्व करे जिसके सदस्यों को भविष्य में मापन का अध्ययन करना है- के परीक्षाफल के आधार पर सामान्यकों (Norms) को तैयार करना ताकि भविष्य में जिस व्यक्ति का मापन किया जाए उसके सम्बन्ध में जाना जा सके कि वह उस न्यादर्श (Sample) की तुलना में उत्तम, औसत के ऊपर, औसत के नीचे या निम्नतम बैठता है।

(8) मितव्ययिता (Economy)- अच्छे मनोवैज्ञानिक परीक्षण की भारत जैसे निर्धन देशों के लिए महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि उसके निर्माण तथा क्रियान्वित करने में समय तथा धन का कम व्यय हो । दिन भर चले अढ़ाई कोस का किस्सा चरितार्थ होने से फायदा ही क्या है।

(9) व्यावहारिकता (Practicability)- व्यावहारिकता का तात्पर्य परीक्षण की उस विशेषता से है जिसके कारण यह सरलतापूर्वक प्रयोग किया जा सके। इसके लिए उसमें सरल आदेश तथा जाँचने की विधि सुलभ होनी चाहिए।

(10) रुचिदायक (Interesting)- कोई परीक्षण तभी अपने उद्देश्य की पूर्ति कर सकता है जबकि वह परीक्षक तथा परीक्षार्थी दोनों को रुचिपूर्ण प्रतीत हों, क्योंकि ऐसा होने से परीक्षार्थी तो अपने कार्य को अच्छी तरह सम्पादित करेगा साथ-ही-साथ परीक्षक भी अपना पूरा सहयोग देगा जिससे कि मापन करने वाली विशेषता की वास्तविक झलक प्राप्त हो जाएगी।

वस्तुनिष्ठ परीक्षाओं के प्रकार (Type of Objective Tests )

वस्तुनिष्ठ परीक्षण के रूप- वस्तुनिष्ठ परीक्षाएँ दो प्रकार की होती हैं-

(1) मानकीकृत वस्तुनिष्ठ परीक्षा (Standardized Objective Tests),

(2) शिक्षक निर्मित वस्तुनिष्ठ परीक्षा (Teacher Made Objective Tests) ।

(1) मानकीकृत वस्तुनिष्ठ परीक्षा- इस परीक्षा के अन्तर्गत प्रश्न विशेषज्ञों द्वारा सावधानीपूर्वक तैयार किए जाते हैं। प्रश्नों को उचित प्रमाणिक समूह में परीक्षण करके छाँट लिया जाता है। इन परीक्षाओं का समान रूप से सभी परिस्थितियों में प्रयोग किया जाता है।

(2) शिक्षक निर्मित वस्तुनिष्ठ परीक्षा- इन परीक्षाओं के प्रश्नों का निर्माण स्वयं शिक्षक करते हैं। इनका उपयोग विशेष स्थानों पर विशेष रूप में होता है।

वस्तुनिष्ठ परीक्षा के प्रश्नों के रूप 

वस्तुनिष्ठ परीक्षा प्रणाली के अन्तर्गत पूछे जाने वाले प्रश्नों के रूप इस प्रकार हैं-

(1) सत्य-असत्य कथन परीक्षा- इन प्रश्नों में किसी “सत्य” अथवा “असत्य” कथन का समावेश होता है। प्रत्येक प्रश्न के सम्मुख “सत्य” अथवा “असत्य” शब्द लिखा रहता है और शिक्षार्थी से यह अपेक्षा की जाती है कि यदि प्रश्न में समाविष्ट कथन “सत्य” है तो “सत्य” शब्द को रेखांकित करे और यदि वह “असत्य” है तो “असत्य” शब्द को रेखांकित करे। इस प्रकार के प्रश्नों के कुछ उदाहरण दिये जा रहे हैं-

