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वस्तुनिष्ठता की परिभाषा (Definition of Objectivity)
वस्तुनिष्ठता वैज्ञानिक दृष्टिकोण का एक प्रमुख अंग है। जब विषय-वस्तु को अपने व्यक्तिगत दृष्टिकोण के बजाय, उसी रूप में देखा जाता है जिसमें कि वह है, तो उसका अभिप्राय वस्तुनिष्ठता से है। वस्तुनिष्ठता को निम्न प्रकार परिभाषित किया गया है-
(1) लावल कार के अनुसार, “सत्य की वस्तुनिष्ठता का अर्थ यह है कि घटनामय संसार के किसी व्यक्ति के विश्वासों, आशाओं अथवा भय से स्वतन्त्र एक वास्तविकता है जिसका सब कुछ हम अन्तर्दृष्टि और कल्पना से नहीं, बल्कि वास्तविक अवलोकन के द्वारा प्राप्त कर सकते हैं।”
( 2 ) ग्रीन के अनुसार, “वस्तुनिष्ठता प्रमाण की निष्पक्षता से परीक्षण करने की इच्छा एवं योग्यता है।”
(3) फेयरचाइल्ड के अनुसार, “वस्तुनिष्ठता या वैषयिकता का अर्थ उस योग्यता से है जिसमें एक अनुसन्धानकर्त्ता स्वयं ही उन परिस्थितियों से अलग रख सके जिसमें वह सम्मिलित है और द्वेष व उद्वेग के स्थान पर निष्पक्ष प्रमाणों या तर्क के आधार पर तथ्यों को उनकी स्वाभाविक पृष्ठभूमि में देख सकें।”
लुण्डबर्ग का मत है कि अभिमति एवं पक्षपात समस्त विज्ञानों में कठिनाइयाँ पैदा करते हैं। ये कठिनाइयाँ समाज विज्ञानों की अपेक्षा प्रकृति अथवा भौतिक विज्ञानों में कम है। इसका मुख्य कारण भौतिक विज्ञानों की विषय-वस्तु है। समाज विज्ञानों में यह कठिनाई इस कारण अधिक है इनकी विषय-वस्तु सजीव है। इसके विपरीत, भौतिक विज्ञानों की विषय-वस्तु निर्जीव है, जिसके ऊपर नियन्त्रण किया जा सकता है। इसी कारण भौतिक विज्ञानों के परिणाम, अनुसंधानकर्त्ता की मानसिक दशा से प्रभावित नहीं होते हैं। इस प्रकार वैषयिकता, अनुसंधानकर्ता की भावना तथा क्षमता से सम्बन्धित है।
वस्तुनिष्ठता का महत्त्व ( Importance of Objectivity)
वस्तुनिष्ठता के महत्त्व को निम्न तथ्यों द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-
(1) सत्यापनशीलता के लिए— सत्यापनशीलता की दृष्टि से वस्तुनिष्ठता का होना आवश्यक है। वस्तुनिष्ठता अनुसंधान के प्रत्येक स्तर के लिए आवश्यक है। उदाहरण के लिए यदि अध्ययन विषय-वस्तु का संग्रह वैषयिक है लेकिन उसका वर्गीकरण और विश्लेषण वस्तुनिष्ठ नहीं है, तो एक ही घटना से विभिन्न लोग अलग-अलग निष्कर्ष निकालेंगे। इसलिए अनुसंधान के प्रत्येक स्तर पर वस्तुनिष्ठता का होना नितान्त आवश्यक है। इसके अभाव में विषय-वस्तु का सत्यापन अत्यन्त जटिल हो जाता है।
(2) सामाजिक अनुसन्धान को वैज्ञानिक स्थिति प्रदान करने के लिए- भौतिक विज्ञानों में वस्तुनिष्ठता का अभाव, अनुसंधान के परिणाम को उतना विकृत नहीं करता जितना कि समाज विज्ञान में। इसका मुख्य कारण यह है कि भौतिक विज्ञानों की विषय-वस्तु जड़ है, यह विषय-वस्तु न तो अनुसंधानकर्ता को प्रभावित करती है और न अनुसंधानकर्ता के व्यक्तिगत विचार, भावनाएँ, मान्यताएँ इत्यादि इस विषय-वस्तु के विवेचन को प्रभावित करती हैं लेकिन सामाजिक अनुसंधान के क्षेत्र में यह बात लागू नहीं अतः वस्तुनिष्ठता को बनाये रखना आवश्यक होता है।
(3) अभिमति को दूर करने के लिए- सामाजिक घटनाएँ प्रायः अमूर्त्त और जटिल होती हैं। इनका भावात्मक प्रभाव अनुसंधानकर्ता के मस्तिष्क के कुछ निश्चित धारणाओं को अंकित कर, उनकी निष्पक्षता को विकृत कर देता है। इस प्रकार अनुसंधानकर्ता की अभिमति (Bias) वास्तविक परिणाम को पाने में बाधा उत्पन्न करती है। अनुसंधानकर्त्ता अपने निजी स्वार्थ, विचार अथवा रुचि के अनुरूप ही अनुसंधान के परिणाम को ढालता है इसलिए भौतिक विज्ञान की अपेक्षा सामाजिक विज्ञानों में वस्तुनिष्ठता अधिक आवश्यक है।
(4) अनुभव ज्ञान को प्राप्त करने के लिए- सामाजिक अनुसन्धान में वैज्ञानिक पद्धति के सफल उपयोग के लिए, अनुभवजन्य ज्ञान आवश्यक है। यह अनुभवजन्य ज्ञान तभी सम्भव है जब कि अनुसन्धानकर्ता का दृष्टिकोण वस्तुनिष्ठ हो।
(5) वैज्ञानिक पद्धति के सफल प्रयोग के लिए- सामाजिक अनुसन्धान में वैज्ञानिक पद्धति के सफल उपयोग के लिए वस्तुनिष्ठता आवश्यक है। वस्तुनिष्ठता के, बिना वैज्ञानिक पद्धति का उपयोग कठिन है। वस्तुनिष्ठता वैज्ञानिक पद्धति की प्रथम अनिवार्यता है। वस्तुतः वैज्ञानिक पद्धति और वस्तुनिष्ठता एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।
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