निर्देश- निम्नलिखित कथनों में सत्य/असत्य कथन छाँटिए-

(अ) द्वितीय महायुद्ध 1956 ई. में आरम्भ हुआ।    सत्य/असत्य

(ब) लखनऊ गंगा के किनारे बसा है।                सत्य/असत्य

(स) रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि हैं।        सत्य / असत्य

(द) दिल्ली भारत की राजधानी है।                    सत्य / असत्य

(2) रिक्त स्थानों की पूर्ति परीक्षा- इस प्रकार की परीक्षा में परीक्षार्थियों को प्रश्न- रूप कुछ वाक्य दिये जाते हैं जिनमें कुछ स्थान रिक्त होते हैं जिन्हें पूरा करना होता है। इस प्रकार में के प्रश्नों के कुछ उदाहरण दिये जा रहे हैं-

निर्देश- निम्नलिखित वाक्यों में रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

(अ) कामायनी की रचना……….ने की।

(ब) भारत के प्रधानमन्त्री……….हैं।

(स) न्यूटन एक प्रसिद्ध……….थे।

(द) ताजमहल का निर्माण……….ने करवाया।

(3) बहुविकल्पीय परीक्षा- इस परीक्षा के प्रश्नों के कई वैकल्पिक उत्तर दिये होते हैं जिनमें से केवल एक विकल्प उत्तर सही होता है। ऐसे प्रश्नों को बहुविकल्पीय प्रश्न कहते हैं।

परीक्षार्थी को उन उत्तरों में से किसी एक सही विकल्प को चुनना होता है। यहाँ बहुविकल्पीय प्रश्नों के कुछ नमूने दिये जा रहे हैं

 निम्नलिखित प्रश्नों में सही विकल्प उत्तर के सामने कोष्ठक में (3) का निशान लगाइए-

(अ) वाल्मीकि ने

(क) उपनिषद् लिखा               ( )

(ख) रामायण लिखी                ( )

(ग) महाभारत लिखा               ( )

(घ) श्रीमद्भगवद्गीता लिखी          ( )

(ब) भारत की सबसे लम्बी नदी

(क) गंगा है            ( )

(ख) यमुना है          ( )

(ग) नर्मदा है          ( )

(घ) गोदावरी है       ( )

(स) भारत का राष्ट्रीय पशु –

(क) चीता है          ( )

(ख) हाथी है          ( )

(ग) शेर है            ( )

(घ) हिरन है          ( )

(4) मिलते-जुलते तुल्य पद (Matching Items)- इनमें बहुविकल्पीय प्रश्नों की भाँति ही प्रश्न होते हैं। इन प्रश्नों में सम्भावित उत्तरों की संख्या अधिक होती है। इनमें संयोग से सही उत्तर बताने की बहुत कम सम्भावना होती है। ये प्रश्न अधिकतर समस्या को पूर्ण करने वाले अंश, घटना की तारीख, कार्य के कारण और के वस्तु गुण के सम्बन्ध में होते हैं।

ऐसे प्रश्नों के कुछ उदाहरण दिये जा रहे हैं-

(अ) निर्देश-नीचे दिया गया कौन-सा नगर किस देश की राजधानी है-

(1) पेरिस

(2) लन्दन

(3) मास्को

(4) नई दिल्ली

(5) वाशिंगटन

(6) ढाका

(1) रूस

(2) फ्रांस

(3) भारत

(4) ग्रेट ब्रिटेन

(5) नेपाल

(6) संयुक्त राज्य अमेरिका

(7) चीन

(ब) निर्देश-निम्नलिखित शहरों की प्रसिद्धि के कारण हैं-

(1) दिल्ली

(2) मुरादाबाद

(3) कोलकाता

(4) आगरा

(5) अहमदाबाद

(1) कपड़े के कारखाने के लिए

(2) बन्दरगाह

(3) राजधानी

(4) पीतल के बर्तन

(5) ताजमहल

(6) कागज बनाने के कारखाने

(7) कोयले की खानें

(5) सरल स्मरण परीक्षा- इस परीक्षा के द्वारा स्मृति सम्बन्धी योग्यता की परीक्षा होती है।

उदाहरणार्थ-

निर्देश- निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर उनके सामने दिये गये कोष्ठक में लिखिए-

(अ) भारत में गणतन्त्र दिवस किस दिन मनाया जाता है?  ( )

(ब) दिल्ली का मुख्यमंत्री कौन है?                          ( )

(स) भारत का राष्ट्रपति कौन है?                            ( )

(6) तर्क-शक्ति परीक्षण- इस परीक्षा द्वारा व्यक्ति की तर्क एवं निर्णय करने की योग्यता की जाँच होती है। इसका एक उदाहरण यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है-

निर्देश- निम्नलिखित प्रश्न के चार उत्तर दिये गये हैं जिनमें से केवल एक ही उत्तर सही है। इसे छाँटकर उसके सम्मुख (v) का निशान लगाइए (अ) गरम देशों में सूती कपड़ों का प्रयोग होता है क्योंकि वे-

(अ) गन्दे नहीं होते                         ( )

(ब) शरीर को गर्मी से बचाते हैं            ( )

(स) ढीले-ढाले होते हैं                      ( )

(द) मजबूत एवं टिकाऊ होते हैं           ( )

(7) वर्गीकरण परीक्षा-यह बहु-विकल्प अथवा मिलान परीक्षा का ही एक रूप है। इसमें कुछ इस प्रकार के शब्द दिये जाते हैं जिनमें केवल एक शब्द उस समूह से भिन्न होता है। परीक्षार्थी को उसी शब्द को छाँटना होता है। यथा

निर्देश- निम्नलिखित शब्दों में जिस शब्द का शेष शब्दों से मेल नहीं खाता उसके नीचे रेखा खींचिए-

(अ) आम, केला, सेब, प्याज, अंगूर

(ब) कुर्सी, आलमारी, पुस्तक, चारपाई, कलम।

(स) नदी, झील, तालाब, पानी, समुद्र ।

(द) उत्तर प्रदेश, उड़ीसा, बंगाल, कोलकाता, पंजाब।

वस्तुनिष्ठ परीक्षणों के गुण अथवा विशेषताएँ (Merits and Features of Objective Type Test)

वस्तुनिष्ठ परीक्षणों की विशेषताओं का उल्लेख यहाँ किया जा रहा है-

(1) विश्वसनीयता- फलांकन की दृष्टि से ये परीक्षण विश्वसनीय होते हैं।

(2) वैधता- वैधता का ताप्तर्य परीक्षा के उद्देश्यों के मापन से है। यह परीक्षण इस उद्देश्य की प्राप्ति में सफल होता है।

(3) वस्तुनिष्ठता– इन परीक्षणों का निर्माण, प्रशासन और फलांकन सभी वस्तुनिष्ठ होते हैं।

(4) विभेदकता- वस्तुनिष्ठ परीक्षण छात्रों की उपलब्धियों में उनकी वैयक्तिक भिन्नता एवं मानसिक योग्यता के आधार पर अन्तर करने में सक्षम होते हैं।

(5) धन की मितव्ययिता- इन परीक्षणों में प्रश्न के हेतु अलग उत्तर पुस्तिका की आवश्यकता नहीं होती। उत्तर पुस्तिका पर मुद्रित प्रश्नों के फलस्वरूप धन का अपव्यय नहीं होता।

(6) समय की बचत – छात्रों को प्रश्नों के उत्तर देने और परीक्षक को उन्हें जाँचने में कम समय लगता है।

(7) उचित प्रतिनिधित्व- वस्तुनिष्ठ प्रश्न सम्पूर्ण विषयवस्तु का प्रतिनिधित्व करते हैं। इनमें प्रश्नों की संख्या इतनी अधिक होती है कि कोई भी विषयवस्तु छूटती नहीं है।

(8) उत्तर की सुगमता- छात्रों को वस्तुनिष्ठ परीक्षाओं के उत्तर देने में अत्यधिक सुगमता होती है। प्रश्नों के उत्तर एक अथवा दो शब्दों में अथवा कभी-कभी चिन्हांकित करके दिये जाते हैं।

(9) छात्र-सन्तोष- विश्वसनीयता एवं वैधता के आधार पर ये परीक्षाएँ छात्रों को सन्तोष प्रदान करती हैं।

(10) फलांकन सरलता- इनका फलांकन सुगम, सरल, विश्वसनीय, वैध और कम समय एवं श्रम में किया जाता है।

वस्तुनिष्ठ परीक्षाओं के दोष व हानियाँ (Demerits or Disadvantages of Objective Type Tests)

वस्तुनिष्ठ परीक्षाओं में उपर्युक्त गुणों व विशेषताओं के होते हुए भी ये परीक्षाएँ दोषमुक्त नहीं मानी जा सकती हैं। इन परीक्षाओं के प्रमुख दोष या सीमाएँ निम्नलिखित हैं-

(1) निर्माण में कठिनाई (Difficulty in Preparation)- निबन्धात्मक परीक्षाओं की तुलना में वस्तुनिष्ठ परीक्षाओं का निर्माण कठिन होता है। इसके लिए योग्य एवं अनुभवी शिक्षक की आवश्यकता है और आवश्यकता की पूर्ति तभी हो सकती है जब शिक्षकों को वस्तुनिष्ठ प्रकार के प्रश्नों के निर्माण हेतु प्रशिक्षण (Training) प्रदान किया जाए।

(2) अनुमान या धोखा (Guessing and Cheeting)- इन परीक्षाओं में प्रश्नों के उत्तरों को देखकर यह ज्ञात नहीं हो पाता कि छात्रों ने अपनी वास्तविक बुद्धि के प्रयोग द्वारा उत्तर दिये हैं अथवा अनुमान द्वारा। इसके अतिरिक्त इस परीक्षा में नकल (Copy) करना भी सरल है। छात्र बहुत ही सुगमता से परीक्षकों को धोखा दे सकते हैं और वे कभी-भी पता नहीं लगा सकते हैं कि छात्रों ने नकल करके उत्तर दिये हैं।

(3) उच्च मानसिक योग्यताओं के मापन में कठिनाई (Difficulty in Measuring High Mental Abilites)- इन परीक्षाओं के द्वारा छात्रों की कल्पना, चिन्तन, तर्क, निर्णय, विचारों के संगठन एवं अभिव्यक्ति करने की शक्ति आदि उच्च मानसिक योग्यताओं का मूल्यांकन सम्भव नहीं हो पाता। इनके द्वारा छात्रों में संगठित रूप से अध्ययन करने की आदत का निर्माण नहीं हो पाता और वे विषय के तथ्यों को समझने की बजाय रटकर ही उत्तर दे देते हैं।

(4) व्यक्तिगत विभिन्नता की उपेक्षा (Negligence of Individual Difference)- वस्तुनिष्ठ परीक्षाओं के अन्तर्गत प्रयुक्त शिक्षण विधि तथा परीक्षा दोनों में समानता लाने का – प्रयास किया जाता है। ऐसी स्थिति में उनमें छात्रों को सोचने-समझने, तर्क-वितर्क करने तथा निर्णय व निष्कर्ष पर पहुँचने की कोई स्वतन्त्रता नहीं रहती। इस प्रकार इन परीक्षाओं में व्यक्तिगत विभिन्नताओं को भुलाकर छात्रों की मानसिक क्रिया को पूर्णतया यान्त्रिक (Mechanical) बना दिया जाता है।

(5) अधूरी सूचना (Partial Information)- इन परीक्षाओं के द्वारा छात्रों के सम्बन्ध में पूर्ण जानकारी प्राप्त नहीं हो पाती। परीक्षक किसी भी हालत में छात्रों की आलोचनात्मक शक्ति तथा ज्ञान की नई परिस्थितियों में प्रयोग करने की शक्ति का मूल्यांकन नहीं कर पाते।

(6) भाषा ज्ञान की उपेक्षा (Negligence of Language Knowledge)- चूँकि वस्तुनिष्ठ परीक्षाओं में भाषा का प्रयोग न के बराबर होता है अतः छात्र भाषा के सुन्दर लेखन, भाषा-शैली तथा भाषा-अभिव्यक्ति से सम्बन्धित योग्यता की वृद्धि की कोई चिन्ता नहीं करते और जिसमें यह योग्यता होती भी है उसका मूल्यांकन भी नहीं हो पाता। इस प्रकार वस्तुनिष्ठ परीक्षाओं में भाषा- ज्ञान की पूर्ण उपेक्षा होती है जबकि यह ज्ञान जीवन में शिक्षा की दृष्टि से सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण होता है।

(7) व्यय-साध्य या खर्चीली (Expensive)- कुछ लोगों का विचार है कि वस्तुनिष्ठ परीक्षाएँ व्यय-साध्य व खर्चीली होती हैं। उनके प्रश्नों का निर्माण कराने, इस परीक्षाओं को सम्पन्न कराने तथा उनका मूल्यांकन आदि कराने में विद्यालयों को लम्बी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है और इस प्रकार ये परीक्षाएँ अधिक खर्चीली बन जाती हैं।

निबन्धात्मक तथा वस्तुनिष्ठ परीक्षाओं में अन्तर (Difference between Essay Type and Objective Type Tests)

वस्तुतः निबधात्मक तथा वस्तुनिष्ठ परीक्षा, दोनों प्रकार की परीक्षाओं का उद्देश्य छात्रों की शैक्षिक निष्पत्तियों (Educational Achievement) की जाँच करना है किन्तु समान उद्देश्य होने पर दोनों में महत्त्वपूर्ण अन्तर पाये जाते हैं जिन्हें हम विभिन्न विशेषताओं को सामने रखकर निम्न प्रकार से प्रस्तुत कर सकते हैं-

क्र.सं. विशेषताएँ (Characteristics)

अनौपचारिक

(Essay Type Tests)

औपचारिकेत्तर

(Objective Type Tests)

1. विषय-वस्तु (Subject Matter) इसमें सीमित विषय-वस्तु का मूल्यांकन होता है। इसमें सम्पूर्ण विषय-वस्तु का मूल्यांकन होता है।
2. प्रश्नों का निर्माण (Preparation of Questions) यह बहुत सरल होता है। यह तुलनात्मक रूप से कठिन कार्य है।
3. तैयारी का स्वरूप, (Nature of Preparation) साल के अन्त में विषय-वस्तु के केवल महत्त्वपूर्ण तथ्यों का अध्ययन किया जाता है। सम्पूर्ण वर्ष अध्ययन करके विषय-वस्तु के समस्त पक्षों का अध्ययन किया जाता है।
4. ज्ञान तथा बोध का मापन (Measurement of Knowledge and Understand) ज्ञान एवं बोध दोनों की परीक्षा हो सकती है किन्तु यह बोध की परीक्षा के लिए अधिक उपयुक्त है।  यद्यपि इसमें भी दोनों की परीक्षा सम्भव है किन्तु बोध की तुलना में यह ज्ञान की परीक्षा के लिए अधिक उपयुक्त है।
5. छात्रों के उत्तर (Answers of the Students) मौखिक उत्तर दिये जा सकते हैं। उत्तरों को विकल्पों में से चुनना होता है।
6. अनुमान की सम्भावना (Possibility of Guess) अनुमान से उत्तर देने की सम्भावना नहीं होती है। अनुमान की सम्भावना बहुत अधिक रहती है।
7. उत्तरों का अंकन (Scoring of Ansers) अंकन कठिन, आत्मनिष्ठ एवं अविश्वसनीय होता है। अंकन सरल, वस्तुनिष्ठ एवं विश्वसनीय होता है और शीघ्रता से सम्पन्न होता है।

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shubham yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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